NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कृषि
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
दिल्ली के गांवों के किसानों को शहरीकरण की कीमत चुकानी पड़ रही है
नरेला के गढ़ी बख्तावरपुर गांव में एक उफनते नाले की वजह से खेतों में साल भर में लगभग आठ महीने तक जलभराव की स्थिति बनी रहती है।
रवि कौशल
20 Oct 2021
flooding
चित्र साभार: द इंडियन एक्सप्रेस

नरेला स्थित, गढ़ी बख्तावरपुर गांव में पांच एकड़ क्षेत्र में फैले स्थानीय तालाब में उफनते पानी से अपनी फसलों को बचा पाने की लड़ाई लगता है रितेश राणा के लिए एक स्थायी समस्या बन चुकी है।

एक जलमग्न खेत के टुकड़े की ओर इशारा करते हुए राणा ने कहा कि उनके परिवार के पास 30 एकड़ जमीन की मिल्कियत है। हालांकि, राष्ट्रीय राजधानी में ऐसी प्रमुख जमीन का स्वामित्व होने के बावजूद उन्हें इसका कोई फायदा नहीं है क्योंकि पूरे साल में आठ महीने से भी अधिक समय तक ये खेत पानी में डूबे रहते हैं।

गांव के निवासियों का कहना है कि तालाब से बख्तावरपुर के साथ-साथ अन्य पडोसी गांवों जैसे पल्ला, माजरा और हिरंकी की जरूरतें भी पूरी होती हैं। शहरीकरण की शुरुआत के साथ, इन गांवों के नाले अब तालाब में तब्दील हो चुके हैं। जैसे ही बाहरी इलाकों में बसने वाले प्रवासियों के साथ गांवों की आबादी में विस्फोटक रूप से बढ़ोत्तरी हुई, इन मोहल्लों से निकलने वाले अपशिष्ट जल ने तालाब को पूरी तरह से लबालब भर दिया। इस स्थिति के चलते फसलों से किसी भी प्रकार की आय हासिल करने की संभावनाएं भी खत्म हो गई हैं।

राणा ने न्यूज़क्लिक को बताया कि हालांकि वे कई अन्य ग्रामीणों के समान अपनी जमीन बेचने के इच्छुक नहीं हैं, जिन्होंने अब प्रॉपर्टी डीलर्स का धंधा अपना लिया है, लेकिन हालात कुछ ऐसे हैं कि इसमें गुजारा कर पाना संभव नहीं रह गया है। उनका कहना था “कई वर्षों से यहां की जमीन बेहद सस्ते दामों पर बेची जा रही थी। हमने अपनी जमीन इसलिए नहीं बेची क्योंकि हम इसे अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए बचाकर रखना चाहते थे। लेकिन अब हालात ऐसे हो चुके हैं कि हमें अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। मैं कई दफा प्रशासन से पल्ला से हिरंकी तक नए नाले के निर्माण को लेकर गुहार लगा चुका हूं। यहां का बुनियादी ढांचा 25 साल पुराना हो चुका है। भले ही बाहरी दिल्ली के गांवों ने आम आदमी पार्टी की चुनावी सफलता में दो बार भारी योगदान दिया हो, लेकिन अभी तक हमारी कोई सुनवाई नहीं हुई है।  

शिकायतों से भरी फाइल को दिखाते हुए राणा ने कहा “लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के अधिकारियों का कहना है कि पिछले नौ वर्षों में नाले के निर्माण के लिए कई बार निविदाएं आमंत्रित की गईं। लेकिन कुछ नहीं हुआ। ऐसी ही एक शिकायत के जवाब में पीडब्ल्यूडी विभाग ने 27 अगस्त, 2021 के अपने नोट में कहा है कि आरसीसी नाले के निर्माण का ठेका दिया जा चुका है। अगले 10 दिनों के भीतर काम के शुरू हो जाने की संभावना है।”

एक अन्य निवासी सुमित राणा ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उन्होंने उफनते नाले से होने वाले जोखिम को कम करने के लिए कम समय में तैयार हो जाने वाली बे-मौसमी सब्जियों को उगाने तक की कोशिश की, लेकिन यह सब व्यर्थ की कवायद साबित हुई। बांध की ओर इशारा करते हुए राणा का कहना था “यह कभी भी टूट सकता है। पानी को रोकने के लिए हमने पहले से ही एक अस्थायी तट के निर्माण में 2.5 लाख रूपये खर्च कर चुके हैं। बिना फसल के, भला कैसे किसी किसान का परिवार जिंदा रह सकता है? मेरे जैसे युवाओं को नौकरी की तलाश में बाहर की ओर रुख करना पड़ रहा है।”

महामारी ने इस संकट को और भी बढ़ा दिया है। राणा ने बताया कि “हाथ में पैसे न होने के कारण कई सदस्यों की असमय मृत्यु ने परिवारों को वस्तुतः तबाह कर डाला है। पैसे की कमी के कारण वे उन्हें बचा पाने में असमर्थ रहे।”

सेंटर फॉर यूथ, कल्चर, लॉ एंड एनवायरनमेंट के सह-संस्थापक पारस त्यागी जो ग्रामीणों की मदद कर रहे हैं, इस संकट के लिए उन राजनीतिक दलों को कसूरवार ठहराते हैं जिन्होंने अस्पतालों, कालेजों, स्कूलों, जल निकासी और सामुदायिक केन्द्रों जैसी आवश्यक सेवाओं के लिए जरुरी प्रावधानों की व्यवस्था पर ध्यान दिए बगैर अनियंत्रित शहरीकरण को बढ़ावा देने में अपनी भूमिका अदा की है। 

दिल्ली भूमि सुधार अधिनियम, 1954 के तहत गांव के रिहायशी इलाके के बाहर नई बस्तियों की बसाहट को निषिद्ध करने वाले राजस्व विभाग का नक्शा दिखाते हुए त्यागी ने न्यूज़क्लिक को बताया “जब हम अपने सॉफ्टवेयर के जरिये गूगल अर्थ पर इस नक्शे को अध्यारोपित करते हैं तो हमें पूरी तरह से एक दूसरी ही तस्वीर देखने को मिलती है। हर तरफ बड़ी-बड़ी बस्तियां बन गई हैं, क्योंकि हर कोई राष्ट्रीय राजधानी में अपने लिए एक घर चाहता है, भले ही वहां पर मूलभूत सुविधाओं का पूरी तरह से अभाव ही क्यों न हो। इसके चलते गांवों में रह रहे समुदायों के साथ-साथ नई बस्तियों में रह रहे लोगों का जीवन भी प्रभावित हो रहा है।”

त्यागी का कहना था कि दिल्ली की विशिष्ट स्थिति ने इस विषय पर सामूहिक तौर पर संघर्ष करने को भी कठिन बना दिया है, क्योंकि दिल्ली विकास प्राधिकरण जैसे निकायों द्वारा उनके अधिकारों को पहले से ही छीना जा चुका है। 

उन्होंने आगे कहा, “1990 के दशक में, सरकार ने ग्राम पंचायतों के अस्तित्व को एक मनमानेपूर्ण आदेश के माध्यम से खत्म कर दिया था, जो अपने समुदायों की ओर से इस विषय पर कार्यवाई करने में सक्षम थे। इसी तरह प्रशासन ने इस बात को सुनिश्चित कर दिया था कि किसी भी गांव में भूमि का समेकन नहीं किया जा सकता है। वहीं नगर निगमों ने अपना सारा ध्यान नई बस्तियों पर लगा रखा था, जिन्हें कच्ची कालोनियों के तौर पर जाना जाता है, क्योंकि उनके वोटों के दम पर पार्षद चुने जाने लगे थे।”

दिल्ली सरकार ने 25 जनवरी, 1990 को तत्कालीन सचिव एसआर शर्मा के जरिये जारी किये गए एक आदेश के माध्यम से कहा था:

“दिल्ली भूमि सुधार अधिनियम, 1954 की धारा 161 के उप-धारा 1 के खंड सी के द्वारा प्रदत्त शक्तियों और अन्य सभी शक्तियों का प्रयोग करते हुए उनकी ओर से, दिल्ली केंद्र शासित राज्य क्षेत्र के प्रशासक को यह घोषणा और निर्देशित करते हुए इस बात की ख़ुशी हो रही है कि उक्त अधिनियम के तहत ग्राम पंचायतों के लिए निर्धारित कर्तव्यों, शक्तियों और कार्य संचालन को अगले आदेश तक दिल्ली उपायुक्त के द्वारा प्रयोग में लाया और निष्पादित किया जायेगा।”

इस संबंध में न्यूज़क्लिक की ओर से पीडब्ल्यूडी के मुख्य अभियंता, श्याम सुंदर गर्ग से पूछे गये प्रश्नों का इस खबर के प्रकाशन के समय तक कोई जवाब नहीं प्राप्त हुआ था।

DDA
floods
Delhi
AAP
farmers
Villages

Related Stories

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

आख़िर किसानों की जायज़ मांगों के आगे झुकी शिवराज सरकार

MSP पर लड़ने के सिवा किसानों के पास रास्ता ही क्या है?

यूपी चुनाव : किसानों ने कहा- आय दोगुनी क्या होती, लागत तक नहीं निकल पा रही

उप्र चुनाव: उर्वरकों की कमी, एमएसपी पर 'खोखला' वादा घटा सकता है भाजपा का जनाधार

ख़बर भी-नज़र भी: किसानों ने कहा- गो बैक मोदी!

किसानों की बदहाली दूर करने के लिए ढेर सारे जायज कदम उठाने होंगे! 

किसान आंदोलन का अब तक का हासिल

यूपी: बेमौसम बारिश से किसानों के हाल बेहाल, सरकार से मुआवजे का इंतज़ार

सोयाबीन, बाजरा और तिल की फसलें बर्बाद, किसानों को उच्चित मुआवज़ा दे सरकार: माकपा


बाकी खबरें

  • नीलांजन मुखोपाध्याय
    यूपी: योगी 2.0 में उच्च-जाति के मंत्रियों का दबदबा, दलितों-पिछड़ों और महिलाओं की जगह ख़ानापूर्ति..
    02 Apr 2022
    52 मंत्रियों में से 21 सवर्ण मंत्री हैं, जिनमें से 13 ब्राह्मण या राजपूत हैं।
  • अजय तोमर
    कर्नाटक: मलूर में दो-तरफा पलायन बन रही है मज़दूरों की बेबसी की वजह
    02 Apr 2022
    भारी संख्या में दिहाड़ी मज़दूरों का पलायन देश भर में श्रम के अवसरों की स्थिति को दर्शाता है।
  • प्रेम कुमार
    सीबीआई पर खड़े होते सवालों के लिए कौन ज़िम्मेदार? कैसे बचेगी CBI की साख? 
    02 Apr 2022
    सवाल यह है कि क्या खुद सीबीआई अपनी साख बचा सकती है? क्या सीबीआई की गिरती साख के लिए केवल सीबीआई ही जिम्मेदार है? संवैधानिक संस्था का कवच नहीं होने की वजह से सीबीआई काम नहीं कर पाती।
  • पीपल्स डिस्पैच
    लैंड डे पर फ़िलिस्तीनियों ने रिफ़्यूजियों के वापसी के अधिकार के संघर्ष को तेज़ किया
    02 Apr 2022
    इज़रायल के क़ब्ज़े वाले क्षेत्रों में और विदेशों में रिफ़्यूजियों की तरह रहने वाले फ़िलिस्तीनी लोग लैंड डे मनाते हैं। यह दिन इज़रायली क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ साझे संघर्ष और वापसी के अधिकार की ओर प्रतिबद्धता का…
  • मोहम्मद सज्जाद, मोहम्मद ज़ीशान अहमद
    भारत को अपने पहले मुस्लिम न्यायविद को क्यों याद करना चाहिए 
    02 Apr 2022
    औपनिवेशिक काल में एक उच्च न्यायालय के पहले मुस्लिम न्यायाधीश, सैयद महमूद का पेशेवराना सलूक आज की भारतीय न्यायपालिका में गिरते मानकों के लिए एक काउंटरपॉइंट देता है। 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License