NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
छात्रों ने यूजीसी से बड़ी लड़ाई जीती, कोर्ट का सीट कट से इंकार

2016 यूजीसी के गजट नोटिफिकेशन की संवैधानिक वैधता को तो कायम रखा परन्तु किसी भी तरह के सीट कट से साफ इंकार किया।
मुकुंद झा
03 Oct 2018
भारत सरकार बनाम एसफआई

एसएफआई (स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया) अन्य बनाम भारत सरकार, यूजीसी, के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने यूजीसी गजट 2016 मामले में फैसला देते हुए यूजीसी गजट को तो बरकरार रखा परन्तु एमफिल और पीएचडी में जो सीट कट हुआ था उसे रोका और साथ ही किसी भी तरह के सीट कट से साफ इंकार किया है।

न्यायमूर्ति एस रविंद्र भट और न्यायमूर्ति ए के चावला की खंडपीठ ने गजट के उस हिस्से को भी खत्म किया जिसमे वायवा (मौखिक परीक्षा) को 100% वेटेज दिया था। इसके साथ ही यह भी कहा कि शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश में संवैधानिक आरक्षण नीति लागू करनी ही होगी इससे कोई भी समझौता नहीं हो सकता है |

उच्च न्यायालय का ये आदेश एसएफआई द्वारा दायर याचिका पर आया है जिसमे  यूजीसी गजट 2016 (न्यूनतम मानक और एमफिल और पीएचडी डिग्री की प्रक्रिया) के नोटिफिकेशन की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए एसएफआई और तीन छात्रों ने याचिका दायर की थी |

इस पर सुनवाई करते हुए अप्रैल में  उच्च न्यायालय ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से एक हलफनामा प्रस्तुत करने के लिए कहा था जिसमें सभी 13 स्कूलों में छात्रों की कुल संख्या और एमफिल, पीएचडी और गैर-शोध छात्रों के आलग–अलग आंकड़े मांगे थे |

एसफआई के राज्य अध्यक्ष विकास भदौरिया ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए उच्चतम न्यायालय के इस फैसले पर ख़ुशी जताते हुए कहा की न्यायालय ने  हमारी उस बात को सही साबित किया  जिसमें हमने ये कहा था की ये सरकार अनुसूचित जाति और जनजाति और समाज के पिछड़े तबके को शिक्षा व्यवस्था से बाहर कर रही है।

वे कहते हैं कि  समाज के सबसे कमजोर लोगों को लंबे संघर्ष के बाद जो संवैधनिक अधिकार मिले हैं उसे ये भाजपा की सरकार खत्म करना चाहती है और अपना मनुवादी विधान लागू करना चाहती है,  परन्तु न्यायालय के फैसले ने साफ किया है कि भारत में संघ और भाजपा का मनुवादी विधान नहीं बल्कि भारत का संविधान चलेगा। विकास कहते हैं कि न्यायलय ने सरकार को निर्देशित किया  की उन्हें “शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश में संवैधानिक आरक्षण नीति लागू करना ही होगा” |

यूजीसी गजट 2016 क्या था और छात्र इसका विरोध क्यों कर रहे थे?

2016 में जारी अधिसूचना ने अनिवार्य किया कि एक प्रोफेसर किसी भी समय तीन एमफिल और आठ पीएचडी छात्रों से अधिक का निर्देशक नहीं हो सकता।

इसी तरह, सहायक प्रोफेसर एक से अधिक एमफिल और चार पीएचडी छात्रों का निर्देशक नहीं हो सकता। एसोसिएट प्रोफेसर को दो से अधिक एमफिल और छह पीएचडी छात्रों से अधिक के निर्देशन की अनुमति नहीं है। जिसके बाद जेएनयू में सीट कट हुआ था |

इस गजट का जो मुख्य प्रभाव छात्रों पर पड़ा था, उसका छात्रों ने विरोध किया। 5 मार्च, 2016 की अधिसूचना के माध्यम से यूजीसी द्वारा साक्षात्कार का 100 प्रतिशत वेटेज आवंटित करने के कदम की छात्र संगठनों ने भरसक आलोचना की थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि यह केवल उच्च शिक्षा में जातिवादी भेदभाव को जन्म देगा।

भारी सीट कट

मनीष जो जेएनयू के छात्र हैं उनके मुताबिक जेएनयू में  2017-18 शैक्षिक वर्ष से शुरू होने वाले एमफिल और पीएचडी पाठ्यक्रम के लिए सीटों में भारी कटौती हुई। 2016-17 के शैक्षणिक वर्ष में इन दो डिग्री के लिए 970 सीटों की तुलना में 102 सीटें कम हो गई |

समाजिक न्याय की हत्या

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक दलित छात्र मुथुकृष्णन जीवननाथम उर्फ रजनी कृष्ण  ने 13 मार्च, 2017 को आत्महत्या कर ली थी जब उन्होंने इस मुद्दे को मुख्य रूप से सामने लाया था। अपने आखिरी फेसबुक पोस्ट में उन्होंने लिखा था: "जब समानता से इनकार किया जाता है तो सबकुछ अस्वीकार कर दिया जाता है। कोई समानता नहीं है एमफिल/पीएचडी प्रवेश में, वायवा  में कोई समानता नहीं है...।”
सुमित कटारिया जो दिल्ली विश्वविद्दालय के छात्र रहे हैं और अभी पीएचडी में प्रवेश के इच्छुक है साथ ही वो इस केस में यचिकाकर्ता थे, उन्होंने कहा की 2016 का गजट नोटिफिकेशन संविधान द्वार दिए गए समानता और समाजिक न्याय के खिलाफ था। ये गजट दलित और पिछड़े समाज से आने वाले छात्रों के लिए उच्च शिक्षा में और बाधाएं बढ़ाने वाला था, चाहे वो सभी छात्रों के लिए प्रवेश परीक्षा में 50% अंक को अनिवार्य करना हो।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए सुमित कटारिया ने कहा कि यूजीसी ने उन मानदंडों को वापस नहीं लिया है जो एक प्रोफेसर के अंतर्गत एमफिल और पीएचडी के छात्रों की संख्या सीमित करते थे I परन्तु न्यायालय ने इसमें सकारत्मक हस्तक्षेप किया है परन्तु अभी भी एम.फिल. और पीएचडी सीटों की निगरानी के लिए सार्वभौमिक मानदंड होना चाहिए। वर्तमान प्रणाली कैंपस में आने वाले  छात्रों को हतोत्साहित करती है।"

कटारिया ने कहा, "हमने ऐसे मामले देखे हैं, जहाँ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों ने प्रवेश परीक्षा में काफी अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन उन्हें इंटरव्यू में बहुत खराब अंक दिए गए थे, जिसके परिणामस्वरूप अंततः उन्हें अवसरों से वंचित कर दिया जाता है। यही कारण है कि न्यूनतम अंक में सापेक्षता होनी चाहिए।"

'बड़ी लड़ाई जारी है'

सामाजिक न्याय की लड़ाई में छात्रों के हित में आए इस ऐतिहासिक फैसले के लिए एसएफआई ने छात्रों को बधाई दी और इसे छात्र संघर्ष की जीत बताया। एसएफआई ने कहा कि उनका संघर्ष सामाजिक न्याय की लड़ाई के लिए आरक्षण नीति के पूरी तरह लागू कराने तक जारी रहेगा। एसफआई के सयुंक्त सचिव सुरेश  ने कहा, "अभी यह आंशिक जीत है क्योंकि वायवा के वेटेज को 15 प्रतिशत तक कम किया जाना चाहिए। साथ ही लिखित परीक्षा में एससी, एसटी और ओबीसी उम्मीदवारों के लिए किसी प्रतिशत अंक की कोई न्यूनतम बाध्यता नहीं होना चाहिए।"

 

 

 

 

 

 

UGC
Delhi High court
SFI
sc/st students
Constitution of India
student movement
Higher education

Related Stories

दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया

दिल्ली: रामजस कॉलेज में हुई हिंसा, SFI ने ABVP पर लगाया मारपीट का आरोप, पुलिसिया कार्रवाई पर भी उठ रहे सवाल

बच्चे नहीं, शिक्षकों का मूल्यांकन करें तो पता चलेगा शिक्षा का स्तर

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

डीयूः नियमित प्राचार्य न होने की स्थिति में भर्ती पर रोक; स्टाफ, शिक्षकों में नाराज़गी

बग्गा मामला: उच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस से पंजाब पुलिस की याचिका पर जवाब मांगा

डीवाईएफ़आई ने भारत में धर्मनिरपेक्षता को बचाने के लिए संयुक्त संघर्ष का आह्वान किया

मैरिटल रेप : दिल्ली हाई कोर्ट के बंटे हुए फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, क्या अब ख़त्म होगा न्याय का इंतज़ार!

दिल्ली: ''बुलडोज़र राजनीति'' के ख़िलाफ़ सड़क पर उतरे वाम दल और नागरिक समाज

कॉमन एंट्रेंस टेस्ट से जितने लाभ नहीं, उतनी उसमें ख़ामियाँ हैं  


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    जम्मू-कश्मीर परिसीमन से नाराज़गी, प्रशांत की राजनीतिक आकांक्षा, चंदौली मे दमन
    07 May 2022
    हफ़्ते की बात के इस अंक में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश बात कर रहे हैं जम्मू-कश्मीर के परिसीमन की। साथ ही वे नज़र डाल रहे हैं प्रशांत किशोर की राजनीतिक सियासत की।
  • रवि शंकर दुबे
    तीन राज्यों में उपचुनाव 31 मई को: उत्तराखंड में तय होगा मुख्यमंत्री धामी का भविष्य!
    07 May 2022
    चुनाव आयोग ने तीन राज्यों की तीन सीटों पर विधानसभा चुनावों की तारीख घोषित कर दी है, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण उत्तराखंड की चंपावत सीट को माना जा रहा है। क्योंकि यहां से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी…
  • पीपुल्स डिस्पैच
    पाकिस्तान में बलूच छात्रों पर बढ़ता उत्पीड़न, बार-बार जबरिया अपहरण के विरोध में हुआ प्रदर्शन
    07 May 2022
    राष्ट्रीय राजधानी इस्लामाबाद में पंजाब विश्वविद्यालय (पीयू) के परिसर से दिन दहाड़े एक बलूच छात्र बेबाग इमदाद को उठाए जाने के बाद कई छात्र समूहों ने इसके विरोध में प्रदर्शन किया।
  • राहुल कुमार गौरव
    पिता के यौन शोषण का शिकार हुई बिटिया, शुरुआत में पुलिस ने नहीं की कोई मदद, ख़ुद बनाना पड़ा वीडियो
    07 May 2022
    पीड़ित बेटी ने खुद अपने पिता की गंदी करतूत का वीडियो बनाया और फिर उसे लेकर थाने पहुंची। पीड़ित की शिकायत के बाद पुलिस ने गुरुवार को 50 वर्षीय आरोपी पिता को गिरफ्तार कर लिया है। लेकिन पीड़िता को अपने…
  • सुबोध वर्मा
    ओडिशा: अयोग्य शिक्षकों द्वारा प्रशिक्षित होंगे शिक्षक
    07 May 2022
    शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए उपलब्ध 8 कॉलेजों में 62 फैकल्टी हैं, जिनमें से सिर्फ 20 रेगुलेटरी बॉडी की योग्यता के मानदंडों को पूरा करते हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License