NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
चीन ने अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी उपस्थिति का किया विरोध 
झिंजियांग सीमा से सटे इलाक़े में अमेरिकी सेना की लंबे समय तक उपस्थिति की संभावना के मद्देनज़र चीन द्वारा अपनाए कड़े रुख के कारण अफ़ग़ान शांति प्रक्रिया पर असर पड़ सकता है।
एम. के. भद्रकुमार
30 Mar 2021
Translated by महेश कुमार
18 मार्च को वॉर्डक में अज्ञात मिलिशिया समूह ने लेजर हथियारों से हेलीकॉप्टर को मार गिराया जिसमें अफ़ग़ान सेना के कुछ लोग मारे गए।
18 मार्च को वॉर्डक में अज्ञात मिलिशिया समूह ने लेजर हथियारों से हेलीकॉप्टर को मार गिराया जिसमें अफ़ग़ान सेना के कुछ लोग मारे गए।

अफ़ग़ानिस्तान में आतंक के खिलाफ लड़ाई के पीछे का "छिपा एजेंडा" अब एक खुला रहस्य है। इसके भूराजनीतिक चरित्र की पहली छाप तब दिखाई दी जब इसने 2002-2003 में काबुल में अमेरिका समर्थक शासन स्थापित करने के बाद भी, पेंटागन मध्य एशियाई ठिकानों को खाली करने के मूड में नहीं दिखा था। अंतत, मई 2005 में फ़रगना घाटी के अंडीजन में हुए खूनी इस्लामी विद्रोह के मद्देनजर रूस और चीन को उन ठिकानों से अमेरिकी सेना को बाहर करने की मांग की तब जाकर एक एससीओ आम सहमति बनाने के लिए तैयार हुई थी। 

हालाँकि, सार्वजनिक चर्चा में, रूस और चीन इस विषय पर कम बोले हैं। लेकिन मॉस्को ने हाल के वर्षों में कभी-कभी अपनी चुप्पी तोड़ी ताकि यह स्पष्ट रूप से बताया जा सके कि अमेरिका इराक और सीरिया से इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों को अफ़ग़ानिस्तान में भेज रहा है। रूस ने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सामने भी उठाया है। लेकिन चीन मोटे तौर पर इस पर चुप रहा था। 

इसलिए, नवंबर 2020 में सीजीटीएन में की गई एक टिप्पणी, जिसका शीर्षक ‘अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका की वापसी, चीन के मामलों में हस्तक्षेप की समाप्ति भी होगी’, थोड़ी आश्चर्यचकित करने वाले टिपणी लगती है। यह बहुत ही पूर्वज्ञान के माफिक संपन्न हुई: “तालिबान को उम्मीद है कि बाइडेन [दोहा] सौदे का सम्मान करेगा… लेकिन यह बात अभी भी नहीं पता है कि अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी उपस्थिती का वास्तविक उद्देश्यों क्या है। और यह बात बहुत स्पष्ट है... कि अमेरिका को अफ़ग़ानिस्तान से बाहर जाने के लिए पहले चीन के मामलों से दखल से बाहर निकलने का रास्ता तय करना होगा, और उम्मीद है कि बाइडेन ऐसा करने के प्रति  प्रतिबद्ध होंगे।"

चूंकि बाइडेन दोहा समझौते में तय की गई समय सीमा 1 मई के बाद भी अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सेना को रखने के विवादास्पद फैसले के मामले को ठंडा रखना चाहता है, इस पर बीजिंग की चिंता जायज है। गुरुवार को की गई टिप्पणी में, बाइडेन ने अफ़ग़ानिस्तान में इस वर्ष के अंत तक अमेरिकी सेना के रहने की संभावना से इनकार नहीं किया है। बाइडेन ने कहा कि, "लंबे समय तक सेना को रखना मेरा उद्देश्य नहीं है। हम वहाँ से छोड़ देंगे। सवाल यह है कि हम छोड़ेंगे कब।” यह पूछे जाने पर कि क्या अमेरिकी सेना अगले साल भी अफ़ग़ानिस्तान में रहेगी, उन्होंने जवाब दिया कि, "मैं ऐसी कोई तस्वीर नहीं देखता हूँ।" बाइडेन स्पष्ट जवाब भी दे सकते थे, लेकिन उन्होने रूपक अलंकार में जवाब देना ज्यादा पसंद किया। 

इस बीच, रिपोर्ट्स में कहा गया है कि कानूनविदों सहित बेल्टवे में शक्तिशाली निकाय अफ़ग़ानिस्तान में "हमेशा के लिए युद्ध" समाप्ती का विरोध करता है। इसके लिए विभिन्न भ्रामक तर्क दिए जा रहे हैं- कि अमेरिका को आतंकवादी समूहों को निर्णायक रूप से नष्ट करना चाहिए ताकि अफ़ग़ानिस्तान की सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित की जा सके; और युद्ध के "लाभ" जैसे कि महिलाओं के अधिकार सुनिश्चित किए जा सके; कोई भी आतंकी समूह फिर से अफ़ग़ानिस्तान की धरती पर गतिविधि न चला सके; और गृह युद्ध की स्थिति को रोका जा सके, इत्यादि। नाटो के कुछ सहयोगी देश वाशिंगटन में इन तीखी प्रतिक्रियाओं के साथ सहानुभूति रखते हैं।

इस तथ्य पर नज़र रखते हुए जिसमें कि चीन को खतरे की अनुभूति होती है, वह झिंजियांग पर अमेरिकी अभियान की पृष्ठभूमि और उसके हाल ही में बढ़ते रुख को देख रहा है। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने शुक्रवार को " झिंजियांग में नरसंहार" नामक एक वीडियो दिखाकर अपना नियमित संवाददाता सम्मेलन शुरू किया? इस विडियो को अगस्त 2018 को वाशिंगटन में रॉन पॉल इंस्टीट्यूट में सेवानिवृत्त सेना के पूर्व सचिव कॉलिन पॉवेल के पूर्व चीफ ऑफ स्टाफ कर्नल लॉरेंस विल्करसन की क्लिप भी शामिल थी, जिसमें उन्होने अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी उपस्थिति के तीन उद्देश्यों पर बात की थी। जिनमें से एक चीन के बढ़ते कदमों को रोकना शामिल है।”

विल्करसन के आकलन के अनुसार अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी उपस्थिति के पीछे एक मुख्य कारण यह है कि "सीआईए चीन को अस्थिर करना चाहती है... (और) ऐसा करने का सबसे अच्छा तरीका झिंजियांग में अशांति फैलाना होगा।" हुआ ने पूछा, "क्या यह बात हमें पहले से  नहीं पता है?" उन्होने इराक, सीरिया और हांगकांग का हवाला दिया और कहा कि "झिंजियांग में तथाकथित उइघुर मुद्दा चीन के भीतर उसे अशांत करने और चीन के बढ़ते कदमों को रोकने  के प्रयास की रणनीतिक साजिश है।"

चीन के सरकारी मीडिया ने हुआ की टिप्पणियों को व्यापक से प्रचारित किया है। दरअसल, झिंजियांग चीन के महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) और मध्य और पश्चिम एशिया के प्रवेश द्वार के साथ-साथ यूरोपीय बाजारों के मामले में भी एक प्रमुख रसद केंद्र है। बीआरआई से अमेरिका की दुश्मनी गहरी है और यह बात भी स्पष्ट है कि झिंजियांग पर वाशिंगटन का अभियान “एशिया की धुरी” है जो दक्षिण चीन सागर में नौसेना के खतरों के साथ पेंटागन  द्वारा हांगकांग, ताइवान और तिब्बत में अलगाववादी आंदोलनों का समर्थन करना है।

सीआईए का इस्लामिक समूहों को "हथियार देने" का लंबा इतिहास रहा है। वह लंबे समय से रूस के काकेशस क्षेत्र से चेचेन और उइघुर तबके से भाड़े के सैनिको को भर्ती कर प्रशिक्षित करने की कोशिश करती है ताकि भविष्य में वह इन्हे चीन, मध्य एशिया और रूस के खिलाफ आतंकवादी बल के रूप में इस्तेमाल कर सके। दोनों समूहों को सीरिया में अमेरिका के निज़ाम-बदलाव अभियान के हिस्से के तौर पर साथ लाया गया था और ये दोनों युद्ध-लड़ाका-कट्टरपंथी इस्लामिक स्टेट और अल-कायदा की रीढ़ बने थे। 

यह सब राष्ट्रपति बराक ओबामा की निगरानी में हुआ था। इसमें कोई संदेह नहीं कि उपराष्ट्रपति बाइडेन को चीन और रूस को अस्थिर करने की अमेरिका की दीर्घकालिक परियोजना की जानकारी थी- कि क्यों पेंटागन की क्षेत्रीय रणनीति में अफ़ग़ानिस्तान एक अपरिवर्तनीय केंद्र बना हुआ है।

झिंजियांग की सीमा से सटे इलाके में लंबे समय तक अमेरिकी सेना की उपस्थिति की संभावना से चीन के कड़े रुख के कारण अफ़ग़ान प्रक्रिया कितनी प्रभावित होगी अभी देखना बाकी है। यह सुनिश्चित करने के लिए, बीजिंग अपनी सुरक्षा चिंताओं को शांति प्रक्रिया के पाकिस्तान के रुख पर दृढ़ता से दर्ज करेंगी। अलग अंदाज़ में कहें तो जटिल अफ़ग़ान शांति प्रक्रिया में एक नया खाका दिखाई दे रहा है, जिसके संभावित परिणाम ठीक नहीं हो सकते है।

ईरान अफ़ग़ानिस्तान में लंबे समय तक अमेरिकी सेना की उपस्थिति के खतरों के प्रति भी सजग है। ईरानी मिलिशिया द्वारा कथित तौर पर पिछले हफ्ते वारडेक में अफ़ग़ान सैन्य हेलीकॉप्टर पर लेजर-गाइडेड मिसाइल हमले से कई सैन्य कर्मियों की हत्या हो गई जिसे अमेरिकी सेना को समय पर मिली चेतावनी के रूप में देखा जा सकता है। जाहिर है, अफ़ग़ानिस्तान से अमरीकी सेना की वापसी पर स्पष्ट रुख न लेने से बाइडेन प्रशासन हालात को अधिक जटिल बना सकते हैं। तालिबान ने सेना वापसी को रोकने के बाइडेन के रुख को सही अंदाज़ में नहीं लिया है। बाइडेन का हल्का बहाना कि सेना की वापसी में लोजीस्टिक दिक्कतें आ रही है, उसकी विश्वसनीयता पर धब्बा लगाता है।

बहरहाल, बाइडेन आश्वस्त हैं कि कोई भी प्रमुख क्षेत्रीय राष्ट्र- चीन, रूस, पाकिस्तान, ईरान- बिल्ली के गले घंटी नहीं बांधना चाहता है यानि अमेरिका से पंगा नहीं लेना चाहता है। बाइडेन तब तक संभल सकते हैं जब तक कि अफ़ग़ान के मौत के मैदानों से अमरीकी सैनिकों के शवों से भरा बैग अमरीका नहीं पहुंचता है। यह कहते हुए कि, पाकिस्तान, चीन, रूस और ईरान सहित प्रमुख क्षेत्रीय देशों की अफ़ग़ान शांति प्रक्रिया पर व्यापक सहमति है। वे सभी अफ़ग़ान युद्ध का राजनीतिक समाधान चाहते हैं और तालिबान को एक राजनीतिक इकाई के रूप में भी पहचानने के पक्ष में हैं।

दरअसल, मॉस्को ने बाइडेन द्वारा योजना को आगे खिसकाने पर तीखी प्रतिक्रिया दी है, और मामले को वॉशिंगटन और तालिबान पर छोड़ दिया है। रूस सही कदम उठाने के मामले में पाकिस्तान पर भरोसा कर रहा है और इसलिए वह उसके साथ "बहुत सक्रिय और रचनात्मक प्रयासों में सहयोग दे रहा है।" चीन का पाकिस्तान के साथ एक मजबूत गठबंधन है।

वाशिंगटन, काबुल में एक अंतरिम सरकार के निर्माण के मसले पर विशेष तौर पर पाकिस्तान और तालिबान से निपटने के मामले में अपनी हांकना चाहता है। इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि महीने के एक ही पखवाड़े में दो शीर्ष ब्रिटिश कमांडर रावलपिंडी आए, और पाकिस्तानी सीओएएस जनरल क़मर जावेद बाजवा के साथ अफ़ग़ानिस्तान मसले पर चर्चा की, जिसमें सामरिक कमान के प्रमुख सर पैट्रिक निकोलस यार्डली मोनाड सैंडर्स भी शामिल थे, जो विदेश में ब्रिटेन के गुप्त और हमलावर ऑपरेशन को संभालते हैं। 

लंदन पारंपरिक रूप से तत्कालीन ब्रिटिश साम्राज्य के इलाकों पर अमेरिकी सेना और खुफिया अभियानों के मोहरे के रूप में काम करता रहा है। बाइडेन ने शुक्रवार को यूके के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन से फोन पर बात की, और "चीन और ईरान सहित साझा विदेश नीति प्राथमिकताओं पर एक साथ मिलकर काम करने की बात पर दोनों सहमत थे।"

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

China Resents US Presence in Afghanistan

Afghan peace process
IRAN
Pakistan
Russia
Belt and Road Initiative
Xinjiang

Related Stories

डेनमार्क: प्रगतिशील ताकतों का आगामी यूरोपीय संघ के सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने पर जनमत संग्रह में ‘न’ के पक्ष में वोट का आह्वान

रूसी तेल आयात पर प्रतिबंध लगाने के समझौते पर पहुंचा यूरोपीय संघ

यूक्रेन: यूरोप द्वारा रूस पर प्रतिबंध लगाना इसलिए आसान नहीं है! 

पश्चिम बैन हटाए तो रूस वैश्विक खाद्य संकट कम करने में मदद करेगा: पुतिन

और फिर अचानक कोई साम्राज्य नहीं बचा था

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन में हो रहा क्रांतिकारी बदलाव

ईरानी नागरिक एक बार फिर सड़कों पर, आम ज़रूरत की वस्तुओं के दामों में अचानक 300% की वृद्धि

90 दिनों के युद्ध के बाद का क्या हैं यूक्रेन के हालात

यूक्रेन युद्ध से पैदा हुई खाद्य असुरक्षा से बढ़ रही वार्ता की ज़रूरत

खाड़ी में पुरानी रणनीतियों की ओर लौट रहा बाइडन प्रशासन


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License