NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
चुनाव विशेष : क्या जल, जंगल, जमीन के मुद्दे पर पड़ेंगे वोट?
चुनावी राज्यों में किसानों व आदिवासियों की लामबंदी काफी कुछ बता रही है। पिछले दिनों की रैलियों एवं आंदोलनों ने राजनीतिक दलों के सामने जल, जंगल और जमीन के मुद्दे को ला दिया है।
राजु कुमार
12 Oct 2018
सांकेतिक तस्वीर

चुनावी समर में विकास की बात करते-करते अक्सर मतदान नजदीक आते ही बेवजह के मुद्दे चुनाव पर हावी हो जाते हैं। जातिवाद, क्षेत्रवाद, धर्म, व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप के साथ-साथ अब एक-दूसरे को नीचा दिखाने के प्रयास भी ज्यादा होने लगे हैं। ऐसे में लगातार परेशानियों का सामना कर रही जनता की आवाज चुनावी समर में दबने लगती है।

पिछले दिनों दिल्ली में किसानों ने बड़े प्रदर्शन किए। सितंबर में वामपंथी संगठनों द्वारा घोषित रैली में लाखों की संख्या में मजदूर किसान दिल्ली के रामलीला मैदान में पहुंच गए। उन्होंने जन विरोधी नीतियों को लेकर सरकार पर तीखा हमला किया। इसी महीने भारतीय किसान यूनियन ने हरिद्वार से दिल्ली तक किसानों की रैली आयोजित की। इन्हीं दिनों में एकता परिषद ने भी जनांदोलन 2018 के तहत मध्यप्रदेश के ग्वालियर से दिल्ली तक आदिवासियों एवं भूमिहीनों की रैली का ऐलान किया। यह रैली मुरैना तक पहुंचने के साथ ही खत्म हो गई। लेकिन इन रैलियों एवं आंदोलनों ने राजनीतिक दलों के सामने जल, जंगल और जमीन के मुद्दे को ला दिया है।

मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलांगना और मिजोरम में अगले महीने विधानसभा चुनाव होने हैं। उसके ठीक पहले हुए इन आंदोलनों के माध्यम से एक बड़े तबके ने राजनीतिक दलों को संदेश देने का प्रयास किया है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में आदिवासियों एवं भूमिहीनों की जनसंख्या बहुत ज्यादा है। इन दोनों ही राज्यों में एकता परिषद का अन्य राज्यों की तुलना में ज्यादा प्रभाव है। इन दोनों ही राज्यों में पिछले 15 सालों से भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। छत्तीसगढ़ में आदिवासियों का विस्थापन बड़ा मुद्दा है। वैसे भी आदिवासी बहुल बस्तर संभाग की विधानसभा सीटें भाजपा एवं कांग्रेस दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। मध्यप्रदेश में भी कमोबेश यही स्थिति है। यहां 230 विधानसभा सीटों में से अनुसूचित जाति 35 एवं अनुसूचित जनजाति की 47 सीटें हैं, जो कि सरकार बनाने में निर्णायक भूमिका निभाती हैं। ठीक विधानसभा चुनाव से पहले एकता परिषद का प्रदर्शन इन दोनों राज्यों में भाजपा के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है। 

एकता परिषद के संस्थापक राजगोपाल पी.व्ही. का कहना है कि अपना हक पाने के लिए अपनी ताकत का एहसास कराना जरूरी हो गया है। केंद्र सरकार से गरीब और वंचित वर्गों को उनका हक दिलाने की बातचीत चल रही है, अगर इन मांगों को नहीं माना जाता है तो इस वर्ग को आगामी चुनाव में अपनी ताकत दिखानी होगी। भारत खेती किसानी वाला देश है। खेती किसानी हमारी जिंदगी की मुख्यधारा और संस्कृति है। जमीन के महत्व को कम करके आंका जा रहा है। ग्रामीण समाज और ग्रामीण अर्थव्यवस्था टूट रहा है। जनांदोलन के माध्यम से हम केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य की सरकारों पर दबाव डाल रहे हैं कि वे भूमिहीनों के बारे में, आदिवासियों के बारे में, किसानों के बारे में सोचें और उनके हित में काम करें। आवासीय भूमि की समस्या, महिलाओं के नाम से भूमि अधिकार, राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति का सवाल, वन अधिकार कानून का बेहतर क्रियान्वयन कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां सरकार काम नहीं कर रही है।

एकता परिषद ने जनादेश 2007 और जन सत्याग्रह 2012 के माध्यम से भी राज्य सरकारों एवं केन्द्र सरकार पर दबाव बनाया था। इन आंदोलनों में जुटने वाले हजारों आदिवासियों एवं भूमिहीनों को अपने पक्ष में करने के लिए भाजपा एवं कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दलों के नेता भी शामिल होते हैं। इनकी मांगों को सरकारों ने माना भी है और कई निर्णय लेकर वंचितों को अधिकार भी दिए हैं। लेकिन एकता परिषद इन्हें अपर्याप्त मानता है। उसका मानना है कि आंदोलन की आंच धीमी होते ही कानूनों एवं नीतियों के क्रियान्वयन के मामले में सरकारें उदासीन हो जाती हैं और इनके अधिकारों को छिनने वाली नीतियां बनने लगती हैं।

पांच राज्यों में चुनाव से ठीक पहले का जनांदोलन राज्यों की चुनावों एवं आगामी लोकसभा चुनावों में कितना प्रभावी होगा, इसका अनुमान लगाना मुश्किल है। लेकिन जनांदोलन में जाकर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आदिवासियों एवं भूमिहीनों के लिए किए गए कार्यों का ब्यौरा पेश किया और वर्तमान मांगों के लिए केन्द्र से बातचीत कराने में अपनी भूमिका के बारे में बताया। यद्यपि प्रदेश में किसानों का असंतोष चरम पर है, वन अधिकार कानून के तहत बड़ी संख्या में दावों को निरस्त किया गया है और भूमिहीनों को जमीन पर कब्जे नहीं मिल पाए हैं। केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने आंदोलनकारियों के नाम पत्र भेजकर आंदोलन खत्म करने की अपील की।

जनांदोलन में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सहित कांग्रेस के कई बड़े नेता शामिल हुए।  राहुल गांधी ने भी यूपीए सरकार के समय किसानों एवं आदिवासियों के हित में लिए गए निर्णयों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने किसानों की जमीन की रक्षा के लिए जमीन अधिग्रहण कानून बनाया, लेकिन भाजपा 2014 में इसे खत्म करना चाहती थी। किसानों का लगातार दमन किया जा रहा है। जंगल और जमीन पर अधिकार मांगने वाले आदिवासियों को धमकाया जा रहा है।

आगामी विधानसभा चुनावों में वंचितों एवं आदिवासियों के मुद्दे पर राजनीतिक दल कितनी गंभीरता दिखाती हैं, यह उनके चुनावी भाषणों एवं घोषणा-पत्रों में देखने को मिलेगी, लेकिन यह साफ है कि इन आंदोलनों ने राजनीतिक दलों को आगाह किया है कि ऐसे मुद्दों की अनदेखी उनके लिए खतरनाक साबित हो सकती है।

Assembly elections 2018
Madhya Pradesh
Chattisgarh
Election issues
जल जंगल ज़मीन
किसान आंदोलन
farmer crises
Farmer protest

Related Stories

परिक्रमा वासियों की नज़र से नर्मदा

कड़ी मेहनत से तेंदूपत्ता तोड़ने के बावजूद नहीं मिलता वाजिब दाम!  

मनासा में "जागे हिन्दू" ने एक जैन हमेशा के लिए सुलाया

‘’तेरा नाम मोहम्मद है’’?... फिर पीट-पीटकर मार डाला!

पंजाब: आप सरकार के ख़िलाफ़ किसानों ने खोला बड़ा मोर्चा, चंडीगढ़-मोहाली बॉर्डर पर डाला डेरा

कॉर्पोरेटी मुनाफ़े के यज्ञ कुंड में आहुति देते 'मनु' के हाथों स्वाहा होते आदिवासी

एमपी ग़ज़ब है: अब दहेज ग़ैर क़ानूनी और वर्जित शब्द नहीं रह गया

मध्यप्रदेशः सागर की एग्रो प्रोडक्ट कंपनी से कई गांव प्रभावित, बीमारी और ज़मीन बंजर होने की शिकायत

सिवनी मॉब लिंचिंग के खिलाफ सड़कों पर उतरे आदिवासी, गरमाई राजनीति, दाहोद में गरजे राहुल

मध्यप्रदेश: गौकशी के नाम पर आदिवासियों की हत्या का विरोध, पूरी तरह बंद रहा सिवनी


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License