NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
दिल्ली सरकार को राज्य में सिर्फ 32 मैला ढ़ोने वाले मिले
दिल्ली के समाज कल्याण मंत्री राजेंद्र पाल गौतम ने यह माना है कि इस सर्वे ने शायद समस्या को ठीक से नहीं दर्शाया है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
14 Aug 2018
manual scavenger

लम्बे समय तक देश की राजधानी में मैला ढ़ोने की प्रथा के न होने की बात करने वाली आम आदमी पार्टी की सरकार ने आखिरकार सोमवार को मैला ढ़ोने वालों की एक सूची निकाली। लेकिन इस सूची में यह बताया गया कि राजधानी में ये काम करने वाले केवल 32 लोग हैं। 
इस सूची से पता चलता है कि इस प्रथा का राजधानी में न होने का नगर निकाय का दावा गलत है। इस सर्वे को करने का निर्णय साल की शुरूआत में लिया गया , जब रिपोर्टों से पता चला कि राजधानी में पिछले 7 सालों में 31 मज़दूरों की मौतें हुई हैं। लेकिन इस सर्वे को एक बहुत प्रभावी कदम की तरह नहीं देखा जा सकता क्योंकि आँकड़ों में मज़दूरों की संख्या को कम करके दिखाया गया है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के 2015 के आँकड़े भी बताते हैं किमैला ढ़ोने के काम में किसी की मौत नहीं हुई। इसके साथ ही सरकारी रिकॉर्ड भी किसी ठेकेदार के ज़रिये गटर साफ़ करने वाले मज़दूरों का कोई आँकड़ा नहीं पेश करते। 
 
इस साल जनवरी में स्वच्छ भारत मिशन के तहत केंद्र सरकार ने मैला ढ़ोने वालों पर एक राष्ट्रीय सर्वे शुरू किया। इसके पहले चरण में पाँच राज्यों के 164 ज़िलों के उन लोगों की गणना की जानी थी जो बाल्टियों या गड्ढ़ों को साफ़ करते हैं जिनमें रात- रात भर मैला इकट्ठा होता हैं है और जो सूखे शौचालय साफ़ करते हैं। 31 जुलाई को  सामाजिक न्याय और अधिकारिकता मंत्रालय ने लोक सभा में बताया कि उन्होंने 30 जून 2018 तक 13 राज्यों में यह काम करने वाले 13,657 लोगों की पहचान की। लेकिन दिल्ली को इस सूची में शामिल नहीं किया गया। 
 
आम आदमी पार्टी के हाल में किये गए सर्वे में दिल्ली के राजस्व ज़िलों में 11 ज़िला मजिस्ट्रेटों से जानकारी ली गयी। पूर्वी,उत्तर-पूर्वी दिल्ली और दूसरे ज़िलों ने अपने इलाकों में किसी भी मैला ढ़ोने वाले के होने से इंकार किया। लेकिन हमें यह समझना होगा कि इस सर्वे के तरीकों में कई खामियाँ थीं, जिस वजह से इस तरह के परिणाम सामने आये। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए सफाई कर्मचारी आंदोलन के बेज़वाडा विल्सन ने समझाया "कई सालों तक सरकार ने मैला ढ़ोने वालों को मज़दूर मानने से भी इनकार किया और अब जब माना गया तो सर्वे के परिणाम बेहद निराशा जनक हैं और यथार्थ से काफी दूर हैं। "
 

जब सरकार गिनती करती है तोज़िला कलेक्टरों को एक कैंप लगाना होता है जहाँ मैला ढ़ोने वालों को खुद को पंजीकृत कराना करवाना होता है। यह बहुत बार देखा गया है कि ज़िला कलेक्टर अपने गाँवों का रिकॉर्ड बेहतर दिखाने के लिए मैला ढ़ोने वालों के होने से इंकार करते हैं। बहुत बार जब बड़े ज़िलों में कैंप होते हैं तो यह मज़दूर वहाँ तक पहुँच नहीं पाते क्योंकि उनके पास वहाँ तक जाने के लिए पैसा नहीं होता। इसमें लिंग के एक बड़े मुद्दे को नज़र अंदाज़ कर दिया जाता है।  कई रिपोर्टों ने बताया है कि इस काम को करने वालों में 90 %महिलाएँ हैं। इस काम के जातिवादी और लैंगिक स्वरुप के चलते महिलाओं को ठेकेदारों और इस काम को करने वाले मर्दों का शोषण झेलना पड़ता है। कई बार यह महिलाएँ पंजीकरण कैम्पों तक नहीं पहुँच  पातीं। अकसर सर्वे करने वाले बाहर से आते हैं और ज़मीनी हकीकत को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। विल्सन ने कहा "इस काम को बहुत ख़राब माना जाता है यह भी एक वजह है कि लोग इन कैम्पों में नहीं जाते। कोई और विकल्प न होने की वजह से उन्हें यह डर रहता है कि कहीं अपनी रोज़ी रोटी न छोड़नी पड़े।"
 
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के समाज कल्याण मंत्री राजेंद्र पाल गौतम ने यह माना है कि इस सर्वे ने शायद समस्या को ठीक से नहीं दर्शाया है। लेकिन इन मुद्दे को ढंग से समझने के लिए सरकार को आँकड़ों से परे इसे स्वास्थ्य और साफ़-सफाई की समस्या की तरह नहीं बल्कि सामाजिक बहिष्कार के रूप में देखना चाहिए। इस मुद्दे पर बात करते हुए दिल्ली विश्विद्यालय के एन सुकुमार ने कहा "भारत तभी सही मायनों में साफ़ होगा जब भारत का प्रधान मंत्री खुद का शौचालय साफ़ करेगा। मुद्दा यह है कि हम चाहते हैं कि कोई और हमारी गन्दगी साफ़ करे क्योंकि हमें पता है कि कोई न कोई यह काम करेगा। "
 
जातिवाद में मैला ढ़ोने वाली इस प्रथा की जड़ें पायी जाती हैं। 1993 में इस पर पाबन्दी लगा दी गयी थी लेकिन मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम में जाकर लागू किया गया । 
 

manual scavenger
Delhi
delhi govt
Swachchh Bharat Abhiyan

Related Stories

मुंडका अग्निकांड: 'दोषी मालिक, अधिकारियों को सजा दो'

मुंडका अग्निकांड: ट्रेड यूनियनों का दिल्ली में प्रदर्शन, CM केजरीवाल से की मुआवज़ा बढ़ाने की मांग

धनशोधन क़ानून के तहत ईडी ने दिल्ली के मंत्री सत्येंद्र जैन को गिरफ़्तार किया

दलितों पर बढ़ते अत्याचार, मोदी सरकार का न्यू नॉर्मल!

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा

सीवर कर्मचारियों के जीवन में सुधार के लिए ज़रूरी है ठेकेदारी प्रथा का ख़ात्मा

मुंडका अग्निकांड के लिए क्या भाजपा और आप दोनों ज़िम्मेदार नहीं?

मुंडका अग्निकांड: लापता लोगों के परिजन अनिश्चतता से व्याकुल, अपनों की तलाश में भटक रहे हैं दर-बदर

मुंडका अग्निकांड : 27 लोगों की मौत, लेकिन सवाल यही इसका ज़िम्मेदार कौन?

दिल्ली : फ़िलिस्तीनी पत्रकार शिरीन की हत्या के ख़िलाफ़ ऑल इंडिया पीस एंड सॉलिडेरिटी ऑर्गेनाइज़ेशन का प्रदर्शन


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड: सरकारी लापरवाही का आरोप लगाते हुए ट्रेड यूनियनों ने डिप्टी सीएम सिसोदिया के इस्तीफे की मांग उठाई
    17 May 2022
    मुण्डका की फैक्ट्री में आगजनी में असमय मौत का शिकार बने अनेकों श्रमिकों के जिम्मेदार दिल्ली के श्रम मंत्री मनीष सिसोदिया के आवास पर उनके इस्तीफ़े की माँग के साथ आज सुबह दिल्ली के ट्रैड यूनियन संगठनों…
  • रवि शंकर दुबे
    बढ़ती नफ़रत के बीच भाईचारे का स्तंभ 'लखनऊ का बड़ा मंगल'
    17 May 2022
    आज की तारीख़ में जब पूरा देश सांप्रादायिक हिंसा की आग में जल रहा है तो हर साल मनाया जाने वाला बड़ा मंगल लखनऊ की एक अलग ही छवि पेश करता है, जिसका अंदाज़ा आप इस पर्व के इतिहास को जानकर लगा सकते हैं।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    यूपी : 10 लाख मनरेगा श्रमिकों को तीन-चार महीने से नहीं मिली मज़दूरी!
    17 May 2022
    यूपी में मनरेगा में सौ दिन काम करने के बाद भी श्रमिकों को तीन-चार महीने से मज़दूरी नहीं मिली है जिससे उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • सोन्या एंजेलिका डेन
    माहवारी अवकाश : वरदान या अभिशाप?
    17 May 2022
    स्पेन पहला यूरोपीय देश बन सकता है जो गंभीर माहवारी से निपटने के लिए विशेष अवकाश की घोषणा कर सकता है। जिन जगहों पर पहले ही इस तरह की छुट्टियां दी जा रही हैं, वहां महिलाओं का कहना है कि इनसे मदद मिलती…
  • अनिल अंशुमन
    झारखंड: बोर्ड एग्जाम की 70 कॉपी प्रतिदिन चेक करने का आदेश, अध्यापकों ने किया विरोध
    17 May 2022
    कॉपी जांच कर रहे शिक्षकों व उनके संगठनों ने, जैक के इस नए फ़रमान को तुगलकी फ़ैसला करार देकर इसके खिलाफ़ पूरे राज्य में विरोध का मोर्चा खोल रखा है। 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License