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भारत
राजनीति
छत्तीसगढ़: खनिज संपदा का लोगों को लाभ नहीं
राज्य के लोग गरीबी की जकड़ में फंसे हैं क्योंकि प्राकृतिक संसाधन का सारा लाभ कॉर्पोरेट की जेबों में जा रहा है।
सुबोध वर्मा
13 Nov 2018
Translated by महेश कुमार
chattisgarh mining
चट्टी बरिआतु खदान

छत्तीसगढ़ के लोग एक और राज्य विधानसभा और सरकार का चुनाव करने जा रहे हैं, लेकिन सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने एक महत्वपूर्ण सवाल को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया है कि वे राज्य के समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों के बारे में क्या करने जा रहे हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि खनिजों, भूमि और पानी के अनियंत्रित निजी शोषण का वर्तमान मॉडल, और जंगलों की अंधी लूट ही उनका पसंदीदा मॉडल है। इसलिए इसे बदलने की उनकी कोई योजना नहीं है।

याद रखें: छत्तीसगढ़ में 28 खनिजों के भण्डार हैं जिसमें शामिल हैं 52 अरब टन कोयले (भारत के कुल जमा कोयले का 18 प्रतिशत), 2.7 अरब टन उच्च गुणवत्ता वाला लौह अयस्क (भारत के कुल जमा लौह का 19 प्रतिशत), और 37 प्रतिशत से अधिक आइरन अउर जमा है साथ ही बॉक्साइट, चूना पत्थर, डोलोमाइट, क्वार्टजाइट इत्यादिI साल 2016-17 में राज्य से 23,339 करोड़ रुपये की खनिज संपदा निकाली गई थी।

राज्य के लोगों को इससे क्या मिला? नीचे दिए गए चार्ट पर एक नज़र डालें जो खनिजों के मूल्य और पिछले कुछ वर्षों से राज्य सरकार द्वारा अर्जित किए राजस्व के मूल्य को दिखाता है।

Chhattisgarh mines 1.jpg

जैसा कि देखा जा सकता है कि इन खनिजों का लगभग सिर्फ 16-17 प्रतिशत मूल्य सरकारी ही खज़ाने में जाता है। इंडियन ब्यूरो ऑफ माइन्स के मुताबिक बाकी खज़ाना वे लुटेरी कंपनियों हड़प गयीं जिन्हें 2016 तक 24,000 हेक्टेयर खनन ब्लॉक के पट्टे दिए गए थे।

भारत की राजनीतिक व्यवस्था ने वर्षों यह धारणा बना दी है कि यह सामान्य बात है। निजी संसाधनों को पट्टे नही देंगे तो प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन कैसे किया जाएगा जो खनिजों को निकालने और उन्हें संसाधित करने के लिए संसाधनों को एकत्रित करते हैं? लेकिन यह एकमात्र रास्ता नहीं है!

इस पर विचार करें: प्राकृतिक संसाधनों को निकालने के काम को प्रबंधित किया जा सकता था – वह भी अधिक टिकाऊ तरीके से - राज्य एजेंसियों द्वारा ताकि इसका लाभ सीधे लोगों तक पहुंच सके। आखिरकार, निजी क्षेत्र के लिए मौजूदा फ़ितूर के शुरू होने से पहले भी भारत कोयले और लौह और अन्य सभी खनिज संसाधनों को खनन कर रहा था।

इससे अतिरिक्त लाभ मिल सकता था: इसके नीचे खनिजों के समृद्ध भंडारों को प्राप्त करने के लिए भूमि से लोगों के जबरन विस्थापन को भी शायद रोका जा सकता थाI यह प्रक्रिया निश्चित रूप से ज़्यादा जवाबदेह होती और इस पर नज़र रखना भी आसान होता।

लेकिन वर्तमान में, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की राज्य सरकार (जो राज्य पर तब से शासन कर रही है जब से यह मध्य प्रदेश से अलग होकर एक अलग राज्य बना)  की इच्छा है कि वह उस दुर्लभ संपदा को शक्तिशाली निजी संस्थाओं को खुश करने के लिए सभी नियमों और कानूनों को तोड़ दे और गरीबों से उनकी ज़मीन छीन लेI

शायद, राज्य सरकार सामाजिक क्षेत्र (शिक्षा, स्वास्थ्य, आदि) या सामान्य विकास कार्यक्रमों पर काफी कुछ खर्च कर रही है? लेकिन सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) पर सामाजिक क्षेत्र के व्यय पर आरबीआई के आंकड़ों पर एक सरसरी नज़र डालने से पता चलता है कि पिछले कई वर्षों से यह खर्च लगभग 11-12 प्रतिशत पर अटक गया है। इसलिए, पिछले दशक में छत्तीसगढ़ में खनन और सीमेंट फक्ट्रियों की वजह से यहाँ की अर्थव्यवस्था में जो 10% की बढ़ोत्तरी हुई है उससे यह मतलब नहीं लगाया जाना चाहिए कि गरीबी से बेहाल राज्य के अंदरूनी क्षेत्रों को कोई राहत मिली होI नया रायपुर, निश्चित रूप से, एक स्मार्ट शहर बनने के रास्ते पर है (जो भी इसका मतलब है!) लेकिन दूर आदिवासी गांवों और दलित बस्तियों के लोगों के जीवन में कोई बदलाव नहीं है।

छत्तीसगढ़ ने कृषि उत्पादन के मामले में भी अच्छा प्रदर्शन किया है, फिर भी इसके किसान क्रोध से भरे हुए हैं क्योंकि उनकी कड़ी मेहनत का कोई दाम नहीं हैं। उनके उत्पाद के लिए जो कीमतें मिलती हैं वे मुश्किल से खर्चों को पूरा करती हैं। ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (एमजीएनआरईजीएस) केवल 174 रुपये की दैनिक मजदूरी प्रदान करती है। पिछले साल इस योजना में करीब 42 लाख मज़दूरों ने काम किया था।

अगर छत्तीसगढ़ के संसाधनों का ठीक से उपयोग किया जाता, तो 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के 38 प्रतिशत को छोटे क़द का होने से रोका जा सकता था, 42 प्रतिशत में खून की कमी नही होती, न ही राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक 47 प्रतिशत महिलाएं खून की कमी का शिकार होती। राज्य में महिला साक्षरता दर सिर्फ 66 प्रतिशत है और केवल 27 प्रतिशत महिलाओं ने 10 साल की स्कूली शिक्षा हासिल की है।

यदि ताज़ा चुनाव एक अलग और अजीब परिणाम पेश करते हैं, तो इसे राज्य के लोगों की तरफ से मदद की पुरज़ोर मांग होगी - उनके पास शायद ही कोई विकल्प है क्योंकि प्रमुख रिवायत तो उनके खिलाफ है।

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