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भारत
राजनीति
चुनाव 2019: चुनाव आयोग का कहना है कि चुनावी बॉण्ड्स का पारदर्शिता पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा
सुप्रीम कोर्ट ने 2 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दौरान चुनावी बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगाने के लिए एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म्स के आवेदन पर सुनवाई करने के लिए सहमति दे दी है।
विवान एबन
28 Mar 2019
Translated by महेश कुमार
चुनाव 2019: चुनाव आयोग का कहना है कि चुनावी बॉण्ड्स का पारदर्शिता पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा
फ़ोटो सौजन्य: इंडियन मनी

चुनावी बॉन्ड योजना को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं के जवाब में, भारत के चुनाव आयोग ने आज एक जवाबी हलफ़नामा दायर कर कहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड और कॉरपोरेट फ़ंडिंग पर कैप हटाने से राजनीतिक दलों की फ़ंडिंग में पारदर्शिता पर गंभीर असर पड़ेगा। 

सुप्रीम कोर्ट ने कल 2 अप्रैल को चुनावी बॉन्ड योजना को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को सूचीबद्ध किया था। ये याचिकाएँ भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और दो ग़ैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ), एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म्स (एडीआर) और कॉमन कॉज़ ने दायर की थीं। एडीआर ने भी चुनावी बॉन्ड योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दायर किया है, जिसकी सुनवाई 2 अप्रैल को की जाएगी।

उनके आवेदन के अनुसार, किए गए दान पर उप्लब्ध डाटा से पता चलता है कि अधिकांश दान 10 लाख और 1 करोड़ रुपये के रूप में है। उनके अनुसार, यह इंगित करता है कि दान कर्ताओं में सामान्य नागरिकों के होने की संभावना कम है और कॉर्पोरेट दान होने की अधिक संभावना थी। इसके अलावा, चूंकि अधिकांश दान एक विशेष पार्टी (सत्तारूढ़ पार्टी) के पक्ष में किए गए थे, इसकी अत्यधिक संभावना है कि दान कॉर्पोरेट स्रोतों से आए थे।

इस पर रोक लगाने के लिए ए.डी.आर. का आवेदन इस वर्ष 28 फ़रवरी को वित्त मंत्रालय द्वारा जारी एक अधिसूचना पर आधारित था, जिसने चुनावी बॉन्ड जारी करने का कार्यक्रम निर्धारित किया था। इस अधिसूचना के अनुसार, चुनावी बॉण्ड 1 से 15 मार्च; 1 और 20 अप्रैल; और 6 से 15 मई के बीच उपलब्ध कराए जाएंगे जो चिंता का विषय बन गया है, इसलिए कि यह कार्यक्रम इस वर्ष के लोकसभा चुनावों के साथ लगभग पूरी तरह से मेल खाता है। चुनाव 11 अप्रैल से 19 मई के बीच होंगे। यह भी उल्लेखनीय है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की वित्तीय वर्ष 2017-18 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि पार्टी को  चुनावी बॉण्ड के ज़रिये 1,000 करोड़ रुपये मिले हैं। इस योजना को औपचारिक रूप से जनवरी 2018 में शुरू किया गया था, जिसका अर्थ है कि भाजपा को यह राशि तीन महीने के अंतराल में मिली थी।
भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, आयकर अधिनियम और कंपनी अधिनियम, वित्त अधिनियम, 2017 के माध्यम से संशोधन द्वारा चुनावी बॉन्ड योजना को सहज रूप से सक्षम बनाया गया था। इस अधिनियम को मनी बिल के रूप में पारित किया गया था, और इसलिए राज्य सभा में उत्पन्न होने वाली कोई भी आपत्ति उन्हें पारित होने से नहीं रोक सकती थी।

इन क़ानूनों में किए गए संशोधनों ने राजनीतिक चंदा देने वाली कंपनियों की ज़ंजीर को हटा दिया। इससे पहले, एक कंपनी केवल पिछले तीन वित्तीय वर्षों के शुद्ध लाभ का 7.5 प्रतिशत से अधिक की राशि का दान नहीं कर सकती थी। इस प्रावधान को हटा दिया गया था। इसी तरह, राजनीतिक दल 20,000 रुपये से ऊपर की सभी दान राशि का स्रोत घोषित करने के लिए बाध्य थे। आयकर अधिनियम में संशोधन के माध्यम से, कोई भी पार्टी  20,000 रुपये से ऊपर के दान को नकद में स्वीकार नहीं कर सकती है। हालांकि, चुनावी बॉण्ड के माध्यम से प्राप्त दान के लिए कोई घोषणा आवश्यक नहीं है।
स्वयं इस योजना ने पारदर्शिता और गोपनीयता का मखौल बनाया है। सबसे पहले, सरकार ने दावा किया कि दानकर्ता की पहचान की रक्षा की जाएगी। दूसरे, चूंकि केवल वे ग्राहक जिन्होंने अपने "अपने ग्राहक को जानो" (केवाईसी) मानदंडों को पूरा किया है, बॉण्ड ख़रीद सकते हैं। सरकार ने दावा किया है कि पारदर्शिता बनाए रखी गई है। हालांकि, इसके ज़रिये कॉरपोरेट दान की बेड़ियों को तोड़ा गया है, जो उसी समय में दानकर्ता की पूरी गुमनामी सुनिश्चित करता है।

इस योजना में 1000; 10,000; 1 लाख; 10 लाख, और 1 करोड़ रुपये के मूल्यवर्ग के बॉण्ड की परिकल्पना की गई थी। हालांकि, आवेदन के अनुसार, अब तक ख़रीदे गए 97 प्रतिशत बॉण्ड 10 लाख से 1 करोड़ रुपये के मूल्यवर्ग में आते हैं। भले ही विश्व बैंक द्वारा भारत की प्रति व्यक्ति आय पर विचार किया जाए, जो लगभग 4.8 लाख (6,980 अमरीकी डालर) है, आंकड़े बताते हैं कि ऐसा दान आम नागरिकों के ज़रिये नहीं किया जा सकता।

इस आवेदन ने न्यायालय का ध्यान इस तथ्य की ओर दिलाया कि सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन से पता चला है कि भारतीय चुनाव आयोग (ECI) ने इस योजना के संबंध में क़ानून और न्याय मंत्रालय को इस योजना के प्रति नाख़ुशी जताई है। हालांकि, 18 दिसंबर 2018 को राज्यसभा में इस ख़बर को सच नहीं बताया गया था। केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पी. राधाकृष्णन ने दावा किया कि सरकार को चुनाव आयोग से चुनावी बॉन्ड के बारे में कोई चिंता नहीं मिली है, जबकि वे एक सवाल का जवाब राज्यसभा में दे रहे थे। 
दिलचस्प बात यह है कि आवेदकों ने ब्राज़ील के सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय का हवाला दिया, जिसमें राजनीतिक दान करने वाले निगमों की घोषणा की गई थी। तर्क यह था कि एक प्रतिनिधि लोकतंत्र में सत्ता लोगों के पास होती है। इसलिए, कॉर्पोरेट दान की अनुमति देने से ऐसी स्थिति पैदा होगी जहाँ राजनीतिक दल कॉरपोरेट्स को अधिक अनुकूल शर्तों की पेशकश करके ज़्यादा धन पाने के लिए प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इस प्रकार, अंत में हारने वाली देश की जनता होगी जिनके लिए निर्वाचित प्रतिनिधि को जवाबदेह होना चाहिए।

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Electoral Bonds
Supreme Court of India
Association for Democratic Reforms
ADR
Common Cause
Communist Party of India–Marxist
CPM
Transparency
privacy
Corporate Donations
Lok Sabha Polls
Lok Sabha Elections 2019

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