NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
दवा पर ख़र्च के चलते एक साल में 38 मिलियन भारतीय ग़रीबी रेखा से नीचे चले गएः रिपोर्ट में खुलासा
साल 2011-2012 में स्वास्थ्य सेवा पर आमदनी से अधिक ख़र्च के कारण 55 मिलियन भारती गरीबी रेखा से नीचे चले गए। अस्पताल में भर्ती की तुलना में बाह्य रोगी सेवा पर ज़्यादा ख़र्च हुए।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
14 Jun 2018
medicines

क्या आप जानते हैं कि दुनिया भर में उत्पादन किए जाने वाले दवाईयों की क़ीमत के मामले में भारत 13 वें स्थान पर जबकि परिमाण के मामले में चौथे स्थान पर है और फिर भी दवा की ख़रीद पर ख़र्च के कारण देश में 38 मिलियन लोग एक वर्ष (2011-2012) में ग़रीबी रेखा से नीचे चले गए?

इस बीच पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के तीन शोधकर्ताओं द्वारा किए गए नए अध्ययन कहा गया है कि 55 मिलियन भारतीय गरीबी रेखा से नीचे चले गए क्योंकि उन्हें दवाइयों समेत सेहत की देखभाल के लिए अपनी आमदनी से ज़्यादा ख़र्च करने के लिए मजबूर होना पड़ा। ये शोध एक ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित की गई है।

वर्ष1993 से 2014 के बीच राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण से द्वितीयक आंकड़ों के निरंतर क्रॉस-सेक्शनल एनालिसिस के माध्यम से इस अध्ययन में केंद्र शासित राज्यों सहित सभी भारतीय राज्यों को शामिल किया गया है।

वर्ष 1993-1994, 2004-2005 और 2011-2012 के लिए इस्तेमाल किए गए ये आंकड़े राष्ट्रव्यापी उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण थे साथ-साथ सामाजिक खपत: राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन से 2014 के लिए स्वास्थ्य आंकड़े थे।

इस अध्ययन का उद्देश्य भारत में साल दर साल परिवारों के लिए सामान्य रूप से स्वास्थ्य सेवा पर आमदनी से ज़्यादा ख़र्च (ओओपी) , और विशेष रूप से दवाइयों पर वित्तीय प्रभावों का पता लगाना था। एक अन्य उद्देश्य यह पता लगाना था कि किस बीमारी पर सबसे ज़्यादा ख़र्च हुआ।

इस अध्ययन को सक्तिवेल सेल्वराज, हबीब हसन फारूकी और अनुप करण द्वारा लिखा गया। ये अध्ययन भारत में स्वास्थ्य सेवाओं के सार्वजनिक प्रावधान की अपमानजनक स्थिति का एक सबूत है।

इस अध्ययन में भारतीय आधिकारिक ग़रीबी रेखा (तेंदुलकर समिति प्रणाली) और 1.90 यूएस डॉलर पीपीपी की अंतर्राष्ट्रीय ग़रीबी रेखा का इस्तेमाल किया गया। यद्यपि ओओपी स्वास्थ्य ख़र्च के कारण ग़रीबी रेखा से नीचे जाने वाले लोगों की संख्या 55 मिलियन थी जो ग़रीबी रेखा का इस्तेमाल कर रहे हैं, यहीं आंकड़े अंतरराष्ट्रीय ग़रीबी रेखा का इस्तेमाल करते हुए थोड़े कम हो कर 50 मिलियन हो जाते हैं।

इस अध्ययन में पाया गया कि वे बीमारियां जो ओओपी के ख़र्च के लिए ज़िम्मेदार हैं वे गैर-संक्रमणीय बीमारियों (एनसीडी) जैसे कैंसर, हृदय रोग, चोट, जननांगी स्थितियां और मानसिक विकार हैं। अध्ययन के मुताबिक़ गैर-संक्रमणीय बीमारियों में कैंसर के चलते किसी परिवार को स्वास्थ्य पर "अधिक" ख़र्च करना पड़ता है।

इस अध्ययन द्वारा उजागर किया गया एक और महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि अस्पताल में भर्ती होने या आंतरिक रोगी सेवा के बजाय स्वास्थ्य क्षेत्र में ओओपी ख़र्च से ज़्यादा बाह्य रोगी सेवा पर है।

अध्ययन में कहा गया है, "यह उल्लेखनीय है कि प्रमुख बीमारी की स्थिति में आंतरिक रोगी की सेवा की तुलना में बाह्य रोगी की सेवा के लिए औसत मासिक दवाओं का ओओपी ख़र्च लगातार अधिक था।

इसी तरह खासतौर पर गैर-संक्रमणीय बीमारियों के लिए अस्पताल में भर्ती की घटनाओं की तुलना में बाह्य रोगी की संख्या अधिक थी।

जैसा कि अध्ययन कहता है, "अस्पताल में भर्ती आधारित उपचार का ख़र्च भारत के मरीज़ों की बोझ का केवल एक-तिहाई हिस्सा है।"

यह महत्वपूर्ण है क्योंकि विभिन्न स्वास्थ्य बीमा योजनाएं ज़्यादातर आंतरिक रोगी सेवा पर ख़र्च पर केंद्रीत होती है। ये योजनाएं जो कि नवउदार अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों (जैसे विश्व बैंक) द्वारा प्रदान किए जाने वाला नुस्खा है जो नीति को निर्देशित कर रहा है और विकासशील दुनिया में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के विनाश की उपेक्षा कर रहा है।

बढ़ा चढ़ा कर पेश किए गए नेशलन हेल्थ प्रोटेक्शन स्कीम (एनएचपीएस) की समस्याओं में से एक है जिसे बीजपी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार भारत के स्वास्थ्य आवश्यकताओं के जवाब में पेश कर रही है और जिसका लक्ष्य द्वितीय तथा तृतीय अस्पताल में भर्ती के लिए दस करोड़ परिवारों के लिए प्रत्येक वर्ष पांच लाख प्रति परिवार मुहैया कराना है। इस शोध में बताया गया है कि पहले के कई अध्ययनों में इस बात का ज़िक्र किया गया है कि पर्याप्त सरकारी वित्त पोषित स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपस्थिति मेंस्वास्थ्य बीमा योजनाएं अधिक वित्तीय ख़र्च को रोकने और परिवारों को ग़रीबी से बचाने में किस तरह अप्रभावी हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि "निजी क्षेत्र भारत में बाह्य रोगी और आंतरिक रोगी क्षेत्र दोनों पर हावी होना जारी रखे हुए है" और कहा कि "प्राइवेट रीटेल फॉर्मेसी प्रमुख आवश्यक दवाओं की आपूर्ति का प्रमुख स्रोत बन गई हैं।"

यह कहा गया है कि "हालांकि दवाओं की उपलब्धता निजी स्वास्थ्य सेवा संस्थानों में वास्तव में चुनौती नहीं है, लेकिन सामर्थ्यता गंभीर बाधा के रूप में काम करता हुआ प्रतीत होता है।" "इस प्रकार खुदरा दवा की कीमतों के ईर्द गिर्द दवाओं और विनियमन का मूल्य निर्धारण क्षमता में सुधार करने में एक महत्वपूर्ण कारक बन जाता है और इस प्रकार दवा से संबंधित ओओपी भुगतान के बोझ में कमी आती है। यद्यपि भारत के पास 1979 से प्रगतिशील खुदरा मूल्य निर्धारण नीतियां थीं लेकिन पिछले कुछ वर्षों में अविनियमन नीति का पालन किया गया था।"

इस अध्ययन में कहा गया है कि ड्रग्स प्राइस कंट्रोल ऑर्डर 2013 के बावजूद जो कि ज़रूरी दवाइयों को राष्ट्रीय सूची 2011 के आधार पर सभी आवश्यक दवाओं को मूल्यनियंत्रण के अधीन रखती है 80% से अधिक खुदरा फार्मेसी बाजार का मूल्य निर्धारण नहीं होता है। अध्ययन के मुताबिक इसके अलावा मूल्य नियंत्रण के अधीन ज़्यादातर दवाइयों की बिक्री के परिमाण में कमी आई है।

संक्षेप में इन लेखकों ने उचित तरीके से उजागर किया है कि "अतीत में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में सकल निवेश की कमी ने अपर्याप्त पूर्व भुगतान और जोखिम संयोजनउपायों को बढ़ाया था। भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए उच्च ओओपी ख़र्च की प्रवृत्ति को दूर करने के लिए कई नीतिगत सुधार और कार्यक्रम के नवीनीकरण की आवश्यकता है।"

शोध पत्र में कहा गया है कि "निजी बाजार में महत्वपूर्ण आवश्यक दवाओं के मूल्य निर्धारण के तंत्र को विस्तारित करने के साथ-साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में मुफ्त दवाएं उपलब्ध कराने के लिए दोनों केंद्र और राज्य सरकारों के हस्तक्षेप की आवश्यकता है।"

medicines
OOP
BJP
health care facilities

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    क्या पुलिस लापरवाही की भेंट चढ़ गई दलित हरियाणवी सिंगर?
    25 May 2022
    मृत सिंगर के परिवार ने आरोप लगाया है कि उन्होंने शुरुआत में जब पुलिस से मदद मांगी थी तो पुलिस ने उन्हें नज़रअंदाज़ किया, उनके साथ दुर्व्यवहार किया। परिवार का ये भी कहना है कि देश की राजधानी में उनकी…
  • sibal
    रवि शंकर दुबे
    ‘साइकिल’ पर सवार होकर राज्यसभा जाएंगे कपिल सिब्बल
    25 May 2022
    वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कांग्रेस छोड़कर सपा का दामन थाम लिया है और अब सपा के समर्थन से राज्यसभा के लिए नामांकन भी दाखिल कर दिया है।
  • varanasi
    विजय विनीत
    बनारस : गंगा में डूबती ज़िंदगियों का गुनहगार कौन, सिस्टम की नाकामी या डबल इंजन की सरकार?
    25 May 2022
    पिछले दो महीनों में गंगा में डूबने वाले 55 से अधिक लोगों के शव निकाले गए। सिर्फ़ एनडीआरएफ़ की टीम ने 60 दिनों में 35 शवों को गंगा से निकाला है।
  • Coal
    असद रिज़वी
    कोल संकट: राज्यों के बिजली घरों पर ‘कोयला आयात’ का दबाव डालती केंद्र सरकार
    25 May 2022
    विद्युत अभियंताओं का कहना है कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 की धारा 11 के अनुसार भारत सरकार राज्यों को निर्देश नहीं दे सकती है।
  • kapil sibal
    भाषा
    कपिल सिब्बल ने छोड़ी कांग्रेस, सपा के समर्थन से दाखिल किया राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन
    25 May 2022
    कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे कपिल सिब्बल ने बुधवार को समाजवादी पार्टी (सपा) के समर्थन से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया। सिब्बल ने यह भी बताया कि वह पिछले 16 मई…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License