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‘चौकीदार’ की नाक के नीचे ‘लुट’ गए बैंक, फर्जीवाड़े से 41,168 करोड़ का नुकसान
आगामी लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र की मोदी सरकार के तमाम दावों को आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट धूमिल करती है।
नवीन कुमार वर्मा
31 Dec 2018
सांकेतिक तस्वीर
Image Courtesy: ndtv

“सुशासन” और “विकास” का दावा कर देश की सत्ता में आने वाली मोदी सरकार के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की जारी वार्षिक रिपोर्ट 2017-18 मुश्किल बढ़ा सकती हैं। स्वयं को देश का “चौकीदार” कहने वाले प्रधानमंत्री की नाक के नीचे बैंकों के साथ होने वाले फर्जीवाड़े और धोखाधड़ी के मामलों में बढ़ोतरी हुई है।

आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार बैंकों को फर्जीवाड़े के चलते वर्ष 2017-18  में 41,168 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। पिछले वर्ष की तुलना में यह नुकसान 72 फीसदी बढ़ा है। वर्ष 2017-18 में बैंकों के साथ फर्जीवाड़े की कुल 5,917 घटनाएं हुईं जबकि इससे पहले 2016-17 में कुल 5,096 फर्जीवाड़े हुए थे, जिसमें 23,934 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। 

आरबीआई ने कहा, “राशि के मामले में, बैंकिंग क्षेत्र में धोखाधड़ी 2017-18 में तेजी से बढ़ी, जो मुख्य रूप से जूलरी क्षेत्र में हुई है।”

मोदी सरकार के पिछले चार सालों में बैंकों के साथ फर्जीवाड़े में लगातार बढ़ोतरी हुई है और यह घटनाएँ कांग्रेस की पिछली सरकार की तुलना में चार गुना बढ़ गई है। वर्ष 2013-14 में फर्जीवाड़े के चलते कुल 10,170 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था, जो वर्तमान में बढ़कर 41,168 करोड़ रुपये हो गया है।

रिपोर्ट के अनुसार फर्जीवाड़े द्वारा हुए कुल नुकसान का 80 फीसदी हिस्सा, बड़े फर्जीवाड़े का है यानी 50 करोड़ रुपये और उससे अधिक की रकम की धोखाधड़ी। गौर करने वाली बात है कि एक लाख रुपये या उससे अधिक की धोखाधड़ी के 93 प्रतिशत मामले सरकारी बैंकों के साथ हुए जबकि यह संख्या निजी बैंकों के साथ छह प्रतिशत रही। धोखाधड़ी के बढ़ते मामलों ने बैड लोन को काफी बढ़ा दिया है। मार्च 2018 में बैड लोन 10,39,700 करोड़ रुपये था। 2017-18 में 13,000 करोड़ रुपये का पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) घोटाला सामने आया था, जिसमें कारोबारी नीरव मोदी और मेहुल चोकसी शामिल थे।

आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में इस बात को माना है कि  बैंकों के साथ होने वाले फर्जीवाड़े भारतीय अर्थव्यवस्था के एक गंभीर समस्या है। रिजर्व बैंक ने कहा कि “धोखाधड़ी प्रबंधन में सबसे गंभीर चिंता का विषय बन गई है, जिसका 90 प्रतिशत हिस्सा बैंकों के क्रेडिट पोर्टफोलियो में स्थित है”। आरबीआई के अनुसार अधिकतर फर्जीवाड़ा करेंट अकाउंट के जरिये किया गया। 

आरबीआई के अनुसार, धोखाधड़ी के तौर-तरीकों में उधारदाताओं से बिना किसी अनापत्ति प्रमाण पत्र के चालू खाते खोलना,  धोखाधड़ी वाली सेवाएं, विभिन्न माध्यमों से उधारकर्ताओं द्वारा धनराशि का विचलन, शेल कंपनियों के माध्यम से और बैंकों द्वारा शुरुआती संकेतों की पहचान करने में विफलता शामिल है।
फरवरी 2018 में, आरबीआई ने भारतीय बैंक संघ (IBA) को उचित डेटा सुरक्षा और नियंत्रण उपायों के साथ IT- सक्षम,उपयोगकर्ता के अनुकूल, वेब-आधारित TPE रिपोर्टिंग और बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के लिए कार्रवाई शुरू करने की सलाह दी।

देश में विकास और अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के बड़े-बड़े दावे करने वाली मोदी सरकार को आरबीआई की यह वार्षिक रिपोर्ट आईना दिखाने के साथ-साथ सरकार पर कई बड़े सवाल भी उठाती है। सवाल उठता है कि कैसे मोदीराज में बैंक घोटालों और फर्जीवाड़े की संख्या में बढ़ोतरी हुई? क्यों मोदी सरकार द्वारा घोटालेबाजों के प्रति कार्रवाही नहीं की गई? घोटालेबाजों और भाजपा सरकार के बीच क्या संबंध हैं? देश की जनता की मेहनत की कमाई को घोटालेबाजों के लालच की बलि चढ़ाना कहां तक उचित है?  

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सितंबर 2018 में बैंक कर्मचारियों को संबोधित करते हुए दावा किया था कि मोदीराज में बैंकों की हालत में सुधार हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि, “बैंकों की ख़राब स्थिति के लिए यूपीए सरकार ज़िम्मेदार है, जिन्होंने बैंकों को लूटने का काम किया। भाजपा सरकार के आने के बाद बैंकों की स्थिति में सुधार हुआ है।’’ मगर आरबीआई की वर्तमान वार्षिक रिपोर्ट बैंकों की कुछ और ही कहानी बयां करती है। रिपोर्ट साफ़ दर्शाती है कि मोदीराज में बैंकों के साथ होने वाले घोटालों की संख्या में रिकॉर्ड तोड़ बढ़ोतरी हुई है। किसान कर्ज़माफ़ी पर टैक्सपेयर्स के पैसों की बर्बादी का रोना रोने वाले लोगों को आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट पर एक बार नज़र जरुर डालनी चाहिए और खुद से सवाल पूछना चाहिए कि बैंकों का पैसा क्या जनता का पैसा नहीं हैं जिसकी लूट “चौकीदार” की नाक के नीचे हो रही है।

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