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भारत
राजनीति
चुनाव 2019: हिमाचल प्रदेश में चुनाव प्रचार का अंतिम पड़ाव
भाजपा बनाम कांग्रेस की लड़ाई के बीच मतदाताओं के असली मुद्दे दरकिनार हो गए हैं।
मालविका सिंह
16 May 2019
Translated by महेश कुमार
चुनाव 2019: हिमाचल प्रदेश में चुनाव प्रचार का अंतिम पड़ाव

हिमाचल प्रदेश में मात्र चार लोकसभा सीटें हैं। जब 19 मई को लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में यहाँ वोट पड़ेगा, इस पहाड़ी राज्य में शाही लड़ाई देखने को मिलेगी। हिमाचल प्रदेश के चार संसदीय क्षेत्र हैं - शिमला (आरक्षित), मंडी, कांगड़ा और हमीरपुर और 68 विधानसभा क्षेत्र हैं। ये राज्य जो वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का गढ़ है, ने अब तक अपने इतिहास में दो ध्रुवीय चुनावों को देखा है, जिसमें दो सबसे बड़े दल भाजपा और कांग्रेस शामिल हैं।

55,673 वर्ग किलोमीटर में फैले इस राज्य में 12 ज़िले हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य में 68,64,602 लोग रहते हैं, जिनमें से अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। हिमालयी राज्य की ग्रामीण आबादी लगभग 90 प्रतिशत है। यह कई लोगों के लिए आश्चर्य की बात हो सकती है कि हिमाचल प्रदेश में, एक चौथाई से अधिक जनसंख्या (25.2 प्रतिशत) दलित है, जो पंजाब (32 प्रतिशत) के बाद दूसरा सबसे अधिक दलित आबादी वाला राज्य है, यह आंकडा जनगणना 2011 के अनुसार है। राष्ट्रीय सर्वेक्षण में राज्य में 56 अनुसूचित जातियों को भी दर्ज किया गया है।

कई मायनों में, यह लोकसभा चुनाव हिमाचल प्रदेश के लिए काफ़ी असाधारण चुनाव है। ऐसा पहली बार है कि यहाँ के महारथी - कांग्रेस के छह बार रहे मुख्यमंत्री और पांच बार रहे सांसद वीरभद्र सिंह और भारतीय जनता पार्टी के दो बार रहे मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल चुनावी युद्ध के मैदान से बाहर हैं।

भाजपा 1951 के पहले आम चुनाव के बाद से ही राज्य में अपना असर बनाए हुए है। 1977 तक यहाँ की सभी चार सीटों को कांग्रेस जीतती रही थी। सन 1989 में पहली बार भाजपा ने तीन सीटें जीतकर अपनी पहचान बनाई थी। लेकिन मतदाता हमेशा यहाँ अप्रत्याशित रहे हैं। 2014 में, उन्होंने मंडी से मौजूदा मुख्यमंत्री की पत्नी प्रतिभा सिंह को हराया था, और 2017 के विधानसभा चुनावों में सिर्फ़ तीन साल बाद ही, उन्होंने अपने ही पूर्व सहयोगी राजिंदर राणा के हाथों भाजपा के दिग्गज प्रेम कुमार धूमल को पराजित कर दिया था।

पिछले आम चुनावों में, राज्य भी नरेंद्र मोदी "लहर" से प्रभावित था, और इसने भी भगवा पार्टी को वोट दिया था। हालांकि, पार्टी ने तब किए गए सभी वादों को पूरा नहीं किया, जैसे कि सेब पर आयात शुल्क बढ़ाना और फल प्रसंस्करण इकाइयाँ स्थापित करना। 2014 में पार्टी के वादे के बावजूद पेंशन में संशोधन के लिए कमेटी नहीं बनाने से सरकारी कर्मचारी भी भाजपा से परेशान हैं।

इसलिए, इस चुनाव में केंद्र और राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी होने के नाते, भाजपा को सत्ता-विरोधी रुझान का सामना करना पड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस भी बुरी तरह से त्रस्त है। उम्मीदवारों के चयन में अपना रास्ता न मिलने के बाद वीरभद्र सिंह थोड़ा कांग्रेस से खिसक गए हैं। हालांकि वह सक्रिय रूप से पार्टी के लिए प्रचार कर रहे हैं, उनकी कई टिप्पणियों ने उनकी पार्टी को कई मौक़ों पर मुसीबत में डाल दिया है।

सत्ता विरोधी रुख और बढ़ती आपसी लड़ाई 

सत्ता विरोधी भावना कांग्रेस के पक्ष में काम कर सकती है। मंडी निर्वाचन क्षेत्र, वर्तमान मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर के घर में चुनाव के महत्वपूर्ण होने की संभावना है। शिमला निर्वाचन क्षेत्र भी महत्व रखता है, क्योंकि दलित उम्मीदवार भाजपा नेता वीरेंद्र कश्यप को हराने की जुगत में है।

पूर्व दूरसंचार मंत्री 91 वर्षीय सुख राम ने मंडी संसदीय सीट से लोकसभा चुनाव लड़ रहे अपने पोते आश्रय शर्मा के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। आश्रय मंडी सदर विधानसभा क्षेत्र से विधायक अनिल शर्मा के बेटे हैं, जिन्होंने हाल ही में ग्रामीण विकास और पंचायती राज के विभागों के साथ जय राम ठाकुर सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में कार्य किया है। अनिल ने 12 अप्रैल को मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया। पूर्व दूरसंचार मंत्री अपने बीजेपी प्रतिद्वंद्वी राम स्वरूप शर्मा से इस सीट को जीतने में मदद करने के लिए दृढ़ हैं, जो सीएम ठाकुर के क़रीबी और विश्वासपात्र हैं।

सुखराम के साथ मतभेद के बावजूद, वीरभद्र सिंह ने आश्रय शर्मा को अपना समर्थन दिया है। दोनों गले मिले और दिखाया कि वे साथ-साथ हैं लेकिन कड़वाहट अक्सर उभरती दिखाई देती है। शर्मा की एक रैली के दौरान, सिंह ने कांग्रेस और भाजपा के बीच अपनी परिवर्तनशील वफ़ादारी के राजनीतिक अवसरवाद के लिए सुख राम की आलोचना की।

दूसरी ओर, हर रैली जिसे सुख राम संबोधित करते हैं वे सार्वजनिक रूप से वीरभद्र द्वारा किए गए किसी भी पिछले दुष्कर्म के लिए माफ़ी मांगने का मुद्दा बनाते हैं।

सूत्र यह भी बताते हैं कि भाजपा में भी उबाल आ रहा है, विशेषकर हमीरपुर निर्वाचन क्षेत्र में, जहाँ अनुराग ठाकुर, जो चौथी बार भाजपा से चुनाव लड़ रहे हैं, को न केवल अपने कांग्रेस प्रतिद्वंद्वी का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि उनके स्वयं के असंतुष्ट सहयोगी और स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा से भी चुनौती मिल रही है। कई लोगों का मानना है कि पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की 2017 में 'सुरक्षित' सुजानपुर सीट से हारने के कारण जेपी नड्डा खेमे में कथित तौर पर तोड़फोड़ की गई थी।

उनके पिता की हार ने अनुराग ठाकुर को एक मज़बूत चेतावनी भेजी और उनके अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों का मानना है कि पिछले दो वर्षों से अनुराग अपने निर्वाचन क्षेत्र में हारने के डर से समय देने लगे थे।

लेकिन असली मुद्दे क्या हैं?

जैसे ही आप राज्य की राजधानी में प्रवेश करते हैं आम चुनावों के छठे चरण के लिए, पार्टी के उड़नदस्तों और बैनरों को शहर की हर सड़क पर देखा जा सकता है। कुछ कमल और कुछ हाथ थामे हुए मिलेंगे, इस सब की बदौलत राज्य के लोगों के वास्तविक मुद्दों का पता लगाना आसान नहीं है।

न्यूज़क्लिक ने शिमला के कुछ निवासियों से बात की और उनसे पुंछा कि राज्य के आम लोग किन मुद्दों से जूझ रहे हैं। "मुख्य मुद्दा बेरोज़गारी, पेंशन योजना, दवा का उप्लब्ध न होना है। कम से कम शिमला शहर में तो, कोई भी इन मुद्दों को नहीं उठा रहा है। न केवल शिमला में, किसी भी निर्वाचन क्षेत्र को देखें, तो कई नेता रैलियों के लिए आ तो रहे हैं – जैसे अमित शाह, मोदी, लेकिन कोई भी इन मुद्दों के बारे में बात नहीं करता है।" हिमाचल प्रदेश सरकार में काम करने वाली एक स्थानीय महिला ने बताया।

24 साल की सौम्या जो दूसरी बार मतदान करेंगी ने न्यूजक्लिक से कहा, "मुझे लगता है, गुड़िया गैंगरेप मामले के बाद, सरकार को राज्य में महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए पुख़्ता प्रयास करने चाहिए थे और दोषियों को दंडित करने की दिशा में काम करना चाहिए था, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। एक युवा महिला होने के नाते, मुझे लगता है कि शहर महिलाओं के लिए ख़तरनाक होता जा रहा है। हाल ही में, बलात्कार का एक मामला सामने आया था, जिसे बाद में हटा दिया गया, लेकिन इन मामलों का केवल उल्लेख ही चिंताजनक स्थिति को दर्शाता है। मुझे भी लगता है कि अब यह "चिट्टा" (हिरोइन का नशा) युवाओं में इतनी तेज़ी से फैल रहा है कि वह काफ़ी डरावना हो गया है। लोग अपने मुद्दों और चिंताओं को लेकर आवाज़ उठा रहे हैं, लेकिन सरकार उन्हें गंभीरता से नहीं ले रही है।"

न्यूज़क्लिक ने पहले भी हिमाचल प्रदेश में बढ़ते सिंथेटिक ड्रग्स की बढ़ती आपदा के बारे में ज़िक्र किया था जिसमें समस्या का सरकार द्वारा सोशल ऑडिट करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया था। इस बढ़ती महामारी के इर्द-गिर्द सीएम के तल्ख़ बयानों के बावजूद, न तो भाजपा ना कांग्रेस ने इसे अपने घोषणापत्र या यहाँ तक कि रैली के संबोधन में भी कोई स्थान नहीं मिला है।

दिलचस्प बात यह है कि हमीरपुर में अमित शाह द्वारा की गई अभी हाल की एक रैली में, कई मतदाताओं ने भाजपा अध्यक्ष की टिप्पणी "विकास को भूल जाओ, सिर्फ़ मोदी को वोट दो और हम आपकी समस्याओं को हल करेंगे" पर काफ़ी नाराज़ थे।
 
“यह जनता का अपमान है। कोई नेता हमें विकास के बारे में भूलने के लिए कहकर वोट कैसे मांग सकता है? हमें और क्या चाहिए? इतना ही नहीं, सिरमौर ज़िले के गिरी-पार क्षेत्र में हाटी समुदाय के लोगों को अमित शाह से बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन उन्होंने अपने संबोधन में भी उनका उल्लेख नहीं किया। एक वरिष्ठ सरकारी कर्मचारी ने कहा, "इससे उन्हें काफ़ी निराशा हुई है।"

हाटी सिरमौर ज़िले के दूर दराज़ के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का एक समुदाय है। वे अपने क्षेत्र की सामाजिक परिस्थितियों के कारण विशेष दर्जे की मांग कर रहे हैं। इसे पूरे राज्य में सबसे अविकसित और सामाजिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में से एक माना जाता है।

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के राकेश सिंघा जो ठियोग से विधायक हैं और शिमला लोकसभा क्षेत्र में उनका क्षेत्र आता है, वे वर्तमान चुनाव में जनता के वास्तविक मुद्दों को दरकिनार किए जाने से नाराज़ हैं और उनका इसके प्रति काफ़ी आलोचनात्मक रवैया है।
"रोज़गार के मुद्दे, कृषि संकट, ऋणों की अदायगी पर चर्चा नहीं की जा रही है। हमारा राज्य राष्ट्रीय आपदाओं से पीड़ित है, लेकिन कोई भी नेता इन समस्याओं को उजागर नहीं कर रहा है। हमने पिछले पांच वर्षों में भाजपा सांसदों के तहत बहुत ख़राब शासन देखा है, लेकिन ये सांसद शायद ग़लत उम्मीद कर रहे हैं कि मोदी की जादूई छड़ी उन्हें अगले पांच साल तक टिकने में मदद करेगी।"

क्या पहाड़ों में भी राष्ट्रीय नरेटिव की गूंज है?

बालाकोट हवाई हमले के लिए जहाँ कभी-कभार पीएम की तारीफ़ की जाती है, वहीं लोग भाजपा की उस कहानी पर भी सवाल खड़ा कर रहे हैं कि मोदी के प्रधानमंत्रित्व से पहले 70 साल में कुछ भी नहीं हुआ।
यहाँ के चार निर्वाचन क्षेत्रों में से, मंडी में सबसे सघन प्रचार अभियान देखा गया है जहाँ ख़ुद पीएम मोदी ने प्रचार किया है। राज्य की मशीनरी यहाँ कथित रूप से अति-सक्रिय है क्योंकि मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर सेराज विधानसभा सीट से विधायक हैं जो मंडी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है। यह चुनाव उसके लिए एक लिटमस है। अगर भाजपा यह चुनाव हार जाती है, तो मुख्यमंत्री के रूप में उनकी स्थिति अस्थिर हो सकती है।

मंडी भूभाग, संस्कृति और क्षेत्र की दृष्टि से भी सबसे विविध और विशाल निर्वाचन क्षेत्र है। न्यूज़क्लिक ने निर्वाचन क्षेत्र के कुछ क्षेत्रों का दौरा किया ताकि स्थिति को बेहतर ढंग से समझा जा सके।

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