NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
बाल अधिकार आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का परीक्षण किया, अल्पसंख्यक समूह की अगले क़दम की योजना
"....ऐसा पाया गया कि अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों या स्कूलों में जो बच्चे दाख़िल थे, वे दूसरे बच्चों की तरह सुविधाओं का लाभ नहीं उठा पा रहे थे क्योंकि उनके शिक्षण संस्थानों को आरटीई के प्रावधानों से छूट प्राप्त थी और अल्पसंख्यक संस्थानों के अधिकारों का लाभ उठा रहे थे।"
रोसम्मा थॉमस
18 Aug 2021
बाल अधिकार आयोग

राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग द्वारा 'अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों की शिक्षा पर संविधान के अनुच्छेद 21 (A) के संदर्भ में 15(5) में दी गई छूटों का प्रभाव' शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई है। इस रिपोर्ट के आने के बाद से ही संस्था पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं और संस्था की इस बारे में विशेषज्ञता पर सवालिया निशान लग रहे हैं।

ईसाई समुदाय के अहम नेता डॉ जॉन दयाल का कहना है कि जब मामला सुप्रीम कोर्ट में निपट चुका है, तब बाल संरक्षण आयोग को इस संबंध में कौन से अधिकार हैं। डॉ जॉन दयाल का कहना है कि NCPRC का गठन मूलत: बच्चों के सम्मान को बनाए रखने और यह तय करने के लिए हुआ था कि उनकी परवरिश स्वतंत्रता के माहौल में बिना शोषण या बुरे व्यवहार के हो। दयाल ने सवाल उठाते हुए पूछा कि क्यों बाल संरक्षण के लिए बनाई गई संस्था सरकार की दूसरी संस्थाओं के काम या सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का पुनर्परीक्षण कर रही है। वह कहते हैं, "यह दिखाता है कि मौजूदा सत्ता के दौरान सभी आयोगों का कितना राजनीतिकरण हो चुका है।"

NCPRC की अध्यक्ष प्रियंका कानूनगो NCPRC की रिपोर्ट के परिचय में लिखती हैं, "....2014 में.... माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि RTE कानून को अल्पसंख्यकों द्वारा स्थापित और अपने मनमुताबिक़ चलाए जाने वाले संस्थानों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, मतलब कोर्ट ने कहा कि RTE कानून अल्पसंख्यक संस्थानों पर लागू नहीं होगा। चूंकि यह फ़ैसला बच्चों के अधिकार और अल्पसंख्यकों के अधिकारों में विरोधाभास की तस्वीर पेश कर रहा है, तो यह देखा गया है कि इन अल्पसंख्यक संस्थानों में दाखिए किए गए कई बच्चे, दूसरे बच्चों की तरह सुविधाओं का लाभ नहीं उठा पाते, क्योंकि जिस संस्थान में वह पढ़ रहे हैं, उसे कानून के तहत छूट मिली हुई है और अल्पसंख्यक संस्थान के अधिकारों का लभा ले रहा है।" 

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा शैक्षणिक संस्थानों को स्थापित और उनके प्रशासन के अधिकार की रक्षा करता है। यह अल्पसंख्यक समुदाय भाषा या धर्म के आधार पर हो सकते हैं। 2012 में धार्मिक शिक्षा देने वाले शैक्षणिक संस्थानों को RTE कानून से छूट दे दी गई, जिसके तहत किसी निजी शैक्षणिक संस्थान में 25 फ़ीसदी सीटें कमज़ोर आर्थिक वर्ग से आने वाले छात्रों के लिए आरक्षित की जाती हैं।

भेदभाव के खिलाफ़ संरक्षण देने वाला भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15(5) कहता है कि सरकार सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछले वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष प्रावधान कर सकता है। लेकिन अल्पसंख्य समुदाय द्वारा चलाए जाने वाले शैक्षणिक संस्थानों को इससे भी छूट दी गई है। 

कानूनगो ने NCPCR की रिपोर्ट में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के तुरंत बाद 2015 में मशविरा किया गया था। कुलमिलाकर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का प्रभाव समझने के लिए छात्रों और शिक्षकों के साथ 16 बार सलाह-मशविरा किया गया। NCPCR द्वारा जो रिपोर्ट प्रकाशित की गई है, उसे क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया ने प्रकाशित किया है, जो गैर-लाभकारी सोसायटी है, मतलब यह सरकार के तहत नहीं आता। लेकिन इसकी वेबसाइट के मुताबिक़, सोसायटी "अफ़सरशाहों को समस्याओं के समाधान" में मदद करती है।

NCPCR का सारांश कहता है, "RTE कानून सभी सरकारी स्कूलों, सरकारी मदद प्राप्त गैर-अल्पसंख्यक स्कूलों और सरकारी मदद ना पाने वाले गैर-अल्पसंख्यक स्कूलों पर लागू होता है। यह अल्संख्यक स्कूलों पर इसलिए लागू नहीं होता क्योंकि RTE कानून, विशेषतौर पर धारा 12(1)(c) के बारे में माना गया कि यह संविधान के अनुच्छेद 30(1) में दिए गए मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन करता है। अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को छूट दिए जाने के पीछे अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति के संरक्षण के लिए समान मौके दिए जाने का तर्क दिया गया। इस छूट के नतीज़तन अल्पसंख्यक संस्थानों में पढ़ने वाले सभी धार्मिक और भाषायी समुदायों को RTE अधिनियम, 2009 में दिए गए मूलभूत अधिकारों से वंचित रहना पड़ रहा है। इसका अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले छात्रों पर बहुत प्रभाव पड़ता है, क्योंकि दिशा-निर्देशों के आभाव में अल्पसंख्यक स्कूल मनमुताबिक काम कर रहे हैं, छात्रों के प्रवेश, शिक्षकों की भर्ती, पाठ्यक्रम को लागू करने और शिक्षाशास्त्र में मनमाफ़िक शर्तें थोप रहे हैं।"

सारांश में एकतरफा सामान्यीकरण करते हुए कहा गया है- जहां कुछ संस्थान "कुलीनों के कोकून" बन गए हैं, वहीं दूसरे "वंचित छात्रों की अलग-थलग बस्तियां" हो गए हैं। इस अध्ययन का उद्देश्य "ऐसा रास्ता बनाना है, जिससे अल्पसंख्यक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे एक समावेशी माहौल में अध्ययन करने में सक्षम हो पाएं..." बताया गया है कि इस अध्ययन के लिए कथित उपलब्ध रिपोर्टों और आंकड़ों के अलावा, भारत में 23,487 अल्पसंख्यक संस्थानों से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। 

2011 की जनगणना के मुताबिक़ भारत में ईसाई आबादी की कुल आबादी में हिस्सेदारी 2।3 फ़ीसदी है। NCPCR की रिपोर्ट दर्शाती है कि भारत की कुल धार्मिक आबादी में ईसाईयों की संख्या 11.54 फ़ीसदी है और वे देश के कुल धार्मिक अल्पसंख्यक स्कूलों में 71.96 फ़ीसदी का संचालन करते हैं। यह पाया गया कि अल्पसंख्यकों द्वारा चलाए जाने वाले इन स्कूलों में 62.50 फ़ीसदी छात्र गैर-अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं। रिपोर्ट में बताया गया कि मुस्लिम समुदाय द्वारा चलाए जाने वाले अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों में 75 फ़ीसदी से ज़्यादा छात्र मुस्लिम समुदाय से आते हैं। जैन और ईसाई समुदाय द्वारा जो स्कूल चलाए जाते हैं, उनमें उनके ही समुदाय से बहुत कम बच्चे आते हैं। "अल्पसंख्यक स्कूलों में पढ़ने वाले कुल छात्रों में सिर्फ़ 8.76 फ़ीसदी ही सामाजिक और आर्थिक पिछड़े तबके से आते हैं।" फिर रिपोर्ट में दोहराया गया कि ऐसे स्कूलों में गरीब़ छात्रों के लिए किए गए प्रावधानों से छूट दी गई है।

अंतिम तौर पर रिपोर्ट समुदायों द्वारा इन स्कूलों के संचालन पर "पुनर्परीक्षण" करने की सलाह देती है और इन संस्थानों को RTE अधिनियम के दायरे में लाने की सलाह देती है।

सुप्रीम कोर्ट के वकील जोस अब्राहम बताते हैं, "मूल तौर पर शिक्षा का अधिकार अधिनियम भारत के सभी स्कूलों पर लागू था। लेकिन इसकी वैधानिकता को चुनौती दी गई और सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में फ़ैसला दिया कि RTE अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 30 (1) के तहत दिए गए अल्पसंख्यक अधिकारों का हनन करता है और इसलिए यह अल्पसंख्यक संस्थानों, चाहे उनको सरकारी मदद मिलती हो या नहीं, उनके ऊपर लागू नहीं होगा।" उन्होंने आगे बताया कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को कानून की तरह लिया गया, जो सभी पर लागू था। एक बहुत अच्छे तरीके से तय हो चुके कानूनी स्थिति को कमज़ोर संबंधी तर्क कोर्ट में नहीं टिक पाएंगे।

गुजरात में पहले से ही अल्पसंख्यक संस्थानों के अपने शैक्षणिक संस्थानों के प्रशासन और शिक्षकों को भर्ती करने की स्वतंत्रता पहले ही ख़तरे में है, जहां अल्पसंख्यक स्कूलों के संगठन ने गुजरात माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा (संशोधन) अधिनियम, 2021 को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। स्कूलों का डर है कि यह अधिनियम बिना सरकारी हस्तक्षेप के उनके प्रशासन की ताकत को छीन लेगा। 

NCPCR प्रमुख को एक खुले ख़त में वरिष्ठ पत्रकार ए जे फिलिप ने "लोगों को झटका देकर हैराने" के लिए उनकी तारीफ की है। फिलिप ने आयोग का अक्टूबर, 2020 का एक आकस्मिक आदेश याद दिलाया जिसमें उन बाल सुधार गृहों को बंद करने का आदेश दे दिया गया था, जहां अनाथ बच्चों या भागे हुए बच्चों या छोटी-मोटी घटनाओं में पुलिस द्वारा पकड़े गए बच्चों को रखा गया हो। इस तरह के बच्चों को जिले की बाल कल्याण समिति बाल सुधार गृह भेजती थी, जहां उन्हें रहने के लिए घर और 18 साल की उम्र तक सरकार द्वारा शिक्षा का प्रबंध किया जाता है। इन गृहों को बंद कर और बच्चों को उनके परिवारों को वापस या उन्हें गोद लेने के लिए सौंपने का प्रबंध करना एक ऐसा तरीका था, जिससे आयोग सरकार का पैसा बचा सकती थी। इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई और इसे लागू नहीं किया गया। फिलिप ने ऐसे पुराने वाकिये भी याद दिलाए, जहां कोर्ट ने अल्पसंख्यक संस्थानों के प्रशासन में सरकारी हस्तक्षेप के खिलाफ़ फैसला दिया है।

मुस्लिम छात्र संगठन (मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन) की राष्ट्रीय अध्यक्ष शुजात अली कादरी कहती हैं, "एक अनियमित सर्वे अलग-अलग अल्पसंख्यक समुदायों द्वारा चलाए जाने वाले इतने ज़्यादा संस्थानों के साथ न्याय नहीं कर सकता। यह मामला अल्पसंख्यक संस्थानों के पाले में छोड़ देना चाहिए कि क्या वो RTE के दायरे में आना चाहते हैं या नहीं। पहले से ही यह संस्थान स्थानीय समुदायों की सेवा कर रहे हैं ना कि सिर्फ़ अपने समुदायों के बच्चों की। गैरजरूरी और न्यायोचित ना ठहराए जाने वाले हस्तक्षेप से सिर्फ़ आपसी टकराव बढ़ेगा।"

नई दिल्ली में एक कैथोलिक स्कूल से रिटायर होने वाले शिक्षक, जो अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं, उन्होंने नाम ना छापने की शर्त पर बताया, "आज सरकार का हर संस्थान ख़तरे में है। यह उन व्यक्तिगत लोगों का हौसला ही है, जो अपने सम्मान को बेचने से इंकार कर रहे हैं, यही चीज हमें इस दलदल से बाहर लाएगी। अगर सरकार असफल हुई है, तो हम भी हुए हैं। आखिरकार लोकतंत्र इसी भरोसे पर तो आधारित है कि सामान्य लोगों में भी बेहद विशेष संभावनाएं होती हैं।"

लेखिका पुणे में रहने वाले स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Child Rights Body Scrutinises SC Order as Minority Groups Plan Next Move

 

RTE
NCPCR
Child Rights
Childrens Education
Minority Institutions
MSO
Priyank Kanoongo
Supreme Court

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?

बच्चों की गुमशुदगी के मामले बढ़े, गैर-सरकारी संगठनों ने सतर्कता बढ़ाने की मांग की

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

मलियाना कांडः 72 मौतें, क्रूर व्यवस्था से न्याय की आस हारते 35 साल


बाकी खबरें

  • hisab kitab
    न्यूज़क्लिक टीम
    महामारी के दौर में बंपर कमाई करती रहीं फार्मा, ऑयल और टेक्नोलोजी की कंपनियां
    26 May 2022
    वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम की वार्षिक बैठक में ऑक्सफैम इंटरनेशनल ने " प्रोफिटिंग फ्रॉम पेन" नाम से रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट में उन ब्यौरे का जिक्र है जो यह बताता है कि कोरोना महामारी के दौरान जब लोग दर्द…
  • bhasha singh
    न्यूज़क्लिक टीम
    हैदराबाद फर्जी एनकाउंटर, यौन हिंसा की आड़ में पुलिसिया बर्बरता पर रोक लगे
    26 May 2022
    ख़ास बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने बातचीत की वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर से, जिन्होंने 2019 में हैदराबाद में बलात्कार-हत्या के केस में किये फ़र्ज़ी एनकाउंटर पर अदालतों का दरवाज़ा खटखटाया।…
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   
    26 May 2022
    बुलडोज़र राज के खिलाफ भाकपा माले द्वारा शुरू किये गए गरीबों के जन अभियान के तहत सभी मुहल्लों के गरीबों को एकजुट करने के लिए ‘घर बचाओ शहरी गरीब सम्मलेन’ संगठित किया जा रहा है।
  • नीलांजन मुखोपाध्याय
    भाजपा के क्षेत्रीय भाषाओं का सम्मान करने का मोदी का दावा फेस वैल्यू पर नहीं लिया जा सकता
    26 May 2022
    भगवा कुनबा गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी थोपने का हमेशा से पक्षधर रहा है।
  • सरोजिनी बिष्ट
    UPSI भर्ती: 15-15 लाख में दरोगा बनने की स्कीम का ऐसे हो गया पर्दाफ़ाश
    26 May 2022
    21 अप्रैल से विभिन्न जिलों से आये कई छात्र छात्रायें इको गार्डन में धरने पर बैठे हैं। ये वे छात्र हैं जिन्होंने 21 नवंबर 2021 से 2 दिसंबर 2021 के बीच हुई दरोगा भर्ती परीक्षा में हिस्सा लिया था
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License