NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
फ़ैक्ट-चेक : बगैर चार्जशीट फ़ाइल हुए जेल में बंद थीं प्रज्ञा ठाकुर?
ऑल्ट न्यूज़ ने पता लगाया कि ये दावा कम से कम 2012 से किया जा रहा है. फिलहाल कुछ समय से मोदी सरकार की आलोचना करने वालों को जेल में डाले जाने के ख़िलाफ़ गुस्से की वजह से ये दावा फिर से चर्चा में आया.
पूजा चौधरी
13 Jul 2021
फ़ैक्ट-चेक : बगैर चार्जशीट फ़ाइल हुए जेल में बंद थीं प्रज्ञा ठाकुर?

5 जुलाई को कार्यकर्ता और ज़ेसुइट पुजारी स्टेन स्वामी की मौत हो गयी. वो अपने मुक़दमा शुरू होने का इंतज़ार ही करते रह गए. इन्हें UAPA के तहत गिरफ़्तार किया गया था. 84 साल के स्वामी को प्रतिबंधित संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) से संबंध रखने और 2018 में भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़काने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था. उनकी मौत ने मोदी सरकार और भारतीय न्याय व्यवस्था की हो रही आलोचना को और बढ़ाने का काम किया. पार्किंसन रोग से पीड़ित स्वामी को जेल में बिताए सात महीनों के दौरान कई बार जमानत देने से मना किया गया था. UN सहित कई अंतर्राष्ट्रीय संगठन ने न्यायिक हिरासत में हुई उनकी मौत की निंदा की है.

हालांकि, भारत में दक्षिणपंथी विचारधारा के एक वर्ग ने दावा किया है कि आक्रोश सेलेक्टिव रहा है. कॉलमिस्ट अभिजीत अय्यर मित्रा ने एक ट्वीट में दावा किया कि सांसद प्रज्ञा ठाकुर और लेफ़्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित को बिना चार्ज़शीट फ़ाइल किए ही जेल में रखा गया था जो फिलहाल आतंकी आरोपों में जमानत पर हैं.

image

कई लोगों ने इसी तरह दावा किया है कि ये लोग भी बिना किसी चार्ज़शीट के ‘सालों से’ पुलिस हिरासत में थे.

ये बात काफ़ी समय से चर्चा में है. ऑल्ट न्यूज़ ने पता लगाया कि ये दावा कम से कम 2012 से किया जा रहा है. फिलहाल कुछ समय से मोदी सरकार की आलोचना करने वालों को जेल में डाले जाने के ख़िलाफ़ गुस्से की वजह से ये दावा फिर से चर्चा में आया. भाजपा समर्थक शेफाली वैद्या ने पिछले साल ये दावा किया था कि प्रज्ञा ठाकुर आठ साल तक बिना किसी चार्ज़शीट के जेल में बंद थीं. ऑप इंडिया के कॉलमिस्ट अभिषेक बनर्जी ने लिखा कि प्रज्ञा ठाकुर ने बिना चार्ज़शीट 10 साल जेल में बिताए.

image

image

फ़ैक्ट-चेक

29 सितंबर, 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में एक बम विस्फोट में 6 मारे गए थे और 100 लोग घायल हुए. राज्य के एंटी टेररिज़्म स्क्वाड (ATS) ने अक्टूबर 2008 में प्रज्ञा ठाकुर को प्रारंभिक आरोपियों में से एक के रूप में गिरफ़्तार किया था. प्रज्ञा ठाकुर ने दावा किया कि ATS ने उन्हें 10 अक्टूबर 2008 से 22 अक्टूबर 2008 तक अवैध हिरासत में रखा था.

प्रज्ञा ठाकुर ने बॉम्बे हाई कोर्ट में एक डिफ़ॉल्ट जमानत अप्लीकेशन फ़ाइल किया जिसे 12 मार्च, 2010 को खारिज कर दिया गया था. उन्होंने तर्क दिया था कि उन्हें भारत के संविधान के ऑर्टिकल 22(1) और 22(2) के आदेश के उल्लंघन के चलते और CRPC के सेक्शन 167(2) के अनुसार 90 दिनों के भीतर चार्ज़शीट दाखिल न होने के आधार पर जमानत मिलनी चाहिये.

सुप्रीम कोर्ट के वकील विवेक शर्मा ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया पर एक ब्लॉग में डिफ़ॉल्ट जमानत के बारे में विस्तार से लिखा था, “डिफ़ॉल्ट ज़मानत CPC, 1973 के सेक्शन 167(2) के अंदर आती है और इसमें ट्रायल जज आरोपी को हिरासत में लेने के बाद निर्धारित समय सीमा के भीतर पुलिस द्वारा चार्जशीट दाखिल नहीं होने पर जमानत देते हैं. इसके अलावा जमानत सिर्फ और सिर्फ मेरिट के आधार पर होनी चाहिए.”

CRPC के सेक्शन 167(2) के सब-सेक्शन (a) (i) में प्रावधान है कि जहां जांच की जरुरत है वहां अधिक से अधिक 90 दिन की हिरासत की अनुमति होगी जिसमें अपराध के लिए “मृत्युदंड, आजीवन कारावास या दस साल से कम की सज़ा” शामिल है. सेक्शन 167(2) के सब-सेक्शन (a) (ii) में प्रावधान है कि किसी भी दूसरे अपराध जिसकी सज़ा मौत, आजीवन कारावास या दस साल से अधिक नहीं है, उसमें हिरासत के लिए अधिक से अधिक समय 60 दिन की होगी.

प्रज्ञा ठाकुर के मुताबिक, उन्हें 10 अक्टूबर, 2008 को गिरफ़्तार किया गया था और 90 दिनों की समय सीमा ख़त्म होने के बाद 20 जनवरी, 2009 को चार्ज़शीट फ़ाइल की गयी थी.

23 सितम्बर 2011 को प्रज्ञा ठाकुर ने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें उनकी डिफ़ॉल्ट जमानत याचिका को खारिज कर दिया गया था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी याचिका को खारिज करते हुए कहा, “आर्टिकल 22(2) का उल्लंघन करने की दलील अपीलकर्ता के इस अनुमान पर आधारित है कि उसे 10 अक्टूबर, 2008 को गिरफ़्तार किया गया था. फ़ैक्ट के अनुसार ये दलील सही नहीं पाई गई है. अपीलकर्ता को असल में 23 अक्टूबर, 2008 को ही गिरफ़्तार किया गया था.”

ATS ने 20 जनवरी, 2009 को फ़ाइल चार्जशीट में प्रज्ञा ठाकुर की गिरफ़्तारी की तारीख 23 अक्टूबर, 2008 दिखायी है.

image

SC ने हाई कोर्ट के 10 अक्टूबर 2008 को हिरासत में न लिए जाने के फैसले को बरकरार रखा, ”प्रज्ञा ठाकुर को केवल पूछताछ के बाद जाने की अनुमति दे दी गई. ध्यान देने वाली बात ये भी है कि वो अलग-अलग लॉज और अस्पतालों में रुकी थीं. साथ ही घूमने-फिरने और लोगों से संपर्क करने के लिए स्वतंत्र थीं. हाई कोर्ट के अनुसार, अपीलकर्ता अपने शिष्य से संपर्क में थी और अपना मोबाइल फ़ोन भी इस्तेमाल कर रही थी, जिस पर किसी तरह का विवाद नहीं था.”

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, ATS ने गिरफ़्तारी की तारीख से 89वें दिन बाद पहली चार्ज़शीट फ़ाइल की.

ATS ने 21 अप्रैल, 2011 को मुंबई में विशेष महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ़ आर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट (MCOCA) कोर्ट में एक सप्लिमेंट्री चार्ज़शीट फ़ाइल की. इसमें प्रज्ञा ठाकुर का नाम 14 आरोपियों में शामिल था. चार्जशीट के अनुसार, हेमंत करकरे के नेतृत्व में ATS की एक टीम ने ठाकुर की मोटरसाइकिल का पता लगाया जिसमें विस्फोट हुआ था.

13 अप्रैल, 2011 से राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने इस मामले की जांच की. 3 मार्च 2016 को NIA ने एक 1 सप्लिमेंट्री चार्जशीट फ़ाइल किया जिसमें MCOCA के तहत सभी आरोपियों के खिलाफ सभी आरोप हटा दिए गए. इसके अलावा, प्रज्ञा ठाकुर का नाम उन लोगों में शामिल था जिनके खिलाफ मुकदमा “चलाने योग्य” नहीं था.

पेशे से वकील और महिला अधिकार कार्यकर्ता वृंदा ग्रोवर ने ऑल्ट न्यूज़ से बात करते हुए कहा, “सबसे ज़रुरी सवाल ये है कि क्या वाकई चार्ज़शीट फ़ाइल की गयी और सुनवाई शुरू हुई थी. या फिर ये आरोपी बिना सुनवाई शुरू हुए ही जेल में बंद थे. ATS ने पहले ही प्रज्ञा ठाकुर के खिलाफ चार्जशीट फ़ाइल कर दी थी और मुकदमा शुरू हो चुका था. बाद में केस NIA को सौंप दिया गया जिससे ATS केस से हट गया और प्रज्ञा ठाकुर को आरोपों से बरी करते हुए एक सप्लिमेंट्री चार्ज़शीट फ़ाइल की गयी. ATS के केस को कमजोर करने के लिए सप्लिमेंट्री चार्जशीट फ़ाइल की गई थी. हालांकि, प्रज्ञा ठाकुर बिना मुकदमे के जेल में बंद नहीं थी, जैसा कि भीमा कोरेगांव मामले में हुआ था. जहां तीन साल बीतने के बाद भी मुकदमा शुरू नहीं हुआ था.”

NIA द्वारा आरोपों को हटाने के बाद 15 अक्टूबर, 2016 को बॉम्बे हाई कोर्ट ने प्रज्ञा ठाकुर की सज़ा पर सवाल उठाया. उन्हें 25 अप्रैल, 2017 को मेडिकल ग्राउंड पर ज़मानत दी गई थी.

27 दिसंबर, 2017 को NIA की विशेष अदालत ने चार्जशीट के बारे में कहा कि प्रज्ञा ठाकुर को सज़ा दिये जाने के लिए पर्याप्त सबूत मौजूद हैं. कोर्ट ने मालेगांव विस्फोट केस से बरी करने के लिए उनकी याचिका खारिज करते हुए कहा कि आरोपी को अब गैरकानूनी गतिविधि प्रिवेंशन एक्ट (UAPA) के सेक्शन 16 और 18 साथ ही IPC के तहत केस लड़ना होगा. इसमें आपराधिक साज़िश, हत्या, हत्या का प्रयास और चोट पहुंचाने के अलावा एक्सप्लोसिव सब्सटेन्स ऐक्ट और आर्म्स ऐक्ट के तहत आरोप लगाए गए थे. हालांकि, NIA द्वारा लगाए गए MCOCA के आरोप हटा दिए गए.

NIA ने विशेष अदालत के आदेश के बाद 2 नवंबर, 2018 को एक नयी चार्जशीट फ़ाइल की. प्रज्ञा ठाकुर और 6 अन्य पर UAPA, IPC और ESA की अलग-अलग सेक्शन के तहत आरोप लगाए गए.

इस तरह, मालेगांव विस्फोट मामले में प्रज्ञा ठाकुर के खिलाफ कई बार चार्जशीट फ़ाइल की गयी. बिना किसी चार्जशीट के 8-10 साल जेल में रहने का दावा झूठा है. ऑल्ट न्यूज़ ने अभिजीत अय्यर मित्रा से उनके उस ट्वीट पर बात करने के लिए संपर्क किया जिसमें इस ग़लत दावे को बढ़ावा दिया गया था. मित्रा ने हमसे बात करने से मना कर दिया. एक बार फिर याद दिला दें कि सुप्रीम कोर्ट का ये कहना था कि प्रज्ञा ठाकुर को महाराष्ट्र ATS ने अवैध रूप से हिरासत में नहीं रखा था क्योंकि उनकी गिरफ़्तारी के 90 दिनों के भीतर (पहली) चार्जशीट फ़ाइल कर दी गयी थी.

साभार : ऑल्ट न्यूज़ 

Alt news
fact check
Father Stan Swamy's death
UAPA
sadhvi pragya thakur
BJP
Modi government

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया


बाकी खबरें

  • Dalit Movement
    महेश कुमार
    पड़ताल: पश्चिमी यूपी में दलितों के बीजेपी के ख़िलाफ़ वोट करने की है संभावना
    17 Jan 2022
    साल भर चले किसान आंदोलन ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चुनावी समीकरण बदल दिए हैं।
  • stray animals
    सोनिया यादव
    यूपी: छुट्टा पशुओं की समस्या क्या बनेगी इस बार चुनावी मुद्दा?
    17 Jan 2022
    उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा मवेशी हैं। प्रदेश के क़रीब-क़रीब हर ज़िले में आवारा मवेशी किसानों, ख़ास तौर पर छोटे किसानों के लिए आफत बन गए हैं और जान-माल दोनों का नुकसान हो रहा है।
  • CPI-ML MLA Mahendra Singh
    अनिल अंशुमन
    झारखंड: एक विधायक की मां जीते जी नहीं दिला पायीं अपने पति के हत्यारों को सज़ा; शहादत वाले दिन ही चल बसीं महेंद्र सिंह की पत्नी
    17 Jan 2022
    16 जनवरी 2005 को झारखंड स्थित बगोदर के तत्कालीन भाकपा माले विधायक महेंद्र सिंह की हत्या कर दी गई थी। 16 जनवरी को ही सुबह होने से पहले शांति देवी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उन्हें जीते जी तो…
  • Punjab assembly elections
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    पंजाब विधानसभा चुनाव की नई तारीख़, अब 20 फरवरी को पड़ेंगे वोट
    17 Jan 2022
    पंजाब विधानसभा चुनाव की नई तारीख़ घोषित की गई है। अब 14 फरवरी की जगह सभी 117 विधानसभा सीटों पर 20 फरवरी को मतदान होगा।
  • Several Delhi Villages
    रवि कौशल
    भीषण महामारी की मार झेलते दिल्ली के अनेक गांवों को पिछले 30 वर्षों से अस्पतालों का इंतज़ार
    17 Jan 2022
    दशकों पहले बपरोला और बुढ़ेला गाँवों में अस्पतालों के निर्माण के लिए जिन भूखंडों को दान या जिनका अधिग्रहण किया गया था वे आज तक खाली पड़े हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License