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चुनाव 2019 : सफ़ाई कर्मचारियों ने पहली बार जारी किया अपना घोषणापत्र
"हम मांग करते हैं कि मैनुअल स्केवेंजिंग के चलते हमारे लोगों पर जो ऐतिहासिक अन्याय हुआ है, उसके लिए प्रधानमंत्री बिना शर्त राष्ट्रीय स्तर पर माफ़ी मांगें।"
सत्यम् तिवारी
05 Apr 2019
चुनाव 2019 : सफ़ाई कर्मचारियों ने पहली बार जारी किया अपना घोषणापत्र

आगामी लोकसभा चुनाव से पहले सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन (एसकेए) जो कि मैनुअल स्केवेंजिंग (हाथ से मैला ढोने की प्रथा) को ख़त्म करने के लिए संघर्ष करता आ रहा है, ने सफ़ाई कर्मचारियों का घोषणापत्र 4 अप्रैल को इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट दिल्ली में जारी किया। ये सफ़ाई कर्मचारियों का पहला घोषणापत्र है। घोषणापत्र में सफ़ाई कर्मचारियों की विभिन्न मांगों को शामिल किया गया है और बरसों से चली आ रही कुप्रथाओं को ख़त्म करने की मांग की गई है।

एसकेए ने घोषणापत्र में संकल्प लिया है: 

"हम सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन के समस्त सहभागी अपनी गरिमा समानता एवं मानवीय व्यक्तित्व को पुनः प्राप्त करने के लिए एकात्म भाव से संघर्ष करेंगे। हम पर जन्म से जातीय आधार पर थोपे गए मानव मल ढोने के अमानवीय पेशे को जड़ से समाप्त करेंगे।" 

घोषणापत्र जारी करते हुए एसकेए के राष्ट्रीय संयोजक बेज़वाड़ा विल्सन ने कहा, "ये हमारे इतिहास का सबसे बड़ा लम्हा है। ये पहली बार है जब हम, सफ़ाई कर्मचारी अपना घोषणापत्र जारी कर रहे हैं। हमें वो सरकार नहीं चाहिए जिसे हमारा कोई ख़्याल नहीं है। ये हमारी मांगें हैं, और हम सत्ताधारियों से इन्हें पूरा करने की मांग नहीं कर रहे हैं, हम उन्हें आदेश दे रहे हैं।" 

घोषणापत्र की प्रस्तावना में एसकेए ने लिखा है, "हम, सफ़ाई कर्मचारी ऐसा लोकतंत्र चाहते हैं जहाँ देश में हर व्यक्ति का मान-सम्मान बराबर हो। हमने सदियों से उत्पीड़न, भेदभाव, छुआछूत और अत्याचार के क्रूरतम रूप को झेला है। आज़ादी के समय से ही सरकारों ने मैला प्रथा के ख़ात्मे पर पर्याप्त ज़ोर नहीं दिया है। सदियों का एक्सक्लूज़न और भेदभाव हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बन गया है और इसकी ख़ौफ़नाक छाया हमारे जन्म से लेकर हमारी असामयिक मौत में दिखाई देती है। हम इस बात को लेकर बेहद चिंतित हैं कि मनुवादी, अवैज्ञानिक, अतार्किक और कट्टर ताक़तें जनता के एजेंडे को हाईजैक कर रही हैं- छुआछूत, भूख, ग़रीबी, महिलाओं पर हिंसा और बेरोज़गारी जैसे मुद्दों को जानबूझ कर राजनीतिक विमर्श से बाहर फेंक दिया गया है। यह प्रवृत्ति हमारे संवैधानिक मूल्यों के लिए गंभीर ख़तरा बन गई है।" 

प्रस्तावना के अंत में जो लिखा है वो कुछ ही दिन पहले प्रधानमंत्री द्वारा सफ़ाई कर्मचारियों के पैर धोने के "सेलेब्रिटी स्टंट" पर एक प्रहार के रूप में सामने आता है। 

एसकेए ने लिखा है, "हम मांग करते हैं कि मैनुअल स्केवेंजिंग के चलते हमारे लोगों पर जो ऐतिहासिक अन्याय हुआ है, उसके लिए प्रधानमंत्री बिना शर्त राष्ट्रीय स्तर पर माफ़ी मांगें।"

घोषणापत्र में सफ़ाई कर्मचारियों के एक सम्मानजनक जीवन के लिए विभिन्न मांगों को रखा गया है। इन मांगों में  मैनुअल स्केवेंजिंग का ख़ात्मा, सफ़ाई कर्मचारियों का ग़ैर-सफ़ाई कामों में पुनर्वास, उनको गरिमा के साथ जीने का हक़, उनको शिक्षा और स्वास्थ्य का अधिकार जैसी मांगें शामिल हैं।
घोषणापत्र की मांगों में ये भी शामिल है कि सीवर में हो रही मौतों को रोकने के लिए संसद में एक विशेष सत्र बुलाया जाए, और इन मौतों को रोकने के उपायों को लेकर सरकार एक श्वेतपत्र जारी करे।

एसकेए की राष्ट्रीय संयोजक दीप्ति सुकुमार ने घोषणापत्र जारी करते हुए कहा, "हमारी हालत और हमारी मुश्किलों को देखते हुए भी केंद्र और राज्य की सरकारें चुप रहती हैं, ख़ासतौर पर हमारे प्रधानमंत्री। जब तक हम सिर्फ़ अपनी जाति की वजह से लोगों का मैला उठाने का काम करते रहेंगे, इस देश को एक लोकतंत्र नहीं कहा जा सकता। हमने इस घोषणापत्र में उन मांगों को शामिल किया है जो हमारे गरिमामय जीवन के लिए ज़रूरी हैं। हमने इसमें बताया है कि हम किस तरह का लोकतंत्र चाहते हैं। हम ये सारी राजनीतिक पार्टियों को भेजेंगे, वे तभी सत्ता में आएँ अगर वो इन मांगों को पूरा कर सकती हैं।"

घोषणापत्र में शामिल अन्य मांगों में 55 वर्ष से ऊपर की उम्र वाले सभी पुरुष और महिला सफ़ाई कर्मचारियों को 6000 की पेंशन देने की मांग की गई है। 

आर.एल.21 की बात करते हुए घोषणापत्र में मांग की गई है कि, "जीवन के अधिकार के तहत, देश के सभी सफ़ाई कर्मचारियों और उनके आश्रितों के लिए "आर.एल.21" (राइट टु लाइफ़ 21) कार्ड जारी किया जाए। इस कार्ड के ज़रिये संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत निःशुल्क शिक्षा, हेल्थ केयर, गरिमामय रोज़गार एवं आजीविका एवं अन्य सुविधाएँ और स्कीमों तक पहुँच सुनिश्चित की जाए।"

आज़ादी के 70 साल बाद भी देश में सफ़ाई कर्मचारियों की हालत में कितना सुधार हुआ है, ये घोषणापत्र इस बात का एक कड़वा सच बयान करता है। घोषणापत्र में सफ़ाई कर्मचारियों के नारों में से एक नारा कहता है: 

"आज़ाद भारत में मैला प्रथा

शर्म करो,         शर्म करो" 

एसकेए ने इस घोषणापत्र से सभी राजनीतिक पार्टियों के ये ज़रूर याद दिला दिया है कि कैसे दशकों से समाज के बड़े हिस्से को सबने अपने चुनावी एजेंडे से बेदख़ल किया हुआ है। इसके साथ ही देश के सभी सफ़ाई कर्मचारियों से ये मांग की गई है कि अब उन्हें झाड़ू छोड़ कर, क़लम पकड़नी होगी।

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