NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
छत्तीसगढ़ : गोली नहीं बातचीत है समाधान
माओवादी विद्रोह के सामाजिक-आर्थिक कारणों की जांच करने का नए मुख्यमंत्री का आश्वासन और उनका अंदाज़ स्वागत योग्य बदलाव है।
गौतम नवलखा
24 Dec 2018
Translated by महेश कुमार
फाइल फोटो

ये अक्सर नहीं होता है कि माओवादियों को किसी खास मक़सद के लिए एक मनुष्य के रूप में देखा-समझा जाए क्योंकि अक्सर उनके बारे में भौंडी या तिरस्कारी बातें ही कही जाती रही हैं। कई बार इस अपमान के लिए माओवादी उत्तरदायी होते हैं लेकिन इसके साथ यह भी उतना ही सच है कि सरकारी और आधिकारिक रूप से स्वीकृत प्रचार उन्हें अपमानित करने का प्रयास करता है, वस्तुतः उन्हें ऐसे व्यक्तियों में बदल देता है जिनका कोई वजूद नहीं है, इसलिए उनके प्रति अपमान, गिरफ्तारी या उनके विनाश को वैध लक्ष्य माना जाता है। इसलिए, छत्तीसगढ़ के नए मुख्यमंत्री, भूपेश बघेल द्वारा टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक साक्षात्कार में अन्य बातों के अलावा यह कहना कि अगर सीपीआई (माओवादी) के “विद्रोह को धधकती बंदूकों से हल किया जा सकता तो यह रमन सिंह के 15 साल के शासन के दौरान हल हो जाना चाहिए था।” इन 15 वर्षों में यहां बस्तर में पुलिस विभाग द्वारा सलवा जुडूम, ऑपरेशन ग्रीनहंट, पत्रकारों, वकीलों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, नागरिक स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं को डराना-धमकाना और यहां तक ​​कि कम्युनिस्टों को "भागने" की धमकी दी गई (भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के एक पूर्व महासचिव ने 2009 में अपने पत्र में इस शब्द का इस्तेमाल किया था, जब उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था) ।

नए मुख्यमंत्री ने कहा कि "गोली के बदले गोली”  की एक नीति बुरी तरह से विफल हो गयी है और अब इस मुद्दे पर एक नया विचार देने का समय आ गया है।" उन्होंने कहा कि यह मान लेना गलत है कि अधिक बलों की तैनाती, मुठभेड़ों को तेज करना और मृत शवों की गिनती "सफलता" के निशान थे। उन्होंने जोर देकर कहा कि सीएम के रूप में वह "शवों की गिनती" नहीं करना चाहते हैं, बल्कि वे बस्तर के आदिवासियों, बुद्धिजीवियों, स्थानीय बुज़ुर्गों, अधिकार कार्यकर्ताओं और यहां तक कि तैनात बलों के साथ एक संवाद चाहते थे, क्योंकि इससे सभी "प्रभावित" हैं। यह कहते हुए कि इस विद्रोह की जड़ें सामाजिक-आर्थिक हैं, जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है, बघेल ने लोगों को यह आश्वासन दिया कि कांग्रेस पार्टी के चुनावी वादे के तहत, जून 2005 में टाटा स्टील प्लांट के लिए अधिग्रहित 2,044 हेक्टेयर जमीन आदिवासी को वापस कर दी जाएगी। पिछले साल टाटा ने परियोजना रद्द कर दी थी।

यह सच है कि सत्ता संभालने के बाद एक नई सरकार, एक अलग राग अलापने के लिए जानी जाती है। साथ ही, कांग्रेस को 'शिकार के साथ चलने और शिकारी की तरह शिकार करने' के लिए जाना जाता है। दरअसल, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने भले ही छत्तीसगढ़ में 15 वर्षों तक शासन किया हो, लेकिन कांग्रेस-नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ने नई दिल्ली में 10 वर्षों तक शासन किया, और उनकी नीति भी भाजपा से अलग नहीं थी। इसलिए, जब तक कोई प्रगति या जमीन पर कुछ नया कार्यक्रम नहीं दिखाई देता, तब तक बघेल द्वारा की गयी बयानबाजी को केवल प्रचार ही माना जा सकता है।

बघेल ने साक्षात्कारकर्ता को याद दिलाया कि मई 2013 में कांग्रेस पार्टी ने "एक घातक नक्सली हमले में अपने आगे बढ़े और वरिष्ठ नेताओं को खो दिया था। इसलिए, ऐसा भी नहीं है कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस पार्टी में माओवादियों के लिए बहुत बड़ी सहानुभूति है।" हालाँकि, अब तक कि क्रिया के रूप में, ऐसा कुछ अलग है जो यह सुझाव देता है कि सरकार के सैन्य दृष्टिकोण में संशोधन करने के लिए कुछ उम्मीद बाकी है, जो पिछले पांच वर्षों में दिखाई नहीं दी थी। इतना ही नहीं, पिछले पांच सालों में, पहली बार बस्तर से माओवादियों को हटाने के लिए नई समय सीमा तय करने के बजाय (क्योंकि इसे भविष्य ये तारीख हमेशा बदलती रही हैं) माओवादियों से नए सीएम ने वार्ता करने की बात पर ज़ोर दिया है।

वार्ता हो या न हो, एक अलग बात है, लेकिन कभी-कभी नियोजित भाषा में बदलाव से निष्क्रिय पड़ी गतिविधियों के नवीनीकरण की संभावनाएं खुल जाती हैं। यही वजह है, कि बस्तर पुलिस और उनके स्थानीय सहयोगियों द्वारा धमकी और हमलों के जरिये वकीलों, पत्रकारों, कार्यकर्ताओं को भगा दिया गया था, वे वापस आ सकते है। अगर ऐसा होता है, तो यह बेहतरी के लिए एक बदलाव का संकेत देगा।

इस बीच, यह मानने की बात है कि भाजपा के 15 वर्षों के शासन और सैन्य दमन ने माओवादी आंदोलन को कमजोर तो कर दिया है, लेकिन भाजपा वांछित रूप से उन्हें मिटा नहीं सकी। हत्याओं, गिरफ्तारी और आत्मसमर्पण के आंकड़ों की खबरें फर्जी नहीं तो उन्हें बढ़ा चढ़ा कर पेश किए गया है। सुरक्षा बलों की तैनाती और माओवादी रैंक के कम होने से, आधिकारिक प्रचार से, वे एक अनिर्णायक शक्ति बन गए थे। जाहिर है, ऐसी बात नहीं है, क्योंकि केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के अलावा किसी ने भी यह नहीं कहा कि माओवादियों का "एक, दो या तीन साल" में सफाया हो जाएगा। चूंकि मिशन 2016 या यूपीए शासन के तहत माओवादियों के सफाए की घोषणा की पहले की समय सीमा एक दु:ख भरी विफलता से गुजर चुकी है इसलिए केवल एक ही उम्मीद बाकी है कि माओवादी विद्रोह की सामाजिक-आर्थिक जड़ों पर नज़र डाली जाए जिसके लिए बघेल बयान और उसकी चर्चा की सामग्री एक स्वागत योग्य बदलाव है, क्योंकि इस समस्या की "जड़" का कारण” भाजपा के शासन में उपहास का मुहावरा बन गया था। इसलिए, इसकी वापसी का स्वागत है।

Chhattisgarh
chhatr rajneeti
MAOISTS
Congress
bhupesh baghel
salwa judum

Related Stories

छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया

छत्तीसगढ़ः 60 दिनों से हड़ताल कर रहे 15 हज़ार मनरेगा कर्मी इस्तीफ़ा देने को तैयार

हार्दिक पटेल भाजपा में शामिल, कहा प्रधानमंत्री का छोटा सिपाही बनकर काम करूंगा

राज्यसभा सांसद बनने के लिए मीडिया टाइकून बन रहे हैं मोहरा!

ED के निशाने पर सोनिया-राहुल, राज्यसभा चुनावों से ऐन पहले क्यों!

भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत

ईडी ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी को धन शोधन के मामले में तलब किया

राज्यसभा चुनाव: टिकट बंटवारे में दिग्गजों की ‘तपस्या’ ज़ाया, क़रीबियों पर विश्वास

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

केरल उप-चुनाव: एलडीएफ़ की नज़र 100वीं सीट पर, यूडीएफ़ के लिए चुनौती 


बाकी खबरें

  • मनोलो डी लॉस सैंटॉस
    क्यूबाई गुटनिरपेक्षता: शांति और समाजवाद की विदेश नीति
    03 Jun 2022
    क्यूबा में ‘गुट-निरपेक्षता’ का अर्थ कभी भी तटस्थता का नहीं रहा है और हमेशा से इसका आशय मानवता को विभाजित करने की कुचेष्टाओं के विरोध में खड़े होने को माना गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट
    03 Jun 2022
    जस्टिस अजय रस्तोगी और बीवी नागरत्ना की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि आर्यसमाज का काम और अधिकार क्षेत्र विवाह प्रमाणपत्र जारी करना नहीं है।
  • सोनिया यादव
    भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल
    03 Jun 2022
    दुनिया भर में धार्मिक स्वतंत्रता पर जारी अमेरिकी विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट भारत के संदर्भ में चिंताजनक है। इसमें देश में हाल के दिनों में त्रिपुरा, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में मुस्लिमों के साथ हुई…
  • बी. सिवरामन
    भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति
    03 Jun 2022
    गेहूं और चीनी के निर्यात पर रोक ने अटकलों को जन्म दिया है कि चावल के निर्यात पर भी अंकुश लगाया जा सकता है।
  • अनीस ज़रगर
    कश्मीर: एक और लक्षित हत्या से बढ़ा पलायन, बदतर हुई स्थिति
    03 Jun 2022
    मई के बाद से कश्मीरी पंडितों को राहत पहुंचाने और उनके पुनर्वास के लिए  प्रधानमंत्री विशेष पैकेज के तहत घाटी में काम करने वाले कम से कम 165 कर्मचारी अपने परिवारों के साथ जा चुके हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License