NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
अमेरिका
बाइडेन की नीति से घटा चीन से तनाव 
अमेरिकी राष्ट्रपति की चीनी राष्ट्रपति के साथ फोन पर 90 मिनट तक की लंबी बातचीत इसके समय, पृष्ठभूमि और मायनों को देखते हुए बेहद अहम हो जाती है।
एम. के. भद्रकुमार
13 Sep 2021
बाइडेन की नीति से घटा चीन से तनाव 
31 अगस्त 2021 को वाशिंगटन के व्हाइट हाउस में अफगानिस्तान में युद्ध के अंत के बारे में बातचीत करते अमेरिकी राष्ट्रपति जोए बाइडेन। 

अमेरिकी एवं चीनी राष्ट्रपतियों के बीच शुक्रवार को फोन पर 90 तक की लंबी बातचीत दुनिया के लिए निश्चित रूप से एक बड़ी सुर्खी बनी है, लेकिन राष्ट्रपति जो बाइडेन का अपने चीनी समकक्ष शी जिनपिंग से फोन पर बातचीत अपने समय, इसकी पृष्ठभूमि एवं सारतत्त्व के दृष्टिकोण से विशेष ध्यान खींचती है। 

यह बातचीत ‘उत्तर-अफगानिस्तान काल’ में, न्यूयार्क में वर्ल्ड ट्रेड टॉवर्स पर 9/11 के हमले की 20वीं ‘वर्षगांठ’ के अवसर पर हुई, जब अमेरिकी विदेश नीति में ‘बाइडेन सिद्धांत’ के आकार लेने की उम्मीदें परवान चढ़ी हुई हैं। कहना न होगा कि ये तीनों ही अमेरिका के धीमे किंतु लगातार गिरावट को सुनिश्चित करने वाली पृष्ठभूमि के संकेतों को परिभाषित करने वाले क्षण हैं। 

फॉरेन अफेयर्स पत्रिका में प्रकाशित एक बेहद उम्दा लेख बाइडेन-सिद्धांत को निम्नलिखित तरीके से परिभाषित करता है: व्यावहारिक यथार्थवाद का एक 'सुसंगत संस्करण-विचार का एक ऐसा तरीका है, जो अमेरिका के वास्तविक हितों की उन्नति को महत्त्व देता है, अन्य राष्ट्र-राज्यों से अपेक्षा करता है कि वे खुद के हितों का पालन करें और इस प्रतिस्पर्धी दुनिया में संयुक्त राज्य अमेरिका को जो चाहिए, उसे प्राप्त करने देने के लिए अपने रास्ते बदलें...[यह चिह्नित करते हुए]  कि यह अमेरिका की दशकों से चली आ रही अति-हस्तक्षेपी विदेश नीति, जिसने हासिल न किए जा सकने वाले लक्ष्यों की खोज में अनेक जीवन एवं संसाधनों को बरबाद कर दिया है, उसमें यह बदलाव स्वागतयोग्य है।’ 

बेशक, उपरोक्त परिभाषा अंशतः ही सही है। क्या बाइडेन नाटो के विस्तार के प्रबल समर्थक नहीं थे, जो शीतयुद्ध के बाद के युग में बड़ी शक्तियों की राजनीति में एक परिवर्तनकारी मोड़ साबित हुआ था? इस बारे में, जॉर्ज केनन ने उस समय बड़ी दूरदर्शिता से दुनिया को खबरदार किया था: 

“क्यों पूरब-पश्चिम के बीच के संबंध को, शीत युद्ध की समाप्ति तक उत्पन्न सभी आशावादी संभावनाओं के साथ, इस सवाल पर टिका दिया जाना चाहिए कि कौन किसका सहयोगी होगा और, इसके नतीजतन, वह गठबंधन कुछ सजावटी, पूरी तरह अकल्पनीय और भविष्य के सर्वाधिक असंभव सैन्य संघर्ष में किसके खिलाफ खड़ा होगा?”

“बेबाक कहें...नाटो का शीतयुद्ध के बाद के पूरे युग में विस्तार, अमेरिकी विदेश नीति की सबसे घातक भूल होगी। रूस के विचार में, इस तरह के निर्णय से, राष्ट्रवादी, पश्चिमी-विरोधी और सैन्यवादी प्रवृत्तियों को भड़काने की ही उम्मीद की जा सकती है; इसीने रूस के लोकतंत्र के विकास पर बुरा असर डाला है; पूर्व और पश्चिम के देशों के संबंधों में शीत युद्धकालीन माहौल बनाया है, और रूस की विदेश नीति को निश्चित रूप से उन दिशाओं में ठेल दिया है, जो निर्णायक रूप से हमारी पसंद के मुताबिक नहीं है....” 

इसमें कोई शक नहीं कि बाइडेन अमेरिकी प्रतिष्ठान का प्रतिनिधित्व करते थे और वे अमेरिकी रणनीतिक समुदाय और राजनीतिक अभिजात वर्ग की तरह ही 'एकध्रुवीय क्षण' की अनुभूति से भरे हुए थे। उन्होंने युगोस्लाविया में अमेरिका के नेतृत्व में सैन्य हस्तक्षेप का समर्थन किया था और अफगानिस्तान-ईराक में युद्ध को अधिकृत करने के पक्ष में मतदान किया था। बाइडेन ने ईराक पर हमले के शुरुआती खास दौर में, अमेरिका को इस देश को ‘बहुलतावादी एवं लोकतांत्रिक समाज के रास्ते पर डालते’ भी देखा था। 

हालांकि, निष्पक्ष रूप से कहें तो, एकबारगी जब यह स्पष्ट हो गया कि अफगानिस्तान एवं ईराक में अमेरिका के युद्ध के परिणाम भयानक रूप से गलत होने जा रहे थे, तो बाइडेन ने किसी ‘आवेशित’ रणनीति का विरोध किया और वहां से तुरंत निकल लेने का अनुरोध किया था। अब इसे व्यावहारिक यथार्थवादी प्रवृत्ति कहें या एक घाघ राजनीतिक का पूर्वाभास, यहीं से बाइडेन सिद्धांत की लाइन के लिए एक उम्मीद बंधती लगती है, जिसे उन्होंने 31 अगस्त को अफगानिस्तान में युद्ध की समाप्ति पर अपने ऐतिहासिक भाषण में प्रतिपादित किया था। 

इस नतीजे पर पहुंचना अभी जल्दबाजी होगी कि अफगानिस्तान की वापसी अमेरिका के सैन्य पदचिह्नों की एक नई भूमिका की पूर्व सूचना है-हालांकि बाइडेन के लिए घरेलू सुधार आज एक बाध्यकारी वास्तविकता है, जो अमेरिका से साम्राज्यवादी महत्त्वाकांक्षाओं से बाज आने की मांग करती है। 

निश्चत रूप से, एशिया में अमेरिका का अतिसैन्यीकृत एवं शून्य जोड़ दृष्टिकोण इसका मानदंड होगा। चीन के साथ अति प्रतिस्पर्धा के आह्वान ने तनाव को और बढ़ाया ही है। अगर यह ताईवान की रक्षा की खास गारंटी की हद तक जाता है, तो फिर वाशिंगटन की पहले की व्यापक क्षेत्रीय प्रतिबद्दताएं ही लाल रेखा पार कर जाएंगी।

बाइडेन का नजरिया चीन के साथ भूराजनीतिक शत्रुता को बढ़ाने का रहा है, जबकि वे उसके साथ साझा क्षेत्र की चुनौतियों से निबटने एवं राजनय के लिए एक जगह सुरक्षित रखने के भावों का स्वागत भी करता है। हालांकि, पेइचिंग ने चुनिंदा मसलों पर संबंध कायम करने के अमेरिकी नजरिये के प्रति कड़ा रुख अख्तियार किया है-उसने दो टूक कह दिया कि, जब तक चीन के प्रति अमेरिका के जानबूझ कर किए जा रहे दमनात्मक एवं दुश्मन रवैये में बदलाव नहीं आता है, तो कोई सहयोग संभव नहीं है। 

यह ऐसी पृष्ठभूमि है, जिसमें बाइडेन ने शुक्रवार को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बातचीत की थी, इसे समझने की जरूरत है। व्हाइट हाउस के वक्तव्य की तिहरी खासियत है-पहली, एक 'व्यापक, रणनीतिक चर्चा' की गई, जिसके नतीजतन परस्पर रजामंदी बनी कि उन क्षेत्रों पर 'खुले और सीधे' संलग्न हुआ जाए जहां उनके हित मिलते हैं, और जहां 'हमारे हित , मूल्य और दृष्टिकोण अलग हो जाते हैं।' सब पर चर्चा की जाए।

दूसरी, बाइडेन ने बातचीत में, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ‘शांति, स्थिरता, एवं समृद्धि’ के प्रति अमेरिकी की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया और यह देखना तय किया कि मौजूदा ‘प्रतिस्पर्धा संघर्ष में न बदलने पाए।’ तीसरी, व्हाहइट हाउस का यह नरम-शब्दों में जारी किया गया वक्तव्य है, जिसमें चीन के दूसरों पर हावी होने की प्रवृत्ति या उनकी आक्रामक गुस्ताखियों के जिक्र से बचा गया है। 

यह वक्तव्य इसी साल, 20 फरवरी को बाइडेन एवं शी के बीच हुई बातचीत के बाद रूखाई से जारी किए गए वक्तव्य एकदम विपरीत है। फरवरी में, बाइडेन ने ‘एक मुक्त एवं खुले हिंद-प्रशांत के संरक्षण’ की रट लगाई थी और ‘पेइचिंग के बलात और अनुचित आर्थिक आचरणों, हांगकांग में बल प्रयोग, शिन्जियांग प्रांत में मानवाधिकारों के उल्लंघनों और ताईवान समेत, पूरे क्षेत्र में उसकी बढ़ती दखलकारी कार्रवाइयों के बारे में अपने बुनियादी सरोकारों को रेखांकित किया था।’

बाइडेन तब अपनी बात पर अड़े थे और चीन के साथ द्विपक्षीय बातचीत में उनकी दिलचस्पी एक तंग नजरिए पर आधारित थी, जिसमें कहा गया था कि वे ‘उस व्यावहारिक और परिणामोन्मुखी संवाद में ही शामिल होंगे जो अमेरिकी लोगों और उनके सहयोगियों के हितों को आगे बढ़ाए।’ इसके विपरीत, शुक्रवार को, बाइडेन वस्तुतः संबंधों के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने के पेइचिंग के आग्रह को स्वीकार कर लिया है। यह बड़े पुनर्विचार की मांग करता है। 

सचमुच, बाइडेन एवं शी के बीच बातचीत के बाद चीन का विस्तृत वक्तव्य 'स्पष्ट,  गहन और व्यापक रणनीतिक संवाद और उसके आदान-प्रदान' पर संतोष व्यक्त करता है, जो अपने आप में विशिष्ट है। हालांकि यह संबंध केवल अमेरिकी नीतियों के कारण ‘गंभीर कठिनाई में फंस’ गया है, जिस पर शी ने आगे बढ़ कर कहा है:  

‘रिश्ते को दुरुस्त करना ही विकल्प नहीं है, लेकिन कुछ ऐसा है, जिसे हमें अवश्य करना चाहिए और हमें अवश्य ही कुछ अच्छा करना चाहिए...दोनों देशों को आगे देखना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए, सामरिक साहस एवं राजनीतिक संकल्प का साहस दिखाना चाहिए, और चीन-अमेरिका संबंध को, जितनी जल्दी संभव हो सके, सतत विकास के सही रास्ते पर ले आना चाहिए।’ 

लेकिन फिर, शी ने सज्जनता से यह भी कहा कि 'समन्वय और सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए एक दूसरे से जुड़ाव और संवाद को ' एक-दूसरे की मूल चिंताओं का सम्मान करने और मतभेदों को ठीक से प्रबंध करने के आधार पर’ किए जाने की आवश्यकता है। कुल मिलाकर, कहा जा सकता है कि शी की टिप्पणी चीनी अधिकारियों की 'सब कुछ-या-कुछ नहीं’ की अतिवादी धारणा को नरम करती है, जो मानते हैं कि जब तक कि अमेरिकी नीतियां नहीं बदलतीं, उससे सहयोग नहीं किया जा सकता। 

चीनी वक्तव्य कहता है कि बाइडेन ने ‘एक चाइना नीति’ के प्रति अमेरिकी समर्थन की पुष्टि की है और चीन के साथ अधिक स्पष्ट आदान-प्रदान और रचनात्मक चर्चाओं के लिए प्रमुख और प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की पहचान की बात कही है, जहां परस्पर सहयोग संभव है। इसके साथ ही, भ्रांतियों को दूर करने, गलत अनुमानों एवं अनपेक्षित संघर्ष से बचने, एवं संयुक्त राज्य अमेरिका एवं चीन संबंध को वापस पटरी पर लाने की मांग की है।’

बाइडेन ने यह भी कहा कि अमेरिका महत्त्वपूर्ण मसलों पर ‘चीन के साथ अधिक सामान्य धरातल पर पहुंचने के लिए आगे भी और अधिक विचार-विमर्श एवं सहयोग की संभावना को देखता’ है और उन्होंने इस पर भी प्रकाश डाला कि ‘विश्व के एक बड़े हिस्से का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि अमेरिका और चीन एक दूसरे के साथ कैसे आगे बढ़ते हैं।’ 

और दोनों नेता-बाइडेन एवं शी-इस बात पर सहमत हुए कि ‘इस संपर्क को अनेक माध्यमों के जरिए आगे भी कायम रखा जाए एवं अधिकारियों के स्तर पर कामकाज को तेजी से बढ़ाने, सघन संवाद करने एवं चीन-अमेरिकी संबंधों में आगे के विकास के लिए अपेक्षित स्थितियां बनाने का निर्देश दिया जाए।’ 

क्या उन्होंने जल्दी ही व्यक्तिगत मुलाकात के लिए भी किसी तारीख का आदान-प्रदान किया? ऐसा अब पूरी तरफ संभव है। ऐसा लगता है कि चीन को दबाने का बाइडेन का भ्रम दूर हो गया है। इसके बाद, यह माना जा रहा है कि मुख्य वैश्विक मसलों;  मसलन, जलवायु परिवर्तन एवं अफगानिस्तान से लेकर उत्तर कोरिया एवं ईरान तक के हल के लिए चीन की मदद एवं सहयोग अहम है। 

दिलचस्प है कि दोनों देशों के बीच हालिया हुए शीर्ष स्तर के सभी संवादों की पहल अमेरिका की तरफ से ही की गई है। बीते तीन हफ्तों में अमेरिकी विदेश मंत्र एंटोनी ब्लिंकन ने चीनी स्टेट कांउसिलर और विदेश मंत्र वांग यी से दो बार बातचीत की है। वहीं, बाइडेन के जलवायु राजदूत जॉन कैरी ने अपने चीन दौरे के क्रम में वांग यी एवं पोलित ब्यूरो के सदस्य यांग जिचि से मुलाकात की है। 

ये सभी उपक्रम वाशिंगटन के लिए चीन की तरफ हाथ बढ़ाने की दरकार कर रहे हैं। अमेरिकी प्रशासन विदेश नीति की चुनौतियों से जूझ रहा है एवं कई मोर्चो पर संकट के साथ घरेलू स्तर पर भी भारी दबाव का सामना कर रहा है। 

हालांकि, यहां एक विरोधाभास है–एक तरफ उदीयमान चीन के साथ बढ़ती शत्रुता एवं ‘सामरिक प्रतिद्वंद्दवी’ को कमजोर करने का जुनून है, तो दूसरी तरफ चीन की तुरंत मदद एवं सहायता की कड़ी दरकार है। इन विरुद्धों में सामंजस्य बिठा पाने में ही बाइडेन के सिद्धांत का कड़ा इम्तेहान होने वाला है।

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

Biden Doctrine Abates China Tension

United States
China
Xi Jinping
US foreign policy
NATO
US Administration
Joe Biden

Related Stories

बाइडेन ने यूक्रेन पर अपने नैरेटिव में किया बदलाव

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन में हो रहा क्रांतिकारी बदलाव

90 दिनों के युद्ध के बाद का क्या हैं यूक्रेन के हालात

यूक्रेन युद्ध से पैदा हुई खाद्य असुरक्षा से बढ़ रही वार्ता की ज़रूरत

खाड़ी में पुरानी रणनीतियों की ओर लौट रहा बाइडन प्रशासन

फ़िनलैंड-स्वीडन का नेटो भर्ती का सपना हुआ फेल, फ़िलिस्तीनी पत्रकार शीरीन की शहादत के मायने

यूक्रेन में संघर्ष के चलते यूरोप में राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव 

क्या दुनिया डॉलर की ग़ुलाम है?

सऊदी अरब के साथ अमेरिका की ज़ोर-ज़बरदस्ती की कूटनीति

रूस की नए बाज़ारों की तलाश, भारत और चीन को दे सकती  है सबसे अधिक लाभ


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License