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भारत
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चुनाव के शोर में नौकरियां गंवाने वालों की चीख़ क्या आप सुन पा रहे हैं?
उत्तराखंड की जीवन रेखा कहे जाने वाले 108 एंबुलेंस सेवा और ख़ुशियों की सवारी के सात सौ से अधिक कर्मचारियों को एक मई से सेवाएं समाप्त करने का नोटिस दिया गया है।
वर्षा सिंह
21 Apr 2019
108 ambulance uttarakhand
Image Courtesy : Aaj Tak

इसी वर्ष नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) ने नौकरियों में गिरावट के आंकड़े जारी किए, तो केंद्र की सरकार दोबारा सर्वे कराने की बात कहने लगी। रिपोर्ट में कहा गया कि देश में बेरोजगारी दर 2017-18 में 45 साल के उच्च स्तर यानी 6.1 प्रतिशत पर पहुंच गई है। इसको लेकर विवाद छिड़ गया और सरकार ने कहा कि ये रिपोर्ट अंतिम नहीं हैं। जेट एयरवेज़ के करीब बीस हज़ार कर्मचारियों ने शुक्रवार को जंतर-मंतर पर धरना दिया और कहा कि बच्चों की फीस भरने और घरों की ईएमआई देने के लिए भी पैसे नहीं हैं। इधर, उत्तराखंड की जीवन रेखा कहे जाने वाले 108 एंबुलेंस सेवा और ख़ुशियों की सवारी के सात सौ से अधिक कर्मचारियों को एक मई से सेवाएं समाप्त करने का नोटिस दिया गया है।

चुनाव के इस वक्त में, सत्ता हासिल करने के लिए, नेता बड़े-बड़े जुमले उछाल रहे हैं। इसी समय में हज़ारों लोग अपनी नौकरियां खोने से संकट में आ गए हैं। उन्हें अपने बैंक अकाउंट में सालाना 6 हज़ार या 72 हज़ार की सरकारी मदद नहीं चाहिए। उन्हें अपनी मेहनत की कमाई, अपनी नौकरी चाहिए, जो उनका हक़ है।

उत्तराखंड में वर्ष 2008 में जीवीके-ईएमआरआई कंपनी ने 108 एंबुलेंस सेवा की शुरुआत की। बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं से जूझ रहे राज्य के लिए ये एक बड़ी राहत थी। दुर्गम क्षेत्रों में मरीज़ों को लाने-ले जाने के लिए 108 एंबुलेंस किसी संजीवनी की तरह ही है। इसीलिए इसे पहाड़ों की जीवन रेखा कहा जाता है।

स्वास्थ्य महकमे के तहत संचालित 108 एंबुलेंस सेवा का करार अब मध्यप्रदेश की गैर-लाभकारी संस्था कैंप- कम्यूनिटी एक्शन थ्रू मोटिवेशन को मिल गया है। अपने नाम से उलट, नई संस्था नए सिरे से अपेक्षाकृत कम वेतन पर कर्मचारियों की भर्ती कर रही है। पुरानी कंपनी ने फील्ड कर्मचारियों को सेवा समाप्ति का नोटिस जारी कर दिया है। जबकि मिड-मैनेजमेंट लेवल के करीब 50 कर्मचारियों को दूसरे राज्यों में समाहित किया जा रहा है।

जीवीके-ईएमआरआई कंपनी के उत्तराखंड में ऑपरेशनल हेड मनीष टिंकू कहते हैं कि कंपनी को दस वर्ष का कॉन्ट्रैक्ट दिया गया था। जो वर्ष 2018 में पूरा हो गया। उसके बाद कंपनी को छह-छह महीने के दो एक्सटेंशन दिये गये। इसके बाद राज्य सरकार ने नया टेंडर निकाला। मनीष टिंकू बताते हैं कि उत्तराखंड में 108 एंबुलेंस के लिए जारी किए गए टेंडर में तीन कंपनियों ने हिस्सा लिया। जीवीके ने 1.66 लाख प्रति एंबुलेंस प्रति माह कोट किया। एक अन्य कंपनी ने 1.44 लाख रुपये प्रति एंबुलेंस प्रति माह कोट किया और मध्य प्रदेश की गैर-लाभकारी संस्था कैंप ने 1.18 लाख रुपये प्रति एंबुलेंस प्रति माह कोट किया। कैंप को ये टेंडर मिल गया। चूंकि उन्होंने अपेक्षाकृत कम बजट में ये टेंडर लिया है तो वे नए कर्मचारियों को वेतन भी कम देंगे। यानी कम बजट का खामियाजा कर्मचारी उठाएंगे।

एक मई को जब हम मज़दूर दिवस मनाएंगे, उत्तराखंड के करीब 717 फील्ड कर्मचारियों और उनके परिजनों के सामने रोजी-रोटी का संकट आ जाएगा। 108 एंबुलेंस कर्मचारी एसोसिएशन के सचिव विपिन जमलोकी कहते हैं कि ये कर्मचारियों के साथ अन्याय है। कर्मचारियों ने देहरादून में श्रम आयुक्त को इसकी शिकायत भी की है। भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) भी कर्मचारियों की इस लड़ाई में साथ आ गया है। भारतीय मज़दूर संघ के बैनर तले 108 एंबुलेंस सेवा के कर्मचारी 24 अप्रैल को देहरादून में सचिवालय कूच करेंगे। यदि इसके बाद भी उनकी मांगे नहीं मानी गईं तो भारतीय मज़दूर संघ ने कर्मचारियों के साथ मिलकर पूरे प्रदेश में चरणबद्ध आंदोलन का फ़ैसला लिया है। हालांकि यहां उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड में बीजेपी की ही सरकार है और बीएमएस आरएसएस से जुड़ा मज़दूर संगठन है। कर्मचारियों की मांग है कि इस सेवा को संचालित करने वाली नई संस्था उन्हें उसी वेतन और लोकेशन पर समाहित करे।

पिछले दस वर्षों से 108 एंबुलेंस के लिए कार्य कर रहे फील्ड कर्मचारियों का वेतन इस समय करीब 17-18 हज़ार रुपये है। नई संस्था ने दस हज़ार रुपये वेतन दे रही है। पहाड़ों में आपातकालीन सेवाएं देने जा रही कैंप संस्था के राज्य में ऑपरेशनल हेड प्रदीप राय कहते हैं कि जो लोग पहले से इसमें कार्य कर रहे हैं उन्हें वरीयता दी जाएगी। वो बताते हैं कि जिन लोगों ने नौकरी के लिए आवेदन किया, उन्हें दस-साढ़े दस हजार के वेतन पर ले लिया गया है। वो ये भी कहते हैं कि ज्यादातर पुराने कर्मचारियों ने ही आवेदन किया।

जबकि 108 एंबुलेंस सेवा के कर्मचारी विपिन जमलोकी कैंप संस्था की इस बात का खंडन करते हैं। उनके मुताबिक किसी भी पुराने कर्मचारी को समाहित नहीं किया गया। अगर ऐसा है तो संस्था उन कर्मचारियों की लिस्ट जारी करे। श्रम विभाग के नियम के अनुसार भी स्वास्थ्य विभाग यदि पुराने ठेकेदार को बदलता है, तो कर्मचारी वही रहते हैं। ठेकेदार बदलने पर पहला अधिकार मौजूदा कर्मचारियों का ही बनता है। 11 साल से इस सेवा से जुड़े कर्मचारी ठेकेदार बदलने पर नहीं हटाए जा सकते। न ही कर्मचारियों के वेतन में नए ठेकेदार द्वारा कटौती की जा सकती है। कर्मचारी एसोसिएशन के विपिन जमलोकी कहते हैं कि नौकरी के 11 साल बाद वे इस वेतन पर पहुंचे हैं, जो अपने आप में औसत भी नहीं है।

राज्य सरकार के प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक कहते हैं कि राज्य सरकार की कोशिश होगी कि जो कर्मचारी पहले से कार्य कर रहे हैं, उन्हीं को प्राथमिकता के आधार पर नई संस्था में समायोजित किया जाए। वेतन के मुद्दे पर उनका कहना है कि स्किल के मुताबिक कर्मचारियों का वेतन तय होता है। दूसरे राज्यों में चुनाव प्रचार कर रहे मंत्री जी को संभवत: पता नहीं कि उनके राज्य में इतने बड़े पैमाने पर नौजवान बेरोज़गार हो रहे हैं।

पहाड़ों में आज भी गर्भवती महिलाएं सड़क पर और पुलों पर बच्चे को जन्म दे रही हैं। राजधानी देहरादून के नजदीकी इलाकों से भी ऐसी ख़बरें मिल जाती हैं। पिछले हफ्ते नैनीताल में एक महिला ने 108 एंबुलेंस न मिलने पर, टैक्सी में बच्चे को जन्म दिया। कर्मचारियों की चेतावनी के मुताबिक 24 अप्रैल से राज्य में 108 एंबुलेंस के पहिए थम जाएंगे। ज़ाहिर है इसका ख़ामियाजा आम लोगों को ही उठाना होगा।

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