NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कोविड-19
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
महामारी का दर्द: साल 2020 में दिहाड़ी मज़दूरों ने  की सबसे ज़्यादा आत्महत्या
एनसीआरबी के आँकड़ों के मुताबिक़ पिछले साल भारत में तकरीबन 1 लाख 53 हज़ार लोगों ने आत्महत्या की, जिसमें से सबसे ज़्यादा तकरीबन 37 हज़ार दिहाड़ी मजदूर थे।
सोनिया यादव
30 Oct 2021
migrant
'प्रतीकात्मक फ़ोटो' साभार: सोशल मीडिया

24 मार्च 2020 को जब शाम आठ बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रात 12 बजे से संपूर्ण देश में संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की तो उन्होंने देश की आबादी के उस वर्ग के बारे में कुछ भी नहीं कहा जो बहुमंज़िली इमारतों के निर्माण कंस्ट्रक्शन मज़दूर के तौर पर काम करता है और झुग्गियों या फुटपाथ पर चटाई बिछाकर सो जाता है। अगले 21 दिन तक समाज का ये वर्ग अपना गुजर-बसर कैसे करेगा, इस बारे में सोचना शायद उस वक़्त पीएम मोदी को कोरोना महामारी को फैलने से रोकने की चिंता से ज़्यादा ज़रूरी नहीं लगा होगा। अमूमन ट्विटर पर काफ़ी सक्रिय रहने वाले पीएम मोदी तब इस मसले पर ख़ामोश ही दिखे कि उनकी सरकार प्रवासी मजदूरों के लिए क्या इंतज़ाम कर रही है।

यही नहीं, 24 मार्च से लेकर 29 मार्च तक जब देश के हर टीवी चैनल से लेकर सोशल मीडिया पर प्रवासी मजदूरों के पलायन का मुद्दा छाया हुआ था तब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल्स @NarendraModi और @PMOIndia की ओर से एक इस मुद्दे पर एक भी ट्वीट नहीं किया। हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन पाँच दिनों में पीएम केयर्स फंड में दान दे रही हस्तियों का धन्यवाद ज़रूर किया।

सरकार के पास प्रवासी मज़दूरों की मौत का कोई आंकड़ा नहीं

सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात ये रही कि जब केंद्र सरकार से संसद में कोरोनावायरस लॉकडाउन के दौरान अपने परिवारों तक पहुंचने की कोशिश में जान गंवाने वाले प्रवासी मजदूरों की मौत और उनके परिवारों को मिलने वाले मुआवजे पर सवाल किया गया तो इसपर केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने अपने लिखित जवाब में बताया कि 'ऐसा कोई आंकड़ा मेंटेन नहीं किया गया है। ऐसे में इसपर कोई सवाल नहीं उठता है।'

वैसे सोशल मीडिया और न्यूज़ चैनलोंं पर सड़क किनारे भूखे-प्यासे चल रहे मज़दूरों और उनके परिवारों की दर्दनाक तस्वीरें शायद ही कोई भूला हो। कइयों ने घर पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दिया, तो कई घर तक पहुंचने में जैसे-तैसे सफल तो रहे लेकिन उसके बाद बच नहीं पाए। मजदूरों ने बीमारी के साथ-साथ भुखमरी की दोहरी मार झेली थी। अब नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो ने भी इस त्रासदी पर अपनी मोहर लगा दी है। एनसीआरबी की ओर से साल 2020 की 'एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड' रिपोर्ट आई है, जिससे पता चलता है कि साल 2020 में आत्महत्या सबसे ज़्यादा दिहाड़ी मजदूरों ने की है।

लॉकडाउन के बाद मज़दूरों का पलायन

एनसीआरबी के आँकड़ों के मुताबिक़ पिछले साल भारत में तकरीबन 1 लाख 53 हज़ार लोगों ने आत्महत्या की, जिसमें से सबसे ज़्यादा तकरीबन 37 हज़ार दिहाड़ी मजदूर थे। जान लेने वालों में सबसे ज़्यादा तमिलनाडु के मज़दूर थे। फिर मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना और गुजरात के मजदूरों की संख्या है। हालांकि इस रिपोर्ट में मजदूरों की आत्महत्या के पीछे कोरोना महामारी को वजह नहीं बताया गया है, लेकिन देश में लगे पूर्ण लॉकडाउन के बाद मजदूरों के पलायन की तस्वीरें सबने देखी थी, उनका संघर्ष सबके जहन में है।

इस दौरान कुछ कदम केंद्र सरकार और राज्यों की ओर से उठाए गए लेकिन मजदूरों के दुख, परेशानी और भुखमरी के आगे वो कोशिशें नाकाफ़ी थीं। भारत में 2017 के बाद से साल दर साल आत्महत्या के मामलों में इज़ाफ़ा देखने को मिल रहा है। 2019 के मुकाबले 2020 में 10 फ़ीसदी मामले ज़्यादा सामने आए हैं। 2020 में देश में 1,53,052 लोगों ने आत्महत्या की। इसी के साथ आत्महत्या की दर यानी हर एक लाख लोगों पर आत्महत्या करने वालों की संख्या 8.7 प्रतिशत बढ़ गई है।

कहां हुई ज्यादा आत्महत्या

एनसीआरबी के मुताबिक सबसे ज्यादा आत्महत्या महाराष्ट्र में हुईं, उसके बाद तमिलनाडु में फिर मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में देखी गईं। पूरे देश में होने वाली कुल आत्महत्याओं में से 50 प्रतिशत सिर्फ इन्हीं पांच राज्यों में हुई हैं।

  • महाराष्ट्र - 19,909
  • तमिलनाडु - 16,883
  • मध्य प्रदेश – 14,578
  • पश्चिम बंगाल – 13,103
  • कर्नाटक - 12,259

लैंगिक अनुपात

2020 में कुल आत्महत्याओं में पुरुषों और महिलाओं का अनुपात 70.9: 29.1 था, जो 2019 में इससे कम (70.2: 29.8) था। महिला पीड़ितों का अनुपात 'शादी से संबंधित समस्याओं' (विशेष रूप से दहेज से जुड़ी समस्याओं) और शक्तिहीनता/जनन अक्षमता के मामलों में ज्यादा था।

कुल महिला पीड़ितों (44,498) में से 50.3 प्रतिशत (22,372) गृहणियां पाई गईं। इनकी संख्या कुल पीड़ितों में 14.6 प्रतिशत के आस पास पाई गई। इनमें से 5,559 पीड़ित छात्राएं थीं और 4,493 दिहाड़ी मजदूर थीं। इसके अलावा कुल 22 ट्रांसजेंडरों ने आत्महत्या की।

युवाओं में ज़्यादा मामले

आत्महत्या के मामले स्कूली छात्रों के मामले भी ज़्यादा देखने को मिले हैं। कोरोना महामारी के दौरान स्कूल कॉलेज भारत में बंद थे. स्कूलों ने ऑनलाइन शिक्षा की व्यवस्था तो की थी, लेकिन लैपटॉप, स्मार्टफोन और इंटरनेट की व्यवस्था ना होने के कारण कई छात्र स्कूलों से बाहर होने को मजबूर हो गए थे। आत्महत्या के ताज़ा आँकड़ों से पता चलता है कि परीक्षा में फे़ल होने की वजह से भी कई छात्रों ने अपनी जान ले ली। सबसे ज्यादा मामले 18 से 30 साल की उम्र (34.4 प्रतिशत) और 30 से 45 साल की उम्र (31.4 प्रतिशत) के लोगों में पाए गए। 18 साल से कम उम्र के बच्चों में भी आत्महत्या के मामले पाए गए। इनमें सबसे ज्यादा यानी 4,006 मामलों का कारण पारिवारिक समस्याएं, 1,337 मामलों का कारण प्रेम संबंध और 1,327 मामलों का कारण बीमारी पाया गया।

किसानों की आत्महत्या

आँकड़ों में किसानों की आत्महत्या का भी जिक्र है, जिसमें महाराष्ट्र सबसे आगे है। कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों में कुल10,677 मामले पाए गए। इनमें 5,579 मामले किसानों के और 5,098 मामले कृषि मजदूरों के थे। यह संख्या देश में कुल आत्महत्याओं के सात प्रतिशत के बराबर है। आत्महत्या करने वाले किसानों में 5,335 पुरुष थे और 244 महिलाएं। कृषि मजदूरों की श्रेणी में 4,621 पुरुष थे और 477 महिलाएं।

नए कृषि क़ानून के विरोध में देश के कुछ हिस्सों में पिछले 11 महीने से किसान आंदोलन कर रहे हैं। उनके मुताबिक नए कानून किसान विरोधी हैं और उससे उनका काफ़ी नुक़सान होगा। केंद्र सरकार से 11 दौर की बातचीत बेनतीजा रही है। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा, कमेटी का गठन भी हुआ और उनकी रिपोर्ट भी आई। लेकिन अभी रिपोर्ट पर सुनवाई बाक़ी है। हालांकि रिपोर्ट में उस आंदोलन से किसानों की आत्महत्याओं को नहीं जोड़ा गया है।

महामारी ने ग़रीब को और ग़रीब कर दिया

गौरतलब है कि एनसीआरबी की रिपोर्ट देश में चल रही उथल-पुथल को कुछ हद साफ करती है लेकिन इन आंकड़ों से इतक सैकड़ों, हजारों की संख्या में ऐसे मामले भी हैं, जो रिपोर्ट ही नहीं होते। एनसीआरबी के मुताबिक आत्महत्या करने वालों में 63.3 प्रतिशत (96,810) लोगों की सालाना आय एक लाख रुपए से कम और 32.2 प्रतिशत (49,270) लोगों की सालाना आय एक लाख से पांच लाख रुपयों के बीच थी। कोरोना के दौरान लोगों के रोज़गार छीन गए, कई लोग बेघर हो गए तो कईयों के कमाने वाले हाथ ही नहीं रहे। लोगों ने स्वास्थ्य व्यवस्था की जर्जर हालत देखी, गिरती अर्थव्यवस्था हाल देखा और तो और सरकार के राहत के दावे और वादे सुने लेकिन कहीं उन्हें सुकून नहीं मिला। जाहिर है सरकार कितनी ज़ोर से भी 'सब चंगा है' का दावा कर ले लेकिन देश के भीतर वाकई सब चंगा है या नहीं ये तो इन आंकड़ों से साफ हो ही जाता है।

Workers
farmers
daily-wage labourers
NCRB
Maharashtra
Modi
PMO
Lockdown
Coronavirus

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा

कोरोना अपडेट: देश में आज फिर कोरोना के मामलों में क़रीब 27 फीसदी की बढ़ोतरी

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के घटते मामलों के बीच बढ़ रहा ओमिक्रॉन के सब स्ट्रेन BA.4, BA.5 का ख़तरा 

कोरोना अपडेट: देश में ओमिक्रॉन वैरिएंट के सब स्ट्रेन BA.4 और BA.5 का एक-एक मामला सामने आया

कोरोना अपडेट: देश में फिर से हो रही कोरोना के मामले बढ़ोतरी 

कोविड-19 महामारी स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में दुनिया का नज़रिया नहीं बदल पाई

कोरोना अपडेट: अभी नहीं चौथी लहर की संभावना, फिर भी सावधानी बरतने की ज़रूरत

कोरोना अपडेट: दुनियाभर के कई देशों में अब भी क़हर बरपा रहा कोरोना 

कोरोना अपडेट: देश में एक्टिव मामलों की संख्या 20 हज़ार के क़रीब पहुंची 


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License