NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
अपराध
घटना-दुर्घटना
समाज
भारत
राजनीति
दिल्ली : नहीं थम रहा पुलिस हिरासत में मौतों का सिलसिला, 12 दिन में तीन मौत
दिल्ली पुलिस की कस्टडी में 12 दिन में शुक्रवार को तीसरी मौत की घटना सामने आई है। नया मामला अवैध शराब की तस्करी में हिरासत में लिए गए युवक गोविंदा यादव की मौत का है।
अमित सिंह
08 Jun 2019
Custodial Death

दिल्ली की नंदनगरी में शराब की तस्करी में गिरफ्तार एक युवक की पुलिस हिरासत में मौत हो गई। मृतक की पहचान 25 वर्षीय गोविंदा के रूप में हुई है। परिवार वालों ने पुलिस पर उसकी पीट-पीटकर हत्या करने का आरोप लगाया है। हालांकि पुलिस अधिकारियों का कहना है कि युवक की अचानक तबीयत खराब हो गई थी। उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। इस मामले में तीन आरोपी पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया और जांच मेट्रोपोलिटन मैजिस्ट्रेट को सौंप दी गई। 

आपको बता दें कि दिल्ली पुलिस की कस्टडी में 12 दिन में शुक्रवार को तीसरी मौत की घटना सामने आई है। इससे पहले भी 27मई और 3 जून को पुलिस हिरासत में मौत हुई थी। 

अमर उजाला के अनुसार, परिवार वालों ने बताया कि गोविंदा को एक्टिंग का शौक था। उसने कई दोस्तों के साथ यू-ट्यूब पर ‘जार्स टीम’ नाम से चैनल बना रखा है, जिसमें कॉमेडी, सामाजिक समस्याएं और भ्रष्टाचार को लेकर वीडियो तैयार किए जाते हैं। गोविंदा ही टीम को लीड करता था। उसके अन्य सहयोगी वीडियो को शूट व एडिट करते थे। उसके चैनल के डेढ़ हजार सब्सक्राइबर्स हैं। परिवार वालों के मुताबिक, गोविंदा देवी जागरण में भी काम करता था। गोविंदा को हीरो बनने का शौक था। परिवार वालों की मानें तो उसपर कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं था। पुलिस ने उसकी पीट-पीटकर हत्या कर दी है।

और भी मामले

इससे पहले पांच जून दिल्ली कैंट थाने में पुलिस हिरासत में एक युवक की मौत हो गई थी। कल्याणपुरी निवासी 25 वर्षीय विपिन मैसी उर्फ सुमित को बुजुर्गों का एटीएम कार्ड लेकर ठगी करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। 

मीडिया में आई खबरों के मुताबिक परिवार वालों का आरोप है कि मौत के कई घंटे बाद भी उन्हें सिर्फ यह बताया गया कि विपिन की हालत खराब है और वह अस्पताल में भर्ती है। अस्पताल पहुंचने के बाद पुलिस ने उन्हें बताया कि विपिन की मौत कई घंटे पहले हो चुकी है।

इसी तरह पिछले महीने 27 मई को दिल्ली के बवाना इलाके में एक शख्स की पुलिस हिरासत में संदिग्ध मौत का मामला सामने आया है। पुलिस ने मृतक की पहचान 55 वर्षीय बलराज सिंह के रूप में की है। पुलिस ने बताया कि बलराज सिंह का लड़का हत्या के एक मामले में फरार चल रहा है, इसी सिलसिले में पुलिस बलराज से पूछताछ करना चाहती थी। इसी लिए उसे थाने बुलाया गया था। 

वहीं, मृतक के परिजनों का आरोप है कि बलराज सिंह की मौत पुलिस द्वारा की गई पिटाई की वजह से हुई है।

इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने दिल्ली पुलिस आयुक्त को चार सप्ताह के भीतर मामले की विस्तृत रिपोर्ट देने के लिए नोटिस जारी किया है। एनएचआरसी ने अपने नोटिस में कहा कि पुलिस प्रमुख से यह भी स्पष्ट करने की उम्मीद की जाती है कि क्यों इस ‘हिरासत में मौत’ के मामले की जानकारी इस विषय पर आयोग के दिशा निर्देशों के बावजूद उसे नहीं दी गई।

बच जाते हैं अपराधी 

दिल्ली पुलिस की हिरासत में मौत के ये चंद मामले ही नहीं है। इसकी सूची काफी लंबी लंबी है। इस साल मार्च में पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) ने ‘कंटिन्युइंग इंप्यूनिटी: डेथ्स इन पुलिस कस्टडी, दिल्ली 2016-2018’ नाम से एक रिपोर्ट जारी की थी। 

इस रिपोर्ट के अनुसार साल 2016-2018 के बीच दिल्ली की पुलिस हिरासतों में 10 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। 

पीयूडीआर के मुताबिक इन 10 मौतों में से 6 मौतों का कारण या तो ‘आत्महत्या’ है या फिर पुलिस हिरासत से भागने की कोशिश के दौरान हुआ ‘हादसा’ बताया गया है। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि हिरासत में हुई मौतों के मामलों में पुलिस के अलावा किसी और चश्मदीद के नहीं होने के कारण न्यायिक तौर पर पुलिस के खिलाफ कोई भी आपराधिक मामला दर्ज करने में एक बड़ी समस्या उत्पन्न होती है। इन मामलों में पुलिस के अतिरिक्त किसी स्वतंत्र गैर-पुलिस गवाह को दर्ज नहीं किया गया है, जिसके चलते न्यायालय में पुलिस पर कोई भी अपराध साबित करना बेहद मुश्किल साबित होता है।

पीयूडीआर का यह भी कहना है कि पुलिस हिरासत में मौतों के शिकार ज़्यादातर लोग सामाजिक व आर्थिक रूप से सबसे शोषित वर्ग से आते हैं। रिपोर्ट में शामिल मामलों में 10 में से 8 व्यक्ति जिनकी मौत पुलिस हिरासत में हुई, कमजोर सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि से थे।

अपनी रिपोर्ट में पीयूडीआर ने यह भी बताया है कि ऐसे मामलों में पुलिस को एक तरह से लगातार दंड मुक्ति प्राप्त है जिस वजह से इतने दशकों से पुलिस हिरासत में मौतें होती रही हैं। हिरासत में प्रताड़ना देने की प्रथा गैर कानूनी और गैर संवैधानिक है, पर नियमित रूप से जारी है।  

पीयूडीआर के अनुसार, पुलिस हिरासत में मौतों के मामलों में आपराधिक मामला दर्ज होने की संख्या न के बराबर है। बल्कि पूरा पुलिस महाकमा, पुलिस कमिश्नर से लेकर थाने में दोषी पुलिस कर्मियों के सहकर्मी, हिरासत में मौतों की बात को दबाने और मौतों की जवाबदेही से बचने के सभी तरीके और कारण अख़्तियार करते हुए दिखाई पड़ते हैं।

देश के स्तर पर आंकड़ा भयावह

वहीं, अगर हम पूरे देश के स्तर पर बात करें तो यह आंकड़ा और भी भयावह नजर आता है। पिछले साल जून में जारी एशियन सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स (एसीएचआर) की रिपोर्ट के मुताबिक 1 अप्रैल 2017 से लेकर 28 फरवरी 2018 के बीच में हिरासत में1,674 लोगों की मौत हुई। इसमें से न्यायिक हिरासत में 1,530 और पुलिस हिरासत में 144 लोगों की मौत हुई। यानी इस समय काल के दौरान भारत में हर दिन पांच लोगों की मौत हिरासत में हुई थी।

custodial death
custodial death in india
custodial death in dellhi
pudr report on custodial death
dalbeer singh incident in custodial death
delhi govt
AAP
AAP Govt
Arvind Kejriwal
BJP
Modi Govt

Related Stories

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

रुड़की से ग्राउंड रिपोर्ट : डाडा जलालपुर में अभी भी तनाव, कई मुस्लिम परिवारों ने किया पलायन

हिमाचल प्रदेश के ऊना में 'धर्म संसद', यति नरसिंहानंद सहित हरिद्वार धर्म संसद के मुख्य आरोपी शामिल 

ग़ाज़ीपुर; मस्जिद पर भगवा झंडा लहराने का मामला: एक नाबालिग गिरफ़्तार, मुस्लिम समाज में डर

लखीमपुर हिंसा:आशीष मिश्रा की जमानत रद्द करने के लिए एसआईटी की रिपोर्ट पर न्यायालय ने उप्र सरकार से मांगा जवाब

टीएमसी नेताओं ने माना कि रामपुरहाट की घटना ने पार्टी को दाग़दार बना दिया है

चुनाव के रंग: कहीं विधायक ने दी धमकी तो कहीं लगाई उठक-बैठक, कई जगह मतदान का बहिष्कार

कौन हैं ओवैसी पर गोली चलाने वाले दोनों युवक?, भाजपा के कई नेताओं संग तस्वीर वायरल

दिल्ली गैंगरेप: निर्भया कांड के 9 साल बाद भी नहीं बदली राजधानी में महिला सुरक्षा की तस्वीर


बाकी खबरें

  • शारिब अहमद खान
    ईरानी नागरिक एक बार फिर सड़कों पर, आम ज़रूरत की वस्तुओं के दामों में अचानक 300% की वृद्धि
    28 May 2022
    ईरान एक बार फिर से आंदोलन की राह पर है, इस बार वजह सरकार द्वारा आम ज़रूरत की चीजों पर मिलने वाली सब्सिडी का खात्मा है। सब्सिडी खत्म होने के कारण रातों-रात कई वस्तुओं के दामों मे 300% से भी अधिक की…
  • डॉ. राजू पाण्डेय
    विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक
    28 May 2022
    हिंसा का अंत नहीं होता। घात-प्रतिघात, आक्रमण-प्रत्याक्रमण, अत्याचार-प्रतिशोध - यह सारे शब्द युग्म हिंसा को अंतहीन बना देते हैं। यह नाभिकीय विखंडन की चेन रिएक्शन की तरह होती है। सर्वनाश ही इसका अंत है।
  • सत्यम् तिवारी
    अजमेर : ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह के मायने और उन्हें बदनाम करने की साज़िश
    27 May 2022
    दरगाह अजमेर शरीफ़ के नीचे मंदिर होने के दावे पर सलमान चिश्ती कहते हैं, "यह कोई भूल से उठाया क़दम नहीं है बल्कि एक साज़िश है जिससे कोई मसला बने और देश को नुकसान हो। दरगाह अजमेर शरीफ़ 'लिविंग हिस्ट्री' है…
  • अजय सिंह
    यासीन मलिक को उम्रक़ैद : कश्मीरियों का अलगाव और बढ़ेगा
    27 May 2022
    यासीन मलिक ऐसे कश्मीरी नेता हैं, जिनसे भारत के दो भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह मिलते रहे हैं और कश्मीर के मसले पर विचार-विमर्श करते रहे हैं। सवाल है, अगर यासीन मलिक इतने ही…
  • रवि शंकर दुबे
    प. बंगाल : अब राज्यपाल नहीं मुख्यमंत्री होंगे विश्वविद्यालयों के कुलपति
    27 May 2022
    प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बड़ा फ़ैसला लेते हुए राज्यपाल की शक्तियों को कम किया है। उन्होंने ऐलान किया कि अब विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री संभालेगा कुलपति पद का कार्यभार।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License