NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
चुनाव 2019: बीजेपी से नाराज़ लद्दाखवासी नए चेहरे को वोट देंगे ?
अक्टूबर 2018 में कारगिल और लेह के निकाय चुनावों में एक भी सीट हासिल कर पाने में विफल रही पार्टी गंभीर चुनौती का सामना कर रही है।
सागरिका किस्सू
02 May 2019
ladakh

जम्मू-कश्मीर में एक क्षेत्र जहां प्रक्रिया को लेकर स्थानीय लोगों में उत्साह देखा जाता था लेकिन ऐसा लगता है कि इस बार चुनावों के प्रति लोगों में उदासीनता है। स्थानीय लोगों के एक वर्ग का मानना है कि उन्हें राजनीतिक दलों द्वारा धोखा दिया गया है और अब वे स्थानीय नेता को ही अपना वोट देंगे। क्षेत्रफल के लिहाज से जम्मू-कश्मीर में सबसे बड़ा संसदीय क्षेत्र लद्दाख है जहां 6 मई को मतदान होगा। लेह और कारगिल तक फैले लद्दाख लोकसभा क्षेत्र में 559 मतदान केंद्र हैं। लेह में 294 और कारगिल में 265 केंद्र हैं। यहां मतदाताओं की संख्या 1,71,819 है।

वर्ष 2014 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने मात्र 36 वोटों के मामूली अंतर से जीत हासिल की थी लेकिन पैठ बढ़ाने में विफल रही है। बीजेपी को पहला झटका उस समय लगा जब पार्टी द्वारा न पूरा किए गए वादों और विश्वासघात को लेकर नवंबर 2018 में मौजूदा सांसद थुपस्तान छेवांग ने इस्तीफ़ा दे दिया था। छेवांग एक सम्मानित व्यक्ति हैं और बौद्ध समुदाय के बीच बेहद लोकप्रिय हैं। उन्होंने लद्दाख बौद्ध संघ के अध्यक्ष के रूप में भी सेवा दिया था। बीजेपी को दूसरा झटका तब लगा जब पार्टी अक्टूबर 2018 में हुए निकाय चुनावों में कारगिल और लेह में एक भी सीट हासिल करने में नाकाम रही। वहीं कांग्रेस ने लेह में सभी 13 सीटों और करगिल में 6 सीटों पर कब्ज़ा कर लिया।

Capture_4.PNG

लद्दाख के पूर्व लोकसभा चुनावों के नतीजे

इस बार सज्जाद हुसैन के रुप में नया और स्वतंत्र चेहरा चुनावी मैदान में आया है। पत्रकार रहे सज्जाद अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वर्ष 2009 में कारगिल वापस चले गए थें। तब से वह अपने गृह ज़िले में लोगों के साथ जुड़ रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने सज्जाद को अपना समर्थन दिया है। इनमें पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और राष्ट्रीय सम्मेलन (एनसी) शामिल हैं।

इस बीच कांग्रेस ने रिगज़िन स्पलाबार का चयन किया है जो लद्दाख ऑटोनोमस हिल डेवलपमेंट काउंसेलर (एलएएचडीसी) के लेह से दो बार मुख्य कार्यकारी पार्षद (सीईसी) थें। बीजेपी ने लेह से एलएएचडीसी के मौजूदा सीईसी जमयांग त्सेरिंग नामग्याल (जेटीएन) को नामित किया है। इसके अलावा कांग्रेस समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार असगर अली करबलाई कारगिल से चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने दो बार कारगिल से एलएएचडीसी के सीईसी के रूप में कार्यभार संभाला है।

ज्ञात हो कि एलएएचडीसी एक स्वायत्त पहाड़ी परिषद है जो लेह और कारगिल ज़िलों को प्रशासित करती है।

कारगिल

श्रीनगर-कारगिल-लेह राजमार्ग पर ज़ोजिला दर्रे में 14 किलोमीटर लंबी सुरंग का निर्माण बीजेपी के प्राथमिक चुनावी वादों में से एक था। इस राजमार्ग का सबसे ज़्यादा महत्व है क्योंकि यह इस स्थल रूद्ध (लैंडलॉक्ड) क्षेत्र को साल भर क्नेक्टिविटी प्रदान करेगा जो इस दर्रे में बर्फबारी के कारण राज्य के बाकी हिस्सों से एक मौसम में कट जाता है।

कारगिल के एक निवासी अचय मरजुमा ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, “कारगिल के लोगों के साथ हाल ही में किया गया अन्यायपूर्ण व्यवहार मुख्य कारण है जिसको लेकर हम बीजेपी को वोट नहीं करेंगे। इन कारणों में एक यह है कि बेकार कंपनी को ज़ोजिला सुरंग का टेंडर देने का मामला, लेह के लिए संभागीय स्थिति का अप्रत्याशित केंद्रीकरण जिसके कारण पूरा ज़िला कई दिनों के लिए बंद हो गया और विश्वविद्यालय सुविधाओं के बराबर शेयर से वंचित करने का प्रयास शामिल है।”

लद्दाख के नए संभागीय आयुक्त सौगत विश्वास के प्रवेश को रोकने के लिए हजारों प्रदर्शनकारी शहर की सड़कों पर उतर आए थें। कारगिल के लोगों ने इस फैसले को 1979 के आह्वान करने के प्रयास के रूप में देखा। उस समय कारगिल लेह ज़िले का हिस्सा था।

कारगिल के निवासी स्पष्ट रूप से बीजेपी के खोखली बयानबाजी को लेकर उसे नकारने की बात कर रहे हैं जिससे स्वतंत्र उम्मीदवारों के लिए उनकी उम्मीदवारी साबित करने का रास्ता साफ हो गया है। एक अन्य निवासी ने कहा, “हमें सभी राजनीतिक दलों को लेकर संदेह है। सिलसिलेवार तरीक़े से सभी राजनीतिक दलों ने हमें विफल कर दिया है, हम स्वतंत्र नए चेहरे को वोट देंगे।”

कारगिल स्थित सबसे बड़े धार्मिक संगठन अंजुमन जमीअतुल उलमा इस्लामिया स्कूल ने सज्जाद हुसैन को अपना समर्थन दिया है, जबकि इमाम खोमानी मेमोरियल ट्रस्ट ने असगर अली करबलाई का समर्थन किया है। एक निवासी ने कहा, "दोनों के बीच कांटे का मुक़ाबला होने जा रहा है लेकिन अगर आप हमारी मानें तो वोट बांटने के लिए करबलाई कांग्रेस के एक प्रॉक्सी उम्मीदवार हैं क्योंकि हमने राजनीतिक दलों का बहिष्कार कर दिया था।"

सज्जाद हुसैन ने न्यूज़क्लिक से कहा, “यह पहली बार हुआ है कि एक स्वतंत्र उम्मीदवार को सभी प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन दिया गया है। इसके अलावा इस्लामिया स्कूल, बौद्ध समुदायों और लेह के निवासियों ने भी मुझे अपना समर्थन दिया है। मैं अभिभूत हूं और उन्हें निराश नहीं करना चाहता। मैं मानवीय मूल्यों को कायम रखने और उसे पूरा करने में विश्वास रखता हूं।”

लेह

बीजेपी द्वारा केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिलाने के चुनावी वादे को लेकर कोई कार्य नहीं होने से लोगों में असंतोष पैदा हो गया है। अभी भी एक वर्ग है जो बीजेपी के नए नामित चेहरे जीटीएन को वोट करना चाहता है। रिसर्च स्कॉलर और लेह के एक निवासी सेमांग न्यूरीऊ ने कहा, “जेटीएन का संबंध एक विनम्र और गैर-अभिजात्य पृष्ठभूमि से है। उन्हें उम्मीदवार के रूप में चुनने से बीजेपी को फायदा हुआ क्योंकि उन्हें लोगों का सद्भाव मिलता है। इसके अलावा क्लस्टर विश्वविद्यालय और संभागीय मुख्यालय के आवंटन ने बीजेपी के प्रति स्थानीय लोगों की धारणा को बदल दिया है। हालांकि किसी को यह याद रखना चाहिए कि ये निर्णय आपातकाल में लिए गए थे जब उन्हें लगा कि वे लेह खो रहे हैं और जब राज्यपाल शासन था। राज्यपाल सत्य पाल मलिक भी बीजेपी के पूर्व सदस्य हैं।”

दिसंबर 2018 में राज्यपाल सत्य पाल मलिक की अध्यक्षता वाली राज्य प्रशासनिक परिषद (एसएसी) ने इस क्षेत्र के लिए पहले क्लस्टर विश्वविद्यालय को मंजूरी दी थी। इस निर्णय के चलते पड़ोसी कारगिल में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया था।

लेकिन ऐसे स्थानीय लोग हैं जो अभी भी मानते हैं कि बीजेपी उनके क्षेत्र के लिए घातक है। लेह के एक अन्य निवासी स्टैंजिन ने कहा, "बीजेपी यहां तक कि आरएसएस ने इस क्षेत्र में दखलअंदाजी करना शुरू कर दिया है और यह एक खतरनाक स्थिति है। रिवायत को स्थानांतरित कर दिया गया है और पार्टी कारगिल और लेह के बीच पहले से ही मौजूद खाई को और बड़ा करने की कोशिश कर रही है। हालांकि अन्य महत्वपूर्ण मांगें हैं जो स्वास्थ्य क्षेत्रों में विकास और दूरदराज के क्षेत्रों में फोन कनेक्टिविटी की तरह पूरी नहीं हुई हैं।”

एक अन्य निवासी कहते हैं, ''छेवांग का इस्तीफा बीजेपी के लिए बहुत बड़ा झटका था। छेवांग ने अपने साथ ऐसे लोगों को भी लिया है जो अब बीजेपी को वोट नहीं देंगे। जेटीएन एक नया चेहरा है और उनको कोई राजनीतिक अनुभव नहीं है। हालांकि वह एक अच्छे वक्ता हैं लेकिन इस बात की संभावना कम है कि उन्हें अधिक संख्या में वोट मिलेंगे।”

कारगिल और लेह दोनों ज़िलों में लोगों के मूड को समझने के बाद ऐसा लगता है कि बीजेपी-विरोधी भावना लंबे समय से अधूरे वादों के कारण तेज़ हो गई है। यहां मतदान होने में कुछ ही दिन बचे हैं, यह देखना होगा कि कौन इस क्षेत्र में सफल होते हैं।

leh
kargil
sajjad husain
rigzin spalabar
jammu kashmir
election 2019
ladakh
ladakh autonomous hill development council
BJP
PDP
National Conference
Congress

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • भाषा
    बच्चों की गुमशुदगी के मामले बढ़े, गैर-सरकारी संगठनों ने सतर्कता बढ़ाने की मांग की
    28 May 2022
    राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हालिया आंकड़ों के मुताबिक, साल 2020 में भारत में 59,262 बच्चे लापता हुए थे, जबकि पिछले वर्षों में खोए 48,972 बच्चों का पता नहीं लगाया जा सका था, जिससे देश…
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: मैंने कोई (ऐसा) काम नहीं किया जिससे...
    28 May 2022
    नोटबंदी, जीएसटी, कोविड, लॉकडाउन से लेकर अब तक महंगाई, बेरोज़गारी, सांप्रदायिकता की मार झेल रहे देश के प्रधानमंत्री का दावा है कि उन्होंने ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे सिर झुक जाए...तो इसे ऐसा पढ़ा…
  • सौरभ कुमार
    छत्तीसगढ़ के ज़िला अस्पताल में बेड, स्टाफ और पीने के पानी तक की किल्लत
    28 May 2022
    कांकेर अस्पताल का ओपीडी भारी तादाद में आने वाले मरीजों को संभालने में असमर्थ है, उनमें से अनेक तो बरामदे-गलियारों में ही लेट कर इलाज कराने पर मजबूर होना पड़ता है।
  • सतीश भारतीय
    कड़ी मेहनत से तेंदूपत्ता तोड़ने के बावजूद नहीं मिलता वाजिब दाम!  
    28 May 2022
    मध्यप्रदेश में मजदूर वर्ग का "तेंदूपत्ता" एक मौसमी रोजगार है। जिसमें मजदूर दिन-रात कड़ी मेहनत करके दो वक्त पेट तो भर सकते हैं लेकिन मुनाफ़ा नहीं कमा सकते। क्योंकि सरकार की जिन तेंदुपत्ता रोजगार संबंधी…
  • अजय कुमार, रवि कौशल
    'KG से लेकर PG तक फ़्री पढ़ाई' : विद्यार्थियों और शिक्षा से जुड़े कार्यकर्ताओं की सभा में उठी मांग
    28 May 2022
    नई शिक्षा नीति के ख़िलाफ़ देशभर में आंदोलन करने की रणनीति पर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सैकड़ों विद्यार्थियों और शिक्षा से जुड़े कार्यकर्ताओं ने 27 मई को बैठक की।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License