NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
चुनावी बॉन्ड का विवरण 30 मई तक चुनाव आयोग को सौंपने का आदेश
बीजेपी समेत कई दलों ने इस फैसले पर चुप्पी साध ली है, हालांकि वामपंथी दलों समेत कुछ अन्य पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
12 Apr 2019
सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सभी राजनीतिक दलों को 30 मई तक इलेक्टोरल यानी चुनावी बॉन्ड का विवरण चुनाव आयोग को सौंपने का आदेश दिया है। बीजेपी समेत कई दलों ने इस फैसले पर चुप्पी साध ली है, हालांकि वामपंथी दलों समेत कुछ अन्य पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने ये फैसला सुनाया। इस सिलसिले में केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल, चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी और एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की ओर से वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण पेश हुए। सभी की दलीलों को सुनने के बाद पीठ ने गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिय़ा था।

इलेक्टोरल या चुनावी बॉन्ड को मोदी सरकार ने यह कहकर पेश किया था कि इसके जरिये चुनाव में कालेधन के इस्तेमाल पर रोक लगेगी और चंदा देने की प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी। ये बॉन्ड 1000, 10 हज़ार, 1 लाख, 10 लाख और 1 करोड़ के रूप में रखे गए थे। इसमें सरकार ने यह सुनिश्चित किया था कि चंदा देने वालों की पहचान का खुलासा न हो सके।

मामले की सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने पारदर्शिता की वकालत करते हुए कहा था कि आयोग चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करना चाहता है, जिसे वर्तमान में चुनावी बॉन्ड के रूप में सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है। उधर सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल (AG) ने दलील दी थी कि चुनावी बॉन्ड योजना का मकसद चुनावों में काले धन पर अंकुश लगाना है। उन्होंने दावा किया था कि योजना के दुरुपयोग के खिलाफ पर्याप्त सुरक्षा उपाय मौजूद हैं और ये बॉन्ड केवल भारतीय स्टेट बैंक के माध्यम से प्राप्त किए जाते हैं, जो बॉन्ड के खरीदार की पहचान बनाए रखेंगे। लेकिन जिस पार्टी को बॉन्ड प्राप्त हुआ, वह गोपनीय होगा। उनका कहना था कि बैंक, बॉन्ड खरीदार का केवाईसी बनाए रखेगा। एक राजनीतिक दल चुनावी बॉन्ड के लिए केवल एक चालू खाता खोल सकता है। सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास किया है कि चुनावी बॉन्ड के माध्यम से चंदा देने वालों की पहचान का खुलासा न हो। उनके मुताबिक चुनावी बॉन्ड की योजना कालेधन पर अंकुश लगाने का एक प्रयोग है और न्यायालय को इस मामले में कम से कम इस लोकसभा चुनाव के अंत तक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। नई सरकार सत्ता में आने के बाद इस योजना की समीक्षा करेगी।

अटॉर्नी जनरल की दलीलों पर जस्टिस दीपक गुप्ता ने टिप्पणी की कि यह प्रणाली अपारदर्शी है। इसके परिणामस्वरूप काले धन को सफेद में परिवर्तित किया जा सकता है। इसके अलावा लोकतंत्र में मतदाता को यह जानने का अधिकार है कि राजनीतिक दलों द्वारा किससे दान प्राप्त किया जा रहा है लेकिन "आप इसे रोक रहे हैं।"

जस्टिस गुप्ता की टिप्पणी पर अटॉर्नी जनरल ने बड़ी अजीब दलील दी कि "मतदाताओं को दान के बारे में जानने का अधिकार नहीं है। उन्हें केवल उम्मीदवारों के बारे में पता होना चाहिए। मतदाताओं को यह जानने की जरूरत नहीं है कि राजनीतिक दलों का पैसा कहां से आता है।”

चीफ जस्टिस ने भी अटॉर्नी जनरल से सवाल पूछा, "हम जानना चाहते हैं कि जब बैंक X या Y द्वारा आवेदन पर चुनावी बॉन्ड जारी करता है, तो क्या बैंक के पास यह विवरण होगा कि कौन सा बॉन्ड X को जारी किया गया है और कौन सा Y को?" उन्होंने आगे कहा, "यदि ऐसा है तो काले धन से लड़ने की कोशिश करने की आपकी पूरी कवायद बेकार हो जाती है।"

जस्टिस संजीव खन्ना अटॉर्नी जनरल को बताया कि आपने जिस केवाईसी का उल्लेख किया है वह केवल क्रेता की पहचान के बारे में है। यह धन की वास्तविकता का प्रमाण पत्र नहीं है - चाहे वह काला हो या सफेद। यदि कई शेल कंपनियों के माध्यम से पैसे का लेन-देन किया जाता है तो केवाईसी किसी भी उद्देश्य से कार्य नहीं करेगा।
अब चुनाव के बीच सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड पर तो रोक नहीं लगाई है लेकिन सभी राजनीतिक दलों को चुनाव खत्म होने के बाद 30 मई तक चुनावी बॉन्ड का पूरा विवरण सीलबंद लिफाफे में चुनाव आयोग को सौंपने का आदेश दिया है।

इस फैसले पर बीजेपी समेत कई दलों ने चुप्पी साध ली है, हालांकि वामपंथी दलों समेत कुछ अन्य पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के महासचिव सीताराम येचुरी ने ट्वीट कर कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने मोदी, जेटली और भाजपा द्वारा उठाए गए कदम को ध्वस्त कर दिया - जिन्होंने इसे एक अपारदर्शी, गुप्त चुनावी बॉन्ड बनाने के लिए धन विधेयक के रूप में पेश किया था। अदालत का कहना है कि पारदर्शिता चुनावी फंडिंग का मूल सिद्धांत है। लोगों को यह जानने का अधिकार है कि किस पार्टी को कितना और किससे मिला।

एक अन्य ट्वीट में येचुरी ने कहा कि अब कालाधन दाताओं को इस तरीके से फंड करने में डर लगेगा। आज चुनाव आयोग के पास आंकड़े हैं, कल जनता के पास भी होंगे।

Anonymity pushed by BJP is on the way out. Donors of black money via this route will be scared to fund from here on. Today EC has the data. Tomorrow the public will also have it. #NoBlackMoney #Transparency https://t.co/LJfm1fznxL

— Sitaram Yechury (@SitaramYechury) April 12, 2019

बीएसपी प्रमुख मायावती ने भी ट्वीट कर कहा, “अब बीजेपी व इनके निरंकुश नेताओं को कम्बल ओढ़ कर घी पीते रहने के बजाए उन्हें चुनाव आयोग को यह बताना ही होगा कि कौन उद्योगपति/ धन्नासेठ चुनावी बाण्ड के रूप में उन्हें कितना अकूत धन दे रहा है तथा उनकी शान-शौकत, शाह खर्ची व चुनाव में धनबल के प्रयोग आदि का असली रहस्य क्या है?

अब बीजेपी व इनके निरंकुश नेताओं को कम्बल ओढ़ कर घी पीते रहने के बजाए उन्हें चुनाव आयोग को यह बताना ही होगा कि कौन उद्योगपति/ धन्नासेठ चुनावी बाण्ड के रूप में उन्हें कितना अकूत धन दे रहा है तथा उनकी शान-शौकत, शाह खर्ची व चुनाव में धनबल के प्रयोग आदि का असली रहस्य क्या है?

— Mayawati (@Mayawati) April 12, 2019

(लाइव लॉ के इनपुट के साथ)

Electoral Bond Scheme
Supreme Court
election commission of India
black money
Transparency
BJP
left parties

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License