NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
भारत
राजनीति
एनएपीएम कार्यकारिणी : वक़्त की आवाज़ है, मिलकर चलो...
जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का आयोजन भोपाल में हुआ, जिसमें वर्तमान राजनीतिक एवं सामाजिक हालातों पर चर्चा की गई और देश की विविधता एवं लोकतंत्र की रक्षा के लिए भविष्य की रणनीतियां बनाई गई।
राजु कुमार
16 Sep 2019
Napm bhopal

देश के अलग-अलग हिस्सों में जल, जंगल एवं जमीन के संरक्षण के साथ-साथ लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए स्थानीय एवं व्यापक जन आंदोलन चल रहे हैं। इन जन आंदोलनों के बीच समन्वय एवं साझा संघर्ष के लिए 25 साल पहले एन.ए.पी.एम. यानी जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय का गठन किया गया था, जिसकी कार्यकारिणी में विभिन्न आंदोलनों से जुड़े लोगों को शामिल किया गया। 14 एवं 15 सितंबर को भोपाल में जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का आयोजन किया गया, जिसमें 10 से अधिक राज्यों के वरिष्ठ जन आंदोलनकारी शामिल हुए।

दो दिन की बैठक में देश के कई ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा की गई, जिसमें असम मामले में एनआरसी, जम्मू-कश्मीर मामले में अनुच्छेद 370, मध्यप्रदेश के मामले में नर्मदा घाटी के डूब क्षेत्र, वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन एवं किसानों की स्थिति प्रमुख मुद्दे रहे। दूसरे दिन अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के राष्ट्रीय संयोजक वी.एम. सिंह भी शामिल हुए। इस समिति में देश के 200 से ज्यादा किसान एवं मजदूर संगठन शामिल हैं।

नवंबर में ओडिशा में राष्ट्रीय अधिवेशन

एन.ए.पी.एम. की संयोजक मीरा ने बताया कि कार्यकारिणी की बैठक में देश की वर्तमान राजनीतिक हालात पर चिंता ज़ाहिर की गई। एक ओर केन्द्र सरकार लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों को सीमित कर रही है, तो दूसरी ओर विभिन्न जन आंदोलनों एवं उनसे जुड़े कार्यकर्ताओं को दबाने का काम कर रही है। यह एक मुश्किल दौर है, जिसमें हमारी एकजुटता महत्वपूर्ण है। इसलिए हमने एन.ए.पी.एम. के द्विवार्षिक राष्ट्रीय अधिवेशन का विषय ‘‘वक़्त की आवाज़ है, मिलकर चलो - लोकतंत्र, संविधान एवं आजादी के लिए’’ रखा है। यह अधिवेशन 23 से 25 नवंबर को ओडिशा के पुरी में आयोजित किया जाएगा। इसी साल एन.ए.पी.एम. के 25 साल पूरे होने हो रहे हैं। 28 नवंबर को दिल्ली में वन अधिकार कानून को लेकर एक बड़ा आंदोलन किया जाएगा, जिसमें देश भर से एक लाख लोगों के शामिल होने की उम्मीद है।

उन्होंने बताया कि केन्द्र सरकार दमनकारी कानून लाकर जन संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं को दबाने का काम कर रही है। देश आर्थिक मंदी से जूझ रहा है, लेकिन सरकार कमजोर एवं अल्पसंख्यकों के अधिकारों और भारत की विविधता को कुचल रही है। लंबे समय से प्रतिबंधों के कारण जम्मू-कश्मीर के लोग अवसाद से घिरने लगे हैं। असम में एन.आर.सी. के कारण 19 लाख लोगों की नागरिकता पर सवाल खड़ा हो गया है। सिटिजनशिप बिल के माध्यम से देश में धार्मिक आधार पर भेदभाव किए जाने का प्रयास किया जा रहा है, जबकि संविधान में धर्म के आधार पर कोई भेद नहीं करने की गारंटी है।

NAPM Bhopal (1).jpg

वन अधिकार कानून की आड़ में लाखों आदिवासियों को जंगल से खदेड़ने की साजिश की जा रही है, जिसमें केन्द्र सरकार मौन है। सरदार सरोवर बांध के कारण विकास के नाम पर विनाश किया जा रहा है और लाखों लोगों की आजीविका पर संकट एवं विस्थापन की मार पड़ी है। इन सारी घटनाओं को मानवाधिकारों का उल्लंघन, संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन, देश की विविधता पर हमला एवं लोकतांत्रिक ढांचे पर हमला के रूप में देखा जा सकता है।

17 को बड़वानी में जनाक्रोश रैली, 23 को प्रदेशव्यापी आंदोलन

राहुल राज ने बताया कि एन.ए.पी.एम. के तहत मध्यप्रदेश में होने वाले आगामी कार्यक्रमों के लिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के पूर्व राज्य सचिव बादल सरोज को संयोजक बनाया गया है। आगामी 23 सितंबर को प्रदेश में अति वर्षा से खराब फसलों के सर्वे एवं मुआवजा को लेकर प्रदेश स्तर पर एक बड़ा आंदोलन किया जाएगा। एन.ए.पी.एम. के राजकुमार सिन्हा ने बताया कि दिसंबर में राजधानी भोपाल में प्रदेश की विभिन्न समस्याओं को लेकर एक बड़ा आंदोलन किया जाएगा। 17 सितंबर को बड़वानी में नर्मदा घाटी के विस्थापितों की स्थिति पर एक जनाक्रोश रैली का आयोजन किया जाएगा। इस दिन देश के अन्य हिस्सों में भी जन संगठन नर्मदा घाटी के लोगों के समर्थन में रैली एवं प्रदर्शन करेंगे।

नर्मदा घाटी की स्थिति को लेकर चिंता जाहिर करते हुए वरिष्ठ पत्रकार राकेश दीवान ने बताया कि पिछले 9 सितंबर को प्रदेश सरकार एवं नर्मदा बचाओ आंदोलन के बीच लंबी वार्ता हुई थी, लेकिन उस वार्ता का कोई सकारात्मक परिणाम अभी तक दिखाई नहीं दे रहा है। प्रदेश की पिछली सरकार ने शून्य विस्थापन का जो दावा किया था, उसकी पोल खुल गई है। वर्तमान सरकार को उन लोगों पर एफ.आई.आर. करना चाहिए, जिन्होंने गलत दावे किए थे। आज घाटी में असंख्य लोग हैं, जो विस्थापितों की सूची के किसी रिकॉर्ड में नहीं हैं। जहां लोगों को पुनर्वास किया गया, वे पुनर्वास स्थल भी डूब में आ गए हैं। लाखों लोग जीवन-मरण से जूझ रहे हैं और केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार उनके हित में कोई निर्णय नहीं ले पा रही हैं।

NAPM Bhopal (2).jpg

पूर्व विधायक एवं किसान नेता डॉ. सुनीलम् ने कहा कि सरकार का कहना है कि आंदोलन के लोग कोर्ट जाएं, तो सरकार सहयोग करेगी। यह कहना दिखाता है कि राज्य सरकार खुलकर इस मामले में केन्द्र का विरोध नहीं करना चाहती। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में राज्य सरकार महज खानापूर्ति करना चाहती है। प्रदेश के इतने बड़े इलाके के लाखों लोग प्रभावित हो रहे हैं और मुख्यमंत्री ने उस क्षेत्र का आज तक दौरा नहीं किए हैं।

02आंदोलन से जुड़े साथियों ने कहा कि नर्मदा के मुद्दे पर दिल्ली में सभी विपक्षी दलों से तत्काल बातचीत की जाए। यद्यपि कुछ ने कहा कि विपक्षी दलों में इतनी हिम्मत नहीं बची कि वे केन्द्र के खिलाफ खुल कर बोल पाए, इसलिए जन संगठनों को ही एकजुटता से इस मुद्दे को उठाने की जरूरत है। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के राष्ट्रीय संयोजक वी.एम. सिंह ने कहा कि वे आगामी दिनों में देश में जहां-जहां किसानों के आंदोलन करेंगे, वहां-वहां नर्मदा घाटी के मुद्दे पर भी बात रखेंगे। कार्यकारिणी की बैठक में मदुरेश, अरुंधती धूरू, प्रफुल्ल सामंत्रा, नसीरुद्दीन हैदर खान, आशीष रंजन सहित कई वरिष्ठ कार्यकर्ता शामिल हुए।

NAPM
Mass movement
Bhopal
Indian democracy
National session
Statewide movement
Central Government

Related Stories

विशाखापट्टनम इस्पात संयंत्र के निजीकरण के खिलाफ़ श्रमिकों का संघर्ष जारी, 15 महीने से कर रहे प्रदर्शन

सरकार ने CEL को बेचने की कोशिशों पर लगाया ब्रेक, लेकिन कर्मचारियों का संघर्ष जारी

दिल्ली: ट्रेड यूनियन के साइकिल अभियान ने कामगारों के ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा शुरू करवाई

भोपाल : लखीमपुर नरसंहार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन, राष्ट्रपति को भेजा ज्ञापन

जनांदोलन के लिए संसदीय संघर्ष के इस्तेमाल का नायाब प्रयोग है किसान-आंदोलन

यादें हमारा पीछा नहीं छोड़तीं... छोड़ना भी नहीं चाहिए

सरकार कैसी चाहिएः जो अत्याचार करे या जो भ्रष्टाचार करे?

2020 : सरकार के दमन के बावजूद जन आंदोलनों का साल

2020: लोकतंत्र और संविधान पर हमले और प्रतिरोध का साल

किसान आंदोलन लोकतंत्र के लिए प्रतिरोध का निर्णायक मोर्चा है


बाकी खबरें

  • hisab kitab
    न्यूज़क्लिक टीम
    लोगों की बदहाली को दबाने का हथियार मंदिर-मस्जिद मुद्दा
    20 May 2022
    एक तरफ भारत की बहुसंख्यक आबादी बेरोजगारी, महंगाई , पढाई, दवाई और जीवन के बुनियादी जरूरतों से हर रोज जूझ रही है और तभी अचनाक मंदिर मस्जिद का मसला सामने आकर खड़ा हो जाता है। जैसे कि ज्ञानवापी मस्जिद से…
  • अजय सिंह
    ‘धार्मिक भावनाएं’: असहमति की आवाज़ को दबाने का औज़ार
    20 May 2022
    मौजूदा निज़ामशाही में असहमति और विरोध के लिए जगह लगातार कम, और कम, होती जा रही है। ‘धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाना’—यह ऐसा हथियार बन गया है, जिससे कभी भी किसी पर भी वार किया जा सकता है।
  • India ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    ज्ञानवापी विवाद, मोदी सरकार के 8 साल और कांग्रेस का दामन छोड़ते नेता
    20 May 2022
    India Ki Baat के दूसरे एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, भाषा सिंह और अभिसार शर्मा चर्चा कर रहे हैं ज्ञानवापी विवाद, मोदी सरकार के 8 साल और कांग्रेस का दामन छोड़ते नेताओं की। एक तरफ ज्ञानवापी के नाम…
  • gyanvapi
    न्यूज़क्लिक टीम
    पूजा स्थल कानून होने के बावजूद भी ज्ञानवापी विवाद कैसे?
    20 May 2022
    अचानक मंदिर - मस्जिद विवाद कैसे पैदा हो जाता है? ज्ञानवापी विवाद क्या है?पक्षकारों की मांग क्या है? कानून से लेकर अदालत का इस पर रुख क्या है? पूजा स्थल कानून क्या है? इस कानून के अपवाद क्या है?…
  • भाषा
    उच्चतम न्यायालय ने ज्ञानवापी दिवानी वाद वाराणसी जिला न्यायालय को स्थानांतरित किया
    20 May 2022
    सर्वोच्च न्यायालय ने जिला न्यायाधीश को सीपीसी के आदेश 7 के नियम 11 के तहत, मस्जिद समिति द्वारा दायर आवेदन पर पहले फैसला करने का निर्देश दिया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License