NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
डिटेंशन सेंटर्स को स्कूल या अस्पताल बनाया जाए
प्रधानमंत्री की ओर से किये गए दावों की जाँच के लिए फ़रवरी के अंतिम सप्ताह में दिल्ली के राजघाट से असम में गोलपाड़ा के माटिया तक की यात्रा का आयोजन किया गया था।
संदीप पाण्डेय
11 Mar 2020
डिटेंशन सेंटर्स
पेशे से मज़दूरी करने वाली सरोजिनी हाजोंग जिनका नाम भी असम की एनआरसी की अंतिम सूची से बाहर पाया गया है, की एक ऐसे ही निर्माणाधीन डिटेंशन सेंटर के सामने से ली गई एक तस्वीर (रायटर्स)

दिल्ली चुनावों से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रामलीला मैदान से ऐलान किया था कि देश में एक भी डिटेंशन सेंटर मौजूद नहीं है। यह बात उन्होंने देशभर में नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) और नागरिकों के राष्ट्रीय पंजीकरण (एनआरसी) के ख़िलाफ़ जारी आंदोलनों के मद्देनज़र कही थी। लेकिन मीडिया द्वारा पेश की गई रिपोर्टों में असम की कई जेलों में इस प्रकार के अस्थाई डिटेंशन सेंटरों के चलाए जाने की ख़बरें पहले से मौजूद थीं। इसके अलावा इस बात की भी जानकारी मिल रही थी कि असम के गोआलपाड़ा में एक स्थायी डिटेंशन सेंटर के निर्माण का काम भी जारी है। 19 फरवरी को जब मेधा पाटकर के साथ मैंने गुवाहाटी की जेल में बंद कार्यकर्ता अखिल गोगोई से भेंट की तो वहाँ के नोटिस बोर्ड पर हमें सात “विदेशियों” के बंदी बनाए जाने की सूचना देखने को मिली। फिर हमने बिहार में बैठकर योजना बनाई कि फरवरी के अंतिम सप्ताह में प्रधानमंत्री के दावों की सच्चाई जानने के लिए दिल्ली में राजघाट से गोआलपाड़ा के माटिया तक की यात्रा का आयोजन किया जाए। यह तय पाया गया कि यात्रा के अंत में निर्माणाधीन डिटेंशन सेंटर के बाहर एक मानव श्रृंखला निर्मित की जाए।

ढेर सारे अनुत्तरित सवाल हैं जिनका जवाब अभी दिया जाना बाकी है। मान लीजिये यदि यदि कोई अपनी नागरिकता साबित करने में असमर्थ पाया जाता है, तो क्या यह इतना बड़ा अपराध माना जाना चाहिए कि उसे जेल में ठूंस दिया जाए? और यदि जेल में भी डाला जाता है तो आख़िर कितने समय के लिए? यह तो स्पष्ट है कि “उम्र क़ैद” की सज़ा की भी अपनी एक मीयाद होती है और किसी को ताउम्र सलाखों के पीछे तो रखा नहीं जा सकता। तो फिर जिन्हें घुसपैठिये घोषित कर दिया जाएगा उन “विदेशी” नागरिकों का क्या होने जा रहा है, जब वे जेल की अपनी मीयाद पूरी कर लेंगे? या जिन्हें किन्हीं भी कारणों देश निकाला नहीं किया जा सकता, उनका क्या करने जा रहे हैं? अभी तो प्रश्न यह भी बना हुआ है कि उन हिंदुओं, सिखों, ईसाईयों, बौद्धों, जैनियों और पारसियों का क्या होगा जो सीएए के तहत नागरिकता पाने के हक़दार तो हैं, लेकिन यदि वे यह साबित कर पाने में अक्षम रहे कि 2014 से पहले वे बांग्लादेश, पाकिस्तान या अफ़ग़ानिस्तान से भारत में शरण लेने के लिए भाग कर आए हैं तो उनके साथ क्या होने जा रहा है? ऐसा जान पड़ता है कि इन बेहद पेचीदा पहलुओं पर गहराई से विचार ही नहीं किया गया है। इनके लिए मोटे तौर पर एक बेहद आसान समाधान शायद सोच रखा गया है- कि यदि वे चाहें तो इस प्रकार के सभी “ग़ैरक़ानूनी” घुसपैठियों के मताधिकार को छीनकर उन्हें वर्क-परमिट के आधार पर काम करने की छूट दी जा सकती है।

Gopalapara.jpg

असम के गोआलपाड़ा में निर्माणाधीन डिटेंशन सेंटर की तस्वीर (रायटर्स)

दिल्ली से असम की इस यात्रा का आयोजन खुदाई खिदमतगार, नेशनल अलायन्स ऑफ़ पीपल्स मूवमेंट (एनएपीएम), जस्टिस फोरम-असम और सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) द्वारा किया गया, जिसमें देश के आठ विभिन्न राज्यों के 18 यात्री शामिल थे। 23 फरवरी से यह यात्रा राजघाट से शुरू हुई लेकिन जैसे ही इसने अलीगढ की सीमा में प्रवेश किया, इसे उत्तरप्रदेश की पुलिस द्वारा रोक दिया गया। पहले तो यूपी प्रशासन ने साफ़ मना कर दिया कि यह यात्रा अलीगढ और मथुरा से होकर नहीं गुज़र सकती। लेकिन अंत में इस शर्त पर राज़ी हुई कि कि यात्रा के दौरान इसके बिहार की सीमा में प्रवेश करने तक किसी भी प्रकार की सभा आयोजित नहीं की जाएगी। और इस प्रकार से हमें कानपुर की ओर जाने की अनुमति दे दी गई। कानपुर में जो हमारे स्थानीय स्वागतकर्ता थे उनपर पुलिस का दबाव था कि इस यात्रा को यहाँ पर रात्रि विश्राम के लिए न रुकने दिया जाए। और यात्रियों को तकरीबन कैदियों वाली स्थिति में रखते हुए लगातार निगाह बनाए रखी गई। यहाँ तक कि बस ड्राईवर तक को पुलिस थाने में ले जाकर पूछताछ की गई। अगले दिन जब यात्रा वहाँ से निकली तो रास्ते में पड़ने वाले गाँव नागपुर में जो कि नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में पड़ने वाला उनका गोद लिया हुआ गाँव है, में रुकने की अनुमति नहीं दी गई। अगली रात तक यह यात्रा चंदौली से होते हुए यूपी की सीमा पार कर बिहार के रोहतास पहुँच चुकी थी।

बिहार में यह यात्रा बिना किसी रोक-टोक के जारी रही और इसने पटना, लखमिनिया, जलकौउरा का दौरा किया और बेगूसराय, नारायणपुर और भागलपुर के खारिक में दो-दो सभाएं कीं। पश्चिम बंगाल में पहुँचने पर इस यात्रा को अलीपुरदुआर के समुकतला से आगे जाने पर रोक लगा दी गई। लेकिन जब पुलिस से इस बात को लेकर बहस की गई कि पश्चिम बंगाल विधानसभा में सीएए-एनआरसी के खिलाफ प्रस्ताव पारित हो चुका है, तब कहीं जाकर असम सीमा की ओर प्रस्थान की अनुमति मिल पाई।

detention center.jpg

निर्माणाधीन गोआलपाड़ा डिटेंशन सेंटर (रायटर्स)

श्रीरामपुर बॉर्डर पर अर्धसैनिक बलों के साथ-साथ भारी संख्या में पुलिस का बन्दोबस्त किया गया था। पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार और असम के कोकराझाड़ की सीमा के दोनों ओर मीडिया की भी उपस्थिति बनी हुई थी। हमें सूचित किया गया कि असम के कोकराझार, धुबरी और गोआलपारा के इन तीनों जिलों में सीआरपीसी की धारा 144 लागू है, और हमें यहाँ से वापस लौटना होगा। मजेदार तथ्य ये है कि मौके की नज़ाकत को देखते हुए गोआलपारा के जिलाधिकारी ने अपने आधिकारिक बयान में पीएम के दावे को खारिज करते हुए इस बात को स्वीकार किया कि असम के माटिया में वाकई में “डिटेंशन सेंटर (निर्माणाधीन)” का काम जारी है, और यहाँ पर मानव श्रृंखला के निर्माण की अनुमति नहीं दी जा सकती। इसके जवाब में यात्रा में शामिल कार्यकर्ताओं की ओर से माँग रखी गई कि पीएम के बयान को सच साबित करने के लिए गोआलपारा में जिस डिटेंशन सेंटर का काम निर्माणाधीन है, या देश के किसी भी अन्य स्थानों पर इस तरह के काम चल रहे हैं, उन्हें स्कूलों या अस्पतालों में तब्दील किया जाए। 

यात्रियों ने अपनी अभिव्यक्ति की आज़ादी, अपने ही देश में स्वतंत्रतापूर्वक बिना रोक टोक के आने जाने की आज़ादी और शांतिपूर्ण एक जगह इकट्ठा होने की आज़ादी जैसे बुनियादी अधिकारों की अपनी माँगों को दोहराया। लेकिन प्रशासन ने भी तय कर रखा था कि यात्रा को असम में प्रवेश नहीं करने देना है। यात्रियों के पास भी धारा 144 की अवज्ञा करने और गिरफ्तारी देने के सिवाय कोई चारा नहीं बचा था। शाम को जाकर हमें रिहा किया गया। इन सबके बावजूद जिन कार्यकर्ताओं ने इस यात्रा में हिस्सा लिया था, उन्होंने तय किया कि अदालत से आदेश हासिल करने की सूरत में वे जल्द ही एक बार फिर से माटिया डिटेंशन सेंटर पर इकट्ठा होकर रहेंगे। जहाँ तक असम के जनजातीय लोगों की भावना का प्रश्न है तो हमें उसका सम्मान करना चाहिए। लेकिन हमें इस बात को भी ध्यान में रखना होगा कि यदि कुछ नागरिक अपनी नागरिकता को साबित नहीं कर पाने की हालत में पाए जाते हैं तो उसका समाधान डिटेंशन सेंटर्स तो कतई नहीं होने जा रहा। इसके बजाय यदि असम की स्थानीय आबादी को लगता है कि गैर-असमिया लोगों की उपस्थिति से वहाँ के संसाधनों, खासकर भूमि पर काफ़ी बोझ पड़ रहा है, तो ऐसे में भारत सरकार को चाहिए कि वो असम के जनजातीय लोगों को सुरक्षित महसूस कराने के लिए, असम में बसे बंगाली भाषी आबादी को देश के दूसरे हिस्सों में पुनर्स्थापित करने के इंतज़ामात करे।

संदीप पाण्डेय एक सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता और रेमोन मैग्सेसे विजेता हैं। वह सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) से संबद्ध हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

Assam
NRC
CAA
NPR
Narendra modi
detention centre
Sandeep Pandey
Goalpara

Related Stories

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

भाजपा के लिए सिर्फ़ वोट बैंक है मुसलमान?... संसद भेजने से करती है परहेज़

हिमाचल में हाती समूह को आदिवासी समूह घोषित करने की तैयारी, क्या हैं इसके नुक़सान? 


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License