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मज़दूर-किसान
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चुनाव 2019: गुंटूर में मिर्च की पैदावार करने वाले सभी किसानों को नुकसान का सामना करना पड़ा है
2016-17 के दौरान, मिर्च पैदा करने वाले किसानों को लगभग 2,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, जबकि आंध्र प्रदेश सरकार ने पारिश्रमिक क़ीमतों के तहत केवल 136.81 करोड़ रुपये का भुगतान किया।
पृथ्वीराज रूपावत
27 Mar 2019
Translated by महेश कुमार
गुंटूर में मिर्च की पैदावार करने वाले सभी किसानों को नुकसान का सामना करना पड़ा है
गुंटूर ज़िले में अपने मिर्च के खेत में किसान चमालय्या।

पिछले दो वर्षों से, मिर्च की क़ीमतें अपने सबसे निचले स्तर पर रही हैं, जो आंध्र प्रदेश के गुंटूर ज़िले में किसानों के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय बन गया है, वे राज्य में फसल के सबसे बड़े उत्पादक हैं। चूंकि राज्य में 11 अप्रैल को विधानसभा और लोकसभा दोनों के लिए चुनाव एक साथ हो रहे हैं, ऐसे में मिर्च किसान अपने इस गम्भीर संकट के स्थायी समाधान की उम्मीद कर रहे हैं।

गुंटूर की मिर्च अपने अनूठे स्वाद के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में प्रसिद्ध है और इसे कई देशों में निर्यात किया जाता है, जिनमें अमेरिका, ब्रिटेन और चीन शामिल हैं। जबकि मसाले का अपना ब्रांडिंग मूल्य है, लेकिन इसके किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिल रहा है, ख़ासकर 2017 के बाद से। उदाहरण के लिए, एक कंपनी गोल्डन हार्वेस्ट, सुपरमार्केट स्टोर्स में गुंटूर मिर्च 210 रुपये प्रति 500 ग्राम की दर से बेचती है, जबकि आख़िरी चार फसलों के मौसम में, इसके किसानों ने मिर्च की फसल को 6,000 रुपये प्रति क्विंटल (100 किलोग्राम) की दर से बेचा है जो एमएसपी 8,000 रुपये प्रति क्विंटल से कम हैं।

जबकि राज्य ने 2016-2017 के दौरान 10.3 लाख टन मिर्च का उत्पादन किया है, और इसमें से लगभग तीन लाख टन का अकेले गुंटूर ज़िले में उत्पादन हुआ हैं। उस वर्ष, सत्तारूढ़ तेलुगु देशम पार्टी ने उन किसानों के लिए 1,500 रुपये प्रति एकड़ के पारिश्रमिक की घोषणा की जो किसान एमएसपी (8,000 रुपये प्रति एकड़) प्राप्त करने में विफ़ल रहे थे।
राज्य के कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार, मिर्च का उत्पादन करने वाले किसानों को उस वर्ष अनुमानित रूप से 2,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, जबकि राज्य सरकार ने किसानों को केवल 136.81 करोड़ रुपये का भुगतान किया। यानी मिर्च पैदा करने वाले किसान को प्रति ढाई एकड़ (हेक्टेयर) पर 1 लाख रुपये का नुकसान।

पेद्दोदु मक्केना गांव के मिर्च उत्पादक किसान 

50 वर्षीय गड्डे नागेश्वर राव का दावा है कि मिर्च की फसल में क़ीमतों में उतार-चढ़ाव मुख्य रूप से दो कारणों से है - ख़राब बीज की गुणवत्ता और अतिरिक्त फसल का उत्पादन - जिसके कारण अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में क़ीमत में गिरावट आई है।
''सरकार उन बीज कंपनियों पर नज़र रखने में विफ़ल रही, जिन्होंने ज़िले में किसानों को कम गुणवत्ता के बीज बेचे हैं। इसके अलावा, सरकार ने नुकसान का सामना कर रहे सभी किसानों के लिए पारिश्रमिक मूल्य सुनिश्चित नहीं किया है।'' नागेश्वर राव ने ऐसा न्यूज़क्लिक को बताया। उन्होंने बताया कि इस सब के चलते उन्होंने 2018 में अपने आठ एकड़ के मिर्च के खेत में औसतन 1 लाख रुपये प्रति एकड़ खो दिया है।
एक और किसान, 56 वर्षीय मुरली, इसी तरह के नुकसान की गवाही दे रहे हैं। उनका दावा है कि मिर्च की फसल जुए की तरह हो गई है, जिसके परिणामस्वरूप बहुत नुकसान हुआ है (मिर्ची पांडिंचम जुडाम लागा एप्रिस्टुंड)। 2018 में खरीफ़ में, मुरली ने मिर्च की फसल के लिए अपनी तीन एकड़ कृषि भूमि में 60,000-70,000 रुपये प्रति एकड़ का निवेश किया, उपज केवल छह क्विंटल प्रति एकड़ रही, और इसके लिए उन्हें केवल 6,000 रुपये प्रति क्विंटल ही मिला। यानी उस सीज़न में मुरली को औसतन लगभग 1 लाख रुपये का नुकसान हुआ। राज्य रयथु संगम के अध्यक्ष वाई केशव राव के अनुसार, इस तरह के सभी नुकसानों से बचा जा सकता था अगर सरकार बिचौलियों को प्रोत्साहित करने के बजाय सीधे किसानों से फसल की ख़रीद कर लेती।
राज्य ने इस दौरान कई विरोध प्रदर्शनों को भी उभरते देखा, जिनमें मांग की गई थी कि सरकार 2014 से जारी कृषि संकट का समाधान करे।

गुंटूर लोकसभा सीट 

निर्वाचन आयोग के अनुसार, इस निर्वाचन क्षेत्र में 14,330,40 मतदाता हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, 20,91,075 आबादी में से, 48.71 प्रतिशत ग्रामीण है और 51.29 प्रतिशत शहरी है।
निर्वाचन क्षेत्र में सात विधानसभा क्षेत्र आते हैं - ताड़ीकोंडा, मंगलगिरि, पोन्नुरु, तेनाली, प्रथिपादु, गुंटूर पश्चिम और गुंटूर पूर्व।
2014 के चुनावों के दौरान, टीडीपी उम्मीदवार उद्योगपति जयदेव गल्ला ने गुंटूर लोकसभा क्षेत्र से 49.68 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया था। वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) 44 प्रतिशत वोट शेयर के साथ दूसरे स्थान पर रही थी।
आगामी चुनावों में प्रमुख प्रतियोगी टीडीपी के जयदेव गल्ला, वाईएसआरसीपी के उम्मीदवार मोडुगुला रामकृष्ण और बी. श्रीनिवास यादव, जनसेना, सीपीआई, सीपीआई (एम) और बीएसपी के गठबंधन से है। वल्लू जयप्रकाश नारायण और एसके मस्तन वली ने क्रमशः भाजपा और कांग्रेस दलों से अपना नामांकन भरा है।

निवेश समर्थित योजना 

चुनाव आयोग की आम चुनाव के लिए अधिसूचना जारी होने से पहले, भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने निवेश सहायता के रूप में प्रति वर्ष 6,000 रुपये किसानों को देने की योजना की घोषणा की। आंध्र प्रदेश में, सीएम चंद्रबाबू नायडू ने ‘अन्नादता सुखीभावा’ योजना के तहत होनहार किसानों को प्रति वर्ष 9,000 रुपये देने की एक और योजना की घोषणा की। और किसानों को इन योजनाओं के तहत किश्तों में राशि मिलनी भी शुरू हो गई है, लेकिन किसान कार्यकर्ता सवाल उठा रहे हैं कि स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशों के अनुसार दोनों सरकारें अपने 2014 के चुनावी वादों को लागू करने में क्यों विफ़ल हो रही हैं।
सरकार के अनुमान के अनुसार, राज्य में लगभग 76.21 लाख किसान हैं, जिनमें 49.83 लाख छोटे किसान हैं और 15.91 लाख मध्य किसान हैं।
वरिष्ठ किसान कार्यकर्ता केशव राव ने न्यूज़क्लिक को बताया कि चुनाव में राज्य के किसान समुदाय की हमेशा एक निर्णायक भूमिका होती है। केशव राव ने कहा, कि "किसानों के समर्थन से ही टीडीपी के संस्थापक नंदामुरी तारक रामा राव 1983 में सीएम बने थे और यह वही समुदाय था जिसने 2004 में एन चंद्रबाबू नायडू का विरोध किया था और वाईएस राजशेखर रेड्डी को सीएम के रूप में चुना था।"
जबकि भूमि के मालिक किसान पहले ही राज्य और केंद्र सरकार की निवेश योजना की राशि सीधे अपने बैंक खातों में प्राप्त करना शुरू कर चुके हैं। हालांकि केशव राव कहते हैं कि पिछले पांच वर्षों में जिन किसानों ने विभिन्न खाद्य फसलों, दालों, सब्ज़ियों, फलों और लकड़ी की फसलों की खेती की है, वे हज़ारों करोड़ के भारी नुकसान से तबाह हो गए हैं।
 

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