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भारत
राजनीति
चुनाव 2019 : भाजपा के लिए इस बार मालवा-निमाड़ बचाना कठिन?
मालवा-निमाड़ भाजपा का गढ़ रहा है। 2014 में उसे यहां आठ में से आठ सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन इस बार हालत ये है कि उसे 6 सीटों पर अपने उम्मीदवार बदलने पड़े हैं। ऊपर से प्रज्ञा ठाकुर के बयान ने उसके लिए नई मुसीबत पैदा कर दी है।
राजु कुमार
17 May 2019
Madhya Pradesh

पिछले लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश उन राज्यों में शुमार था, जहां से भाजपा को अधिक सीटें मिली थी। प्रदेश की 29 सीटों में से27 सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी। लेकिन महज एक साल बाद ही 2015 में रतलाम-झाबुआ सीट पर हुए उप चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। उस चुनाव में मिली जीत से उत्साहित कांग्रेस ने राज्य में अपनी स्थिति मजबूत करनी शुरू कर दी और 2018 में 15 सालों से सत्ता पर काबिज भाजपा को मध्य प्रदेश में सत्ता से बेदखल कर दिया। विधानसभा चुनावों में मालवा-निमाड़ में कांग्रेस को अपेक्षा से ज्यादा सीटों पर जीत मिली। इस क्षेत्र की 64 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस को 35 सीटें हासिल हुई थी। भाजपा के गढ़ के रूप में चर्चित इस क्षेत्र में भाजपा कमजोर पड़ती जा रही है। भाजपा अपनी कमजोर स्थिति से पहले ही चिंतित थी और ऐन चुनाव के वक्त प्रज्ञा ठाकुर द्वारा आगर-मालवा में नाथूराम गोड्से को देशभक्त कह दिए जाने के बाद भाजपा इस क्षेत्र के चुनाव में बैकफुट पर आ गई।

malwa_niamr_lok_sabha_election - courtesy Jagran.jpg

मालवा-निमाड़ क्षेत्र में कुल आठ लोकसभा सीटें हैं। इनमें धार, खरगोन एवं रतलाम-झाबुआ सीट अनुसूचित जनजाति सीटें हैं। दो सीटें उज्जैन एवं देवास अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं, तो तीन अन्य सीटें इंदौर, खंडवा एवं मंदसौर सामान्य हैं। 2014 में इन आठों सीटों पर भाजपा को जीत मिली। इस क्षेत्र के आदिवासियों के बीच लंबे समय से आरएसएस सक्रिय रहा है, जिसकी वजह से भाजपा को लाभ मिलता रहा है। लेकिन पिछले विधानसभा चुनावों में यह साफ हो गया कि आरएसएस की सक्रियता के बावजूद मतदाताओं का भाजपा से मोह भंग हो गया। 2014 की तरह करिश्माई जीत हासिल करने के लिए भाजपा ने इन 8 में से 6 सीटों पर नए चेहरे उतारे हैं। विकास के मुद्दों पर ज्यादा बात करने के बजाय भाजपा राष्ट्रवाद पर जोर दे रही है, ताकि प्रत्याशियों के बजाय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर मतदाताओं को आकर्षित किया जा सके। यही वजह है कि इस क्षेत्र में नरेन्द्र मोदी की कई सभाएं की गई। दूसरी ओर कांग्रेस विकास के मुद्दों पर बात करने के साथ-साथ किसानों की कर्ज माफी पर ज्यादा जोर दे रही है। कांग्रेस को उम्मीद है कि इस क्षेत्र में विधानसभा चुनावों की तरह ही उसका प्रदर्शन बेहतर होगा।

इंदौर लोकसभा सीट से भाजपा ने लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन का टिकट काट दिया। इस क्षेत्र में भाजपा के इस निर्णय का नकारात्मक असर पड़ा। यही वजह है कि इंदौर में प्रधानमंत्री मोदी को टिकट से वंचित सुमित्रा महाजन की तारीफ में कसीदे पढ़ने पड़े। इंदौर में टिकट बदलाव के बाद कांग्रेस को उम्मीद है कि भाजपा की इस परंपरागत सीट को हासिल कर लेगी। विधानसभा चुनावों में यहां की 8 सीटों में से कांग्रेस ने 4 पर जीत हासिल की थी। धार लोकसभा सीट को देखा जाए, तो यहां विधानसभा चुनाव परिणामों के आधार पर भाजपा पिछड़ती हुई नजर आ रही है। मालवा के आदिवासी अंचल में जय आदिवासी युवा शक्ति यानी जयस का प्रभाव बहुत ज्यादा रहा है। विधानसभा चुनावों में जयस के राष्ट्रीय नेता एम्स के पूर्व डॉक्टर हीरालाल अलावा ने कांग्रेस को समर्थन देते हुए कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की। जयस का साथ मिलने से कांग्रेस न केवल धार सीट पर बल्कि अन्य जगहों पर ही बेहतर स्थिति में है। खंडवा सीट पर कांग्रेस के अरुण यादव और भाजपा के नंदकुमार चौहान के बीच टक्कर है। ये दोनों अपनी पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं।

मंदसौर जिला देश में कार्फी चर्चित रहा है। यहां भाजपा के शासन काल में किसानों पर हुई पुलिस फायरिंग के बाद 6 किसानों की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद देश भर में किसान आंदोलन सुर्खियों में आ गया। विधानसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस को जीत की पूरी उम्मीद थी, लेकिन किसान आंदोलन के बाद सरकार की छवि खराब होने के बावजूद भाजपा ने यहां बेहतर प्रदर्शन किया। इस लोकसभा में आने वाली 8 में से 7 विधानसभा सीटों पर भाजपा काबिज है। यद्यपि यहां से भाजपा की जीत में मतों का अंतर काफी कम रह गया। प्रदेश सरकार द्वारा किसानों की कर्ज माफी पर अमल शुरू कर दिए जाने के बाद कांग्रेस को इस सीट से ज्यादा उम्मीद है। खरगोन लोकसभा सीट में आने वाली 8 विधानसभा सीटों में 6 पर कांग्रेस काबिज है। यहां से एक निर्दलीय विधायक कांग्रेस का समर्थन कर रहे हैं। जयस और निर्दलीय विधायक के समर्थन के बाद कांग्रेस यहां मजबूत दिख रही है।

रतलाम-झाबुआ क्षेत्र से कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया मैदान में हैं। मोदी लहर में केन्द्र में मंत्री रह चुके भूरिया चुनाव हार गए थे, लेकिन उप चुनाव में इन्होने फिर जीत हासिल कर ली। इसके पहले भी वे झाबुआ से 4 बार सांसद रह चुके हैं। इस दिग्गज आदिवासी नेता को हराने के लिए भाजपा ने अपने मौजूदा विधायक जीएस डामोर को टिकट दिया है। इस क्षेत्र के सबसे बड़े मुद्दे पर दोनों की दलों का रवैया बेहतर नहीं है। पलायन और सिलिकोसिस की बीमारी इस क्षेत्र का सबसे बड़ा सवाल है। ऐसे में यहां का मुकाबला भी आसान नहीं दिख रहा है। 

देवास और उज्जैन लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। देवास से कांग्रेस ने विख्यात कबीरपंथी लोक गायक पद्मश्री प्रह्लाद टिपाणिया को टिकट दिया है। भाजपा ने भी जज की नौकरी छोड़ कर आए महेन्द्र सोलंकी को टिकट दिया है। ये दोनों ही राजनीति में नए हैं। भाजपा उम्मीदवार मोदी भरोसे हैं, तो कांग्रेस के टिपाणिया अपनी ख्याति को लेकर आशान्वित हैं। उज्जैन सीट का मुकाबला भी टक्कर का है। उज्जैन में भाजपा पिछला चुनाव 3 लाख से ज्यादा मतों से जीती थी, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में यह अंतर लगभग 70 हजार रह गया। भाजपा ने मौजूदा सांसद को टिकट नहीं दिया है। इस क्षेत्र की 8 में से 5 विधान सभा सीटों पर जीत हासिल कर कांग्रेस आशान्वित है।

मालवा-निमाड़ के चुनाव को लेकर वरिष्ठ पत्रकार लज्जा शंकर हरदेनिया का कहना है, ‘‘किसानों का मुद्दा, विस्थापन और पलायन का मुद्दा के साथ-साथ इस क्षेत्र में नर्मदा की लड़ाई भी एक अहम मुद्दा है। पिछले 15 सालों से प्रदेश में भाजपा की सरकार रही,लेकिन विस्थापन, पलायन पर कोई काम नहीं हुआ। पुनर्वास की लड़ाई भी लगातार चलती रही है। इस क्षेत्र में मजदूरों की आंदोलन भी लगातार चल रहा है। कई मामलों में इस क्षेत्र के अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया। इन सारे मसले को देखकर लगता है कि भाजपा के लिए इस बार मालवा-निमाड़ बचाना कठिन है।’’

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