NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
BJP का गुजरात घोषणापत्र: आप हमेशा लोगों को धोखा नहीं दे सकते
मतदान की पूर्व संध्या पर जारी किया गया घोषणापत्र खोखला और अस्पष्ट है। कुछ आँकड़ों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया।
सुबोध वर्मा
11 Dec 2017
gujrat elections

विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान होने से ठीक पहले गुजरात के लिए भाजपा का घोषणापत्र 8 दिसंबर को अहमदाबाद में दो केंद्रीय मंत्रियों ने जारी किया। एक घोषणा पत्र के रूप में किसी भी सार्वजनिक प्रतिबद्धता के बिना पार्टी मुद्दों को अलग रखते हुए कुल 89 सीटें (कुल 182 में से) के लिए किस तरह प्रचार की, ये 20 पृष्ठ के दस्तावेज पांच साल पहले किए गए वादे को पूरा करने में विफल रहने के प्रमाण है। यह आँकड़ों के इस्तेमाल की पार्टी की आदत का भी प्रमाण है, भले ही उसे तात्कालिक हितों के अनुरूप बदलने की जरूरत हो।

 

इस घोषणापत्र का हवाला देते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसे जारी करते हुए कहा, "गुजरात का जीएसडीपी विकास भारत में सबसे ज़्यादा है। पिछले पांच सालों में बड़े राज्यों के बीच गुजरात 10% की औसत दर से बढ़ा।"

लेकिन यह सही नहीं है। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय में केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ऐसे आँकड़ों का एकमात्र स्रोत है और इसके अनुसार राज्य घरेलू उत्पाद में वृद्धि 10.9% (2012-13), 7.6% (2013-14), 7.8 % (2014-15) और 9.2% (2015-16) थी। 2016-17 के लिए आँकड़ा अभी घोषित नहीं हुआ है। इस तरह दो वर्षों में विकास दर 10% से कम थी। जैसा कि अभी भी यह दावा किया जाता है कि विकास औसतन 10% था। ज़ाहिर है यह बीजेपी समर्थकों द्वारा किए गए हाथों की सफाई है।

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि 10% की वृद्धि का क्या फ़ायदा जब न तो रोज़गार बढ़ रहा है, न ही किसानों की आमदनी बढ़ रही है, क़र्ज़ बढ़ गया, और वंचित वर्ग और ग़रीब हो गए? शायद, बीजेपी केवल बड़े उद्योगपतियों और उसके सहयोगियों को फिर से आश्वस्त कर रही है कि अच्छे, लाभप्रद वृद्धि उनके लिए सुनिश्चित किए गए हैं।

गुजरात एक बड़े औद्योगिक कार्यबल के साथ औद्योगिक राज्यों में से एक है। लेकिन घोषणा पत्र मज़दूरी और नौकरी की सुरक्षा सहित कई मुद्दों पर पूरी तरह से मौन है। याद रहे महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसी औद्योगिक बड़ी कंपनियों की तुलना में गुजरात में सबसे कम औद्योगिक मज़दूरी है। वास्तव में एमएसएमई क्षेत्र -जो जीएसटी से तबाह हो गया है- के लिए कम ब्याज ऋण के कुछ शोर शराबे के अलावा पूरे औद्योगिक क्षेत्र के लिए यह कोई योजना नहीं है।

पार्टी का ये घोषणापत्र अपने ही साल 2012 के घोषणापत्र में किए वादों को दोहराता है। पिछले घोषणापत्र में भी पांच मिलियन आवास निर्माण, सौराष्ट्र के लिए सिंचाई व्यवस्था तथा युवाओं को रोज़गार देने का वादा किया गया था। 'युवाओं के लिए रोजगार' जैसे एक अस्पष्ट वादे इतने घिसे-पिटे और शिथिल हो गए हैं कि कोई भी व्यक्ति इसे गंभीरता से नहीं ले सकता है। नौकरियों का सृजन कैसे किया जाएगा? कितना किया जाएगा? किस क्षेत्र में किया जाएगा? पिछले पांच सालों में उन्होंने क्यों नहीं सृजन किया? इसका कोई जवाब नहीं है।

अन्य प्रकार के अस्पष्ट तथा बेबुनियाद वादे "विभिन्न माध्यमों जैसे सस्ते फ़र्टिलाइजर और बीज, बेहतर सिंचाई व्यवस्था, उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री तक सीधे पहुंच बनाकर किसानों की आमदनी दोगुनी करना"। किसानों के लिए ब्याज-मुक्त ऋण और उनके उत्पादन के लिए मूल्य में वृद्धि को लेकर भी वादा किया गया। कोई सरकार जो सब्सिडी घटाती रही है तथा समर्थन मूल्यों में वृद्धि का विरोध करती है तो ऐसे में यह विश्वास करना मुश्किल है कि वह अब इस तरह का काम करेगी। ऐसा लगता है कि गुजरात में किसानों के बीच गहरे गुस्से का यह एक अन्य कारण है- और इस तरह के गंभीर परिस्थितियों को सुधारने के लिए अब काफी देर हो चुकी है। बीजेपी किसानों को जो वादा कर रही है उसका सार यह है- हम आपको कुछ पैसे देंगे, उम्मीद करें कि वह पर्याप्त होगा।

एक तरफ घोषणापत्र में गुजरात से "जातिवाद, संप्रदायवाद और वंशवाद (वंशवादी राजनीति)" को ख़त्म करने का वादा किया जाता है। वहीं दूसरी तरफ यह विभिन्न जातियों और समुदायों, विशेष रूप से कोली और ठाकुर समुदायों के कल्याण के लिए बड़ा-बड़ा वादा किया जाता है। ये दो बड़े ओबीसी समुदाय हैं जिसे भाजपा पटेलों को 'प्रतिस्थापित' करने के लिए लुभा रही हैं जो कि भगवा पार्टी को अपना समर्थन देने से इनकार कर दिया है।

राज्य में विनाशकारी हेल्थ केयर वितरण प्रणाली की क्षतिपूर्ति करने के क्रम में, पार्टी ने सूरत, वडोदरा तथा राजकोट में सुपर स्पेशलिटी अस्पतालों की स्थापना करने और मध्यवर्गीय परिवारों को 2 लाख तक के मेडिकल बीमा का विस्तार करने का वादा किया है। "252 मोबाइल क्लिनिक्स और सरकारी डाइग्नॉस्टिक प्रयोगशालाओं" की स्थापना करने के वादों के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा को यह पूरी तरह नज़रअंदाज़ करता है जो मुश्किल से ही सरकारी प्रणाली के तहत मौजूदा ढहते स्वास्थ्य केंद्रों की जगह ले सकता है। यहां तक कि शहरी क्षेत्रों के लिए ये वादे मध्यवर्गीय परिवारों को ध्यान में रख कर किए गए हैं जबकि शहरी गरीबों के लिए कुछ भी नहीं। साल 2022 तक सभी वेक्टर जनित बीमारियों से राज्य को मुक्त करने का निराधार वादा बीजेपी के हेल्थकेयर एजेंडा में सबसे ऊपर है।

इसी प्रकार से, मध्यवर्गीय लोगों को आकर्षित करने के लिए घोषणा पत्र में सूरत और वडोदरा में मेट्रो रेल परियोजनाओं सहित हर घर में प्राकृतिक गैस कनेक्शन और बहुस्तरीय पार्किंग की व्यवस्था करने का वादा किया गया है।

घोषणापत्र में कई सारे वादे किए गए जैसे "हर घर में पानी का कनेक्शन और शौचालय की व्यवस्था" और "ग़रीब, मज़दूर तथा खानाबदोश जनजातियों के लिए पक्के घर" बनाने का वादा किया गया है। ये सारे वादे पहले भी किए गए थें और 19 वर्षों के निर्बाध शासन करने के बाद भी पार्टी की राज्य सरकार द्वारा पूरा नहीं किया जा सका।

शायद गुजरात में उच्च शिक्षा में नामांकन में कमी की आलोचना के मद्देनज़र घोषणापत्र में लड़कियों के लिए मुफ्त उच्च शिक्षा के साथ निर्धन छात्रों को विशेष छात्रवृत्ति देने का वादा किया गया है।

आख़िर में यह घोषणापत्र अपने अहम मुद्दों की बात करने से परहेज़ नहीं कर सकता है। इसके अहम मुद्दे जैसे करमसद में सरदार वल्लभभाई पटेल की विशाल स्मारक, गोहत्या क़ानून का सख्ती से पालन (क्या इसे पहले लागू नहीं किया जा रहा था?), धार्मिक गुरूओं के साथ समन्वय कर यात्राधाम विकास बोर्ड और पर्यटन बोर्ड की सहायता करने के एक ईकाई की स्थापना करना, गिरनार प्राधिकरण बोर्ड से बोर्ड के लिए स्थानीय "अखाडा" से संतों का प्रतिनिधित्व, और महाशिवरात्रि तथा लिली परिक्रमा के दौरान स्थानीय "अखाडा" को सहायता प्रदान करना है। राज्य में सांप्रदायिकता को समाप्त करने के वादों के बावजूद एक अतिवादी धार्मिक अपील की गई?

gujarat elections 2017
Gujrat
BJP
Gujrat model

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • विकास भदौरिया
    एक्सप्लेनर: क्या है संविधान का अनुच्छेद 142, उसके दायरे और सीमाएं, जिसके तहत पेरारिवलन रिहा हुआ
    20 May 2022
    “प्राकृतिक न्याय सभी कानून से ऊपर है, और सर्वोच्च न्यायालय भी कानून से ऊपर रहना चाहिये ताकि उसे कोई भी आदेश पारित करने का पूरा अधिकार हो जिसे वह न्यायसंगत मानता है।”
  • रवि शंकर दुबे
    27 महीने बाद जेल से बाहर आए आज़म खान अब किसके साथ?
    20 May 2022
    सपा के वरिष्ठ नेता आज़म खान अंतरिम ज़मानत मिलने पर जेल से रिहा हो गए हैं। अब देखना होगा कि उनकी राजनीतिक पारी किस ओर बढ़ती है।
  • डी डब्ल्यू स्टाफ़
    क्या श्रीलंका जैसे आर्थिक संकट की तरफ़ बढ़ रहा है बांग्लादेश?
    20 May 2022
    श्रीलंका की तरह बांग्लादेश ने भी बेहद ख़र्चीली योजनाओं को पूरा करने के लिए बड़े स्तर पर विदेशी क़र्ज़ लिए हैं, जिनसे मुनाफ़ा ना के बराबर है। विशेषज्ञों का कहना है कि श्रीलंका में जारी आर्थिक उथल-पुथल…
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: पर उपदेस कुसल बहुतेरे...
    20 May 2022
    आज देश के सामने सबसे बड़ी समस्याएं महंगाई और बेरोज़गारी है। और सत्तारूढ़ दल भाजपा और उसके पितृ संगठन आरएसएस पर सबसे ज़्यादा गैर ज़रूरी और सांप्रदायिक मुद्दों को हवा देने का आरोप है, लेकिन…
  • राज वाल्मीकि
    मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?
    20 May 2022
    अभी 11 से 17 मई 2022 तक का सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का “हमें मारना बंद करो” #StopKillingUs का दिल्ली कैंपेन संपन्न हुआ। अब ये कैंपेन 18 मई से उत्तराखंड में शुरू हो गया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License