NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
एनआरसी राग :  डरा रही है, बदलते पहाड़ की धुन!
बदलते पहाड़ की धुन सुन रहे हैं आप। कभी अपनी शांत वादियों, सादगी और ईमानदारी के लिए पहचाने जाने वाले हिमालयी राज्य उत्तराखंड की फिजा में धर्म के नाम पर गुंडागर्दी की घटनाएं कैसे शुरू हो गईं। नौजवानों का ध्यान भटकाने के लिए तेजी से ध्रुवीकरण हो रहा है।
वर्षा सिंह
22 Sep 2019
dehradoon
प्रतीकात्मक फोटो। साभार : हिन्दुस्तान

जब राज्य में रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़क जैसी समस्याओं का कोई हल नहीं निकल रहा है, बेरोजगार प्रदर्शन कर रहे हैं, शिक्षक-कर्मचारी प्रदर्शन कर रहे हैं, इन सब जरूरी मुद्दों को टाल देने का सबसे अच्छा तरीका है कि उस राज्य के मुखिया कैबिनेट बैठक में एनआरसी लागू करने पर विचार-विमर्श करें। वे राज्य में रोहिंग्या और बांग्लादेशियों (जिनकी मौजूदगी की कोई तथ्यात्मक रिपोर्ट अब तक नहीं है) के रहने का शिगूफा छोड़ें। जरूरी मुद्दों से ध्यान भटकाने का ये आज़माया हुआ सफल तरीका है।

एनआरसी की धमकी

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि राज्य में भी एनआरसी लागू होगा। इसके लिए वे कैबिनेट में विचार-विमर्श करेंगे। इससे पहले हरियाणा में भी एनआरसी लागू करने की बात उछाली जा चुकी है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के बयान के बाद राज्य के भाजपा नेताओं ने भी एनआरसी के सुर में सुर मिलना शुरू कर दिया।

भाजपा नेता अजेंद्र अजय ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में पर्वतीय क्षेत्रों से रोजगार और अन्य कारणों से यहां के मूल निवासियों ने बड़े पैमाने पर पलायन किया है। इसके विपरीत मैदानी क्षेत्रों से एक समुदाय विशेष ने विभिन्न प्रकार के व्यवसायों के ज़रिये से पर्वतीय क्षेत्र में अपनी आबादी में भारी बढ़ोतरी की है। उनका कहना है कि अंतर्राष्ट्रीय सीमा से जुड़े होने के कारण ऐसी परिस्थितियां देश की सुरक्षा की दृष्टि से आशंकित करने वाली हैं।

असल मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश

सीपीआई-एमएल के इंद्रेश मैखुरी कहते हैं कि भाजपा और आरएसएस ने बहुत सुनियोजित तरीके से राज्य में सांप्रदायिक माहौल बना रही है। पिछले वर्ष अगस्त्यमुनि, सतपुली, कीर्ति नगर में दंगों की स्थिति बनाने की कोशिश की गई। सतपुली में पुलिस सत्ता के दबाव में नहीं आई और कार्रवाई की तो दंगा एक दिन से ज्यादा नहीं चला। अगस्त्यमुनि में ज़िलाधिकारी को पता ही नहीं चला कि क्षेत्र मे दंगा हो रहा है।

इंद्रेश कहते हैं कि रोहिंग्या या बांग्लादेशियों के राज्य में रहने का कोई तथ्यात्मक आधार नहीं है। एक तरफ राज्य की सरकार उत्तर प्रदेश के हिस्से को राज्य में मिलाना चाहती है। उसी समय में बाहर से आकर राज्य में रह रहे लोगों को चिह्नित करना चाहते हैं। रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत खराब है। पंचायत चुनाव नहीं करा पा रहे। इन विफलताओं से ध्यान भटकाने के लिए एनआरसी का शिगूफा छोड़ रहे हैं। धार्मिक मानस को सांप्रदायिक मानस में तब्दील करने का अभियान बारीक स्तर पर चलाया जा रहा है। धार्मिक आयोजनों का इस्तेमाल सांप्रदायिकता बढ़ाने के लिए किया जा रहा है।

सांप्रदायिकता के बीज बोए जा रहे हैं!

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के राज्य में एनआरसी लागू करने के बयान पर वरिष्ठ पत्रकार दिनेश जुयाल कहते हैं कि हिंदू सेंटिमेंट को भड़काने की साजिश रची जा रही है। देहरादून में बिजनौर, सहारनपुर, नजीबाबाद, मुरादाबाद से बहुत सारी मुस्लिम आबादी आई है। अब ये पड़ोसी जिलों से ही आकर यहां बसे हैं तो भी बाहरी हो गए।

दिनेश कहते हैं कि उत्तराखंड क्या पूरे हिंदुस्तान में इस तरह का सांप्रदायिक माहौल नहीं था। उत्तराखंड में हिंदू आबादी ज्यादा है, मुस्लिम बहुत कम है और देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंनगर और नैनीताल के कुछ हिस्से में थोड़ी बहुत मुस्लिम आबादी रहती है। एनआरसी मुस्लिमों को डराने और हिंदुओं को कट्टर बनाने का ज़रिया बन गया है।

पहाड़ में सदियों से रह रहे मुसलमान

गैरसैंण आंदोलन से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार चारु तिवारी ने एक फेसबुक पोस्ट में बताया है कि अल्मोड़ा के भिकियासैंण विकासखंड के भतरौजखान क्षेत्र के दनपो गांव में फराह नाम की एक मुस्लिम महिला ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ रही है। उसके मुसलमान होने से पहाड़ दरकने लगा है। चारों तरफ शोर है कि पहाड़ में अब मुसलमान ही ग्राम प्रधान बनेंगे। ‘आशंका’ व्यक्त की जा रही है कि देवभूमि ‘कलंकित’ होने वाली है। चारु लिखते हैं कि इन काल्पनिक खतरों से भाजपा और उन जैसी समझ वाले लोग पहाड़ विरोधी अपनी नीतियों पर उठने वाले विरोधी स्वरों को दबाना चाहती है।

वे बताते हैं कि उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों के 63 गांव या तो मुस्लिम बाहुल्य हैं या उनमें बड़ी संख्या में मुस्लिम रहते हैं। ये आज आये मुसलमान नहीं हैं। सदियों से रहते हैं। पीढ़ियों से। राजाओं के जमाने से। टिहरी, पौड़ी, पिथौरागढ़, चंपावत के कई गांवों में मुसलमान सदियों से रहते आए हैं।

उन्होंने यहां की संस्कृति और भाषा को जिस तरह आत्मसात किया है वह अनूठा है। दनपो गांव के बहाने देश में फैलाये जा रहे उस सांप्रदायिक ऐजेंडे को समझा जा सकता है जो सदियों से एक-दूसरे का साथ रहे समाजों में सुनियोजित तरीके से दुश्मन बनाने पर उतारू हो जाते हैं।

जनगणना आंकड़ों के मुताबिक उत्तराखंड में 82.97 प्रतिशत आबादी हिंदू है। 13.95 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है।

बदलते पहाड़ की धुन सुन रहे हैं आप!

जैसे कि इंद्रेश कहते हैं कि हिंदूवादी संगठन सुनियोजित तरीके से राज्य के माहौल को सांप्रदायिक बनाने की कोशिश कर रहे है। इसी वर्ष आर्टिकल-15 फिल्म रिलीज होने पर हरिद्वार के कुछ हिस्सों में ब्राह्मण समाज के लोगों ने हंगामा किया। जिसके बाद फिल्म का प्रदर्शन रोकना पड़ा। अंतर्राष्ट्रीय हिंदू सेना, श्री ब्राह्मण सभा, परशुराम सेना जैसे संगठन इस विरोध प्रदर्शन के पीछे थे। यहां मसला जातिवाद का था।
पिछले वर्ष केदारनाथ फिल्म की रिलीज राज्य में रोक दी गई थी। क्योंकि इसमें हिंदू-मुस्लिम जोड़े की प्रेम कहानी थी, जो केदारनाथ की पृष्ठभूमि में बनी थी।

इसी वर्ष फरवरी महीने में पुलवामा आतंकी हमले के बाद कश्मीरी छात्रों को लेकर देहरादून में माहौल तनाव पूर्ण बना दिया गया। पीजी कमरों में रह रहे कश्मीरी छात्रों को धमकाया गया। उस समय पीडीपी के सांसद फैयाज अहमद मीर अपने साथियों के साथ देहरादून आए और करीब 100 कश्मीरी छात्र-छात्राओं को अपने साथ वापस कश्मीर ले गए।

उत्तराखंड के लोगों को शिक्षक-डॉक्टर चाहिए या एनआरसी!

उत्तराखंड के लोगों को चेतने की जरूरत है। जिस तरह कश्मीर को पिछले दो दशकों में तेजी से आतंक के जाल में उलझाया गया है, जिससे वहां आम लोगों का जीवन मुश्किल में आया। आज उत्तराखंड की सरकार बॉलीवुड के फिल्मकारों को राज्य में फिल्म शूटिंग के लिए निमंत्रण देती है, अगर वे खुद ही अपने राज्य का माहौल बिगाड़ेंगे, तो पहले ही पलायन की मार झेल रहे राज्य की मुश्किलें और बढ़ेंगी। उत्तराखंड को एनआरसी नहीं, बल्कि पहाड़ में अस्पताल-डॉक्टर चाहिए, स्कूल-शिक्षक चाहिए, सड़क-बिजली-पानी चाहिए।

NRC
Uttrakhand
Trivendra Singh Rawat
UNEMPLOYMENT IN INDIA
indian hindu-muslim
Communalism
communalism violence
BJP

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License