NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
भारत
राजनीति
चुनाव 2019; उत्तर प्रदेश : न ‘मोदी शोर’, न ‘मोदी लहर’
उत्तर प्रदेश में उभरते हुए सपा-बसपा-रालोद गठबंधन की बदौलत नरेंद्र मोदी के मर्दवादी हिंदुत्व अंध-राष्ट्रवाद की धार एक हद तक कुंद हुई है और मोदी-विरोधी,भाजपा-विरोधी, आरएसएस-विरोधी आवाज़ें ज़्यादा सुनायी देने लगी हैं। यह नरेंद्र मोदी के लिए गहरी परेशानी का सबब है।
अजय सिंह
10 May 2019
सांकेतिक तस्वीर
Image Courtesy: Patrika

लोकसभा चुनाव-2019 के पांच दौर बीत जाने के बाद भी (अभी दो दौर बाक़ी हैं) उत्तर प्रदेश में ‘मोदी शोर’ या ‘मोदी लहर’ दिखायी-सुनायी नहीं दे रही है। इसका क्या मतलब है? क्या अंदर-अंदर कोई लहर चल रही है, जिसका अंदाज़ हमें नहीं हो पा रहा, या बड़ा उलटफेर होने के आसार हैं? ख़याली पुलाव पकाने का ख़तरा उठाते हुए भी यह कहना पड़ेगा कि जो संकेत मिल रहे हैं, वे केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष में जाते नहीं दिखायी दे रहे हैं।

इस बार भाजपा कार्यकर्ताओं में न वह जोश हैं, न उमंग—जो 2014 के लोकसभा चुनाव में दिखायी पड़ी थी। 2014 में भाजपा कार्यकर्ता, नरेंद्र मोदी के पक्ष में प्रचार करते हुए , हर जगह टिड्डी दल की तरह छा गये थे। उन दिनों शायद ही कोई शहर, क़स्बा या गांव रहा हो—शायद ही कोई मुहल्ला-गली-नुक्कड़ रहा हो—जहां बड़े-छोटे पैमाने पर भाजपा कार्यकर्ताओं की मौजूदगी न रही हो। वे तकरीबन हर घर में पहुंचे थे (ख़ासकर उत्तर भारत में), और लोगों से उन्होंने व्यक्तिगत संपर्क किया था। 2019 में यह चीज़ सिरे से ग़ायब है। भाजपा कार्यकर्ता नियतिवाद की चपेट में दिखायी दे रहे हैं!

इस बार उत्तर प्रदेश के काफ़ी बड़े हिस्से में बहुत कम भाजपा कार्यकर्ता चुनाव प्रचार के लिए पहुंचे। राजधानी लखनऊ का गोमतीनगर इलाक़ा क़रीब 3000 एकड़ में फैला है, और अच्छी-ख़ासी बसावट है यहां। इसके बहुत-सारे गली-मुहल्लों में एक भी भाजपा कार्यकर्ता आज तक नहीं पहुंचा—जबकि लोकसभा चुनाव-2019 की प्रक्रिया अप्रैल में शुरू हो चुकी थी और आख़िरी मतदान 19 मई को है। यहां तक कि केंद्रीय मंत्री और लखनऊ लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी राजनाथ सिंह की चुनावी सभा में, जो अप्रैल के आख़िरी दिनों में गोमतीनगर में हुई, बहुत कम लोग थे और ढेर-सारी कुर्सियां खाली पड़ी थीं। भाजपा कार्यकर्ता ग़ायब थे। यह फ़्लॉप मीटिंग जैसे आनेवाले दिनों की तस्वीर दिखा रही थी!

तो क्या यह समझा जाये कि नरेंद्र मोदी ने कट्टर हिंदुत्व फ़ासीवाद के आधार पर उत्तर प्रदेश में जो सांप्रदायिक ध्रुवीकरण व विभाजन पैदा किया है, वह ख़त्म हो चला है? नहीं, यह समझना ख़ामख़याली होगी और गंभीर ख़तरे की अनदेखी करना होगा। यह सच्चाई है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ-भाजपा-नरेंद्र मोदी-अमित शाह ने हिंदुओं को और ज़्यादा हिंदू बनाया है। इस चौकड़ी ने सारे राजनीतिक आख्यान को सिर्फ़ हिंदू-मुस्लिम आख्यान में तब्दील कर दिया है।

ठीक इसी बिंदु पर, उत्तर प्रदेश में, समाजवादी  पार्टी (सपाः अखिलेश यादव), बहुजन समाज पार्टी (बसपाः मायावती) और राष्ट्रीय लोकदल (रालोदः अजित सिंह) के गठबंधन ने हिंदुत्व फ़ासीवादी चौकड़ी के आख्यान की व्यावहारिक व काम लायक काट पेश कर दी। गठबंधन ने सांप्रदायिक हिंदू-मुस्लिम आख्यान को व्यापक सामाजिक-राजनीतिक-जातीय समीकरण के आख्यान में बदल देने की कोशिश की, जिसमें वह काफ़ी हद तक क़ामयाब रहा है। गठबंधन के नेताओं ने लोगों को भरोसा दिलाया है कि गठबंधन का राजनीतिक समीकरण टिकाऊ और मज़बूत है और यह नरेंद्र मोदी व भाजपा को लोकसभा चुनाव में कड़ी टक्कर दे सकता है। लड़ाई में टिके रहने और नरेंद्र मोदी को कारगर चुनौती दे सकने की स्पिरिट ने गठबंधन को अच्छा-ख़ासा लोकप्रिय बना दिया और यह मोदी के बरक्स राजनीतिक विमर्श के केंद्र में आ गया।

उत्तर प्रदेश में उभरते हुए सपा-बसपा-रालोद गठबंधन की बदौलत नरेंद्र मोदी के मर्दवादी हिंदुत्व अंध-राष्ट्रवाद की धार एक हद तक कुंद हुई है और मोदी-विरोधी,भाजपा-विरोधी, आरएसएस-विरोधी आवाज़ें ज़्यादा सुनायी देने लगी हैं। यह नरेंद्र मोदी के लिए गहरी परेशानी का सबब है।

उत्तर प्रदेश में मौजूदा लोकसभा चुनाव एक ओर नरेंद्र मोदी और दूसरी ओर सपा-बसपा-रालोद गठबंधन के बीच ही लड़ा जा रहा है। नरेंद्र मोदी की पूरी कोशिश थी कि उत्तर प्रदेश में बहुकोणीय चुनावी मुक़ाबला होता, ताकि भाजपा-विरोधी मतों के विभाजन का फ़ायदा भाजपा को मिलता। लेकिन गठबंधन ने मोदी के मंसूबे पर पानी फेर दिया। लड़ाई में कांग्रेस भी है (वह गठबंधन का हिस्सा नहीं है), लेकिन जिन लोकसभा सीटों पर वह कुछ मज़बूत है, वहीं वह लड़ती दिखायी दे रही है।

यहां यह बता दिया जाना चाहिए कि 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बहुकोणीय मुक़ाबला था। तब भाजपा को उत्तर प्रदेश में 42.63 प्रतिशत, सपा को 22.35 प्रतिशत और बसपा को 19.77 प्रतिशत वोट मिले थे। उस समय सपा व बसपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। सपा व बसपा को मिले वोटों को मिला दिया जाये, तो वह 42.12 प्रतिशत बैठता है। यानी क़रीब-क़रीब भाजपा के बराबर। और अब तो सपा-बसपा के साथ रालोद भी आ गया है। चुनावी गणित के हिसाब से सपा-बसपा-रालोद गठबंधन मोदी को पीछे धकेलता नज़र आ रहा है।

2019 आम चुनाव
General elections2019
2019 Lok Sabha elections
Uttar pradesh
UP elections
No Modi Wave
Narendra modi
BJP
Yogi Adityanath
Gathbandhan
Congress

Related Stories

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक

ख़बरों के आगे-पीछे: केजरीवाल के ‘गुजरात प्लान’ से लेकर रिजर्व बैंक तक

यूपी में संघ-भाजपा की बदलती रणनीति : लोकतांत्रिक ताकतों की बढ़ती चुनौती

बात बोलेगी: मुंह को लगा नफ़रत का ख़ून

इस आग को किसी भी तरह बुझाना ही होगा - क्योंकि, यह सब की बात है दो चार दस की बात नहीं

ख़बरों के आगे-पीछे: क्या अब दोबारा आ गया है LIC बेचने का वक्त?

ख़बरों के आगे-पीछे: भाजपा में नंबर दो की लड़ाई से लेकर दिल्ली के सरकारी बंगलों की राजनीति

बहस: क्यों यादवों को मुसलमानों के पक्ष में डटा रहना चाहिए!

ख़बरों के आगे-पीछे: गुजरात में मोदी के चुनावी प्रचार से लेकर यूपी में मायावती-भाजपा की दोस्ती पर..


बाकी खबरें

  • कृष्णकांत
    भारत को मध्ययुग में ले जाने का राष्ट्रीय अभियान चल रहा है!
    10 May 2022
    भारत किसी एक मामले में फिसला होता तो गनीमत थी। चाहे गिरती अर्थव्यवस्था हो, कमजोर होता लोकतंत्र हो या फिर तेजी से उभरता बहुसंख्यकवाद हो, इस वक्त भारत कई मोर्चे पर वैश्विक आलोचनाएं झेल रहा है लेकिन…
  • सोनाली कोल्हटकर
    छात्रों के ऋण को रद्द करना नस्लीय न्याय की दरकार है
    10 May 2022
    छात्र ऋण अश्वेत एवं भूरे अमेरिकिर्यों को गैर-आनुपातिक रूप से प्रभावित करता है। समय आ गया है कि इस सामूहिक वित्तीय बोझ को समाप्त किया जाए, और राष्ट्रपति चाहें तो कलम के एक झटके से ऐसा कर सकते हैं।
  • khoj khabar
    न्यूज़क्लिक टीम
    अब झूठ मत बोलिए, सरकारी आंकड़ें बोलते- मुस्लिम आबादी में तेज़ गिरावट
    09 May 2022
    खोज ख़बर में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने बताया कि किस तरह से अंतर्राष्ट्रीय negative ranking से घिरी नरेंद्र मोदी सरकार को अब PR का भरोसा, मुस्लिम आबादी का झूठ NFHS से बेनक़ाब |
  • एम.ओबैद
    बीपीएससी प्रश्न पत्र लीक कांड मामले में विपक्षी पार्टियों का हमला तेज़
    09 May 2022
    8 मई को आयोजित बिहार लोक सेवा आयोग के 67वीं संयुक्त (प्रारंभिक) प्रतियोगी परीक्षा का प्रश्न पत्र लीक होने के बाद परीक्षा रद्द कर दी गई है। इसको लेकर विपक्षी पार्टियों ने सरकार पर हमला करना शुरू कर…
  • सत्यम् तिवारी
    शाहीन बाग़ ग्राउंड रिपोर्ट : जनता के पुरज़ोर विरोध के आगे झुकी एमसीडी, नहीं कर पाई 'बुलडोज़र हमला'
    09 May 2022
    एमसीडी की बुलडोज़र कार्रवाई का विरोध करते हुए और बुलडोज़र को वापस भेजते हुए शाहीन बाग़ के नागरिकों ने कहा कि "हम मुसलमानों के दिमाग़ पर बुलडोज़र नहीं चलने देंगे"।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License