NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
बारिश से बर्बाद हुई फसल की भरपाई क्या प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के जरिए हो पाएगी?
बेमौसम बारिश की वजह से भारत के कई इलाकों की फसल बर्बाद हो चुकी है। पहले से ही कम कमाई पर जीने वाले अधिकतर किसान टूटने के कगार पर पहुंच चुके हैं। ऐसे में क्या प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के जरिए उन्हें बचाया जा सकता है?
अजय कुमार
27 Oct 2021
crop

किसानों को बारिश का बहुत इंतजार होता है। वह मन ही मन दुआ करते हैं कि बारिश हो जाए। सिंचाई का पैसा बचा जाए। उनके कंधे का बोझ हल्का हो जाए। लेकिन किसान तब उतने ही दुखी होते हैं जब बेमौसम बरसात उनकी महीनों की मेहनत को बरबाद कर देती है। सितम्बर-अक्टूबर के महीने में भारत  के किसान बारिश नहीं चाहते हैं।  इस समय फसल पक रही होती है। अगर इस समय बारिश हो जाए तो इसका मतलब है कि फसल सड़ जाती है। इस साल यही हुआ है।

अगस्त के महीने तक भारत में औसतन बारिश से 9 फ़ीसदी कम बारिश हुई थी। अगर मौसम ठीक रहता है तो सितंबर के महीने तक मानसून खत्म हो जाता है। लेकिन इस बार मानसून 26 अक्टूबर तक चला। बारिश मापने वाली संस्था इंडियन मेट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट का कहना है कि इस सीजन में भारत में औसतन होने वाली बारिश से 135 फ़ीसदी बारिश हुई।

इस बेमौसम बारिश की वजह से उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक के कई इलाकों की फसल बर्बाद हो गई है। बिहार के कई इलाकों में पके हुए धान ढह गए। खेतों में पानी लगने की वजह से फसल सड़ने लगी। यही हाल दलहन की फसल के साथ हुआ। महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर सोयाबीन उड़द और कपास की फसल बर्बाद हुई है। केरल में धान, सब्जी, केले की फसलों पर बारिश और बाढ़ का खतरनाक कहर टूटा है। इस तरह से भारत के लाखों हेक्टेयर जमीन पर इस सीजन हजारों करोड़ों की फसल बर्बाद हो गई है।

बर्बादी के इस कहर पर सरकारी मदद की बात चल पड़ती है। सरकार ने पहले से ही इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना बना रखी है। कागज पर यह योजना नुकसान की भरपाई की बात करती है लेकिन जमीन पर यह योजना इस तरह से लागू होती है जैसे यह बीमा कंपनियों के जरिए अमीर कारोबारियों के जेब में पैसा भेजने का काम का रही हो।

इसे भी पढ़े: प्रधानमंत्री फसल बीमा के नाम पर किसानों से लूट, उतना पैसा दिया नहीं जितना ले लिया

साल 2016 में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू हुई। इस योजना के बारे में अगर गांव देहात के इलाके में पूछा जाए तो शायद ही कोई किसान बता पाएगा। पढ़े-लिखे कुछ किसान जो बैंकों से लोन लेते हैं और किसान क्रेडिट कार्ड  का इस्तेमाल करते हैं, उन्हीं में से कुछ को फसल नुकसान से जुड़ी किसी सरकारी बीमा योजना के बारे में पता होता है।

बैंक से लोन लेने वाले और किसान क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करने वाले किसानों को फसल बीमा योजना का इसीलिए पता होता है क्योंकि उनके खाते से बिना उन्हें बताएं बैंक बीमा के लिए दी जाने वाली प्रीमियम की राशि काट लेता है।

कृषि क्षेत्र के जानकार कहते हैं कि बीमा धारक किसान के पास बीमा पॉलिसी से जुड़ा कोई दस्तावेज नहीं मिलता है। यानी किसान को पता नहीं होता कि उसकी फसल का बीमा हो चुका है। उसके बैंक से प्रीमियम काटा जा चुका है। फसल नुकसान की शर्तें भी असंभव होती हैं। अगर आपकी पंचायत मे आधे से अधिक फसल बर्बाद हुई होगी तभी जाकर बीमा कंपनियों की तरफ से क्षतिपूर्ति मिलेगी। नहीं तो नहीं मिलने वाली। यानी एक या दो किसान के फसल के नुकसान की भरपाई तब तक नहीं होगी जब तक पंचायत की आधी से अधिक फसल बर्बाद ना हुई हो। सरकार की खुद की संसदीय समितियों ने कई बार फसल बीमा योजना का पूरा खाका बदल डालने की सिफारिश की है। लेकिन अब तक इस नियम को नहीं बदला गया है। जबकि ड्रोन टेक्नोलॉजी की मदद से आसानी से पता लगाया जा सकता है कि किस क्षेत्र में किसकी कितनी मात्रा में फसल बर्बाद हुई है।

इसे भी पढ़े: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना : किसान योजना छोड़ रहे हैं, लेकिन प्रीमियम की उगाही बढ़ रही है

 बड़ी-बड़ी इंश्योरेंस कंपनियों के हवाले भारत के कई कृषि इलाके कर  दिए गए हैं। यह इंश्योरेंस कंपनियां बैंक और सरकार के जरिए प्रीमियम ले लेती है लेकिन किसी भी तहसील में इनका ऑफिस नहीं होता। अगर किसान को किसी तरह की परेशानी है तो किसानों की परेशानियों को समझने के लिए किसी भी तरह का रिप्रेजेंटेटिव मौजूद नहीं होता। नुकसान की भरपाई करने के लिए फसल बीमा योजना तो बना दी गई है लेकिन अब भी ऐसा कोई मेकैनिज्म विकसित नहीं हुआ है कि किसान बीमा कंपनियों से अपने नुकसान की वसूली कर सके। सब कुछ सरकारी कागजों में भटक रहा है।

इसलिए वरिष्ठ पत्रकार पी. साईनाथ कई बार कह चुके हैं कि अगर इस योजना की खामियों को ढंग से सुधारा नहीं गया तो आने वाले समय में यह भारत का सबसे बड़ा घोटाला साबित होगा।

भारत के 7 राज्य फसल बीमा योजना से बाहर हैं। बिहार, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात फसल बीमा योजना को नहीं अपनाते हैं। इनका कहना है कि यह योजना जितना पैसा सोखती है, उतना पैसा किसानों तक नहीं पहुंचता है। इस योजना के तहत 2 से 3 फ़ीसदी प्रीमियम की राशि किसानों को देनी होती है बाकी राशि केंद्र और राज्य सरकार आधा-आधा बांट कर बीमा कंपनियों को देते हैं।

फसल नुकसान से जुड़ी बीमा योजना के क्षेत्र में कुल 18 बीमा कंपनियां काम कर रही हैं। जिसमें से पांच बीमा कंपनियां पब्लिक सेक्टर की हैं। देश की जो इलाके गर्मी बरसात ठंडी के मामले में बहुत अधिक असंतुलित इलाके हैं वहां का कामकाज पब्लिक सेक्टर की बीमा कंपनियों के हाथों में है। यानी यहां पर भी तिगड़म लगा कर प्राइवेट बीमा कंपनियों ने खुद को अलग रखने का काम किया है। सबसे अच्छा काम केरल में हुआ है। वहां पर पब्लिक सेक्टर की बीमा कंपनी काम करती है। वहां पर 100 फ़ीसदी नुकसान की भरपाई बीमा कंपनियों के जरिए की गई है।

न्यूज़क्लिक में प्रकाशिकत एक रिपोर्ट के मुताबिक कृषि  एवं कल्याण मंत्रालय की ओर से समिति को उपलब्ध कराये गये आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल 2016 से लेकर 14 दिसम्बर 2020 के दौरान, निजी बीमा कंपनियों ने किसानों से प्रीमियम के तौर पर 1,26, 521 करोड़ रुपये जमा कराए, जबकि बीमा कंपनियों ने नुकसान के एवज में किसानों को  87,320 करोड़ रुपये का भुगतान किया। यानी कंपनियों ने 69 फीसदी मुआवजे का भुगतान किया है। रिपोर्ट के अनुसार फसल का नुकसान होने पर किसानों ने 92,954 करोड़ रुपये का क्लेम किया था, लेकिन उन्हें 87,320 करोड़ रुपये का ही भुगतान किया गया। आंकड़ों के मुताबिक इन सालों में सवा 9 करोड़ किसानों को ही मुआवजा दिया गया है। दिसम्बर 2020 तक किसानों को क्लेम का 5924 करोड़ रुपये नहीं दिया गया। रिपोर्ट पर गौर करें, तो साफ समझ में आता है, कि इस योजना का लाभ किसानों को कम और निजी बीमा कंपनियों को ज्यादा हुआ है।

स्थायी समिति की रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक निजी बीमा कंपनियों ने वर्ष 2016 से 2020 के दौरान करीब 31 फीसदी मुनाफा कमाया है। कई कंपनियों ने 50 से 60 फीसदी तक मुनाफा कमाया है। भारती एक्स 2017-18 में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में शामिल हुई और तीन साल के दौरान कंपनी ने करीब 1576 करोड़ रुपये का प्रीमियम वसूला और क्लेम का करीब 439 करोड़ रुपये भुगतान किया’।

इसी तरह रिलायंस जीआईसी लिमिटेड ने प्रीमियम के तौर पर 6150 करोड़ रुपये वसूला और किसानों को 2580 करोड़ रुपये का ही भुगतान किया। जनरल इंडिया इंश्योरेंस को करीब 62 फीसदी, इफको ने 52 और एचडीएफसी एग्रो ने करीब 32 फीसदी मुनाफा कमाया है।

इस तरह से प्राकृतिक प्रकोप से बचने के लिए सरकार ने रास्ता तो बनाया है लेकिन उस रास्ते पर किस तरह से चला जाएगा यह बात किसानों को नहीं पता है। उसी रास्ते का इस्तेमाल बीमा कंपनियां अपने मुनाफे के लिए कर रही है। यह सब दिनदहाड़े और सरकारी निगरानी के अंतर्गत हो रहा है इसलिए सवाल यह भी उठता है कि आखिर कर यह ऐसी योजनाएं किस के फायदे के लिए बनाई जाती हैं?

इसे भी पढ़ें : आरटीआई से खुलासा: संकट में भी काम नहीं आ रही प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना

pm fasal insurance scheme
pmfsy
insurance scheme for farmers
 एग्रीकल्चर इन इंडिया
natural calamity in agriculture
excessive rainfall in agriculture
excessive rainfall and crop loss
crop loss and insurance scheme
 प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की खामियां
drawback of Pradhanmantri fasal Bima Yojana

Related Stories


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    क्या पुलिस लापरवाही की भेंट चढ़ गई दलित हरियाणवी सिंगर?
    25 May 2022
    मृत सिंगर के परिवार ने आरोप लगाया है कि उन्होंने शुरुआत में जब पुलिस से मदद मांगी थी तो पुलिस ने उन्हें नज़रअंदाज़ किया, उनके साथ दुर्व्यवहार किया। परिवार का ये भी कहना है कि देश की राजधानी में उनकी…
  • sibal
    रवि शंकर दुबे
    ‘साइकिल’ पर सवार होकर राज्यसभा जाएंगे कपिल सिब्बल
    25 May 2022
    वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कांग्रेस छोड़कर सपा का दामन थाम लिया है और अब सपा के समर्थन से राज्यसभा के लिए नामांकन भी दाखिल कर दिया है।
  • varanasi
    विजय विनीत
    बनारस : गंगा में डूबती ज़िंदगियों का गुनहगार कौन, सिस्टम की नाकामी या डबल इंजन की सरकार?
    25 May 2022
    पिछले दो महीनों में गंगा में डूबने वाले 55 से अधिक लोगों के शव निकाले गए। सिर्फ़ एनडीआरएफ़ की टीम ने 60 दिनों में 35 शवों को गंगा से निकाला है।
  • Coal
    असद रिज़वी
    कोल संकट: राज्यों के बिजली घरों पर ‘कोयला आयात’ का दबाव डालती केंद्र सरकार
    25 May 2022
    विद्युत अभियंताओं का कहना है कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 की धारा 11 के अनुसार भारत सरकार राज्यों को निर्देश नहीं दे सकती है।
  • kapil sibal
    भाषा
    कपिल सिब्बल ने छोड़ी कांग्रेस, सपा के समर्थन से दाखिल किया राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन
    25 May 2022
    कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे कपिल सिब्बल ने बुधवार को समाजवादी पार्टी (सपा) के समर्थन से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया। सिब्बल ने यह भी बताया कि वह पिछले 16 मई…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License