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मानवीय आकांक्षाओं को विकृत करने वाला आर्थिक युद्ध कब ख़त्म होगा?
‘वैश्विक ऋण का बड़ा हिस्सा उत्पादक क्षमता बढ़ाने के बजाय वित्तीय संपत्तियों को बनाने में इस्तेमाल किया गया है जो कि वित्तीय क्षेत्र और वास्तविक आर्थिक गतिविधियों के बीच एक चिंताजनक वियोजन को दर्शाता है’।
ट्राईकोंटिनेंटल : सामाजिक शोध संस्थान
01 Feb 2020
संतू मोफोकेंग
संतू मोफोकेंग, आइज़ वाइड शट, मोटोलेंग गुफा, क्लेरेन्स - फ्री स्टेट, 2004

सोमवार, 27 जनवरी को, दक्षिण अफ्रीकी फोटोग्राफर संतू मोफोकेंग का देहांत हो गया। उनका कैमरा रंगभेद-विरोधी संघर्ष में परस्पर उपस्थित रहा; पुलिस की हिंसा और लोकप्रिय प्रतिरोध कार्यवाइयों की तस्वीरें खींचने के वर्षों बाद, उन्होंने 1993 में लिखा, वे 'उदास, नीरस, व्यथा, संघर्ष, [और] उत्पीड़न के चित्र' बनाते हुए थक चुके थे। तब संतू ने अपना कैमरा काले श्रमिकों के जीवन की ओर घुमाया। ‘शायद मैं किसी ऐसी चीज की तलाश में था जिसे चित्रित होना अस्वीकार हो,’ उन्होंने कहा। ‘संयोग से मैं सिर्फ़ परछाइयों का पीछा करता रहा'। भविष्य की तलाश करने वाले ही परछाइयों का पीछा करते हैं।

जब भविष्य अंधकारमय हो, तो अपनी आँखें बंद कर लेने का मन करता है।

जनवरी के मध्य में, व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) ने वैश्विक आर्थिक हालात और संभावनाओं पर अपनी प्रमुख रिपोर्ट, वर्ल्ड एकनॉमिक सिचूएशन एंड प्रास्पेक्ट्स 2020 (World Economic Situation and Prospects 2020) जारी की। इस रिपोर्ट का अहम विषय ये है कि इस साल वैश्विक विकास दर अप्रभावी रहेगी, और शक्तिशाली देश एक बार फिर से बाजारों में चल निधि बनाए रखने के लिए कम ब्याज दरों पर निर्भर रहेंगे। मुख्यधारा के रूढ़िवादी अर्थशास्त्रियों और बैंकरों का दृष्टिकोण है कि बाजारों में पूँजी के प्रवेश से निवेश को बढ़ावा मिलेगा जिससे विकास दर में बढ़ोतरी होगी।

लेकिन UNCTAD की रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि ये एक भ्रम है, क्योंकि चल निधि का उपयोग वित्तीय बाजारों में तो किया जा सकता है लेकिन विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में निवेश या मानव आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नहीं किया जा सकता। व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की रिपोर्ट के अनुसार ‘अत्यधिक बोझिल आर्थिक नीतियाँ निवेश प्रोत्साहित करने में अपर्याप्त साबित हुई हैं व अधिकतर देशों में लागत के वित्तियन के द्वारा नहीं बल्कि अनिश्चितता और व्यवसाय विश्वास की कमी के द्वारा निवेश बरक़रार रख़ा गया है’।

‘वैश्विक ऋण का बड़ा हिस्सा उत्पादक क्षमता बढ़ाने की बजाय वित्तीय संपत्तियों को बनाने में इस्तेमाल किया गया है जो कि वित्तीय क्षेत्र और वास्तविक आर्थिक गतिविधियों के बीच एक चिंताजनक वियोजन को दर्शाता है’। निर्माण क्षेत्र में निवेश के बावजूद रोज़गार में वृद्धि नहीं हुई है; इसका परिणाम अक्सर ‘रोज़गार विहीन विकास' रहा है। पूँजी नकारात्मक-उत्पादन वाले संप्रभु अनुबंधों में प्रवाहित हुई है, यानि कि बाज़ार भविष्य के आर्थिक विकास के बारे में निराशावादी हैं। यह वर्तमान व्यवस्था के गहरे संकट का संकेत है, जिस पर चर्चा हमने अपने जनवरी डोजियर नं. 24, द वर्ल्ड ओस्सिलेट्स बिटवीन क्राइसिस एंड प्रोटेस्ट्स में की है।

विकास दर में कमी को देखते हुए, केंद्रीय बैंकों का एकमात्र समाधान ब्याज दरों को कम करना हो गया है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व बैंक - जो कि बैंकरों का अंतिम सहारा है- के ब्याज दरों में एक बार फिर गिरावट आई है। वर्तमान ब्याज दर 1.5% से 1.75% के बीच बनी हुई है; इसका मतलब है कि फेडरल रिजर्व बैंक के पास एक और वित्तीय संकट या गहरी मंदी आने पर दरों को और कम करने की बेहद कम सम्भावना बची है। UNCTAD के अर्थशास्त्रियों के अनुसार, आर्थिक नीतियों पर अतिविश्वास न सिर्फ़ विकास को पुनर्जीवित करने के लिए अपर्याप्त है बल्कि इसके अपने ख़तरे हैं जैसे कि वित्तीय स्थिरता की विपत्तियों का बढ़ना। कम ब्याज दरें वित्तीय बाजारों को ऐसी स्थिति में उधार लेने की अनुमति देती हैं जहां विपत्तियों की क़ीमतें कम हों; नतीजतन, वित्तीय बाजारों की लापरवाही व्यक्त है, परिसंपत्तियां अत्यअधिक महंगी हैं, और वैश्विक ऋण आसमान छूने को है।

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अली इमाम, किसान

नवउदारवादी रूढ़िवाद के उदय के बाद से, अर्थव्यवस्था में हस्तक्षेप करने के साधन के रूप में सरकारों को केवल आर्थिक नीति— जैसे कि ब्याज दरों में हेरफेर— का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया गया है। राजकोषीय नीति - जैसे कि सार्वजनिक खर्च के लिए बजट का उपयोग करना - को सरकारों के लिए काम करने का अक्षम्य तरीका मान लिया गया है; इसके बजाय, उन्हें करों में कटौती और कम खर्च के लिए प्रोत्साहित किया जाता रहा है। यदि निजी पूंजी समाजिक कार्यों में आवश्यक निवेश नहीं कर रही हो, तो सरकारों को सार्वजनिक निवेश में उपयोग हेतु पर्याप्त धन जुटाना चाहिए। UNCTAD की रिपोर्ट के हिसाब से सार्वजनिक कार्यों में निवेश का अर्थ है ‘ऊर्जा, कृषि और परिवहनों को वि-कार्बन करने की नीति का उल्लेख करना; साफ़ व अक्षय ऊर्जा, स्वच्छ पानी और परिवहन लिंकों तक पहुंच व्यापक बनाने के लिए बुनियादी ढाँचे में लक्षित रूप से निवेश करना; उच्च गुणवत्तापरक शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और औपचारिक रोज़गार तक पहुंच के समान अवसर प्रदान करना'।

इस तरह की किसी भी बात ने दावोस (स्विट्जरलैंड) में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के लिए पहुँचे नीति निर्माताओं का ध्यान नहीं खींचा। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के बारे में ऐसे बात की जैसे कि ये एक नया मुद्दा हो, और जिसे वित्तीय अस्थिरता व पूँजी निवेश में भारी मंदी जैसे मुद्दों— जिनके कारण लाखों लाख लोगों का जीवन ख़तरे में है— से अलग रख कर देखा जा सकता हो। हर साल दावोस प्रतिभागियों के लिए ऑक्सफेम (Oxfam) वैश्विक असमानता पर चौंकाने वाली रिपोर्ट जारी करता है। इस वर्ष की रिपोर्ट से पता चलता है कि दुनिया के 2,153 अरबपतियों के पास 4.6 बिलियन लोगों— दुनिया की 60% आबादी— से ज़्यादा संपत्ति है। इस रिपोर्ट में कुछ आँकड़े इतने उलझाने वाले हैं कि उन्हें बार-बार पढ़ा जाना चाहिए:

  • दुनिया में सबसे अमीर 22 पुरुषों के पास अफ्रीका की सारी महिलाओं की तुलना में अधिक संपत्ति है।
  • दुनिया के सबसे अमीर 1% लोग दुनिया के 6.9 बिलियन लोगों की कुल सम्पत्ति के दुगुने से भी अधिक के मालिक हैं।
  • यदि आप प्राचीन मिस्र में लगभग पांच हजार साल पहले बने पिरामिड़ों के बाद से हर दिन 10,000 डॉलर बचाते तब भी आज आपके पास 5 सबसे अमीर अरबपतियों की औसत सम्पत्ति का केवल पांचवां हिस्सा होता।
  • महिलाएं एवं लड़कियां हर दिन 12.5 बिलियन घंटे अवैतनिक देख रेख के काम में लगाती हैं, और इस तरह से वे वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रति-वर्ष कम से कम $ 10.8 ट्रिलियन —वैश्विक टेक उद्योग के तीन गुने से भी ज़्यादा— का योगदान करती हैं।

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इंजी इफ्लैटाउन, कैदी, 1957

इन असमानताओं को देखते हुए, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि दावोस में हुआ संवाद बंजर और पारलौकिक था। दावोस से दो अर्थशास्त्रियों ने, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच व्यापार शत्रुता के थमने का हवाला देते हुए और उपभोक्ता खर्च में वृद्धि पर ज़ोर देते हुए, वर्तमान अर्थव्यवस्था में सकारात्मक संकेतों के बारे में लिखा है। वे असमानता या सस्ते क्रेडिट और अधिक ऋण पर आधारित उपभोगता व्यवहार के बारे में कोई ज़िक्र नहीं करते। इन अर्थशास्त्रियों का नोट एक विलक्षण टिप्पणी के साथ समाप्त होता है: ‘उभरते स्थानीय मुद्दे, जैसे कि लैटिन अमेरिका में हो रहे दंगे व भारत की लड़खड़ाती वृद्धि दर भी चिंताजनक है’।

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सिल्वानो लोरा, वियतनाम, 1971

लैटिन अमेरिका में हो रहे दंगे? बल्कि, लैटिन अमेरिका में जो अशांति हमें दिखाई देती है, उसके मूल में शासन परिवर्तन के विभिन्न प्रयत्न ( जैसे कि बोलिविया में सरकार को शिकस्त करना और वेनेज़ुएला में सरकार गिराने का विफल प्रयास) और प्रदर्शनकारियों के खिलाफ राज्य (चिली और इक्वाडोर में) का दमन हैं। लैटिन अमेरिका में जो हिंसा दिखाई देती है वह असल में साम्राज्यवाद और स्थानीय कुलीनों द्वारा आधी दुनिया पर की जा रही हिंसा का हिस्सा है। इसे ‘दंगे’ कहना अराजकता है; जो कि वास्तव में वॉशिंगटन और लैटिन अमेरिकी कुलीन वर्गों द्वारा निर्देशित नीतियों का परिणाम है जिनका उद्देश्य इस क्षेत्र में अस्थिरता क़ायम रख कर अमीरों के हाथ में राज्य-नियंत्रण बनाए रखना है।

एक साल पहले, संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके लीमा समूह के सहयोगियों ने वेनेजुएला सरकार के खिलाफ तख्तापलट का प्रयास किया था। वेनेजुएला की जनता के ख़िलाफ़ हाइब्रिड युद्ध प्रतिबंधों की राजनीति में फला फुला है, इससे वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था में तेज़ गिरावट आयी है, और कम से कम 40,000 लोगों की मौत हुई है। वेनेजुएला के इस युद्ध से पूरे लैटिन अमेरिका में, विशेष कर पड़ोसी कोलंबिया, में अत्यधिक अस्थिरता पैदा हुई है।

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त ने एक संक्षिप्त बयान में सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों के नेताओं की हत्याओं की 'चौंकाने वाली संख्या' की ओर इशारा किया है। संयुक्त राष्ट्र का सुझाव है कि ये हत्यारे FARC-EP द्वारा खाली किए गए क्षेत्रों में अवैध अर्थव्यवस्थाओं से जुड़े हुए आपराधिक गुट और सशस्त्र दल हैं’। यानी दक्षिणपंथी अर्धसैनिक समूहों और उनके संबद्ध ड्रग गिरोहों ने देहातों को आतंकित करने के लिए वामपंथियों द्वारा हस्ताक्षरित शांति संधि का लाभ उठाया है।

ट्राइकांटिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान के कोलंबिया पर डोजियर (दिसंबर 2019) में हमने यह तर्क दिया है कि कोलंबियाई कुलीन वर्ग शांति की ओर बढ़ना ही नहीं चाहता, क्योंकि इससे कोलम्बियाई राजनीति की धुरी जन-आंदोलनों और वामपंथियों की राजनीति की ओर स्थानांतरित हो जाएगी। युद्ध— जिसमें अब हत्या और धमकाना शामिल है— की निरंतरता कुलीनतंत्र के लिए फ़ायदेमंद है। वे इस हिंसा को लोकतांत्रिक राजनीति से ज़्यादा पसंद करते हैं। 21 जनवरी को, कोलंबिया की जनता एक बार फिर हड़ताल करने के लिए सड़कों पर उतर आयी, उनकी माँगों की लम्बी सूची में नवउदारवादी आर्थिक नीतियों के अंत से लेकर मौत के अड्डों की तरह काम करने वाली दमनकारी पुलिस इकाइयों को बंद करने जैसी माँगें शामिल हैं।

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चावेज़

ब्राज़ील में भूमिहीन ग्रामीण श्रमिकों के आंदोलन (MST) के जोआ पेड्रो स्टैडाइल ने वेनेजुएला में विफल रहे तख्तापलट का आकलन किया है। उनके अनुसार, 1990 के दशक में ह्यूगो चावेज़ द्वारा शुरू की गयी बोलिवियाई प्रक्रिया के दक्षिणपंथी विरोध के भीतर मौजूद मतभेद ही इस विफलता का मूल कारण हैं। तख्तापलट के लिए वॉशिंगटन के पसंदीदा उम्मीदवार जुआन गुएडो ने सरकार को उखाड़ फेंकने के प्रयासों के एक साल बाद गुएडो ने वेनेजुएला के एक अति-खंडित विपक्षी समूह का समर्थन खो दिया है। नेशनल असेंबली के पूर्व-अध्यक्ष के रूप में गुएडो की जगह 5 जनवरी के चुनाव के बाद अब लुइस पारा ने ले ली है। पारा, जो कि अब भी विपक्ष के सदस्य हैं उनका निर्वाचित होना संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए अस्वीकार्य है, इसलिए पारा को तुरंत अधिकृत किया गया और गुएडो को व्यक्तिगत विद्रोह बताए रहने के लिए प्रोत्साहित किया गया। ये ‘दंगा’ गरीबों और मज़दूर वर्ग के जीवन पर कहर बरपाने के लिए अमीरों द्वारा भड़काया गया दंगा है जिससे लैटिन-अमेरिका के हिस्सों में अराजकता का माहौल बना हुआ है।

1964 में जब कोलंबिया युद्धों की अंतहीन श्रृंखला की गिरफ़्त में आया तब मूर्ति तोड़ने वाले कवि जोतामारियो अर्बेलेज़ ने ‘युद्ध के बाद’ के समय पर एक मार्मिक कविता लिखी:

एक दिन 

युद्ध के बाद 

यदि युद्ध होता है 

यदि युद्ध के बाद एक दिन होता है

मैं तुम्हें अपनी बाहों में लूंगा

युद्ध के एक दिन बाद 

यदि युद्ध होता है 

यदि युद्ध के बाद एक दिन होता है

यदि युद्ध के बाद मेरी बाहें सलामत रहीं

मैं तुम्हें प्यार से प्यार करूंगा

युद्ध के एक दिन बाद 

यदि युद्ध होता है

यदि युद्ध के बाद एक दिन होता है 

यदि युद्ध के बाद प्यार बचा रहता है

और यदि युद्ध के बाद प्यार के लिए सब बचा रहता है 

जोतमारियो अर्बेलेज़ Un día después de la guerra का पाठ करते हुए, 2007।

आज हाइब्रिड युद्ध और आर्थिक युद्ध ने अराजकता की स्थिति बनाई है।

दुनिया के खिलाफ एक आर्थिक युद्ध छेड़ा गया है, ऐसा युद्ध जिसका कोई विशेष विरोधी आंदोलन नहीं है।

यह आर्थिक युद्ध मानवीय आकांक्षाओं को विकृत करता है, सपनों को मिटाता है और आशाओं को तोड़ता है। यदि सबसे अमीर 1% लोग— जो दुनिया के 6.9 बिलियन लोगों की कुल सम्पत्ति के दोगुने से भी अधिक के मालिक हैं— केवल 0.5% अधिक कर-भुगतान करें तो इससे बच्चों व बूढ़ों की देख-भाल, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में 117 मिलियन नौकरियां उत्पन्न  करने के लिए पर्याप्त धन जुटाया जा सकता है। 2016 में, यूनेस्को ने कहा कि अगर दुनिया को शिक्षा के सतत विकास लक्ष्य (SDG) को पूरा करना है, तो दुनिया के देशों को अगले डेढ़ दशक में कम से कम 68.8 मिलियन शिक्षकों — 24.4 प्राथमिक विद्यालय में और 44.4 मिलियन माध्यमिक स्कूलों में— की नियुक्ति करनी होगी। इस मांग से एकाएक ध्यान हट चुका है।

आख़िर ‘युद्ध के बाद’ के समय से हम कितने दूर हैं?

Human aspirations
Economic war
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South Africa
UNCTAD
Neoliberal conservatism
Global inequality

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