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एक अभिभावक का भारत के प्रधानमंत्री के नाम खुला पत्र
जब यह पत्र मैं आपको लिख रहा हूं तब 27 जुलाई, 2019 की भोर के तीन बज रहे हैं। मुझे 26 जुलाई की शाम के करीब 8 बजे व्हाट्सएप पर एक वीडियो मिला, जिसमें दिख रहा है कि एक छात्रा को करीब आधा दर्जन से अधिक सिक्योरिटी गार्ड (चौकीदार) घसीट रही हैं।
सुनील कुमार
29 Jul 2019
एक अभिभावक का भारत के प्रधानमंत्री के नाम खुला पत्र

मान्यवर,

प्रधानमंत्री महोदय,

आपने 2014 के लोकसभा चुनाव में स्लोगन (नारा) दिया था-‘बहुत हुआ नारी पर वार, अबकी बार मोदी सरकार’। इसके बाद आप देश के प्रधानमंत्री बने। प्रधानमंत्री बनने के बाद आप का स्लोगन ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ बहुत ही हिट हुआ। ग्रामीण-शहरी क्षेत्र के माता-पिता जब इस स्लोगन को प्रचार माध्यम के जरिये या ऑटो, बस के पीछे लिखे देखते होंगे, तो उनके अन्दर अपनी बहन-बेटियों को लेकर एक सुरक्षा का भाव आता होगा। जब यह पत्र मैं आपको लिख रहा हूं तब 27 जुलाई, 2019 की भोर के तीन बज रहे हैं। इस समय मैं अक्सर गहरी नींद में सोता हूं, लेकिन आज की रात मैं सो नहीं पाया हूं। मुझे 26 जुलाई की शाम के करीब 8 बजे व्हाट्सएप पर एक वीडियो मिला, जिसमें दिख रहा है कि एक छात्रा को करीब आधा दर्जन से अधिक सिक्योरिटी गार्ड (चौकीदार) घसीट रही हैं। उस लड़की का मैं लोकल अभिभावक हूं।

जिस लड़की को घसीटा-पीटा जा रहा है वह लड़की यूपी के पिछड़े गांव की रहने वाली है और उसके पिता एक फैक्ट्री मजदूर हैं। मां-पिता कोई पढ़े नहीं हैं। अगर उसको आम भाषा में कहे तो अंगूठा छाप हैं, क्योंकि उनके परिवार की  आर्थिक स्थितियों ने उनको मजबूर किया कम उम्र (नाबालिग) से ही काम करने के लिए। मां-बाप की पहली सन्तान यह लड़की पढ़ना चाहती थी और माता-पिता का भी यही सपना था कि बेटी पढ़ लिख कर आगे बढ़े और आत्मनिर्भर बने। यही कारण है कि उसके माता-पिता अपने खर्चां से कटौती करके उसको पढ़ाते रहे। लड़की पढ़ती रही और मैट्रिक अच्छे नम्बरों से पास करने के बाद मां-पिता को हौसला बढ़ गया और वे सपना देखने लगे कि उनकी बेटी भविष्य में और अच्छा कर सकती है। बेटी भी अपने मां-पिता के सपने को साकार करते हुए इन्टरमीडिएट में जिले के नामी स्कूल में दाखिला लेने में कामयाब होती है अपनी काबलियत के बल पर। बेटी के खर्च को पूरा करने के लिए पिता ज्यादा से ज्यादा ओवर टाइम करने लगते है, साथ में गाय भी पाल लेते हैं ताकि कुछ खर्च पूरा हो सके। बेटी इण्टरमीडिएट में भी अच्छे नम्बरों के साथ उतीर्ण होती है।

उसके माता-पिता उसे इंजीनियर बनाना चाहते थे इसलिए अपने भविष्य निधि फंड (पीएफ) का पैसा निकाल कर बेटी को कोचिंग कराते हैं और बेटी का आईआईटी पिलानी, ट्रीपल आईटी हैदराबाद, एनआईटी जमेशदपुर में नम्बर भी आ जाता है। लेकिन आप की सरकार उसी साल (2016) आईआईटी की फीस में भारी बढ़ोतरी कर देती है। मां-पिता को एक धक्का लगता है, फिर भी वे कोशिश करते हैं कि एजुकेशन लोन लें (जिसका प्रचार भी खूब सुनने को मिलता है कि गरीब घर के बच्चे भी पढ़ सकते हैं)। लेकिन उनको यह लोन नहीं मिलता है, क्योंकि बैंक उनकी आर्थिक हैसियत को इतना नहीं मानता है कि उन्हें लोन दे सके। और मां-पिता, बेटी का सपना टूट जाता है।

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बेटी दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेज में दाखिला लेती है कि इस रास्ते से वह पढ़ सके। उसके परिवार-खानदान में वह पहली सन्तान है जो कॉलेज में दाखिला लेती है। उसकी पढ़ाई का खर्च मैं देता हूं क्योंकि मां-पिता का पैसा उसके दो छोटे भाईयों को पढ़ाने में खर्च हो जाता है। यह लड़की दिन में कॉलेज और रात में दिल्ली विश्वविद्यालय की सेंट्रल लाइब्रेरी में जाकर पढ़ती है। वह समाज में होने वाले उथल-पुथल, भेद-भाव, शोषण, महिला सुरक्षा जैसे सवालों पर चिंतित रहती है, सोचती है, डिस्कशन करती है। वह चाहती है कि समाज की हर लड़की पढ़े, पितृसत्ता की जंजीरों से मुक्त हो। वह अपनी चचेरी बहनों से बात करती है, उनको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। वह अब इस बात से खुश रहने लगी कि अच्छा हुआ कि वह आईआईटी में नहीं गई, नहीं तो वह दुनिया के असली ज्ञान से वंचित हो जाती और व्यक्तिगत जीवन में उलझ कर रह जाती। लेकिन अचानक एक दिन लाइब्रेरी में उससे कह दिया जाता है कि आप यहां नहीं दूसरी बिल्डिंग में जाकर बैठो, जिसके बाथरूम भी लड़कियों के लिए सुरक्षा की दृष्टि से सही नहीं है और वह जाने से मना कर देती है। इसी समय कुछ छात्र संगठनों, महिला संगठनों को जब यह पता चलता है कि लाइब्रेरी को रात के समय बंद किया जायेगा तो वे आवाज उठाते हैं, जिसमें यह लड़की भी शामिल हो जाती है। लेकिन दिखता है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर के सामने इस लड़की को इतनी बुरी तरह से घसीटा जाता है कि उसकी जीन्स तक फट जाती हैं। इससे भी शर्मनाक बात है कि जिस विश्वविद्यालय से शिक्षा के माध्यम से शालीनता सिखाई जाती है वहीं का सिक्युरटी इन्चार्ज गजे सिंह और विजेन्द्र सिंह शराब पीकर गन्दे शब्दों का प्रयोग करते हैं और चौकीदार को निर्देश देते हैं कि लड़की को खींच कर बाहर करो और आपके बहादुर चौकीदार लड़की पर टूट पड़ते हैं। शिक्षा के केन्द्र में ऐसे सिक्युरिटी इन्चार्ज लड़कियों को गाली देने और मारने-पीटने के लिए रखे जाते हैं? लड़की रात में लाइब्रेरी के बाहर बैठी रहती है कि उसे लाइब्रेरी में पढ़ने दिया जाये, लेकिन उसको अन्दर नहीं जाने दिया जाता है।

अगर इस लड़की की पिटाई का वीडियो इसके मां-पिता देख लें तो वह अपनी बेटी को वापस बुला लेंगे और उसकी पढ़ाई बंद करा देंगे। ऐसे में आपके ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ स्लोगन का क्या अर्थ रह जायेगा, जब एक विश्वविद्यालय आई हुई लड़की को वापस अपने घर जाना पड़े?

                                                                                                                                              एक अभिभावक

                                                                                                                                              27 जुलाई, 2019

 

लेखक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (CPR) से जुड़े हैं

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