NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
दिल्ली में सांप्रदायिक दंगों की दस्तक – एक खतरनाक संकेत
महेश कुमार
28 Oct 2014

दिल्ली शहर पिछले कईं दशकों से साम्प्रदायिक सदभाव की परंपरा को निभाता आया है. 1984 के सिख विरोधी दंगों के बाद दिल्ली शहर अमूमन शांत रहा है त्रिलोकपुरी उन इलाकों में से है जहाँ सिख विरोधी दंगा भी काफी तेज़ी से भड़का था। दिल्ली में त्रिलोकपुरी जैसे इलाके उन कॉलोनियों में आते है जिन्हें पुनर्वास बस्ती कहा जाता है और जिनको ज्यादातर आपातकाल के दौरान पुनर्वासित किया गया था। इन इलाकों में दिल्ली शहर का मजदूर वर्ग और निम्न मध्यम वर्गीय तबका रहता है। सभी धर्मों और जातियों का अच्छा ख़ासा जमावड़ा है। जगह कम आबादी ज्यादा, सुविधाएं कम, मुसीबतें ज्यादा और ऊपर से बेरोजगारी का आलम। कांग्रेस ने इन इलाकों को बड़ी सोची समझी साजिश के तहत बसाया था ताकि ताउम्र यह उनके वोटबैंक के रूप में काम करता रहे। अब चूँकि कांग्रेस अपनी राजनितिक साख खो चुकी है भाजपा के मुकाबले एक नयी ताकत उसे चुनौती देने के लिए खड़ी है, इसलिए भाजपा साम्प्रदायिक राजनीती का सहारा लेकर माहौल खराब करना चाहती है। ताकि दिल्ली की जनता का ध्यान अपनी समस्याओं से दूर हट जाए और उन्हें राजनितिक वाकओवर मिल जाए। 

                                                                                                                                 

सभी राजनितिक पार्टियाँ इन इलाकों में अपना आधार ज़माने के लिए सभी तरह के रास्ते अपनाती है क्योंकि यहाँ वोटो की तादाद काफी भारी है और साथ ही मतदान प्रतिशत भी अच्छा ख़ासा रहता है। इतने दशकों में यह पहली बार हुआ है कि छोटी सी घटना ने एक बड़ा सांप्रदायिक रूप ले लिए और इतने दिनों तक क्षेत्र में हिंसा और आतंक का माहौल कायम रहा। इस क्षेत्र में हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही जमातें रहती हैं। लेकिन आज-तक इन दोनों समुदायों में सांप्रदायिक हिंसा नहीं भड़की। आज भी इस हिंसा के पीछे भाजपा के स्थानीय नेता का हाथ बताया जा रह है जिसने दोनों समुदायों में टकराव को शांत करने के बजाये एक मीटिंग कर छोटे से झगडे को साम्प्रदायिक दंगे का तूल दे दिया जिसकी वजह से 50 से ऊपर लोग घायल हो गए। इलाके में कर्फ्यू लग गया और दैनिक रोजगार करने वाले, स्कूल जाने वाले बच्चे, महिलायें और इलाके की पूरी जनता भी इसका शिकार हो गई। इस भय और हिंसा के माहौल ने आस-पास के इलाकों में भी सनसनी फैला दी। त्रिलोकपुरी में मस्जिद से महज पचास कदम की दूरी पर माता की चौकी/जागरण का तंबू तानकर मस्जिद की ओर लाउडस्पीकर तानने की हिम्मत कहाँ से आती है, यह कोई छुपा मामला नहीं है। अफवाहें तनाव के समान्तर पनपती हैं। स्थानीय भाजपा नेता ने इसको हवा दी ताकि वह दिल्ली के चुनावों में अपनी जीत सुनाश्चित कर सके भाजपा को दिल्ली में भी बिना किसी बड़े विरोध के आसानी से सत्ता मिल जाए। देखने योग्य बात यह है कि यहाँ हिंसा दलित और मुस्लिम समुदाय के बीच भड़की। लगातार सांप्रदायिक ताकतें शोषित वर्ग को अपना हथियार बनाकर हिंसा के लिए इस्तेमाल करती रही हैं । और प्रलोभन होता है इस शोषित वर्ग को हिन्दू होने का दर्ज़ा देना।

                                                                                                                    

इस दंगें के जो मुख्य कारणों को ध्यान से अध्यन करने की जरूरत है। पहला तो ये कि केंद्र में भाजपा की सरकार साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के आधार पर सत्ता में आई है। भाजपा के नेताओं ने हिंदी पट्टी में साम्प्रद्दायिक ध्रुवीकरण के आधार को हवा दी जिसके परिणामस्वरूप पूरी हिंदी पट्टी में साम्रदायिक हिंसा की घटनाएं लगातार बढ़ती रही है। चाहे वह मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, मुरादाबाद या बड़ोदा की हिंसा हो। हर साम्प्रदायिक हिंसा को हवा देने में भाजपा के नेता बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। यहाँ तक बंगाल जैसे राज्य में भी भाजपा तृणमूल की बी-टीम बनने के लिए साम्प्रदायिक हिंसा को बढ़ावा दे रही है। भाजपा ने जब भी बड़े पैमाने पर साम्प्रदायिक हिंसा का सहारा लिया है तब-तब भाजपा ने अपनी राजनितिक शक्ति में बढ़ोतरी हासिल की है। फिर चाहे वह राम मंदिर यात्रा के बाद भाजपा का दो सीटों से बढ़कर 90 के आस-पास सीटें जीतने का सवाल हो या फिर हाल में हुए उत्तर प्रदेश के दंगों के बाद केंद्र में उसका सत्ता में काबिज़ होना हो। भाजपा और संघ ने इस रणनीति को अपने नेताओं के बयानबाजी और अपने जन-संगठनों के जरिए समाज के भीतर तक फैलाना शुरू कर दिया है।

दिल्ली के त्रिलोकपुरी में यह दंगा एक बहुत बड़ी साम्रदायिक हिंसा का संकेत दे रहा है। भाजपा दिल्ली में चुनाव में जाने से पहले सभी मुद्दों को पीछे धकेल साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करना चाहती है क्योंकि उसे मालूम है दिल्ली का मतदाता अभी भी की राज्य सरकार के लिए तैयार है। भाजपा दिल्ली के मतदाता से डरी हुयी है इसलिए वह दिल्ली में चुनाव करवाने से कतरा रही है। सांप्रदायिक राजनीती को इसलिए भी बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि मोदी का बड़बोलापन इसी तरह जारी रहे और लोग बढ़ती महंगाई, बेरोज़गारी, किसानी संकट, गैस और तेल के बढ़ते दाम, सब्जियों की कीमतों के बढ़ते दामों और रिलायंस और अदानी समूह के बढ़ते मुनाफो पर सवाल न उठा पायें। वोट की राजनीती में हमें दिल्ली के साम्प्रदायिक सदभाव को बिगड़ने नही देना है। सिविल सोसाइटी, जन संगठनों और नामी लोगो को आगे आकर मजदूर संगठनों के साथ मिलकर साम्प्रदायिक सदभाव मार्च निकालना चाहिए ताकि साम्प्रदायिक ताकतों को सनद रहे कि दिल्ली हमारी है, शांतिप्रिय लोगों की है, उनकी जागीर नहीं। इसे हम बर्बाद नहीं होने देंगें। 

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख मे व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारो को नहीं दर्शाते ।

 

 

 

दिल्ली
विधानसभा चुनाव
त्रिलोकपुरी
भाजपा
सांप्रदायिक ताकतें
कांग्रेस
नरेन्द्र मोदी

Related Stories

#श्रमिकहड़ताल : शौक नहीं मज़बूरी है..

एमपी गज़ब है!

पेट्रोल और डीज़ल के बढ़ते दामों 10 सितम्बर को भारत बंद

दिल्ली: दिव्यंगो को मिलने वाले बूथों का गोरखधंधा काफी लंम्बे समय से जारी

आपकी चुप्पी बता रहा है कि आपके लिए राष्ट्र का मतलब जमीन का टुकड़ा है

जंतर मंतर - सुप्रीम कोर्ट ने एनजीटी द्वारा धरना-प्रदर्शन पर लगी रोक हटाई

दिल्ली के मज़दूरों की एक दिवसीय हड़ताल

अबकी बार, मॉबलिंचिग की सरकार; कितनी जाँच की दरकार!

क्या भाजपा हेडक्वार्टर की वजह से जलमग्न हो रहा है मिंटो रोड?

दिल्ली का दमकल


बाकी खबरें

  • रवि कौशल
    डीयूः नियमित प्राचार्य न होने की स्थिति में भर्ती पर रोक; स्टाफ, शिक्षकों में नाराज़गी
    24 May 2022
    दिल्ली विश्वविद्यालय के इस फैसले की शिक्षक समूहों ने तीखी आलोचना करते हुए आरोप लगाया है कि इससे विश्वविद्यालय में भर्ती का संकट और गहरा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    पश्चिम बंगालः वेतन वृद्धि की मांग को लेकर चाय बागान के कर्मचारी-श्रमिक तीन दिन करेंगे हड़ताल
    24 May 2022
    उत्तर बंगाल के ब्रू बेल्ट में लगभग 10,000 स्टाफ और सब-स्टाफ हैं। हड़ताल के निर्णय से बागान मालिकों में अफरा तफरी मच गयी है। मांग न मानने पर अनिश्चितकालीन हड़ताल का संकेत दिया है।
  • कलिका मेहता
    खेल जगत की गंभीर समस्या है 'सेक्सटॉर्शन'
    24 May 2022
    एक भ्रष्टाचार रोधी अंतरराष्ट्रीय संस्थान के मुताबिक़, "संगठित खेल की प्रवृत्ति सेक्सटॉर्शन की समस्या को बढ़ावा दे सकती है।" खेल जगत में यौन दुर्व्यवहार के चर्चित मामलों ने दुनिया का ध्यान अपनी तरफ़…
  • आज का कार्टून
    राम मंदिर के बाद, मथुरा-काशी पहुँचा राष्ट्रवादी सिलेबस 
    24 May 2022
    2019 में सुप्रीम कोर्ट ने जब राम मंदिर पर फ़ैसला दिया तो लगा कि देश में अब हिंदू मुस्लिम मामलों में कुछ कमी आएगी। लेकिन राम मंदिर बहस की रेलगाड़ी अब मथुरा और काशी के टूर पर पहुँच गई है।
  • ज़ाहिद खान
    "रक़्स करना है तो फिर पांव की ज़ंजीर न देख..." : मजरूह सुल्तानपुरी पुण्यतिथि विशेष
    24 May 2022
    मजरूह सुल्तानपुरी की शायरी का शुरूआती दौर, आज़ादी के आंदोलन का दौर था। उनकी पुण्यतिथि पर पढ़िये उनके जीवन से जुड़े और शायरी से जुड़ी कुछ अहम बातें।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License