NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
देश की सबसे बड़ी पार्टी क्यों नहीं चाहती चुनावी खर्च की सीमा तय हो ?
सभी पार्टियों का कहना था कि चुनाव सुधार के लिए चुनावी खर्च की एक सीमा तय की जानी चाहिए। लेकिन इसमें कोई ताज्जुब की बात नहीं थी कि सत्ताधारी बीजेपी में इसका विरोध किया।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
28 Aug 2018
चुनाव खर्च
Image Courtesy: dalyhunt

चुनाव सुधार के मुद्दे को लेकर चुनाव आयोग की एक बैठक हुई जिसमें 51 पार्टियाँ शामिल हुईं । इस बैठक में चुनाव सुधार के कई मुद्दों पर बात हुई। लेकिन सबसे बड़ा मुद्दा जो सामने आया वह था चुनावों में किये गए खर्चे का। ज़्यादातर पार्टियों का कहना था कि चुनाव सुधार के लिए चुनावी खर्च की एक सीमा तय की जानी चाहिए। लेकिन इसमें कोई ताज्जुब की बात नहीं थी कि सत्ताधारी बीजेपी में इसका विरोध किया। 

बीजेपी के प्रतिनिधि भूपेंद्र यादव का कहना था कि राजनीतिक पार्टियाँ वैसे भी अपने खर्चों का ब्यौरा देती हैं। पार्टियाँ अपनी संपत्ति के बारे में आयकर विभाग को बताती हैं इसीलिए खर्चे पर किसी तरह की कैप नहीं लगायी जानी चाहिए। साथ ही बीजेपी का कहना था कि इलेक्टोरल बांड की वजह से अब 20000 रुपये से ज़्यादा के चंदे के बारे में ब्यौरा देना होता है , इसीलिए इसकी ज़रुरत नहीं।  साथ ही उनका कहना था कि चुनावों में ज़्यादा से ज़्यादा प्रचार करने की छूट होनी चाहिए और जाति या ताक़त का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। 

बीजेपी के अलावा ज़्यादातर छोटी पार्टियों ने चुनावी खर्च पर एक सीमा तय करने की बात की। ज़्यादातर पार्टियों का कहना था कि पैसा खर्च करने की वजह से बड़ी पार्टियों को फायदा होता है और चुनाव एक बराबरी की प्रतियोगिता नहीं रह जाती। वहीं कांग्रेस ने इससे मुद्दे पर ज़्यादा कुछ नहीं कहा और हाँ में हाँ मिलते हुए नज़र आयी। आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता ने उदहारण देते हुए कहा कि अगर एक चुनावी क्षेत्र में कोई व्यक्ति 5 लाख रुपये प्रचार में खर्च करता है और दूसरी तरफ अगर बीजेपी या कांग्रेस का प्रत्याशी 500 करोड़ खर्च करता है तो बराबरी का मुकाबला कैसे होगा।  उन्होंने राजनीतिक पार्टियों की अंतराष्ट्रीय फंडिंग का मुद्दा भी उठाया। यही मुद्दे  माकपा के नीलोत्पल बसु ने भी उठाये। 

चुनावी खर्च के मुद्दे के अलावा ईवीएम , पार्टियों में महिलाओं की भागीदारी, चुनावों से पहले सोशल मीडिया पर रोक , ऑडिट रिपोर्ट्स आदि मुद्दों पर भी बात की। ईवीएम के मुद्दे पर बहुत सी पार्टियों का यह मत था कि इसकी विश्वसनीयता पर सवालों के चलते इसे बंद कर दिया जाना चाहिए। 

लेकिन यहाँ जो सबसे बड़ा मुद्दा निकल कर आया वह है चुनावी खर्च का ही था। पिछले साल इस सरकार ने संसद में फाइनेंस बिल पेश किया था , जिसमें इलेक्टोरल बांड नामक एक नए तरीके को लाया गया था। बताया जा रहा था कि यह पार्टियों को मिलने वाले चंदे की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाएगा। लेकिन असल में इसका काम था राजनीतिक पार्टियों के लिए कॉर्पोरेट चंदे के लिए कानूनी रास्ते खोल देना। कुछ दिन पहले न्यूज़क्लिक ने इसपर एक रिपोर्ट की थी। इलेक्टोरल बांड क्या हैं कुछ आसान शब्दों में समझें।

 

 - इलेक्टोरल  बॉन्ड एक ऐसा बॉन्ड होता है ,जिसपर न ही बॉन्ड खरीदने वाले का नाम लिखा होता है और न ही  बॉन्ड के ज़रिए फंडिंग लेने वाली पार्टी का नाम लिखा होता है। 

-- एक किस्म की kyc फॉर्म भरकर निर्धारित एसबीआई ब्रांच से 1 हजार ,1 लाख ,10 लाख और 1 करोड़ के मूल्य में अंकित इलेक्टोरल  बॉन्ड की खरीददारी की जा सकती है ।

-- व्यक्ति ,कम्पनी,हिन्दू अविभाजित परिवार,फर्म,व्यक्तियों का संघ अन्य व्यक्ति और एजेंसी इलेक्टोरल  बॉन्ड की खरीददारी कर सकती है। इसके बाद इस बॉन्ड को विगत आम चुनाव में एक फीसदी से अधिक वोट पाने वाले किसी राजनीतिक दल को चंदे के रूप में  देने का प्रावधान होता है ,जिसे बॉन्ड के जारी किए दिन से  15 दिन के भीतर बैंक से क्रेडिट करा लेने का नियम होता है । यानी बॉन्ड की खरीददारी होगी और उसे किसी राजनीतिक दल को दिया जाएगा और राजनीतिक दल को 15 दिन के भीतर बॉन्ड की राशि मिल जाएगी। और इन सारी प्रक्रियाओं में किसी का भी नाम उजागर नहीं  होगा। सब बेनाम ही रहेंगे।

- इलेक्टोरल बॉन्ड की राशि पर 100 फीसदी टैक्स की छूट मिलती है। यानी कि 500 करोड़ के इलेक्ट्रोल बॉन्ड पर 1 रुपए भी टैक्स भुगतान की जरूरत नहीं होती है ।

- कम्पनी अधिनयम में हुए हालिया संशोधन के मुताबिक राजनीतिक दलों को दिए जा सकने  वाले साढ़े सात फीसदी  चंदे की लिमिट वाले प्रावधान को हटा दिया गया है। यानी कि अगर एक कम्पनी चाहे तो अपने पूरे लाभ को चंदे के रूप में दे सकती है और दर्शा सकती है ।

- कम्पनी के खातों में केवल इलेक्टोरल  बॉन्ड की राशि लिखनी होती है, चन्दा हासिल करने वाले  राजनीतिक दलों  के नाम लिखने की जरूरत नहीं होती है।

इससे यह ज़ाहिर होता है कि किस तरह कॉपोरेट द्वारा हमारी राजनीति को नियंत्रित करने के रास्ते खोल दिए गए। कोपोरेट्स को टैक्स की छूट मिल गयी और  राजनीतिक पार्टियाँ चंदे के बारे में गोपनीयता रख सकती हैं। यह साफ़ है कि अगर राजनीतिक पार्टियों को हज़ारों करोड़ का चंदा मिलता है तो इससे वह सत्ता में आने के बाद आम जन का नहीं बल्कि उन्हें चंदा देने वालों का ही फायदा करेंगी। यही वजह है कि इस तरह का चंदा और खर्च जनतंत्र के लिए खतरनाक है। 

इस साल अप्रैल में आयी एडीआर रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी की आय 2015-16 और 2016-17 के बीच 463. 41 करोड़ रुपये बढ़ी। 2015- 16 में जहाँ बीजेपी के पास 570.86 करोड़ रुपये थे वहीं 2016-17 में यह बढ़कर 1,034.27 करोड़ रुपये हो गए। रिपोर्ट के मुताबिक 2014 के चुनावों में बीजेपी ने 700 करोड़ रुपये खर्च किये थे। हमें यहाँ याद रखना होगा कि यह वो आय है जो दिखाई जा रही है असल में कितनी आय होगी इसका सिर्फ अंदाज़ा लगाया जा सकता है। साफ़ है कि यही वजह है कि इलेक्टोरल बांड को लाया गया और चुनावी खर्च पर रोक नहीं लगाई जा रही है।

 

चुनाव आयोग
electoral reforms
BJP
electoral bond
political parties' funding

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • विकास भदौरिया
    एक्सप्लेनर: क्या है संविधान का अनुच्छेद 142, उसके दायरे और सीमाएं, जिसके तहत पेरारिवलन रिहा हुआ
    20 May 2022
    “प्राकृतिक न्याय सभी कानून से ऊपर है, और सर्वोच्च न्यायालय भी कानून से ऊपर रहना चाहिये ताकि उसे कोई भी आदेश पारित करने का पूरा अधिकार हो जिसे वह न्यायसंगत मानता है।”
  • रवि शंकर दुबे
    27 महीने बाद जेल से बाहर आए आज़म खान अब किसके साथ?
    20 May 2022
    सपा के वरिष्ठ नेता आज़म खान अंतरिम ज़मानत मिलने पर जेल से रिहा हो गए हैं। अब देखना होगा कि उनकी राजनीतिक पारी किस ओर बढ़ती है।
  • डी डब्ल्यू स्टाफ़
    क्या श्रीलंका जैसे आर्थिक संकट की तरफ़ बढ़ रहा है बांग्लादेश?
    20 May 2022
    श्रीलंका की तरह बांग्लादेश ने भी बेहद ख़र्चीली योजनाओं को पूरा करने के लिए बड़े स्तर पर विदेशी क़र्ज़ लिए हैं, जिनसे मुनाफ़ा ना के बराबर है। विशेषज्ञों का कहना है कि श्रीलंका में जारी आर्थिक उथल-पुथल…
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: पर उपदेस कुसल बहुतेरे...
    20 May 2022
    आज देश के सामने सबसे बड़ी समस्याएं महंगाई और बेरोज़गारी है। और सत्तारूढ़ दल भाजपा और उसके पितृ संगठन आरएसएस पर सबसे ज़्यादा गैर ज़रूरी और सांप्रदायिक मुद्दों को हवा देने का आरोप है, लेकिन…
  • राज वाल्मीकि
    मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?
    20 May 2022
    अभी 11 से 17 मई 2022 तक का सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का “हमें मारना बंद करो” #StopKillingUs का दिल्ली कैंपेन संपन्न हुआ। अब ये कैंपेन 18 मई से उत्तराखंड में शुरू हो गया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License