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भारत
राजनीति
दुष्प्रचार के आक़ाओं से एक मुलाक़ात
8 मई को रामलीला मैदान दिल्ली में पीएम मोदी की रैली के दौरान, न्यूज़क्लिक के दो संवाददाताओं के साथ बीजेपी के गुंडों ने हाथापाई की। ये है उस हिंसक घटना का एक दस्तावेज़।
रवि कौशल
09 May 2019
दुष्प्रचार के आक़ाओं से एक मुलाक़ात
सांकेतिक तस्वीर। सौजन्य: iDiva

लोकतंत्र अंधकार में मर जाता है। वॉशिंगटन पोस्ट की टैगलाइन लोकतंत्र की विभिन्न संस्थाओं के कामकाज के बारे में बहुत कुछ बताती है। लेकिन अगर मैं  कहूँ कि यह लोकतंत्र झूठी ख़बरों से मर जाता है तो क्या करेंगे आप? क्या होगा अगर मैं आपको बताता हूँ कि सत्तारूढ़ दल केवल अपने संस्करण को प्रसारित करने और लिखने की अनुमति देने में अधिक रुचि रखते हैं? और अगर आप इन दबावों के आगे नहीं झुकेंगे तो क्या होगा? तब एक भीड़ आपके पास केवल यह सुनिश्चित करने के लिए आती है कि उनकी विफ़लता छिपी रहे, उनका प्रोपेगेंडा ज़ाहिर ना हो।  

न्यूज़क्लिक की टीम (संवाददाता रवि कौशल और मुकुंद झा) जब दिल्ली के रामलीला मैदान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैली में पहुँची तो उन्होंने भी यही देखा और महसूस किया। हमारी टीम को कार्यक्रम स्थल में प्रवेश करने से मना कर दिया गया क्योंकि हमारे पास भारतीय जनता पार्टी के आधिकारिक अधिकारियों द्वारा जारी किया गया मीडिया पास नहीं था। हाँ! काफ़ी उचित है। तब हमने सामान्य प्रवेश द्वार से जाने का फ़ैसला किया। पहले हमने देखा कि रामलीला मैदान लगभग आधा ख़ाली था। हमने लोगों से मुद्दों पर बातचीत करना शुरू किया, जिसमें उनके निर्वाचन क्षेत्र में आने वाली समस्याओं, उनके सांसदों द्वारा निष्पादित कार्य आदि शामिल थे।  

कई लोगों को तो ये भी नहीं पता था कि उनका सांसद कौन है। जब मुकुंद ने एक व्यक्ति से उनके क्षेत्र के सांसद उदित राज, जो कि अब कांग्रेस में शामिल हो गए हैं, के तीन जनता के हित में किये गए कार्यो पर सवाल किया तो उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया कि उन्हें नहीं पता। रैली में आई एक महिला ने हमें बताया कि किस तरह नोटबंदी ने उसे ग़रीब बना दिया क्योंकि उसके गहने चोरी हो गए जब वह पैसे का आदान-प्रदान करने के लिए कतार में खड़ी थी। उन्होंने यह भी बताया कि वह पिछले चार साल से अपने विकलांग युवा बच्चे के लिए शॉपिंग बूथ लेने की कोशिश कर रही है, लेकिन उसका भी कुछ नहीं हुआ है। अचानक, एक व्यक्ति हमारे पास यह जाँचने के लिए आया कि हम कौन हैं। हमने अपना पहचान पत्र दिखाया और वह चला गया। 

फिर, हम एमसीडी के सफ़ाई मज़दूर विकास परिषद के संस्थापक तेजपाल पिहाल से मिले, जिन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फिर से चुने जाएँ लेकिन एक गठबंधन सरकार के साथ। जब हमने इसके बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा कि उनका समुदाय (वाल्मीकि जो नागरिक अधिकारियों द्वारा स्वच्छता कार्यकर्ता के रूप में लगे हुए हैं) को पिछले पाँच वर्षों में पूरी तरह से नज़रअंदाज़ किया गया है। उन्होंने कहा कि स्वच्छता कर्मचारी नालियों में मर रहे हैं और सरकार ने उनकी स्थिति में सुधार के लिए कुछ नहीं किया है। मुझे याद आता है कि उसने कहा, “मोदी जी, आप सफ़ाई कर्मचारियों के पैर धोते हो, कभी उनसे ये भी तो पूछिए उन्हें कितना वेतन मिलता है, उनके क्या हालात हैं!" 
वहाँ के लोगों में जोश सा उमड़ गया जब भाजपा के पश्चिमी दिल्ली के उम्मीदवार परवेश वर्मा ने कहा, “ये बाबर की औलादें हमें राम का नाम लेने से रोकेंगी!"

मुकुंद ने एक बाड़े के तरफ़ देखा जहाँ तीन से चार सौ कुर्सियाँ पूरी तरह से ख़ाली थीं। उन्होंने इसकी तस्वीर भी ली। अचानक, उन्हें एक व्यक्ति ने रोक दिया, जिसने उनसे सवाल किया कि आप इस बाड़े की तस्वीरें क्यों ले रहे हैं, आप आगे जा कर तस्वीरें क्यों नहीं लेते?" इससे पहले कि वह कुछ कह पाते, उसने कहा कि आप आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के एजेंट हैं। मुकुंद बस यही कह पाए की वो मीडिया से हैं। लेकिन उस व्यक्ति ने मुकुंद को उनके कॉलर से पकड़ लिया और उन्हें घसीटना शुरू कर दिया। मैं(रवि) उसको बचाने के लिए भागा। लेकिन मैंने यह देखा कि अचानक रूमाल से चेहरा ढके हुए चार आदमी सामने आ गए। उन्होंने मुझे पीछे धकेला। मैंने उन्हें बताया कि मैं रिपोर्टर हूँ लेकिन उधर से सिर्फ़ गालियों की बरसात हो रही थी। एक व्यक्ति ने मुकुंद की गर्दन पकड़ने की कोशिश की और उन्हें चित्रों को हटाने के लिए कहा। मुकुंद ने पहले तो मना कर दिया लेकिन उन्हें और गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई। मैंने विनती की कि हम रेपोर्टिंग कर रहे हैं और हम चित्रों और फ़ुटेज को हटा नहीं सकते। एक व्यक्ति अचानक चिल्लाया, “मारो देशद्रोही को।” मुझे मुकुंद से लगातार दूर रखा गया। उन्होंने उनका पहचान पत्र भी छीन लिया था। फिर उन्होंने मुकुंद का फ़ोन पकड़ा। उन्हें फ़ोन अनलॉक करने के लिए मजबूर किया। सभी चित्र और फ़ुटेज डिलीट कर के पीछे धकेला। हम स्तब्ध थे लेकिन पराजित नहीं थे। 

मुझे अक्सर आश्चर्य होता है जब आदमी को लिंच किया जाता है तो कैसी स्थिति रहती है। आज एहसास भी हो गया। मुझे एक पीड़ित की बेबसी का एहसास हुआ जब लोग मारने के लिए आतुर होते हैं। मुझे एहसास हुआ कि भारत क्या देश बन गया है। हमें सकारात्मक चीज़ों को कवर करने के लिए कहा गया था। लेकिन हमने सोचा कि लोग महत्वपूर्ण थे और उन्हें इस उन्माद में सुनना अधिक महत्वपूर्ण है। 

इस पूरे हिंसक प्रकरण पर हमारी प्रतिक्रिया ये है: हम रिपोर्टिंग जारी रखेंगे, क्योंकि लोकतंत्र ग़लत जानकारी के साथ मर जाता है।

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