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तेलंगाना की पहली सुपर थर्मल पावर परियोजना को हरी झंडी देने में अहम मुद्दों की अनदेखी?
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने एनटीपीसी की रामागुंडम ताप विद्युत परियोजना के सभी प्रमुख पहलुओं के अध्ययन होने तक उसकी पर्यावरण मंजूरी को रोक दिया है।
अयस्कांत दास
09 Jun 2021
Thermal plant
छवि सौजन्य: विकिपीडिया

नई दिल्ली : एक विवादास्पद कदम में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के एक विशेषज्ञ पैनल ने तेलंगाना में एक ताप विद्युत परियोजना (थर्मल पावर प्रोजेक्ट) को पर्यावरण मंजूरी देने की सिफारिश की है जबकि परियोजना की पर्यावरणीय प्रभाव आकलन रिपोर्ट में कई कमियां गिनाई गई हैं। इन आपत्तियों को दरकिनार करते हुए केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने भी मंत्रालय के विशेषज्ञ पैनल की सिफारिश के आधार पर परियोजना को अपनी हरी झंडी दे दी थी।

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने 27 मई को इस परियोजना की पर्यावरण मंजूरी को स्थगित कर दिया था। 2X800 मेगावाट (MW) बिजली पैदा करने वाली यह परियोजना तेलंगाना प्रदेश में करीमनगर जिले के रामागुंडम में स्थापित है। राष्ट्रीय ताप विद्युत कॉरपोरेशन (NTPC), जो इस परियोजना का कर्ता-धर्ता है, उसको बिजली उत्पादन शुरू करने के पहले इस संयंत्र के बारे में कई नए अध्ययन का निर्देश दिया गया है। एनटीपीसी को यह रास नहीं आया। उसने हरित प्राधिकरण के इस निर्देश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर दी। 

नरेन्द मोदी सरकार ने जनवरी 2016 में संयंत्र के लिए जरूरी पर्यावरण मंजूरी दी थी, जिसे एनटीपीसी द्वारा तेलंगाना में पहली सुपर थर्मल पावर परियोजना के रूप देखा जा रहा है।

हरित प्राधिकरण की तरफ से एनटीपीसी को जारी किए गए अनेक निर्देशों में कहा गया है कि वह कोयले में रेडियोधर्मिता की मौजूदगी और भारी धातु की मौजूदगी का परीक्षण करे, जिसका उपयोग ताप संयंत्र में ईंधन के रूप में किया जाएगा। हालांकि इस बड़े सार्वजनिक कंपनी से यह भी कहा गया है कि वह जीवाश्म ईंधन के उपयोग वाली विद्युत परियोजना की 15 किलोमीटर की परिधि में स्थानीय पर्यावरण पर पड़ने वाले समग्र प्रभावों की जांच करे। यह तथ्य है कि रामागुंडा क्षेत्र में प्रदूषण फैलाने वाली कई इकाइयां पहले से ही मौजूद हैं। 

हरित क्षेत्र प्राधिकरण की दक्षिणी खंडपीठ के न्यायिक सदस्य न्यायाधीश के. रामकृष्ण और विशेषज्ञ सदस्य सैबाल दासगुप्ता आदेशने दिया कि “ … इसलिए यह सबसे ज्यादा आवश्यक है कि संयंत्र में इस्तेमाल किए जाने वाले कोयले में रेडियोधर्मिता और भारी धातु की उपस्थिति के आधार पर उसका पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों का एक आकलन किया जाए। विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (ईएसी) उस आकलन को मूल्यांकन के लिए उपलब्ध कराए। उसे विशेषज्ञों की कमेटी और केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) के समक्ष प्रस्तावित परियोजना को हरी झंडी देने या इसकी सिफारिश की बाबत अनुमति हासिल करने के लिए पेश किया जाए,” 

जनवरी 2016 में पर्यावरण मंजूरी पर अंतरिम स्थगन लगाया गया था। खंडपीठ ने इसके अगले सात महीनों में एनटीपीसी को इससे संबंधित सभी प्रकार की जांच-परीक्षणों की कवायद पूरी करने का निर्देश दिया था। इन जांच-परीक्षणों की रिपोर्ट को MoEF&CC के विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (ईएसी) द्वारा विश्लेषित किए जाने, और यदि समिति ने परियोजना-संचालन की बाबत कोई अतिरिक्त नियम औऱ शर्तें रखीं, तो उन पर भी विचार करने के बाद ही ताप परियोजना में बिजली उत्पादन का काम शुरू किए जाने का निर्देश दिया था। 

परियोजना की अनुमति दिए जाने के पहले ईएसी ने अपनी दो लगातार बैठकों में पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआइए) की रिपोर्ट पर विचार किया था। ईएसी की अक्टूबर 2005 में आयोजित 45वीं बैठक में परियोजना पर विचार किया गया था।  इसके बाद, नवंबर 2015 में ईएसी की 40वीं बैठक में भी विचार हुआ था। इन बैठकों के बाद परियोजना को, कुछ शर्तों के साथ, पर्यावरण की मंजूरी देने की सिफारिश की गई थी। यद्यपि एनटीपीसी ने इन दोनों में से किसी भी बैठकों में कोयले की गुणवत्ता का कोई विवरण नहीं दिया था। 

स्थानीय निवासी उमा महेश्वर दहगमा जिन्होंने इस परियोजना की पर्यावरण-मंजूरी को चुनौती दी थी, उनका कहना है, “आसपास के इलाके की  वायु-गुणवत्ता पर संयंत्र के पड़ने वाले प्रभावों के बारे में ईआइए की  रिपोर्ट के लिए पर्याप्त अध्ययन नहीं किया गया था।  उस स्थिति में भी जबकि क्षेत्र में पहले से ही 20 सर्वाधिक प्रदूषित उद्योग लगे हुए हैं। हालांकि इस परियोजना से 15 किलोमीटर की परिधि में पड़ने वाले प्रभावों के अध्ययन की जरूरत है, लेकिन इसकी बजाए 10 किलोमीटर की परिधि में अवस्थित कुछ ही उद्योगों के वातावरण पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया गया है।”  

उमा महेश्वर ने केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को ई-मेल के जरिए पूछा था कि ईआइए की रिपोर्ट में कतिपय खामियों के बावजूद इस परियोजना को पर्यावरण मंजूरी किस आधार पर दी गई। यह रिपोर्ट प्रकाशित किए जाने तक मंत्रालय की तरफ से उन्हें कोई जवाब नहीं मिला है। मंत्रालय की तरफ से जैसे ही कोई ताजा जानकारी मिलेगी, उसके आधार पर इस रिपोर्ट को अद्यतन कर लिया जाएगा।

इस परियोजना के लिए कुल कोयले की आवश्यकता प्रतिवर्ष 8 मिलियन टन है। ईआइए की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्रीय कोयला मंत्रालय ने सितंबर 2015 को प्रस्तावित परियोजना के लिए कोयला आपूर्ति के लिए ओडिशा के मंदाकिनी के बी-कोल ब्लॉक आवंटित किया था। लेकिन परियोजना को पहले ही प्रारंभ करना सुनिश्चित करने के लिए मंत्रालय ने मई 2015 में एनटीपीसी को कोल इंडिया लिमिटेड और उसकी पूरक इकाई वेस्टर्न कोल लिमिटेड से कोयला खरीदने की सिद्धांतत: अनुमति दे दी थी। यह प्रबंध तब तक सुचारु रखने की बात थी, जब तक कि एनटीपीसी को अपनी परियोजना के लिए मंदाकिनी भी ब्लॉक से कोयले का पूरा आवंटन नहीं हो जाता। लेकिन एनटीपीसी ने  पहले दो स्रोतों से मिलने वाले कोयले के लिए रेडियोधर्मिता और भारी धातु  जांच नहीं कराई। 

कोयले की गुणवत्ता के बारे में मूल्यांकन रिपोर्ट पर्यावरण मंजूरी मिलने के कोई 10 महीने बाद  ईएसी के समक्ष, नवंबर 2016 में पेश की गई थी।  इसके अलावा, वेस्टर्न कोल लिमिटेड से खरीदे जाने वाले कोयले  की प्रयोगशाला जांच रिपोर्ट में  रेडियोधर्मिता और भारी धातु की मौजूदगी का आकलन नत्थी नहीं की गई थी। एनटीपीसी ने हरित प्राधिकरण के समक्ष अपने बचाव में कहा था कि रामागुंडम संयंत्र के लिए पर्यावरण पर इसके प्रभाव का आकलन करने के लिए कोयले की सबसे खराब गुणवत्ता का इस्तेमाल किया गया था। लेकिन प्राधिकरण ने उसके तर्क में कोई वजन नहीं पाया था क्योंकि खराब गुणवत्ता वाले कोयले के नमूने की भी रेडियोधर्मिता और उसमें भारी धातु की मौजूदगी का परीक्षण नहीं किया गया था, जिसका परियोजना के प्रस्तावक एनटीपीसी ने कथित रूप से गुणवत्ता विश्लेषण के लिए उसका उपयोग किया था। 

याचिकाकर्ता ने “यांत्रिक” तरीके से पर्यावरण-मंजूरी दिए जाने का आरोप लगाया क्योंकि ईआइए की रिपोर्ट में कई तरह की कमियां बताई गई हैं। यह भी कि योजना के प्रस्तावक एनटीपीसी ने संयंत्र की पूरी जरूरत के लिए इंधन संपर्क को कंफर्म नहीं किया था,जब ईएसी की 45वीं बैठक में इस पर विचार किया गया था। परियोजना के प्रस्तावक ने केवल 2 मेगावाट विद्युत उत्पादन के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई सिंगरेनी कोलियरी लिमिटेड से इंधन संपर्क की पुष्टि की थी।  लेकिन आइएसी ने पर्यावरण मंजूरी की सिफारिश करने से पहले  संयंत्र की कुल जरूरत के लिए इंधन संपर्क की पुष्टि करने  पर जोर दिया था। बाद में हुई बैठक में,  हालांकि परियोजना के प्रस्तावक ने कहा था कि उसके  पास रामागुंडम संयंत्र के लिए पश्चिमी कोयल लिमिटेड से  कोयले की आपूर्ति होनी है।

इसके अलावा, एनटीपीसी ने उड़न-राख तालाब के भूजल पर पड़ने वाले प्रभाव का पता लगाने के लिए कथित रूप से अध्ययन नहीं किया था। (उड़न राख संयंत्र में कोयले के इस्तेमाल के बाद उसके उप-उत्पाद बतौर मिलती है और वह तालाब में जम जाती है। बाद में यह भूजल की गुणवत्ता को भी बिगाड़ देती है।  इसमें सिलिका, एल्यूमीनियम और कैल्शियम के ऑक्साइड की पर्याप्त मात्रा होती है। इसमें, आर्सेनिक, बोरान, क्रोमियम तथा सीसा जैसे तत्त्व भी सूक्ष्म मात्रा में पाए जाते हैं। इससे पर्यावरण और स्वास्थ्य पर गहरा संकट उत्पन्न हो जाता है।)। इसके अलावा, एनटीपीसी ने इस परियोजना के लिए जीरो लिक्विड डिस्चार्ज सिस्टम की वहनीयता का भी अध्ययन नहीं किया था, जो प्रणाली से सभी प्रकार के तरल अवशिष्टों को दूर करता है और उसको फिर से उपयोग किए जाने लायक बनाता है। इसके अतिरिक्त, परियोजना के लिए प्रस्तावित दहन गैस निर्गंधीकरण (फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन/एफजीडी) प्रणाली की स्थापना और संचालन के पर्यावरणीय प्रभावों का भी अध्ययन नहीं किया था। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने अपने आदेश में एनटीपीसी को निर्देश दिया कि वह निर्धारित अवधि में इन सभी परीक्षणों को पूरा करें।

एनटीपीसी को ई-मेल के जरिए भेजे अपने सवाल में हमने पूछा था कि वह स्रोतों से उपलब्ध कोयले की रेडियोधर्मिता की जांच कराने और संयंत्र के 15 किलोमीटर की परिधि में परियोजना के संचयी प्रभाव मूल्यांकन के लिए किन आधारों पर विफल रहा था। एनटीपीसी के जवाब का इंतजार किया जा रहा है। 

इस पर रामागुंडम में एनटीपीसी के एक अधिकारी ने न्यूज़क्लिक से कहा कि एनजीटी के आदेश के बाद नई दिल्ली के प्रधान कार्यालय ने इस परियोजना के बारे में आगे की कार्रवाई तय करने के लिए कुछ विवरण और सूचनाएं मांगी थी, जिसे भेज दिया गया है।

सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर में काम कर रहे सुनील दहिया का कहना है,  “देश में मौजूदा समय में कई ताप परियोजनाएं अपनी उपेष्टतम क्षमता (sub-optimal capacity) पर चल रही हैं। इसके पीछे अक्षय स्रोतों से बिजली के उत्पादन में वृद्धि सहित कई कारक काम कर रहे हैं। अगर एनटीपीसी से अपनी परियोजना के प्रस्ताव के बारे में फिर से समीक्षा के लिए कहा जा रहा है, तो उसे इस अवसर का लाभ जीवाश्म ईंधन से अलग हटने और नवीकरणीय ऊर्जा पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए।” 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

https://www.newsclick.in/expert-panel-ignored-issues-giving-nod-telangana-first-super-thermal-power-project

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