NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
पर्यावरण
अंतरराष्ट्रीय
जलवायु परिवर्तन और प्रलय का कारण बन रहा कॉरपोरेट लाभ और लोभ
जलवायु परिवर्तन अब महज़ एक शब्द नहीं है यह सदी की सबसे भयावह शब्दावली साबित होने की कगार पर है
सबरंग इंडिया
31 Jul 2021
जलवायु परिवर्तन और प्रलय का कारण बन रहा कॉरपोरेट लाभ और लोभ
Image Credit- Patrika

जलवायु परिवर्तन अब महज़ एक शब्द नहीं है यह सदी की सबसे भयावह शब्दावली साबित होने की कगार पर है. भारत सहित पूरी दुनिया में अप्रत्याशित तरीके से बढ़ रही प्राकृतिक आपदा ने यह दिखाया है कि प्रकृति के साथ खिलवाड़ का दुष्परिणाम किस हद तक मानव जाति को तबाह कर सकता है. दुनिया भर के देश कहीं अत्यधिक बाढ़ तो कहीं सूखा और अकाल की स्थिति से त्राहिमाम कर रहे हैं. कहीं बादल फटने की घटना तो कहीं भूस्खलन ने लोगों की जिन्दगी को मुश्किल बना दिया है. जर्मनी, बेल्जियम, नीदरलैंड सहित पश्चिमी यूरोप बाढ़ की चपेट में आ चूका है. वहां के लोग 100 साल बाद देश में ऐसी स्थिति देखने का दावा कर रहे हैं. जर्मनी की चांसलर एंजिला मार्कर नें माना है कि इस आपदा का एक बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है. एक तरफ़ अमेरिका, कनाडा में हीटवेव (लू) के कारण जिन्दगी दुश्वार हो चुकी है, जंगलों में बड़े पैमाने पर आग लग रही है. कनाडा में गर्मी के कहर से आम जनजीवन परेशान हो चुका है. दूसरी तरफ़ चीन, बांग्लादेश, जर्मनी, बेल्जियम, नीदरलैंड, भारत में बाढ़ का कहर जारी है जिसके प्रकोप से प्रत्येक देश में सैकड़ों जिंदगियां ख़त्म हो चुकी हैं. बावजूद इसके कॉरपोरेट द्वारा अपने लाभ के लिए पहाड़ों, जंगलों और प्राकृतिक संसाधनों की लूट जारी है  जो जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा कारण है.  

बात करते हैं उत्तरी अमेरिका की तो अमेरिका और कनाडा जैसे देश भयावह गर्मी और लू को झेल रहे हैं. औसत 20 डिग्री तापमान वाले देश में 45 डिग्री तक तापमान का पहुँच जाना किसी त्रासदी से कम नहीं है. यहाँ जंगलों में आग लग रही है. वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसी परिस्थिति हजारों सालों में एक बार होती है. अमेजन के जंगलों में मानवीय हित के लिए आग लगाए जा रहे हैं जहाँ से दुनिया को 20 प्रतिशत ऑक्सीजन की प्राप्ति होती है. यूरोप में आई बाढ़ में 170 लोगों के मारे जाने की खबर है वहीं पश्चिमी यूरोप में जंगल की आग भी तेजी से बढ़ रही है. चीन के हेनान प्रांत स्थित येलो नदी में आई भीषण बाढ़ ने 1000 सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. यहाँ बादल फटने की घटना ने बड़े पैमाने पर तबाही मचाई है. इस क्षेत्र में साल भर की 640mm बारिश 3 दिन में और इस बारिश का एक तिहाई हिस्सा एक घंटे में हो गयी. अचानक से इतने बड़े पैमाने पर होने वाली बरसात को बादल फटने की घटना भी कहते हैं. देश में विकास के नाम पर किया गया कार्य इसके लिए ज़िम्मेदार है. चीन के राष्ट्रपति शी-जिनपिंग ने इन्फ्रास्ट्रक्चर के नाम पर चीन में नदियों पर 98000 डैम बनाए. डैम बनाने के क्रम में प्रकृति से किए गए खिलवाड़ इस तरह की घटनाओं का एक मुख्य कारण हैं. 

जलवायु परिवर्तन से बाढ़ के अलावा सुखा पड़ने की आशंका रहती है. साल 2018 में दक्षिण अफ्रीका में भयानक सूखा पड़ा था. एक रिपोर्ट के मुताबिक़, साल 2050 तक ऐसे सूखे और अकाल की संभावनाएं बढ़ जाएंगी. दुनिया भर में कई प्राकृतिक आपदाओं का कारण बनने वाला जलवायु परिवर्तन अब भुखमरी का सबब भी बन चुका है. दक्षिणी मेडागास्कर जलवायु परिवर्तन के कारण भुखमरी का सामना कर रहा है. संयुक्त राष्ट्र की ह्युमेनिटेरियन संस्था यूएनओसीएचए ने कहा है कि पूर्वी अफ्रीका स्थित दक्षिणी मेडागास्कर जलवायु परिवर्तन के कारण भुखमरी का सामना करने वाला दुनिया का पहला देश है. हालाँकि मेडागास्कर पहले भी खाद्य संकट का सामना करता रहा है. यहाँ के हालात की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लोग पेड़ों की जड़ों को काट कर अपना पेट भर रहे हैं. 1896 से लेकर अब तक मेडागास्कर 16 बार खाद्य संकट का सामना कर चुका है लेकिन इस बार पिछले 40 सालों में सबसे भयानक सूखे को झेल रहा है. यहाँ सूखे के साथ-साथ रेतीले तूफ़ान और कम बारिश से भूमि बंजर हो चुकी है. मेडागास्कर के 1,10 000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बसे 10 लाख लोग इस संकट का सामना कर रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक इतनी बड़ी संख्यां में इस क्षेत्र में लोग खाद्य संकट से जूझ रहे हैं जो सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन से जुड़ा हुआ है. वर्ल्ड फ़ूड प्रोग्राम के अनुसार अफ्रीका के मेडागास्कर में जलवायु में हुए बदलाव से लोग भुखमरी का सामना कर रहे हैं. उन्होंने इस क्षेत्र के 14000 लोगों को आपदा के 5 वें स्तर पर बताया है. इस स्तर पर पहुंच चुके लोग अपनी भूख को मिटाने के लिए लुटपाट और चोरी करने पर आमदा हो जाते हैं. 

किसी एक घटना को जलवायु परिवर्तन से जोड़ना जटिल हो सकता है लेकिन इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है की धरती लगातार गर्म हो रही है. औद्योगिक दौर शुरू होने के बाद से दुनिया 1.2 डिग्री तक गर्म हो चुकी है. चिंताजनक बात यह है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को लेकर जो अंदाजे लगाए गए थे उससे कहीं अलग नतीजे सामने आ रहे हैं. हाल में आए मौसम में बदलाव जलवायु परिवर्तन का ही नतीजा है. हमें शायद यह अंदाजा नहीं है कि तेजी से तापमान बढ़ने से आर्कटिक क्षेत्र में क्या प्रभाव पड़ रहा है. यहाँ बांकि दुनिया की तुलना में तापमान 2 से 3 डिग्री तेजी से बढ़ रहा है. इस क्षेत्र की बर्फ़ तेजी से पिघल रही है. सबसे तेजी से 2012 में बर्फ़ के पिघलने को रिकॉर्ड किया गया था इस साल जुलाई में उससे कुछ ही कम दर आँका गया है. साइबेरिया के लाफ्तेव सागर से बर्फ़ पिघल कर अब यह लगभग बर्फ़ मुक्त हो चुका है. इस तरफ़ से बर्फ़ के पिघलने के बेहद गंभीर परिणाम हो सकते हैं. सूर्य का प्रकाश सफ़ेद बर्फ़ से टकराकर लौट जाता है जिससे धरती का तापमान नियंत्रित रहता है. बर्फ़ के पिघलने से समंदर की काली सतह सूर्य की रौशनी को सोख लेती है. इसका मतलब यह है की समंदर ज्यादा गरम हो रही है और विस्तृत होकर फ़ैल भी रही है. दुनिया भर में समंदर के जलस्तर के बढ़ने की यह एक अहम् वजह है. इस सदी तक जलस्तर के बढ़ने से करीब 20 करोड़ लोगों को विस्थापित होना पड़ेगा जिसमें ज्यादातर लोग एशिया के ही होंगे. एक अनुमान बताता है कि साल 2100 तक भारत और पूर्वोतर एशिया की तटवर्ती जमीन समंदर में समा जाएगी. 

एक साथ धरती के अलग-अलग हिस्सों में प्राकृतिक आपदा के अलग-अलग रूप देखने को मिले हैं. भारत भी इससे अछुता नहीं रहा है. भारत में आए दिन बादल फटने की घटना आम हो चली है जो पर्वतीय इलाकों में ज्यादा देखी जा रही है. हिमाचल प्रदेश का मनाली, लाहौल क्षेत्र, अमरनाथ, जम्मू कश्मीर का किश्तवार क्षेत्र, उतराखंड का चमोली, केदारनाथ, उत्तरकाशी का क्षेत्र ऐसी घटना के लिए उल्लेखनीय है. जिसमें सैकड़ों लोगों की जान गयी है. यह एक ऐसी आपदा है जिसके बारे में अभी तक पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है. जब बादल फटता है तो हज़ारों घनमीटर पानी एक साथ आसमान से गिरता है जिसका वेग इतना अधिक होता है कि पेड़ पौधे मकान, वस्तु सहित इंसानों को बहा ले जाती है. हालाँकि बादल फटने की घटना नई नहीं है पहले भी इस तरह की घटनाओं से तबाही मचती रही है लेकिन पिछले कुछ सालों से इसकी वजह से जो तबाही का मंजर सामने आ रहा है वह नया है. जिसके कई मानवीय कारण भी हैं. 

प्रकृति पर नियंत्रण करने की इंसान की चाहत किस हद तक जा सकती है इसे पहाड़ों में पिछले कुछ सालों से चलाए जा रहे विकास कार्यों को देख कर समझा जा सकता है. पहाड़ों पर जिन इलाकों में लोग घर नहीं बनाया करते थे आज वहां बड़े-बड़े होटल बनाए जा रहे हैं, जगह-जगह कारखाने खुल गए हैं. नदियों का बहाव रोक कर बिजली उत्पादन व् सड़कों को सुगम बनाने की योजनाएं चलायी जा रही है. जिसके लिए पहाड़ों में बारूदी हमले भी किए जाते हैं जिससे भूस्खलन की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है और फिर पानी के साथ पहाड़ टूट कर निचले हिस्से में तबाही को कई गुना बढ़ा देते हैं. कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि प्रकृति द्वारा बनाए गए वातावरण में दखल अंदाजी की वजह से बादल फटने की घटना अधिक होने लगी है. पहाड़ों में बादलों के ठहर जाने की स्वाभाविक स्थिति के अलावा बिजली उत्पादन के संयंत्रों और टावरों की वजह से भी बादलों की गति और दिशा प्रभावित होती है. 

आज प्रकृति के साथ खिलवाड़ का नतीजा यह है कि हम पानी के साथ-साथ साँस लेने के लिए ऑक्सीजन तक खरीदने को मजबूर हैं. जिस तरह पीने का पानी ख़रीद कर पीना जनता के लिए आज आम बात हो गयी है, हो सकता है ऑक्सीजन खरीदना भी आने वाले समय में सामान्य घटना हो जाए लेकिन बाज़ारवाद व् कॉर्पोरेट लूट की बढती हनक समाज को कहाँ पहुंचा रही है यह जरुर चिंता का विषय है. पर्यावरण का संतुलन बिगड़ने के कारण हो रही प्रलय को रोकने की पहल जरुरी है. विकास और क़ुदरत के व्यवहारिक समीकरण पर गंभीरता से विचार करने की जरुरत है. कॉर्पोरेट लाभ और लालच के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन बंद करने की जरुरत है. इस दिशा में दुनिया भर में काम शुरू जरुर हुए हैं पर यह वर्तमान में नाकाफ़ी साबित हो रहे हैं. 

साभार : सबरंग 

climate change
global warming
corporate
development

Related Stories

गर्म लहर से भारत में जच्चा-बच्चा की सेहत पर खतरा

मज़दूर वर्ग को सनस्ट्रोक से बचाएं

लू का कहर: विशेषज्ञों ने कहा झुलसाती गर्मी से निबटने की योजनाओं पर अमल करे सरकार

जलवायु परिवर्तन : हम मुनाफ़े के लिए ज़िंदगी कुर्बान कर रहे हैं

लगातार गर्म होते ग्रह में, हथियारों पर पैसा ख़र्च किया जा रहा है: 18वाँ न्यूज़लेटर  (2022)

अंकुश के बावजूद ओजोन-नष्ट करने वाले हाइड्रो क्लोरोफ्लोरोकार्बन की वायुमंडल में वृद्धि

‘जलवायु परिवर्तन’ के चलते दुनियाभर में बढ़ रही प्रचंड गर्मी, भारत में भी बढ़ेगा तापमान

दुनिया भर की: गर्मी व सूखे से मचेगा हाहाकार

जलविद्युत बांध जलवायु संकट का हल नहीं होने के 10 कारण 

संयुक्त राष्ट्र के IPCC ने जलवायु परिवर्तन आपदा को टालने के लिए, अब तक के सबसे कड़े कदमों को उठाने का किया आह्वान 


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल
    02 Jun 2022
    साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग देश में भेदभाव का सामना करते हैं, उन्हें एॉब्नार्मल माना जाता है। ऐसे में एक लेस्बियन कपल को एक साथ रहने की अनुमति…
  • समृद्धि साकुनिया
    कैसे चक्रवात 'असानी' ने बरपाया कहर और सालाना बाढ़ ने क्यों तबाह किया असम को
    02 Jun 2022
    'असानी' चक्रवात आने की संभावना आगामी मानसून में बतायी जा रही थी। लेकिन चक्रवात की वजह से खतरनाक किस्म की बाढ़ मानसून से पहले ही आ गयी। तकरीबन पांच लाख इस बाढ़ के शिकार बने। इनमें हरेक पांचवां पीड़ित एक…
  • बिजयानी मिश्रा
    2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी
    02 Jun 2022
    पुलिस एनकाउंटरों को रोकने के लिए हमें पुलिस द्वारा किए जाने वाले व्यवहार में बदलाव लाना होगा। इस तरह की हत्याएं न्याय और समता के अधिकार को ख़त्म कर सकती हैं और इनसे आपात ढंग से निपटने की ज़रूरत है।
  • रवि शंकर दुबे
    गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?
    02 Jun 2022
    गुजरात में पाटीदार समाज के बड़े नेता हार्दिक पटेल ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में पाटीदार किसका साथ देते हैं।
  • सरोजिनी बिष्ट
    उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा
    02 Jun 2022
    "अब हमें नियुक्ति दो या मुक्ति दो " ऐसा कहने वाले ये आरक्षित वर्ग के वे 6800 अभ्यर्थी हैं जिनका नाम शिक्षक चयन सूची में आ चुका है, बस अब जरूरी है तो इतना कि इन्हे जिला अवंटित कर इनकी नियुक्ति कर दी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License