NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
किसानों के विरोध तले ज़बरदस्त ज़ोर पकड़ती श्रम क़ानूनों को निरस्त करने की मांग  
बुधवार को यूनियनों का इस योजना के साथ कई कार्यस्थलों पर विरोध प्रदर्शन देखा गया कि अगले महीने सामूहिक गिरफ़्तारी दी जायेगी।
रौनक छाबड़ा
31 Dec 2020
किसानों के विरोध तले ज़बरदस्त ज़ोर पकड़ती श्रम क़ानूनों को निरस्त करने की मांग  

नई दिल्ली: बुधवार को देश भर के कई कार्यस्थलों पर ख़ास तौर पर यह  कहते हुए "राष्ट्रीय विरोध दिवस" मनाया गया कि "श्रमिक वर्ग किसानों को नाकाम नहीं होने देगा।"

केंद्रीय ट्रेड यूनियन,सेटंर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन (CITU) की ओर से बुलाये गये इस विरोध दिवस पर विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत संगठित और असंगठित,दोनों ही क्षेत्र के श्रमिकों द्वारा अपने-अपने रोज़गार स्थलों पर विरोध प्रदर्शन किया गया। इस विरोध प्रदर्शन के कार्यक्रम के हिस्से के तौर पर सार्वजनिक बैठकों और रैलियों का भी आयोजन किया गया।  

प्रदर्शन कर रहे किसानों की मांगों को दोहराते हुए श्रमिकों ने केंद्र द्वारा नये-नये पारित श्रम क़ानूनों-मज़दूरी पर लाये गया क़ानून, व्यावसायिक सुरक्षा,स्वास्थ्य और कार्य की स्थिति पर क़ानून, औद्योगिक सम्बन्धों पर क़ानून, और सामाजिक सुरक्षा पर लाये गये क़ानून को निरस्त करने के लिए मांग उठाई ।

नियोक्ताओं को लाभ पहुंचाने की ख़ातिर तक़रीबन 25 मौजूदा क़ानूनों को इन क़ानूनों का हिस्सा बनाते हुए केंद्र सरकार ने इन श्रम क़ानूनों के नियमन में ढील देते हुए क़ानून बनाने की प्रक्रिया को ही समाप्त कर दिया गया है।

इन तीन कृषि क़ानूनों के विरोध में कई समूहों के नेतृत्व में हज़ारों आंदोलनकारी किसानों को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र  की तरफ़ आने वाले उन पांच रास्तों पर डेरा डाले हुए एक महीने से ऊपर हो गया है,जो राष्ट्रीय राजधानी के बाहरी इलाक़े पर स्थित हैं।

इस दौरान इस आंदोलन की मांग रही है कि बिजली क़ानून के एक प्रस्तावित संशोधन के साथ-साथ इन विवादास्पद क़ानूनों को भी ख़त्म किया जाये, ये आंदोलन उन ट्रेड यूनियनों का समर्थन हासिल करने में भी कामयाब रहे, जो परंपरागत रूप से श्रमिकों के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

सीटू के महासचिव,तपन सेन ने कहा कि "शुरुआत से ही"इन तीन कृषि अधिनियमों को निरस्त करना इस संयुक्त ट्रेड आंदोलन की प्रमुख मांगों में से एक था। यह एक ऐसी मांग थी,जिसे इस साल 26 नवंबर को हुई देशव्यापी आम हड़ताल के दौरान भी उठाया गया था।

ट्रेड यूनियन की तरफ़ से "मोदी सरकार के ख़िलाफ़ तापमान बढ़ाने" को लेकर आने वाले दिनों में बनायी जा रही अलग-अलग स्वतंत्र कार्रवाई की योजना की बात करते हुए सेन ने बताया,“प्रदर्शनकारी किसान समूहों के साथ ये कामगार संगठन हमेशा से एकजुट रहे हैं। लेकिन,इस एकजुटता को अगले स्तर तक ले जाने की ज़रूरत है।”

यह केंद्रीय ट्रेड यूनियन 7 और 8 जनवरी को राष्ट्रीय स्तर पर सामूहिक गिरफ़्तारी की योजना बना रहा है। इसके बाद ये श्रमिक जनवरी महीने के ही 23 तीरख़ से शुरू होने वाले हर एक राज्य में राज्यपालों के घरों के बाहर आयोजित किसानों के तीन दिवसीय महापड़ाव में शामिल होंगे।

इसके अलावा,न्यूज़क्लिक ने इस बात की सूचना पहले ही दे दी थी कि किस तरह अगले साल दस केंद्रीय ट्रेड यूनियन जल्द ही आम हड़ताल की योजना बना रहे हैं।

सेन ने कहा,“ मज़दूरों के इन स्वतंत्र कार्यों से किसानों के उस विरोध प्रदर्शन को बढ़ावा मिलेगा,जिसने मज़दूरों के आंदोलनों को एक नयी ऊर्जा दी है।”

सेन के मुताबिक़,बुधवार को कार्यस्थलों पर किये गये विरोध प्रदर्शन का यह कार्यक्रम आने वाले दिनों में और बड़ी  कार्रवाई को लेकर "श्रमिकों को संवेदनशील" बनाये जाने के लिहाज़ से एक "शुरुआती क़दम" था। उन्होंने बताया कि इस यूनियन को छत्तीसगढ़ और झारखंड (जहां इस यूनियन का क्षेत्रीय महासंघ सक्रिय है) जैसे कई राज्यों के औद्योगिक शहरों के साथ-साथ कोयला-खदानों में इस विरोध प्रदर्शनों के सिलसिले में एक अच्छी प्रतिक्रिया मिली।

ट्रेड यूनियनों की तरफ़ से किसानों के विरोध प्रदर्शन तले बड़े पैमाने पर स्वतंत्र कार्रवाई की योजना बनायी जा रही है, हालांकि,उनकी प्रमुख मांगें भी वही रहेंगी। ये यूनियन कृषि क़ानूनों और श्रम क़ानूनों को ख़त्म करने के साथ-साथ सभी ग़ैर-आयकर देने वाले परिवारों को प्रति माह 7,500 रुपये नक़द सहायता और ज़रूरतमंदों को हर महीने 10 किलोग्राम अनाज मुहैया कराने की अपनी मांग को मनवाने के लिए केंद्र पर बड़े दबाव के तौर पर देख रहे हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Demand to Repeal Labour Codes Grows Louder in Shadow of Farmers’ Protest

CITU
Workers
National Protest Day
Labour Codes
farmers
Narendra modi
Farm Laws
Farmers Protests

Related Stories

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

मुंडका अग्निकांड: 'दोषी मालिक, अधिकारियों को सजा दो'

मुंडका अग्निकांड: ट्रेड यूनियनों का दिल्ली में प्रदर्शन, CM केजरीवाल से की मुआवज़ा बढ़ाने की मांग

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

झारखंड-बिहार : महंगाई के ख़िलाफ़ सभी वाम दलों ने शुरू किया अभियान

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License