NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
संस्कृति
पुस्तकें
भारत
राजनीति
भोपाल में विश्व हिन्दी पंचायत [सम्मेलन]
वीरेन्द्र जैन
08 Sep 2015
मध्य प्रदेश के व्यापम प्रसिद्ध मुख्यमंत्री पंचायतें जोड़ने के लिए भी चर्चित हैं और उन्होंने समय समय पर, विशेष रूप से चुनाव का समय निकट होने पर घरेलू काम करने वाली महिलाओं, ठेले वालों, दर्जियों, बस चालकों-परिचालकों, फुटकर दुकानदारों, नाइयों आदि से लेकर विभिन्न तरह की सेवाएं देने वालों की पंचायतें सरकारी खर्च पर आयोजित की हैं व इनके प्रचार प्रसार के नाम पर जन सम्पर्क विभाग से धन पानी की तरह बहाया है। भले ही इन पंचायतों से सम्बन्धित सेवा वर्ग का कोई भला हुआ हो या नहीं किंतु मुख्यमंत्री की छवि को प्रसारित करने में अवश्य मदद मिली होगी। शायद यही कारण है कि एसआईटी और लोकायुक्त जैसे पदों पर विराजे वरिष्ठ न्यायाधीशों द्वारा व्यापम को उनके जीवन में देखे भयंकरतम घोटाला बताये जाने के बाद भी मुख्यमंत्री अपने पद पर सुशोभित हैं, और हिन्दी सेवियों की पंचायत बुलाने को तत्पर हैं। सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देशों के बाद भी अभी तक सरकारी विज्ञापनों के आडिट कराये जाने के बारे में कोई प्रगति देखने को नहीं मिलती और मध्य प्रदेश का जनसम्पर्क विभाग आडिट का सबसे सुपात्र है।
 
इन्हीं पंचायतों की तर्ज पर भोपाल में विश्व हिन्दी सम्मेलन के नाम करोड़ों रुपया फूंका जा रहा है और अमिताभ बच्चन के सहारे नरेन्द्र मोदी की मेजबानी की जा रही है। अगर इसे विश्व हिन्दी पंचायत कहा जाये तो कुछ भी गलत नहीं होगा। उल्लेखनीय है कि इस सम्मेलन के नाम पर एक ओर तो भोपाल की पुरानी जर्जर पानी की टंकियों पर बारह खड़ी लिखवा कर हिन्दी सेवा की जा रही है. पुराने पड़ चुके प्रसिद्ध न्यू मार्केट को नया बाज़ार का नाम देने की औपचारिकता की जा रही है, पर इसी बीच बदनाम हो चुके व्यापम का नाम बदल कर प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड कर दिया है, क्योंकि अंग्रेजी नाम से ईमानदारी और हिन्दी नाम से बेईमानी की बू आती है।
                                                                                                                           
 
हरिशंकर परसाई ने एक बार लिखा था कि “हिन्दी दिवस के दिन हिन्दी बोलने वाले हिन्दी बोलने वालों से कहते हैं कि हिन्दी में बोलना चाहिए”। किसी हिन्दी प्रदेश में विश्व हिन्दी सम्मेलन करने का सांकेतिक अर्थ भी नहीं होता है। स्मरणीय है कि गुजराती मातृभाषा वाले महात्मा गाँधी ने राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की स्थापना गैर हिन्दीभाषी प्रदेश में की थी।
 
विश्व हिन्दी सम्मेलनों के परिणामों का कभी सही मूल्यांकन नहीं हुआ है और विदेशों में होने वाले ये सम्मेलन सरकारी धन पर कुछ सरकारी पत्रकारों, चयनित साहित्यकारों एवं सरकारी नौकरी में अतिरिक्त कमाई कर के तृप्त हो जाने वाले अधिकारियों के पर्यटन का साधन बनते रहे हैं। इन सम्मेलनों का जो आयोजन करते रहे हैं उनमें से कुछ पर्यटन स्थलों पर जाने वाली वायुयान कम्पनियों और होटलों के एजेंट भी हैं। हमारी पुराण कथाएं प्रेरक भी होती थीं और सबसे प्रसिद्ध पुराण कथा बताती है कि रावण साधु के भेष में आने पर ही छल करने में सफल होता है। जैसे कि आस्थावानों से पैसा निकलवाने के लिए धार्मिक वेषभूषा वाले ठग, गाय, गंगा आदि के नाम पर दुहते हैं, उसी क्रम में बेचारी हिन्दी को भी रख कर सरकार के माध्यम से पूरी जनता का पैसा निकलवा लिया जाता है। कैसी विडम्बना है कि भोपाल में हिन्दी के नाम पर जितनी संस्थाएं चल रही हैं वे कौड़ियों के नाम पर सरकारी ज़मीनें लेकर मँहगे बारात घर चला रही है और अहसान की तरह सरकारी अनुदान लेकर कभी कभी कुछ साहित्यिक दिखावा भी कर लेती हैं। इनके आयोजनों ने न किसी नये साहित्यिक आन्दोलन को जन्म दिया और न ही किसी विमर्श का सूत्रपात किया। किसी भी असली नकली शोध छात्र के प्रबन्ध में इन आयोजनों से मिले ज्ञान का उल्लेख देखने को नहीं मिलता।
 
प्रत्येक विश्व हिन्दी सम्मेलन में साहित्यकार सर्वाधिक उत्साहित नजर आते हैं जबकि ये आयोजन साहित्य सम्मेलन की जगह भाषा सम्मेलन होते हैं, और इनमें साहित्य की एक निश्चित जगह होती है जो पाठको के निरंतर कम होते जाने से और भी कम होती जा रही है। हिन्दी का सबसे अधिक प्रयोग सूचना माध्यमों और विज्ञापनों में हो रहा है और ये ही माध्यम अपनी जरूरतों के अनुसार बदलते समाज की भाषा को प्रभावित कर रहे हैं। समाचार पत्रों के या तो पूरे पूरे नाम अंग्रेजी में हैं या उनके संलग्नकों [सप्प्लीमेंट्स] के नाम अंग्रेजी में हैं। विडम्बना यह भी है कि पूरे हिन्दी नाम वाले अखबार या तो बन्द होते जा रहे हैं या सिकुड़ते जा रहे हैं। विज्ञापन समाचार माध्यमों का बड़ा हिस्सा घेरने लगे हैं और ऐसी कोई शर्त नहीं है कि जिस भाषा का अखबार है वह उसी भाषा में विज्ञपन देगा। केवल हिन्दी समझने वाले लोगों के क्षेत्र में बिकने वाले सामान पर भी वस्तुओं के नामों और विवरणों का ज्यादार हिस्सा अंग्रेजी में होता है। ज्यादातर का उद्देश्य इस प्रयोग के पीछे अपने ग्राहकों को अँधेरे में रखना होता है। इसी तरह सरकारी काम काज और सशक्तीकरण योजनाओं के प्रपत्र आदि या तो अंग्रेजी में होते हैं या क्लिष्ठ संस्कृतनिष्ठ होने के कारण सम्बन्धित को अस्पष्ट होते हैं जिसके सहारे सुपात्र को वंचित करके भ्रष्टाचार की राह आसान की जाती है। खेद है कि हिन्दी सम्मेलनों में इन विषयों पर विमर्श की जगह सरस्वती माता, हिन्दी माता  की आरती उतारने जैसे काम अधिक होते हैं।
 
क्या जरूरी है कि कोई भी भाषा सम्मेलन किसी भी तरह की सरकार का मुखापेक्षी रहे? यह काम अपनी भाषा से प्रेम करने वाले साहित्यकार, पत्रकार और व्यापार जगत क्यों नहीं कर सकता। जो समाज धार्मिक स्थलों पर अरबों रुपये चढा सकता है वह अपनी भाषा के लिए क्या कुछ भी योगदान नहीं कर सकता? लोकतंत्र में सरकारें भी जनता की होती हैं किंतु जब तक जनता की मांग के बिना सरकारें कुछ भी देती हैं तो वह भ्रष्टाचार की भेंट चढ जाता है इसलिए जरूरत है कि अपनी भाषा के प्रति जनता को जागरूक और सक्रिय किया जाये। यदि कोई हिन्दी सम्मेलन यह काम कर सकेगा तब ही वह कामयाब होगा, बरना सरकारी धन को राम की चिड़ियां, राम का खेत मान कर भर भर पेट खा लेने वाले तो तैयार बैठे हैं। 
 
डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख में वक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारों को नहीं दर्शाते ।
मध्य प्रदेश
विश्व हिन्दी सम्मेलन
समाज
साहित्य
भाजपा
शिवराज सिंह चौहान

Related Stories

कृष्णा सोबती : मध्यवर्गीय नैतिकता की धज्जियां उड़ाने वाली कथाकार

"हमारी मनुष्यता को समृद्ध कर चली गईं कृष्णा सोबती"

तिरछी नज़र : कराची हलवा और जिह्वा का राष्ट्रवाद

हिन्दी कभी भी शोषकों की भाषा नहीं रही

न उनकी रीढ कभी झुकी,न ही उनके आम आदमी की


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License