NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
कानून
भारत
दिल्ली पुलिस की 2020 दंगों की जांच: बद से बदतर होती भ्रांतियां
परसा वेंकटेश्वर राव जूनियर लिखते हैं कि दिल्ली पुलिस द्वारा  तैयार की गयी फ़रवरी 2020 के दिल्ली सांप्रदायिक दंगों से जुड़ी भ्रमित करने वाली घटिया एफ़आईआर और चार्जशीट केंद्रीय गृह मंत्री की ओर से की गयी घटनाओं की राजनीतिक व्याख्या से प्रेरित हैं।
द लीफलेट
13 Sep 2021
दिल्ली पुलिस की 2020 दंगों की जांच: बद से बदतर होती भ्रांतियां

आमतौर पर लोगों में यह धारणा है कि भारतीय पुलिस प्रशासन में प्राथमिकी (FIR) के खरेपन को लेकर बिल्कुल ही भरोसा नहीं किया जा सकता है। प्राथमिकी तथ्यों की शुरुआती रिपोर्टिंग से सम्बन्धित होती है और शिकायतकर्ता के कहने के आधार पर या किसी-किसी मामले में पुलिस ने पहली बार में जो कुछ सूचनायें इकट्ठा की होती हैं, उस पर आधारित होती है।

प्राथमिकी के आधार पर बाद में दायर किये जाने वाले मामलों की मज़बूती उस छानबीन पर निर्भर करती है, जिसके साथ पुलिसकर्मी तथ्यों को दर्ज करते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह कि शिकायतकर्ता आमतौर पर उस समय उत्तेजित होते हैं और जब वे शिकायत करते हैं, तो उनकी ओर से तथ्यों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की संभावना ज़्यादा होती है।

इसके बाद हम उस चार्जशीट पर आते हैं, जिस आधार पर अदालत में मुकदमा चलाया जाना होता है। यहां भी पुलिस भारतीय दंड संहिता (IPC) और दूसरे आपराधिक क़ानूनों के तहत आने वाली धाराओं के बहुत सारे पहलू को शामिल करने के रवैये को इस ग़लत धारणा के तहत रख देती है कि ज़्यादा से ज़्यादा अपराध को शामिल कर लेने से अभियोजन पक्ष के मामले को मज़बूती मिलेगी।

यह एक सराहनीय रणनीति है, लेकिन अगर आरोप और तथ्य एक साथ मेल नहीं खाते, तो यह काम नहीं कर पाता है। जब तक अदालत किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराती तब तक आरोप कथित अपराध ही बने रहेंगे।

दंगों की जांच को लेकर दिल्ली की अदालतों की हालिया टिप्पणियां

कड़कड़डूमा ज़िला न्यायालय के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (ASJ) विनोद यादव ने 28 अगस्त को अपने आदेश में अभियोजन पक्ष की तरफ़ से बरते जा रहे घटियेपन का ज़िक़्र किया था। जांच करने वाले पुलिस अधिकारी सुनवाई के दिनों में अदालत में या वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिये उपस्थित नहीं हुए थे, ठीक से सुबूत भी नहीं जुटाये गये थे, मामलों को लेकर लोक अभियोजकों (PP) को पर्याप्त निर्देश भी नहीं दिये गये थे और पीपी को चार्जशीट का महज़ एक पीडीएफ़ संस्करण भेज दिया गया था, जिसके आधार पर उन्हें बहस करना था। यह मामला दंगों में आरोपी के रूप में दो लोगों पर मामला दर्ज किये जाने से सम्बन्धित है।

जहां उन्होंने दिल्ली पुलिस की जांच के मानक को "बहुत ख़राब" और चार्जशीट को "आधा-अधूरा" बताया था, वहीं एएसजे ने कहा था कि शुरुआती चरण में अदालत को क़ानूनी रूप से चार्जशीट की सख़्ती से जांच करने और इस मामले की कमी-वेशी को लेकर निर्णय लेने की अनुमति नहीं है, बल्कि सिर्फ़ यह जांच करने की ज़रूरत है कि क्या प्रथम दृष्टया यह मामला बनता है। उन्होंने बचाव पक्ष की इस दलील को खारिज कर दिया था कि आरोपियों को झूठे तरीक़े से फ़ंसाया गया था।

एएसजे यादव ने एक प्राथमिकी के तहत एक आरोपी का बयान लेने और दूसरी प्राथमिकी के तहत दर्ज मामले में इसका इस्तेमाल करने को लेकर एक बार फिर से पुलिस की खिंचाई की थी। एक दूसरे मामले में तीन लोगों-मोहम्मद शादाब, राशिद सैफ़ी और शाह आलम को एक अलग प्राथमिकी के तहत इसलिए आरोपित किया गया था क्योंकि अदालत ने पहले की एक प्राथमिकी के तहत इन सबको आरोपमुक्त कर दिया था। अदालत ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 300 और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20 के तहत उस "दोहरे संदेह" के सिद्धांत का हवाला दिया, जिसके ज़रिये किसी भी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दो बार दंडित नहीं किया जा सकता है।

मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट अरुण कुमार गर्ग ने 6 सितंबर को दिल्ली पुलिस को अपनी जांच पूरी करने के लिए उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया ताकि दंगों से जुड़े मामलों की सुनवाई आगे बढ़ सके। उन्होंने कहा कि "डीसीपी और उससे ऊपर के रैंक तक के निगरानी अधिकारियों सहित जांच एजेंसी का ढुलमुल रवैया" अदालत को इस मामले पर फ़ैसला करने से रोक रहा है और आरोपी एक साल से ज़्यादा समय से जेल में बंद है।

हालांकि, ये कुछ चंद उदाहरण हैं जो साफ़ तौर पर दिल्ली दंगों के मामलों में पुलिस जांच की कमी को सामने रख देते हैं (उसी को ज़्यादा विस्तार से यहां द लीफ़लेट रखने की कोशिश कर रहा है), ऐसे में राजनीतिक लिहाज़ से विचार करना उचित है।

केंद्रीय गृह मंत्री शाह ने इन दंगों का ठीकरा किसके माथे फोड़ा?

ये दंगे तब हुए थे, जब संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अहमदाबाद का दौरे पर थे और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह गुजरात की राजधानी में थे। उन्होंने मार्च, 2020 में राज्यसभा में दंगों पर हुए चर्चाओं के जवाब में दिये गये अपने एक बयान में कहा था कि उपद्रवियों ने उत्तर प्रदेश से आकर तबाही मचायी थी और उन्होंने कस़म खायी थी कि प्रशासन दंगाइयों को पाताल से भी बाहर निकाल लेगा और पीड़ितों को इंसाफ़ दिलायेगा। शाह ने इस बात की ओर इशारा किया था कि ये दंगे भारतीय और विदेशी संगठनों की ओर से रची गयी साज़िश का नतीजा थे और इसके लिए सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों को दोषी ठहराया था।

चूंकि उनका वह बयान ऐसे समय में आया था जब दिल्ली पुलिस की जांच अपने शुरुआती चरण में थी, ऐसा लगता है कि पुलिस को शाह के इस बयान के मुताबिक़ ही मामले को आगे बढ़ाना था। यानी पुलिस को यह रुख़ अख़्तियार करना था कि एक तो दंगा करने वाले सीएए विरोधी थे और दूसरा कि वे बाहरी लोग थे।

सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों का एक बड़ा हिस्सा मुसलमानों का था क्योंकि सीएए भारतीय नागरिकता चाहने वाले कुछ पड़ोसी देशों के मुसलमानों को लेकर ख़ास तौर पर भेदभावपूर्ण है। यह एक ऐसा आरोप है,जिसका शाह और केंद्र सरकार ने बार-बार ज़ोरदार खंडन किया है।

दंगों के दौरान जान-माल को भारी नुक़सान पहुंचाया गया था और मारे गये लोगों में ज़्यादातर मुसलमान थे। इसके बावजूद, यह दिखाना था कि यह मुसलमान बदमाश ही तो थे जिन्होंने मुसलमानों की संपत्ति को नष्ट कर दिया और सरकार को बदनाम करने के लिए मुसलमानों को मार डाला।

दिल्ली पुलिस दिल्ली सरकार के बजाय केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन काम करती है। जांच में फैले भ्रम और इसके चलते जो घटियापन आया है,इसके लिए शायद केंद्रीय गृह मंत्री शाह की इस सोच को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है कि दंगे सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों की करतूत थी,जो स्वाभाविक रूप से मुसलमान थे।

यह भी ग़ौर करने वाली बात है कि दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने दिल्ली सरकार की ओर से नियुक्त लोक अभियोजकों को पिछले साल इस मामले को आगे बढ़ाने की इजाज़त नहीं दी थी, बल्कि दिल्ली पुलिस (इसकी जगह केंद्रीय गृह मंत्रालय भी पढ़ा जा सकता है) की ओर से चुनी गयी टीम को मंज़ूरी दी थी।

दंगों में दिल्ली पुलिस की जांच की साफ़-साफ़ दिखती गड़बड़ियों के अलावा जांच पर थोपी गयी अवधारणा दंगों के इन मामलों को 'भ्रम से भी बदतर' बना दे रही है।

(परसा वेंकटेश्वर राव जूनियर दिल्ली के एक वरिष्ठ पत्रकार, राजनीतिक टिप्पणीकार और कई किताबों के लेखक हैं। इनके व्यक्त विचार निजी हैं।)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Delhi Police’s 2020 Riots Probe: Confusion Worse Confounded

Delhi riots
Northeast Delhi Riots
delhi police
Anti-CAA Protests
CAA
delhi government
Anil Baijal

Related Stories

मुंडका अग्निकांड: सरकारी लापरवाही का आरोप लगाते हुए ट्रेड यूनियनों ने डिप्टी सीएम सिसोदिया के इस्तीफे की मांग उठाई

CAA आंदोलनकारियों को फिर निशाना बनाती यूपी सरकार, प्रदर्शनकारी बोले- बिना दोषी साबित हुए अपराधियों सा सुलूक किया जा रहा

आंगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने क्यों कर रखा है आप और भाजपा की "नाक में दम”?

मुस्लिम विरोधी हिंसा के ख़िलाफ़ अमन का संदेश देने के लिए एकजुट हुए दिल्ली के नागरिक

दिल्ली दंगों के दो साल: इंसाफ़ के लिए भटकते पीड़ित, तारीख़ पर मिलती तारीख़

देश बड़े छात्र-युवा उभार और राष्ट्रीय आंदोलन की ओर बढ़ रहा है

दिल्ली: प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों पर पुलिस का बल प्रयोग, नाराज़ डॉक्टरों ने काम बंद का किया ऐलान

किसान आंदोलन@378 : कब, क्या और कैसे… पूरे 13 महीने का ब्योरा

दिल्ली: ऐक्टू ने किया निर्माण मज़दूरों के सवालों पर प्रदर्शन

सुप्रीम कोर्ट को दिखाने के लिए बैरिकेड हटा रही है सरकार: संयुक्त किसान मोर्चा


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License