NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
धार्मिक समूहों, राजनीतिक दलों का लद्दाख हिल काउंसिल चुनावों का बहिष्कार, यूटी के लिए छठी अनुसूची की मांग
पहली बार लद्दाख के सामाजिक और राजनीतिक नेताओं ने 16 अक्टूबर को होने वाले चुनावों के बहिष्कार का सर्वसम्मत फ़ैसला लिया है।
सागरिका किस्सू, अनीस ज़रगर
24 Sep 2020
leh

एक प्रमुख घटनाक्रम में लेह में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) समेत कई राजनीतिक दलों और धार्मिक निकायों ने लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद (LAHDC) के लिए होने वाले चुनावों के बहिष्कार का आह्वान किया है। इससे अक्टूबर के मध्य से होने वाले चुनावों से पहले इस क्षेत्र की राजनीति में अभूतपूर्व उथल-पुथल की स्थिति पैदा हो गयी है।

इन राजनीतिक और धार्मिक निकायों ने पीपुल्स मूवमेंट नामक सर्वोच्च निकाय का गठन किया है, जिसमें मुस्लिम और बौद्ध, दोनों ही तरह के संगठन शामिल हैं। यह निकाय केंद्र शासित प्रदेश (UT) लद्दाख के लिए संविधान की उस छठी अनुसूची के विस्तार की मांग कर रहा है, जो आदिवासी समुदायों को स्वायत्तता प्रदान करता है।

इस निकाय के एक बयान में कहा गया है, "लद्दाख के लिए छठी अनुसूची को लेकर जन आंदोलन के इस शीर्ष निकाय ने सर्वसम्मति से छठे एलएएचडीसी लेह चुनावों का तबतक बहिष्कार करने का संकल्प लिया है,जबतक कि बोडो प्रादेशिक परिषद की तर्ज पर छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा को केन्द्रशासित क्षेत्र, लद्दाख और यहां के लोगों तक विस्तारित नहीं किया जाता है।”

ऐसा पहली बार है कि 16 अक्टूबर को होने वाले चुनावों के बहिष्कार का एक सर्वसम्मत क़दम लेह के सामाजिक और राजनीतिक नेताओं द्वारा उठाया गया है। यह फ़ैसला ऐसे समय में आया है, जब लद्दाख, ख़ास तौर पर इसका पूर्वी क्षेत्र, चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के साथ सीमा विवाद के कारण वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अशांति का गवाह बना हुआ है। जून में गालवान घाटी में हुई घटनाओं में से एक में 20 भारतीय सैनिक मारे गये थे, जिससे इस क्षेत्र में संघर्ष की एक नयी लहर शुरू हो गयी थी।

पीटी कुंजंग (अध्यक्ष, लद्दाख बौद्ध संघ), डॉ.अब्दुल क़य्यूम (अध्यक्ष, अंजुमन मोइन उल इस्लाम) और रेव डेचन चम्घा (इसाई समुदाय) सहित 12 संगठनों के प्रमुखों ने इस बहिष्कार घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं। इसके हस्ताक्षरकर्ताओं में बीजेपी के ज़िला अध्यक्ष,नवांग समस्तान और इस इलाक़े में आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक टी.फुनत्सोग भी शामिल हैं।

लद्दाखियों द्वारा एक अलग केंद्र शासित प्रदेश की मांग को पिछले 5 अगस्त को उस समय पूरा कर दिया गया था, जब नई दिल्ली ने एकतरफ़ा तौर पर इस क्षेत्र में अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए को रद्द कर दिया था और जम्मू-कश्मीर को ख़ास तौर पर आदिवासी क्षेत्र लद्दाख सहित दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया था। इसके बाद, भाजपा ने इस क़दम को लद्दाख के विकास और सशक्तीकरण के एक नये युग की शुरुआत कहा था। लेह में कई स्थानीय लोगों ने उस फ़ैसले का स्वागत किया था, जबकि कारगिल स्थित इस नये केंद्र शासित प्रदेश के हिस्से ने इसके विरोध में हड़ताल की थी।

एक साल बाद, चुनाव के बहिष्कार के आह्वान के साथ लेह के लोग कश्मीर के नक्शेक़दम पर चलते हुए दिख रहे हैं, उन्हें कश्मीर की तरह ही जनसांख्यिकीय परिवर्तन और पिछले साल के फ़ैसले के बाद सामाजिक और राजनीतिक मौक़े के नुकसान की आशंका है।

लेह के पूर्व मुख्य कार्यकारी पार्षद रिग्ज़िन स्पालबार ने न्यूज़क्लिक को बताया कि अपनी पहचान, भूमि, जनसांख्यिकी और प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों को लेकर लद्दाख के लोगों में बहुत सारी चिंतायें हैं।

वे कहते हैं,“हम ऐसा कोई सवाल नहीं उठा रहे हैं,जो हमारे संविधान से बाहर के हों। लोग इस बात को लेकर बहुत परेशान हैं कि ग़ैर-आदिवासियों द्वारा उनका शोषण किया जायेगा। लोग इसे केन्द्रशासित क्षेत्र की जनसांख्यिकी को बदलने के प्रयास के रूप में भी देखते हैं।”

पिछले साल अगस्त में लद्दाख की स्थिति में बदलाव के चलते भी एलएएचडीसी कमज़ोर हुई है, जो तब से बहुस्तरीय नौकरशाही के अधीन हो गया है। इस बात की भी आशंका है कि इस क्षेत्र में काम करने के लिए बहुराष्ट्रीय निगमों को "खुला हाथ " छोड़ देने से स्थानीय लोगों और उनके संसाधनों का शोषण होगा।

स्पालबार कहते हैं, “इस वक़्त हम एक ऐसे ढांचे में हैं,जहां लोगों की आकांक्षायें इसलिए पूरी नहीं होती हैं,क्योंकि परिषद के पास भूमि और पर्यावरण सम्बन्धी मुद्दों पर विधायी शक्तियां नहीं हैं। वे बिना शक्तियों वाले बिचौलिये की तरह काम करने के लिए अभिशप्त हैं। अगर हमें छठी अनुसूची के रूप में सुरक्षा उपाय नहीं मिलता है, तो इन चुनावों में भाग लेना कहीं से भी समझदारी नहीं है।"

1989 में कश्मीर में सशस्त्र विद्रोह शुरू होने के कारण केन्द्रशासित प्रदेश की मांग में तेज़ी आयी थी। छह साल बाद, 1995 में 1996 के घाटी में हुए ऐतिहासिक चुनावों (जिसने राजनीतिक मुख्यधारा को संघर्षग्रस्त क्षेत्र में बदल दिया) से पहले, लेह में एलएएचडीसी अधिनियम के तहत इस पर्वतीय परिषद का निर्माण किया गया था। कारगिल को एक अलग पर्वतीय परिषद दी गयी थी, जो इस समय लद्दाख केन्द्र शासित प्रदेश का हिस्सा है।

कारगिल के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता,सज्जाद कारगिलि ने न्यूज़क्लिक को बताया, "पहले दिन से ही कारगिल ने इस द्विभाजन का विरोध किया है और लेह को भी इसी तरह की भावना से अवगत कराया था, लेकिन दुर्भाग्य से उन्होंने तब इसे नहीं समझा था। हमें लेह के लोगों के साथ पूरी सहानुभूति है।”

हालांकि,सज्जाद ने कहा कि कारगिल का मुद्दा छठी अनुसूची को लेकर नहीं है। सज्जाद कहते हैं, “कारगिल ने कभी भी लद्दाख को केन्द्रशासित प्रदेश को स्वीकार नहीं किया। हमें इसमें धकेल दिया गया है। हमारा मुद्दा हमारे राज्य का असंवैधानिक विभाजन है और हमारी विशेष स्थिति का हनन है। हम जम्मू-कश्मीर का हिस्सा बनना चाहते हैं और हमारा संघर्ष इसी को लेकर है।”

सज्जाद आगे कहते हैं,“हम किसी भी चर्चा के लिए खुले तौर पर तैयार हैं। उन्होंने कहा कि हमारी मांग एक ही है और वह यह है कि राज्य और विशेष राज्य के दर्जे की बहाली की जाये।

 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

 

https://www.newsclick.in/religious-groups-political-parties-boycott-ladakh-hill-council-polls-demand-sixth-schedule-UT

 

ladakh
Article 370
kargil
jammmu and kashmir

Related Stories

कश्मीर में हिंसा का नया दौर, शासकीय नीति की विफलता

क्यों अराजकता की ओर बढ़ता नज़र आ रहा है कश्मीर?

कैसे जम्मू-कश्मीर का परिसीमन जम्मू क्षेत्र के लिए फ़ायदे का सौदा है

जम्मू-कश्मीर: बढ़ रहे हैं जबरन भूमि अधिग्रहण के मामले, नहीं मिल रहा उचित मुआवज़ा

जम्मू-कश्मीर: अधिकारियों ने जामिया मस्जिद में महत्वपूर्ण रमज़ान की नमाज़ को रोक दिया

केजरीवाल का पाखंड: अनुच्छेद 370 हटाए जाने का समर्थन किया, अब एमसीडी चुनाव पर हायतौबा मचा रहे हैं

जम्मू-कश्मीर : रणनीतिक ज़ोजिला टनल के 2024 तक रक्षा मंत्रालय के इस्तेमाल के लिए तैयार होने की संभावना

जम्मू-कश्मीर में उपभोक्ता क़ानून सिर्फ़ काग़ज़ों में है 

कश्मीर को समझना क्या रॉकेट साइंस है ?  

वादी-ए-शहज़ादी कश्मीर किसकी है : कश्मीर से एक ख़ास मुलाक़ात


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड के खिलाफ मुख्यमंत्री के समक्ष ऐक्टू का विरोध प्रदर्शन
    20 May 2022
    मुंडका, नरेला, झिलमिल, करोल बाग से लेकर बवाना तक हो रहे मज़दूरों के नरसंहार पर रोक लगाओ
  • रवि कौशल
    छोटे-मझोले किसानों पर लू की मार, प्रति क्विंटल गेंहू के लिए यूनियनों ने मांगा 500 रुपये बोनस
    20 May 2022
    प्रचंड गर्मी के कारण पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे गेहूं उत्पादक राज्यों में फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है।
  • Worship Places Act 1991
    न्यूज़क्लिक टीम
    'उपासना स्थल क़ानून 1991' के प्रावधान
    20 May 2022
    ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़ा विवाद इस समय सुर्खियों में है। यह उछाला गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। ज्ञानवापी मस्जिद के भीतर क्या है? अगर मस्जिद के भीतर हिंदू धार्मिक…
  • सोनिया यादव
    भारत में असमानता की स्थिति लोगों को अधिक संवेदनशील और ग़रीब बनाती है : रिपोर्ट
    20 May 2022
    प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट में परिवारों की आय बढ़ाने के लिए एक ऐसी योजना की शुरूआत का सुझाव दिया गया है जिससे उनकी आमदनी बढ़ सके। यह रिपोर्ट स्वास्थ्य, शिक्षा, पारिवारिक विशेषताओं…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हिसारः फसल के नुक़सान के मुआवज़े को लेकर किसानों का धरना
    20 May 2022
    हिसार के तीन तहसील बालसमंद, आदमपुर तथा खेरी के किसान गत 11 मई से धरना दिए हुए हैं। उनका कहना है कि इन तीन तहसीलों को छोड़कर सरकार ने सभी तहसीलों को मुआवजे का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License