NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
पुस्तकें
भारत
राजनीति
नागरिकता और संविधान
ऑन सिटिजनशिप नामक किताब में भारत के चार बेहतरीन बुद्धिजीवी भारत में नागरिकता का गठन करने वाले प्रमुख पहलुओं में गहराई से उतरते हैं। नागरिकता को लेकर सत्तारूढ़ सरकार की तरफ़ से लिए गए हालिया विवादास्पद फैसलों को लेकर ज़बरदस्त बहस होती रही है।
गौतम भाटिया
16 Aug 2021
नागरिकता और संविधान
Image courtesy : Aleph Book Company

‘ऑन सिटिजनशिप’ नामक किताब में भारत के चार बेहतरीन बुद्धिजीवी भारत में नागरिकता का गठन करने वाले प्रमुख पहलुओं में गहराई से उतरते हैं। सत्तारूढ़ सरकार की तरफ़ से नागरिकता के संदर्भ में लिए गए हालिया विवादास्पद फैसलों के नतीजे में इस मुद्दे को लेकर ज़बरदस्त बहस होती रही है।

अपने लेख 'नागरिकता और संविधान' में कानून के विद्वान और लेखक गौतम भाटिया नागरिकता से जुड़े संवैधानिक प्रावधानों की पड़ताल करते हैं। वह दिखाते हैं कि संविधान का भाग-II 'भारतीय नागरिकता के उस नज़रिये को किस तरह स्पष्ट करता है, जो समग्र रूप से भारतीय संवैधानिक पहचान के साथ जुड़ा हुआ है और यह नज़रिया है-धर्मनिरपेक्ष, समतावादी और गैर-भेदभावपूर्ण'।

भाटिया के निबंध का एक अंश यहां प्रस्तुत है:

1947 में जब देश ने भारतीय संविधान को तैयार करने की अपनी महान परियोजना की शुरुआत की थी, उस समय संविधान सभा को अपनाने के लिहाज से मुश्किल विकल्पों का सामना करना पड़ा था और ये विकल्प थे: भारतीय नागरिकता की एक समावेशी और सार्वभौमिक दृष्टि, या फिर एक ऐसा तंग नज़रिया जो भारतीयता के दावों को प्राथमिकता देने के लिहाज़ से सामाजिक दर्जे में एक मनमानी की जगह देता हो। आजादी से पहले भी संविधान सभा अपने इस विकल्प को लेकर स्पष्ट थी, उसने पहले वाले विकल्प को चुना था।

आजादी, विभाजन की हिंसा और उससे पैदा हुई कटुता और धर्म पर आधारित एक देश के रूप में पाकिस्तान की स्थापना ने उस प्रतिबद्धता का कड़ा इम्तिहान लिया था। बंटवारे के बाद बड़े पैमाने पर हुए उस प्रवासन ने संविधान सभा को उन शरणार्थियों के लिए गुंजाइश बनाने को लेकर हाथ-पैर मारने के लिए मजबूर कर दिया, जो अभी-अभी दोनों तरफ खींची हुई सीमाओं से हुआ था, उनमें से कई तो धार्मिक हिंसा में अपनी जान बचाकर भागकर आये थे। संविधान सभा में कुछ ऐसे लोग भी थे, जिन्होंने सुझाव दिया था कि इस पल का मुकाबला करने का एकमात्र तरीका यही है कि पाकिस्तान की तरह, धार्मिक आधार पर भारतीयता का मॉडल बनाया जाए और कुछ पहचान के साथ भारत को एक स्वाभाविक मातृभूमि के रूप में माना जाए, लेकिन बाकियों की लिए कोई जगह नहीं हो। इसके पीछे की मंशा एकदम साफ थी और संविधान सभा ने उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। जब संविधान सभा ने इतिहास में सबसे बड़े इस मानव पलायन से निपटने वाले प्रावधानों का मसौदा तैयार करते हुए बार-बार विचार कर रहा था, तो इसने धार्मिक या जातीय राष्ट्रवाद के बजाय सार्वभौमिक नागरिकता और नागरिक के प्रति संवैधानिक प्रतिबद्धता को नहीं छोड़ा था।

बहस और असहमतियों के जरिये संविधानसभा आखिरकार एक समग्र संवैधानिक दृष्टि, गणतंत्रवाद, धर्मनिरपेक्षता, समानता और गैर-तरफदारी, और समावेशन के सिद्धांतों पर स्थापित एक नजरिये का समर्थन करते हुए सामने आयी। संविधान के ताने बाने को कुछ इस तरह बुना गया कि नागरिकता वाले अध्याय को उसका एक अभिन्न अंग बनाने वाले धागे की तरह पिरोया गया। अपने इस लेख में मैंने यह दिखाने की कोशिश की है कि नागरिकता के उन अनुच्छेदों को अलग-थलग करना, और उनमें नागरिकता को लेकर धार्मिक परीक्षण शुरू करने की अनुमति देने का मतलब उस ताने-बाने को उधड़ने से कम नहीं होगा। या फिर, अगर इसे संवैधानिक शब्दों में कहा जाये, तो धर्मनिरपेक्षता और गैर-तरफदारी के प्रति संवैधानिक प्रतिबद्धता संविधान के अनुच्छेद 11 के तहत नागरिकता निर्धारित करने के लिहाज से संसद की शक्तियों पर एक निहित सीमा के रूप में कार्य करती है। राजनीतिक समुदाय में दाखिल होने की शर्त के रूप में नागरिकता नहीं हो सकती, जो राज्य व्यवस्था की संस्थापक पहचान को ही मात देती हो, जो संविधान में निहित पहचान है।

मुझे उम्मीद है कि यह पाठ संविधान के दूसरे अध्याय के लंबे समय से चले आ रहे प्रावधानों को जीवंत करने में मदद करेगा। ऐसा नहीं है कि बंटवारे के बाद पेश आये शरणार्थी संकट के खात्मे के साथ ही अनुच्छेद 5 से 8 की प्रासंगिकता समाप्त हो गयी हो। सत्तर साल बाद भी इन प्रावधानों की सख्त सार्वभौमिक और गैर-तरफदारी की भाषा उस रास्ते की याद दिलाती है, जिसे संविधान सभा देश को चलाने के लिए चुन सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया था। ऐसे समय में जब धार्मिक घृणा और उत्पीड़न की आग अपने चरम पर थी, सांप्रदायिक नागरिकता की उस अस्वीकृति में भारतीय संविधान का यह नागरिकता वाले अध्याय का सार्वभौमिक मानवतावाद वास्तव में आज भी चमकता है।

(यह एलेफ़ बुक कंपनी द्वारा प्रकाशित ‘ऑन सिटिजनशिप’ (2021) में गौतम भाटिया के निबंध का एक अंश है। प्रकाशक की अनुमति से इसे यहां फिर से प्रकाशित किया गया है।)

(गौतम भाटिया कानून के विद्वान और लेखक हैं। उनके निबंध ऑक्सफॉर्ड हैंडबुक फॉर द इंडियन कंस्टिट्युशन, मैक्स प्लैंक इनसाइक्लोपीडिया ऑफ कंपेयरेटिव कंस्टिट्युशनल लॉ और कॉन्स्टलेशन्स और ग्लोबल कंस्टिट्युशनलिज्म जैसी पत्रिकाओं में छपे हैं। इनकी तीन किताबें- ऑफेंड, शॉक, ऑर डिस्टर्ब: फ्रीडम ऑफ स्पीच अंडर द इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन, द ट्रांसफॉर्मेटिव कॉन्स्टिट्यूशन: ए रेडिकल बायोग्राफी इन नाइन एक्ट्स, और एक उपन्यास, द वॉल प्रकाशित हुए हैं ।

साभार: इंडियन कल्चरल फोरम

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

Citizenship and Constitution

Citizenship
constitution
On Citizenship
Non-Discriminatory
Indian citizenship

Related Stories

नागरिक होने का अधिकार

शाहीन बाग़ : सीएए विरोध के बीच बच्चों को मिल रही है इंक़लाबी तालीम


बाकी खबरें

  • शारिब अहमद खान
    ईरानी नागरिक एक बार फिर सड़कों पर, आम ज़रूरत की वस्तुओं के दामों में अचानक 300% की वृद्धि
    28 May 2022
    ईरान एक बार फिर से आंदोलन की राह पर है, इस बार वजह सरकार द्वारा आम ज़रूरत की चीजों पर मिलने वाली सब्सिडी का खात्मा है। सब्सिडी खत्म होने के कारण रातों-रात कई वस्तुओं के दामों मे 300% से भी अधिक की…
  • डॉ. राजू पाण्डेय
    विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक
    28 May 2022
    हिंसा का अंत नहीं होता। घात-प्रतिघात, आक्रमण-प्रत्याक्रमण, अत्याचार-प्रतिशोध - यह सारे शब्द युग्म हिंसा को अंतहीन बना देते हैं। यह नाभिकीय विखंडन की चेन रिएक्शन की तरह होती है। सर्वनाश ही इसका अंत है।
  • सत्यम् तिवारी
    अजमेर : ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह के मायने और उन्हें बदनाम करने की साज़िश
    27 May 2022
    दरगाह अजमेर शरीफ़ के नीचे मंदिर होने के दावे पर सलमान चिश्ती कहते हैं, "यह कोई भूल से उठाया क़दम नहीं है बल्कि एक साज़िश है जिससे कोई मसला बने और देश को नुकसान हो। दरगाह अजमेर शरीफ़ 'लिविंग हिस्ट्री' है…
  • अजय सिंह
    यासीन मलिक को उम्रक़ैद : कश्मीरियों का अलगाव और बढ़ेगा
    27 May 2022
    यासीन मलिक ऐसे कश्मीरी नेता हैं, जिनसे भारत के दो भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह मिलते रहे हैं और कश्मीर के मसले पर विचार-विमर्श करते रहे हैं। सवाल है, अगर यासीन मलिक इतने ही…
  • रवि शंकर दुबे
    प. बंगाल : अब राज्यपाल नहीं मुख्यमंत्री होंगे विश्वविद्यालयों के कुलपति
    27 May 2022
    प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बड़ा फ़ैसला लेते हुए राज्यपाल की शक्तियों को कम किया है। उन्होंने ऐलान किया कि अब विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री संभालेगा कुलपति पद का कार्यभार।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License