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भारत
राजनीति
दिल्ली में पानी संकट चरम पर, सरकार को समय पर कदम उठाने चाहिए
अनुमान यह है कि दिल्ली का भूजल 2020 तक समाप्त हो जाएगाI
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
26 Jun 2018
water crisis in delhi
Image Courtesy : DNAIndia

आज के समय में पूरे विश्व में पानी का संकट है और भारत भी इससे कोई अछुता नहीं है। भारत की स्थिति तो विश्व के पटल पर और भी दयनीय है। पानी की गुणवत्ता में 122 देशों की श्रेणी में भारत का स्थान 120वां है।

नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान समय में भारत की लगभग 60 करोड़ आबादी पानी के संकट से जूझ रही है। रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक वर्ष भारत में दो लाख लोग गंदे पानी के सेवन से मर जाते हैं। हैरानी और स्तब्ध करने वाली बात तो यह है कि जिस मानसून के समय जल की कमी नहीं होनी चाहीए उसी समय दुर्भागयवश रूप से देश जल संकट की समस्या से जुझ रहा हैI  कहीं लोग पानी की समस्या को लेकर मटका फोड़ो आंदोलन कर रहे हैं तो कहीं पानी की समस्या को लेकर मारा-मारी है। देश के बड़े शहरों का तो और भी बुरा हाल है अगर बात भारत की राजधानी दिल्ली की की जाए तो तमाम अनुमान यह है कि दिल्ली का भूजल 2020 तक समाप्त हो जाएगा।

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दिल्ली में इस समय  तक़रीबन 2.5 करोड़ लोग रहते हैं। पिछले दस वर्षों के  आँकड़े  अगर देखें तो पूरे भारत  में 61 प्रतिशत भूजल में कमी आई है, जबकि 2011 में पूरे विश्व का 25 प्रतिशत भूजल हमारे पास था।

दिल्ली में आँकड़ों की बानगी अगर देखी जाए तो यहाँ 600 मिलीयन क्यूबिक मीटर पानी वर्षा से हर साल मिलता है। वर्तमान समय में दिल्ली में भूजल की उपलब्धता 290 मिलीयन क्यूबिक मीटर है। वहीं सप्लाई वॉटर का 60 प्रतिशत पानी यमुना से आता है। दिल्ली जल बोर्ड के अनुसार दिल्ली को 3,859 मिलियन लीटर पानी हर दिन की ज़रूरत है।

वहीं अगर प्रभावित इलाकों की बात की जाए तो डियर पार्क, किशनगंज, महरौली, ग्रीन पार्क, मुनीरका, मालवीय नगर, चितरंजन पार्क, ए-2 ब्लॉक जनकपुरी, सुल्तानपुर, पूठ खुर्द, माजरा डबास, चंदनपुर, बुराड़ी, गीता कॉलोनी, लक्ष्मी नगर, रमेश पार्क, एनडीएमसी क्षेत्र, दिल्ली कैंट, पटेल नगर, पहाडग़ंज, वजीराबाद, राजेंद्र नगर, झंडेवालान, कनॉट प्लेस, करोल बाग,  चांदनी चौक, दिल्ली गेट, दरियागंज, सिविल लाइन के अलावा भी और कई सारे  इलाके पानी की किल्लत से प्रभावित हैं।

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वहीं सीएसई (सेटर फॉर साईंस एंड इनवायरन्मेंट) की रिसर्च के मुताबिक दिल्ली में 3,800 मिलीयन क्यूबिक मीटर की सप्लाई होती है जो कि माँग से कम है जिसमें से 52 प्रतिशत  ट्रांसमिशन के दौरान बर्बाद हो जाता हैI  यही नहीं रिसर्च के अनुसार, दिल्ली में केवल 75 फीसदी पानी के सप्लाई का नेटवर्क है। 35 से 40  प्रतिशत पानी पुरानी पाइपलाइन में लीकेज और चोरी की वजह से बर्बाद होता है। 

वहीं एकद कॉन्वर्जेशन कि एक रिपोर्ट के अनुसार के मुताबिक दिल्ली में घरों तक जल पहुँचने से पहले ही 40 प्रतिशत रास्तें में ही रिसाव व चोरी के कारण बर्बाद हो जाता है, जबकि सिंगापुर, चीन, अमेरिका इत्यादि देशों में  मे यह अनुपात 15-20 प्रतिशत है।

1 अप्रैल 2016 की एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में 2.65 लाख पानी के कनेक्शन बिना मीटर के लगे हुएं हैं और 4 लाख कनेक्शन वाले मीटर या तो काम नहीं कर रहें हैं या खराब है।

जल की समस्या या जल संकट पैदा होने के लिए न केवल सरकार ज़ि़म्मेदार है बल्कि इस समस्या को पैदा करने में हम भी बराबर के भागीदार हैं। दिल्ली में ही रसूखदार लोगों की बात की जाए तो वह एक दिन में 600 लिटर से भी ज़्यादा पानी का इस्तेमाल कर लेते हैं। साथ ही यहाँ रहने वाले निवासी प्राकृतिक संसाधन का सदुपयोग भी नहीं कर रहे हैं। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली सरकार की जल संरक्षण योजना जिसके तहत दिल्ली में रहने वाले लोगों (जिनका घर 500 स्क्वायर मीटर या इससे ज़्यादा है) को जल संरक्षण तंत्र लगाना था। लेकिन इस पर भी लोगों ने सजग और सक्रिय हो कर काम नहीं किया वैसे यहाँ गलती सरकार की भी है क्योंकि इसे लागू करवाने में उसने भी कोई सख्ती नहीं दिखाई।

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ज्ञानेंद्र रावत पर्यावरण कार्यकर्ता  के हिंदुस्तान में छपे लेख के अनुसार यह समय, यानी कि मानसून  सरकार को कदम उठाने का एकदम सही समय हैI इसी समय हमें जल संकट पर सोचना चाहिए मगर हम कर कुछ नहीं रहें हैं।

दिल्ली पानी के संकट से परेशान है लेकिन पानी की समस्या से उबरने के बजाए यहाँ की सरकार और निगम दोनो हाथ पर हाथ दे कर बैठे हुए हैं। सरकार  को पानी के संरक्षण पर बल देना चाहिए  लेकिन आश्चर्य की  बात  है कि अभी भी 60 प्रतिशत दिल्ली का गंदा पानी यमुना में  डाले जाने  से नहीं रोक रही है।

हर वर्ष भारी मात्रा में वर्षा होने के बाद भी पानी के इतने बड़े संकट के पीछे आखिर कौन ज़िम्मेदार है? वैसे तो मानसून की पहली बारिश ही निगम और सरकार की पोल खोलने के लिए काफी होते हैं कि सरकार ने क्या तैयारी कर रखी है। नदियों के दिन-ब-दिन सूखने के साथ-साथ कूड़े और कचरे का उनमें डाले जाने से उसका रंग काला पड़ रहा है क्योंकि सरकार कूड़े और कचरे का सही ढ़ंग से प्रबंधन नहीं कर रही है और जल का बचाने के बजाए उसे दूषित ही कर रही है। वहीं सरकार की सारी एक्शन योजना चाहे वो यमुना एक्शन प्लान 1994 हो या और कोई सब की सब धरी की धरी रह गई हैंI यमुना एक्शन प्लान के क्रियान्यवन का अंदाज़ा तो आप दिल्ली में यमूना नदी के किसी भी किनारे पर खड़े हो कर खुद लगा सकते हैं।

केंद्र सरकार के साथ-साथ दिल्ली सरकार भी जल संकट को लेकर पूरी तरह उदासीन दिख रही है। जल संकट हो या जल प्रबंधन  या फिर जल संरक्षण किसी भी मुद्दे को लेकर सरकार का रवैया सकारात्मक  नहीं दिख रहा । जल संकट से बचने के लिए न सिर्फ सरकार का सजग होना चाहिए बल्कि हमें भी जल संरक्षण पर उचित ध्यान देने की आवश्यकता है।

 

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