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दिल्लीः स्थायी पद की मांग को लेकर तीनों निगमों के डीबीसी कर्मचारियों का हड़ताल
कड़ाके की ठंड के बावजूद ये कर्मचारी 6 जनवरी से लगातार रात-दिन दिल्ली के एमसीडी हेड ऑफिस यानी सिविक सेंटर पर धरने पर डटे हुए हैं। कर्मचारियों का कहना है कि जब तक निगम मांग को नहीं मान लेता है तब तक तीनों निगमों में हड़ताल जारी रहेगी।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
11 Jan 2020
bdc

दिल्ली में डेंगू और चिकनगुनिया से निपटने के लिए केजरीवाल सरकार ने दस हफ्ते, दस बजे, दस मिनट का अभियान चलाया था। इसके तहत खुद मुख्यमंत्री अपने मंत्रियों और सरकारी अधिकारियों के साथ मच्छरों को पनपने से रोकने के लिए काम कर रहे हैं। जिसमें लोग जांच कर रहे है कि उनके घर के आसपास कहीं डेंगू का मच्छर तो नहीं पनप रहा। कैंपेन की शुरुआत में सीएम अरविंद केजरीवाल ने 2015 से 2019 तक के डेंगू और चिकनगुनिया के आंकड़े पेश किए। सीएम केजरीवाल ने दावा किया कि मात्र चार साल में दिल्ली में डेंगू और चिकनगुनिया का प्रकोप 80 फीसदी तक कम हुआ। आंकड़ों के मुताबिक 2015 में 15,867 मामले थे और 60 मौतें हुई जबकि 2018 में 2,798 मामले सामने आए वहीं 4 लोगों की मौत हुई।

लेकिन एक सवाल उठता है क्या यह सिर्फ मुख्यमंत्री के दस मिनट और दस हफ़्ते के कैंपन से कम हुआ है? इसका ज़वाब नहीं में होगा क्योंकि पूरी दिल्ली में लगभग 35,000 ऐसे कर्मचारी हैं जो पूरे साल घर-घर जाकर चेक करते हैं कि कहीं कोई मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया जैसे बीमारियों का श्रोत तो नहीं है। इसके साथ ही इनके श्रोतों को समाप्त भी करते हैं। लेकिन आज वो अपने मूलभूत अधिकार और अपने कर्मचारी होने के अस्तित्व के लिए कई दिनों से सड़कों पर संघर्ष कर रहे है। सीआईटीयू के बैनर तले इन कर्मचारियों ने हड़ताल किया है। एंटी मलेरिया एकता कर्मचारी संघ 24 सालों से काम कर रहे हैं। 3500 डोमेस्टिक ब्रीडिंग चेकर्स (डीबीसी) हड़ताल पर हैं। ये कर्मचारी अपनी नौकरी को पक्का किए जाने और तब तक समान काम के लिए समान वेतन इत्यादि की मांग कर रहे हैं। इतनी ठंड के बावजूद ये कर्मचारी 6 जनवरी से लगातार रात-दिन दिल्ली के एमसीडी हेड ऑफिस यानी सिविक सेंटर पर धरने पर डटे हुए हैं। कर्मचारियों का कहना है कि जब तक निगम मांग को नहीं मान लेता है तब तक तीनों निगमों में हड़ताल जारी रहेगी।
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लगभग 3500 से अधिक कर्मचारी पिछले लगभग 24 सालों से दिल्ली के तीनों नगर निगम में अनुबंध के आधार पर काम कर रहे हैं। राजधानी में डेंगू और अन्य ऐसी महामारी की जांच में महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद इनकी मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। इससे पहले भी ये कर्मचारी हड़ताल और प्रदर्शन कर चुके हैं। इस दौरान सरकार ने लिखित में वादा किया था लेकिन बाद में वो उससे मुकर गई।

इन कर्मचारियों की मुख्य मांगें -


• 16-09-2019 को कर्मचारी और निगम के बीच हुए समझौते को लागू करना।
• डीबीसीएस की सेवाओं को तुरंत नियमित करना।
• फील्ड वर्क कर रहे स्थायी कर्मचारियों की तरह समान काम समान वेतन लागू करना ।
• डीबीसी कर्मचारियों के परिवार के सदस्यों को नौकरी जो एमसीडी में सेवा करते समय मारे गए हैं।
• बोनस अधिनियम के अनुसार बोनस का भुगतान करने की मांग।


 

एंटी मलेरिया एकता कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष देवानंद शर्मा ने कहा कि डीबीसी कर्मचारियों की सबसे बड़ी समस्या यह है की ये कर्मचारी लगभग24 साल से काम कर रहे हैं लेकिन उनका कोई पोस्ट (पद) नहीं है। उन्होंने बतया कि पहले उन लोगो की भर्ती फील्ड वर्क के लिए हुई थी बाद में उन्हें हेल्थ विभाग के कर्मचारी के तौर पर काम कराया गया। इसके बाद उन्हें बीडीसी का नाम दिया गया लेकिन कोई पद नहीं दिया गया है।


इसको लेकर तीनों निगम ने हमें वादा किया था कि दिसंबर तक पद दे दिया जाएगा लेकिन अभी तक ऐसा नहीं किया गया है। इसको लेकर कई बार बैठक हुई है लेकिन कोई हल नहीं निकल पाया है मज़बूरन हमें हड़ताल पर जाना पड़ा है।


डीबीसी कर्मचारी संजय कुमार 24 साल से इसी विभाग में काम कर रहे है। उन्होंने बताया पद न होने से एक कर्मचारी के तौर पर कई तरह की समस्या होती है। आप किसी भी विभाग में कार्य करते हैं तो आपकी एक पोस्ट होती है, आप फील्ड वर्कर हैं या क्लर्क हैं या और कुछ लेकिन हमारे साथ ऐसा नहीं है। किसी विभाग में स्थायी नौकरी के लिए दावा नहीं कर सकते क्योंकि आपका कोई पद नहीं है।


पूर्वी दिल्ली के कर्मचारी आर.पी. सिंह ने कहा कि हम आज एमसीडी से कह रहे है की वो हमें एक बेलदार की पोस्ट पर ही नौकरी दे लेकिन हमें पद तो दें। इसके अलावा एमसीडी कहती है कि हम उसके कर्मचारी नहीं है जबकि हम सारे काम करते हैं, अपने काम के अलावा भी हमसे अन्य काम लिया जाता है जैसे अवैध होर्डिंग हटाना, हाउस टैक्स वसूलना आदि। इसके बाबजूद हमें कोई पद नहीं दिया गया है। इसके साथ ही हमें हमारे कर्मचारी होने के मौलिक अधिकार भी नहीं है।


इसके साथ ही कर्मचारियों ने बतया कि न उन्हें समाजिक सुरक्षा है और न किसी प्रकार की आर्थिक सुरक्षा हैं। लंबे संघर्ष के बाद एमसीडी ने उन्हें पीएफ और ईएसआई दिया है लेकिन उसमें सरकार अपना योगदन ठीक से नहीं दे रही है जिसके कारण कर्मचारी आज भी इनके लाभ से वंचित हैं। इसके साथ ही इनका काम बहुत ही जोख़िम भरा है। ये बिना किसी सुरक्षा इंतज़ाम के कई मंजिला इमारतों पर चढ़कर टंकियों की जांच करते है जिनमें कई कर्मचारियों की मौत भी हो जाती है लेकिन इसके बाद उनके परिवार को किसी प्रकार का आर्थिक लाभ नहीं दिया जाता है। यूनियन के नेताओं ये बताया कि अभी दक्षिणी एमसीडी में इस तरह की कई घटनाएं हुई हैं जिनकी मौत काम के दौरान हुई है और अब उनकी विधवाएं उनके स्थान पर नौकरी की मांग को लेकर संघर्ष कर रही हैं।

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