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स्वास्थ्य
यूरोप
अमेरिका
चीन को दबाने की पूरी कोशिश कर रही है अमेरिकी सेना
दुनिया में ऐसे किसी मज़बूत शांति आंदोलन की कमी इस वक़्त बहुत खल रही है, जो अमेरिका द्वारा अपनाए जा रहे आक्रामक रवैये को क़ाबू में कर सके। आज इस आंदोलन की बहुत ज़्यादा ,ज़रूरत है
विजय प्रसाद
14 May 2020
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अमेरिका में एक अप्रैल को 'इंडो-पैसिफ़िक कमांड' के एडमिरल फिलिप डेविडसन ने कांग्रेस के सामने 20 बिलियन डॉलर की जरूरत बताई, ताकि कैलीफोर्निया से लेकर जापान और एशिया में प्रशांत महासागर के आसपास सैन्य घेरे को मजबूत किया जा सके। 'रीगेन द एडवांटेज-Regain The Advantage)' नाम के प्रस्ताव में बताया गया ''महाशक्तियों की प्रतिस्पर्धा से हमें नया खतरा पैदा हो गया है'।... किसी वैध और पारंपरिक भयादोहन के आभाव में चीन और रूस अमेरिकी हितों के खिलाफ़ कार्रवाई करने के लिए प्रेरित होंगे।''

यहां असली ध्यान चीन पर है। जनवरी, 2019 में कार्यवाहक अमेरिकी रक्षा सचिव पैट्रिक शानाहन ने सैन्य अधिकारियों से स्पष्ट कहा था कि समस्या सिर्फ और सिर्फ चीन है। डोनाल्ड ट्रंप द्वारा रक्षा विभाग में तैनात किए गए सभी लोगों का ध्यान इसी बिंदु पर रहा है। चाहे वह शानाहन हों या मौजदूा रक्षा सचिव मार्क एस्पर। एस्पर तो चीन को दोष दिए बिना अपना मुंह भी नहीं खोलते। उन्होंने हाल में इटली के अख़बार 'ला स्टाम्पा' से कहा कि चीन कोरोना वायरस आपात का इस्तेमाल करते हुए ''बुरी नीयत वाली ताकतों'' से अपने हितों को आगे बढ़ा रहा है। इसके लिए ह्यूवेई कंपनी और इटली को चीन द्वारा दी गई मदद को उदाहरण बताया गया। जहां तक ट्रंप और एस्पर की बात है, वे मानते हैं कि चीन और कुछ हद तक रूस को अमेरिकी सैन्य ताकत से रोका जाना जरूरी है।

मिसाइलों का अंतर?

सीनेटर टॉम कॉटन (आरकेनसॉस से आने वाले रिपब्लिकन सीनेटर) ने इस विचार को आगे बढ़ाया है कि चीन द्वारा सेना के आधुनिकीकरण से चीन के पक्ष में एक 'मिसाइल गैप' तैयार हो गया है। मार्च, 2018 में कॉटन ने तत्कालीन यूएस पैसिफिक कमांड के प्रमुख एडमिरल हैरी हैरिस से चीन की मिसाइलों के बारे में पूछा था। हैरिस अब दक्षिण कोरिया के राजदूत हैं। हैरिस ने कांग्रेस से कहा था,''हम चीन की तुलना में घाटे की स्थिति में हैं। चीन के पास मैदानी बैलिस्टिक मिसाईल हैं, जिनसे अमेरिका के पश्चिमी प्रशांत महासागर के नौसैनिक अड्डों और जहाजों को खतरा है।'' समाधान बताते हुए हैरिस ने अपने सुझाव में कहा था कि अमेरिका को 'इंडरमीडिएट-रेंज न्यूक्लियर फोर्स संधि (INF)' से हट जाना चाहिए। इस संधि से अगस्त, 2019 में अमेरिका ने अपने हाथ खींच लिए, उस वक़्त ट्रंप ने रूस द्वारा असहयोग को ज़िम्मेदार ठहराया था, लेकिन यह साफ था कि असली डर चीन की मिसाइल बढ़त थी। अगस्त, 2019 में अमेरिका ने एक मध्यम दूरी की मिसाइल का परीक्षण किया। इस तरह अमेरिका साफ कर चुका है कि उनकी मंशा सिर्फ संधि से हटने भर तक सीमित नहीं है।

मार्च, 2019 में कॉटन ने हेरिटेज फाउंडेशन में बोलते हुए अमेरिका को मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल का उत्पादन शुरू करने का सुझाव दिया। इन्हें गुआम के अमेरिकी क्षेत्रों और मित्र देशों में तैनात करने की बात कही गई। कहा गया कि इन मिसाइलों से चीन को सीधा खतरा होना चाहिए। कॉटन ने अपने चिर-परिचित बड़बोले अंदाज में कहा,''बीजिंग ने हजारों मिसाइलें इकट्ठी कर ली हैं, जिनसे पूरे प्रशांत महासागर में हमारे मित्र देशों, हमारे सैन्य अड्डों, हमारे जहाजों और हमारे नागरिकों को निशाना बनाया जा सकता है।'' कॉटन जैस लोग हर चीज को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं। यह लोग अपनी नीतियां बनाने और तथ्य बताने के लिए पहले डर का माहौल बनाते हैं।

अमेरिका पहले भी ''मिसाइल गैप'' की धारणा का इस्तेमाल करता रहा है। जॉन. एफ. कैनेडी ने 1958 के राष्ट्रपति चुनावों में इसका इस्तेमाल किया था। हालांकि वह जानते थे कि USSR के पास ज़्यादा संख्या में मिसाइलें होने की बात कहना झूठ है। उस दौर से अब तक बहुत ज़्यादा बदलाव नहीं आया है।

2018 में अमेरिका द्वारा INF छोड़ने के पहले एडमिरल डेविडसन ने वाशिंगटन में ''चीन की शक्ति'' नाम के शीर्षक पर एक थिंक-टैंक में अपने विचार रखे थे। डेविडसन ने कहा, 2015 में उनके पूर्ववर्ती हैरी हैरिस ने मजाक में कहा था कि चीन के तट पर स्थित द्वीप 'ग्रेट वॉल ऑफ सैंड (रेत की महान दीवारें) ही हैं।' डेविडसन के मुताबिक़ अब यह द्वीप 'ग्रेट वॉल ऑफ सैम्स (SAMs)' बन गई हैं। उनका मतलब इन द्वीपों पर ज़मीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलों की तैनाती से था। सैन्य समूह की तरफ से डेविडसन और नागरिक समूह की तरफ से कॉटन ने कहना शुरू किया कि चीन के पास अमेरिका की तुलना में ''मिसाइल गैप'' की बढ़त है। यह एक ऐसी अवधारणा है, जिसकी पुष्टि के लिए कोई ढंग की जांच तक नहीं की गई।

अमेरिका के पास पूरी दुनिया में सबसे बड़ी फौज है। अप्रैल में 'स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट' ने पाया कि अमेरिका में पिछले साल के दौरान सैन्य बजट 5.3 फ़ीसदी बढ़करक 732 बिलियन डॉलर पहुंच गया। इस एक साल में अमेरिका के सैन्य बजट में जितना इजाफ़ा हुआ, वह जर्मनी के पूरे रक्षा बजट के बराबर है। वहीं चीन ने इस दौरान अपने रक्षा बजट में 5.1 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी करते हुए 261 बिलियन डॉलर खर्च किए। अमेरिका के पास 6,185 न्यूक्लियर वॉरहेड्स हैं। वहीं चीन के पास महज़ 290 न्यूक्लियर वारहेड्स ही हैं। केवल पांच देशों के पास ऐसी मिसाइल हैं, जो दुनिया में किसी भी देश तक मार करने में सक्षम हैं। यह देश हैं अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन। चाहे वह अंतर्महाद्वीपीय मिसाइलों (इंटरकॉन्टिनेंटल मिसाइल) की बात हो या हवाई शक्ति की, चीन अमेरिका की तुलना में कतई बेहतर स्थिति में नहीं है।

किसी भी हथियार के नज़रिए से देखा जाए, सैन्य टकराव की स्थिति में चीन समेत किसी भी देश पर अमेरिका भारी पड़ेगा। लेकिन अब अमेरिका यह बात समझ चुका है कि वह किसी देश को बमों से तबाह तो कर सकता है, लेकिन सारे देशों को वह अपने नीचे नहीं रख सकता।

बमवर्षकों की वापसी और नई नीति

अमेरिका की नौसेना बहुत बड़े भाग में फैली है, साथ में यह डरी हुई भी है। प्रशांत महासागर में तैनात दो अमेरिकी एयरक्रॉफ्ट कैरियर- USS रोनाल्ड रीगन और USS थियोडोर रूज़वेल्ट मुसीबत में हैं। USS रीगन जापान में तैनात है, जहां इसकी मरम्मत चल रही है। USS रूज़वेल्ट गुआम में है, इसके नौसैनिक बड़े पैमाने पर कोरोना से जूझ रहे हैं। इस बीच अमेरिका ने वेनेजुएला को धमकाने के लिए एक एयरक्रॉफ्ट कैरियर भेजा था, इसके लिए काउंटर नॉरकोटिक्स का बहाना लिया गया था। दूर स्थित देशों को धमकाने जैसी हरकतों के चलते अमेरिका एक ही देश पर सैन्य ध्यान केंद्रित नहीं कर सकता।

ईरान और चीन ने जो मिसाईल क्षमताएं दिखाई हैं, उनके चलते अल-उबैद हवाई अड्डे (कतर) और एंडरसन हवाई अड्डे (गुआम) में मौजूदा अमेरिकी बमवर्षकों को वापस बुला लिया गया है। यह जंगी विमान अब उत्तरी डकोटा स्थित मिनोट हवाईअड्डे और बार्क्सडेल हवाईअड्डे (लूसियाना) पर तैनात हैं। वापसी पर 'यूएस एयरफोर्स ग्लोबल स्ट्राइक कमांड' के जनरल टिमोथी रे ने बहादुरी के साथ सामने आए। उन्होंने कहा कि ऐसा करने से अमेरिका को ज़्यादा लचीलापन मिलेगा। दरअसल इन विमानों की वापसी की वजह कुछ और है। अब अमेरिका को लगता है कि इन रणनीतिक साधनों पर चीन और ईरान की मिसाइल क्षमताओं से ख़तरा छा गया है।

किसी सैन्य टकराव में चीन या ईरान के पास अमेरिका को हराने लायक सैन्य क्षमता नहीं हैं। लेकिन अपनी सीमा पर ईरान और चीन, अमेरिकी लक्ष्यों और उसके साथियों को निशाना बनाने की पूरी ताकत रखते है। इन क्षमताओं के चलते अमेरिका की ईरान और चीन को दबाने की सभी कोशिशें नाकाम हो गई हैं। दरअसल अमेरिका, चीन और ईरान की इन्हीं स्थानीय शक्तियों का नाश करना चाहता है।

बढ़त को दोबारा हासिल किया जाए

एडमिरल डेविडसन की अप्रैल में आई रिपोर्ट में ''फ़ॉरवर्ड बेस्ड, रोटेशनल ज्वाइंट फोर्स'' की बात कही गई है। इसे सभी विरोधियों को अमेरिकी प्रतिबद्धता दिखाने का ज़रिया बताया गया है। मतलब, इंडो पैसिफिक कमांड का कहना है कि एक स्थायी सैन्य अड्डे के बजाए अमेरिका के विमानों को हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र के अपने मित्र देशों (ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान) और दूसरी जगह (जैसे-दक्षिण कोरिया) स्थित सैन्य अड्डों पर बारी-बारी से घुमाया जाए। इस तरह बमवर्षक विमान ज़्यादा सुरक्षित रह सकेंगे।  चीन तब भी खतरे से डरा रहेगा। जैसा थ्योरी कहती है, इससे मिसाइलों से अमेरिका के घूमते हुए बमवर्षक विमानों को नुकसान पहुंचाना ज़्यादा मुश्किल रहेगा।

डेविडसन की रिपोर्ट में शानदार वैज्ञानिक-गल्प (फिक्शन) की गुणवत्ता है। इसमें एक लंबे चलने वाले, सूक्ष्म मारक ढांचे को बनाए जाने की मंशा है। इसके तहत अलग-अलग तरह की मिसाइलों और राडारों की तैनाती पलाऊ, हवाई और अंतरिक्ष में की जानी है। डेविडसन ने इसके लिए बड़ी मात्रा में पैसे की मांग की है, जबकि उनकी सेना पहले से ही बहुत ताक़तवर है।

अमेरिका एंटी-स्पेस हथियारों, स्वायत्त हथियारों, ग्लाइड व्हीकल्स, हायपरसोनिक मिसाइलों और आक्रामक सायबर हथियारों के विकास के लिए भी प्रतिबद्ध है। यह सब सिर्फ़ और सिर्फ़ मिसाइल रक्षा तकनीकों को अस्थिर करने और किसी विरोधी को दबाने के लिए विकसित किए जा रहे हैं। ऐसे विकास से एक नई हथियार की दौड़ चालू हो सकती है, जो बहुत महंगी होगी, जिससे दुनिया का संतुलन अस्थिर होगा।

अमेरिका ने एकपक्षीय तरीके से चीन के आसपास अपनी शक्ति की तैनाती बढ़ा दी है। बीजिंग के खिलाफ़ बहुत बयानबाज़ी भी की जा रही है। चीन में अमेरिका द्वारा थोपी जा सकने वाली जंग को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं। हालांकि वहां के कुछ अच्छे लोग चीन से अमेरिका के साथ हथियारों की प्रतिस्पर्धा न करने के लिए कह रहे हैं। फिर भी चीन के लिए खतरे में सच्चाई तो है। अपनी रक्षा के लिए भयादोहन के तौर पर कुछ चीजों को विकसित करने की भावना चीन में बढ़ती जा रही है।

दुनिया में ऐसे किसी मज़बूत शांति आंदोलन की कमी इस वक़्त बहुत खल रही है, जो अमेरिका द्वारा अपनाए जा रहे आक्रामक रवैये को क़ाबू में कर सके। आज इस आंदोलन की बहुत ज़्यादा ज़रूरत है।

विजय प्रसाद भारतीय इतिहासकार, संपादक और पत्रकार हैं। विजय प्रसाद इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टीट्यूट के प्रोजेक्ट Globetrotter में राइटिंग फ़ेलो और मुख्य संवाददाता भी हैं। वे लेफ़्टवर्ड बुक्स के मुख्य संपादक और ट्राईकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के निदेशक भी हैं।

यह लेख इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टीट्यूट के प्रोजेक्ट Globetrotter ने प्रकाशित किया था।

अंग्रेज़ी में मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

The U.S. Military Is Hell-Bent on Trying to Overpower Chin

 

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