NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
अपराध
आंदोलन
मज़दूर-किसान
समाज
भारत
राजनीति
एफ़आरए : आदिवासियों की ज़मीनों पर फ़ैसला कल
एफ़आरए का ये फ़ैसला ऐसे समय में आने वाला है जब देश भर में तमाम क़ानूनी और ग़ैर-क़ानूनी तरीक़ों से आदिवासियों के अधिकारों का हनन किया जा रहा है।
सत्यम् तिवारी
23 Jul 2019
एफ़आरए

सूप्रीम कोर्ट के एक आदेश के मुताबिक़ कल 24 जुलाई को देश के 11 लाख आदिवासियों की ज़िंदगी का फ़ैसला होने जा रहा है। कल वन अधिकार क़ानून यानी एफ़आरए की सुनवाई है, जिसमें कोर्ट के आदेश के मुताबिक़ इसका फ़ैसला होगा कि देश के आदिवासी जिस भूमि पर रह रहे हैं, वो उनकी ज़मीन है या नहीं। 
बता दें, कि इसी साल फ़रवरी में सूप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि जिन भी आदिवासियों के एफ़आरए क्लेम रद्द किए गए हैं, उनको जंगल से हटा दिया जाए। जब इस आदेश के ख़िलाफ़ देश भर में आंदोलन शुरू हुए तब कोर्ट ने अपने आदेश पर स्टे लगा दिया और राज्यों से एक नए सिरे से कार्रवाई करने को कहा। जिसके तहत राज्यों को 12 जुलाई तक सभी आदिवासियों के एफ़आरए क्लेम की पुष्टि करनी थी, उसी के बाद 24 जुलाई को एफ़आरए की सुनवाई होगी।

राज्यों से कहा गया था कि उन्हें 12 जुलाई तक एफ़िडेविट जमा करने हैं और निरीक्षण कर के बताना है कि कितने एफ़आरए क्लेम रद्द किए गए हैं। लेकिन इस प्रक्रिया में भी कई तरह के झोल देखने को मिले हैं। विभिन्न राज्यों के आदिवासियों ने दावा किया कि अधिकारियों ने ज़्यादातर क्लेम की पुष्टि तक नहीं की और उन्हें यूँ ही रद्द कर दिया गया। एक आंकड़े के अनुसार ये पता चला कि अकेले मध्य प्रदेश में क़रीब 4 लाख आदिवासियों के एफ़आरए क्लेम बग़ैर किसी उचित जांच के नष्ट कर दिया गए हैं। वहीं ओडिशा में दस लाख से ज़्यादा क्लेम रद्द कर दिये गए हैं।

सरकार द्वारा आदिवासियों को उनकी ज़मीन से बे-दख़ल करने की जो प्रक्रिया चल रही है, सिर्फ़ वही आदिवासियों के अधिकारों का हनन नहीं है, बल्कि इसके अलावा बीते क़रीब दो महीनों में जगह-जगह पर आदिवासियों को उनकी ज़मीन से हटाने से लिए उन पर हमले हो रहे हैं। हाल ही में हुआ सोनभद्र कांड इसका ताज़ा उदाहरण है, जहाँ ऊंची जाति के गुंडों ने 10 आदिवासियों को जान से मार दिया। इसके अलावा तेलंगाना, मध्य प्रदेश और केरल से लगातार आदिवासियों पर हो रहे हमलों की ख़बरें आ रही हैं। वन विभाग, पुलिस, सरकार और ऊंची जाति के समुदाय; सबकी तरफ़ से अलग-अलग तरीक़ों से आदिवासियों पर हमले किए जा रहे हैं। मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में वन विभाग के अधिकारियों द्वारा आदिवासी पर हमला किया गया था, जब वो अपनी वन विभाग से अपनी फसल बचा रहे थे, और चार आदिवासी घायल हो गए। उस मामले में आज भी आदिवासी धरने पर बैठे हैं।

FRA Kalwan1.jpg

सरकार की तरफ़ से एफ़आरए का ये फ़ैसला और दूसरी तरफ़ आदिवासियों पर हो रहे ऊंची जाति के समुदायों  के हमले, एक दूसरे से एकदम अलग नहीं हैं। एफ़आरए का ये फ़ैसला उस वक़्त आ रहा है जब सरकार के स्तर पर और समाज के स्तर पर देश भर के आदिवासियों के अधिकारों का हनन किया जा रहा है और उन्हें उनकी ज़मीनों से हटाने के लिए तमाम क़ानूनी-ग़ैर-क़ानूनी हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।

देश भर में विभिन्न आदिवासी संगठनों ने अपनी ज़मीनों के लिए और सरकार के लापरवाह रवैये के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किए हैं। इसके अलावा अन्य सनगठनों ने भी राजधानी दिल्ली में आदिवासियों के समर्थन में रैली की है। 

महाराष्ट्र के रायगढ़ ज़िले में अलीबाग़ और करजात में आदिवासी संगठनों ने प्रदर्शन किए। अलीबाग़ में शोषित जन आंदोलन के क़रीब 1000 आदिवासियों ने प्रदर्शन किया, जिसमें भारी संख्या में महिलाएँ शामिल थीं। वे अधिकारियों से मिलीं और उन्हें अपनी मांगों को लेकर पत्र सौंपा। करजात में शोषित जन आंदोलन और जागृत कष्टकार संगठन ने प्रदर्शन किए।

महाराष्ट्र के ही पालघर ज़िले के दहानु में, कष्टकारी संगठन और शेतमजूर शेतकारी पंचायत ने पालघर में कलेक्टर के दफ़्तर के बाहर प्रदर्शन किए।

आज महाराष्ट्र में विभिन्न संगठनों कई ज़िलों में प्रदर्शन किए हैं। इसके अलावा मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश में भी प्रदर्शन जारी हैं। राजधानी दिल्ली में कल आदिवासियों के समर्थन में विभिन्न संगठनों ने जंतर मंतर पर प्रदर्शन किए।

IMG-20190723-WA0025.jpg

इस मामले के दो पहलू हैं। एक तो ये कि अगर कल कोर्ट का फ़ैसला आदिवासियों के हक़ में नहीं आता है, तो वो क़ानूनी तरीक़े से अपनी ज़मीनें खो देंगे, हालांकि उस तथाकथित क़ानूनी प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए जा सकते हैं। दूसरा पहलू है, कि आदिवासियों पर आधिकारिक स्तर के अलावा सामाजिक स्तर पर जो हिंसा हो रही है। बीते दो महीनों में केरल, मध्य प्रदेश(तीन घटनाएँ) और उत्तर प्रदेश से आदिवासियों पर हो रहे हमलों की ख़बरें लगातार सुनने को मिल रही हैं। इन घटनाओं को जिस तरह से सारा मीडिया "झड़प" और "नोंक-झोंक" कह कर दिखा रहा है, वो एकदम ठीक नहीं है। ये घटनाएँ सीधे तौर पर नरसंहार की घटनाएँ हैं, जिनमें आदिवासियों को "बाहरी" मान कर उन्हें इस समाज से हटाने की साज़िशों के तहत क़दम उठाए गए हैं। सोनभद्र में ऊंची जाति के लोगों ने 10 लोगों को जान से मार दिया। मध्य प्रदेश में वन विभाग ने गोलीबारी की, और दो घटनाओं में ऊंची जाति के लोगों ने हमले किए। ये सब घटनाएँ लगातार बढ़ी हैं। और ये एक तरह से आदिवासियों के व्यक्तित्व और उनकी पहचान पर हमला है।

हमें ये समझने की ज़रूरत है कि आदिवासियों को हमारे समाज में किस तरह से देखा जाता है। आदिवासी इस समाज में सबसे निचले पायदान पर हैं। इसीलिए जब उन्हें जंगल से हटाये जाने की प्रक्रिया शुरू होती है, तो उसमें लापरवाही की जाती है। उन्हें जान से मार दिया जाता है, और सब उसे "जंग" का नाम देते हैं। आदिवासियों को इस समाज का हिस्सा इसल्लिए भी नहीं माना जाता क्योंकि वो इस समाज के "आम" लोगों के साथ हर रोज़ के कामों में शामिल नहीं होते। वो उन स्कूलों में नहीं जाते, उन जगहों पर काम नहीं करते जहाँ बाक़ी सब लोग करते हैं। जब आदिवासियों पर हमले होते हैं, येतो सिर्फ़ इस वजह से नहीं होते कि वो जाति व्यवस्था में नीचे हैं, बल्कि इसलिए होते हैं कि उन्हें समाज में ही सबसे नीचे माना जाता है। हर जाति, हर धर्म, हर तबक़े से नीचे।
सरकारें और समाज, दोनों ही आदिवासियों के अधिकारों को छीन रहे हैं। वो जंगल में रहते थे, और अब जंगल भी उनसे छीने जा रहे हैं।

आदिवासियों से जंगल ख़ाली करवाने के पीछे सरकारों का तर्क हमेशा से ये रहा है कि वो उस ज़मीन का इस्तेमाल “विकास” के लिए करेंगे। और ये भी कहा जाता रहा है कि आदिवासी जंगलों को नष्ट कर रहे हैं, और प्रकृति को नुक़सान पहुँचा रहे हैं। लेकिन मौजूदा सरकार का पूँजीपतियों के लिए समर्थन देखने से ये बात साफ़ हो जाती है, कि आदिवासियों को उनकी ज़मीन से इसलिए हटाया जा रहा है ताकि वो ज़मीन पूँजीपतियों को "विकास" के नाम पर दी जा सके और तरह-तरह के खनन और अन्य चीज़ों के लिए उसे इस्तेमाल किया जा सके।

अब तक की कार्रवाई को देखते हुए कल के एफ़आरए के फ़ैसले से कोई आशावादी उम्मीद करना बे-मानी सा है। लेकिन अगर आदिवासियों को ज़मीनें मिल भी जाती हैं, उसके बाद उन्हें ये समाज और ये सरकार कितना एक्सेप्ट करेगी, ये भी सोचने वाला मुद्दा है।

fra
violnece against tribals
sonbhadra killings
Supreme Court
fra verdict
Madhya Pradesh
Kerala
Caste Violence
Forest Rights Act

Related Stories

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

मनासा में "जागे हिन्दू" ने एक जैन हमेशा के लिए सुलाया

‘’तेरा नाम मोहम्मद है’’?... फिर पीट-पीटकर मार डाला!

राजीव गांधी हत्याकांड: सुप्रीम कोर्ट ने दोषी पेरारिवलन की रिहाई का आदेश दिया

कॉर्पोरेटी मुनाफ़े के यज्ञ कुंड में आहुति देते 'मनु' के हाथों स्वाहा होते आदिवासी

मध्यप्रदेश: गौकशी के नाम पर आदिवासियों की हत्या का विरोध, पूरी तरह बंद रहा सिवनी

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

मध्य प्रदेश : मर्दों के झुंड ने खुलेआम आदिवासी लड़कियों के साथ की बदतमीज़ी, क़ानून व्यवस्था पर फिर उठे सवाल

नफ़रत फैलाने वाले भाषण देने का मामला: सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस

ख़बरों के आगे पीछे: हिंदुत्व की प्रयोगशाला से लेकर देशभक्ति सिलेबस तक


बाकी खबरें

  • food
    रश्मि सहगल
    अगर फ़्लाइट, कैब और ट्रेन का किराया डायनामिक हो सकता है, तो फिर खेती की एमएसपी डायनामिक क्यों नहीं हो सकती?
    18 May 2022
    कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा का कहना है कि आज पहले की तरह ही कमोडिटी ट्रेडिंग, बड़े पैमाने पर सट्टेबाज़ी और व्यापार की अनुचित शर्तें ही खाद्य पदार्थों की बढ़ती क़ीमतों के पीछे की वजह हैं।
  • hardik patel
    भाषा
    हार्दिक पटेल ने कांग्रेस से इस्तीफ़ा दिया
    18 May 2022
    उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजे गए त्यागपत्र को ट्विटर पर साझा कर यह जानकारी दी कि उन्होंने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है।
  • perarivalan
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    राजीव गांधी हत्याकांड: सुप्रीम कोर्ट ने दोषी पेरारिवलन की रिहाई का आदेश दिया
    18 May 2022
    उम्रकैद की सज़ा काट रहे पेरारिवलन, पिछले 31 सालों से जेल में बंद हैं। कोर्ट के इस आदेश के बाद उनको कभी भी रिहा किया जा सकता है। 
  • corona
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना मामलों में 17 फ़ीसदी की वृद्धि
    18 May 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 17 फ़ीसदी मामलों की बढ़ोतरी हुई है | स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार देश में 24 घंटो में कोरोना के 1,829 नए मामले सामने आए हैं|
  • RATION CARD
    अब्दुल अलीम जाफ़री
    योगी सरकार द्वारा ‘अपात्र लोगों’ को राशन कार्ड वापस करने के आदेश के बाद यूपी के ग्रामीण हिस्से में बढ़ी नाराज़गी
    18 May 2022
    लखनऊ: ऐसा माना जाता है कि हाल ही में संपन्न हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की जीत के पीछे मुफ्त राशन वित
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License