NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
कृषि
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
अब नौजवानों और मजदूरों को भी दिखानी होगी कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ बने दिल्ली मोर्चा में अपनी मौजूदगी!
अगर कुछ दिन नहीं,तो कुछ ही हफ़्तों में गेहूं कटाई का समय आने वाला है। ऐसे में सभी तो नहीं,मगर प्रदर्शन कर रहे किसानों के एक तबके लिए ज़रूरी होगा कि वे अपने गांव वापस लौटें।
रौनक छाबड़ा
23 Feb 2021
kisan
पंजाब के बरनाला में रविवार को "मज़दूर किसान महा रैली" में एक लाख से ज़्यादा लोग शामिल हुए। सौजन्य: भारतीय किसान यूनियन (एकता उग्रहान) ट्विटर।

नई दिल्ली: पिछले साल नवंबर के आख़िर में जिस समय दिल्ली में आंदोलनकारी किसानों की तरफ़ से घेरेबंदी की गयी थी,वह समय इन विवादास्पद कृषि क़ानूनों के विरोध में राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर शिविर लगाने वाले मुख्य रूप से पंजाब और हरियाणा के किसानों के लिए एकदम मुफ़ीद समय था।

इन दोनों राज्यों में ख़रीफ़ धान की कटाई और यहां तक कि नये रबी मौसम के लिए गेहूं की बुवाई भी हो चुकी थी,लिहाज़ा कहा गया कि किसानों के लिए वह "ख़ाली समय" था। ऐसे में वे महीनों तक अपने खेत से दूर रहने का जोखिम उठा सकते थे,उनकी मांगें तबतक जारी रह सकती थीं,जबतक कि ये तीनों क़ानून वापस नहीं हो जाते।

फ़रवरी के आख़िर में राजधानी के बॉर्डर पर इन धरनों के चलते हुए तीन महीने हो चुके हैं,इस दौरान इस आंदोलन की अगुवाई करने वाला छतरी संगठन- संयुक्त किसान मोर्चा सरकारी वार्ताकारों से बातचीत करते हुए मज़बूत स्थिति में दिख रहा है।

अगर कुछ दिन नहीं,तो कुछ ही हफ़्तों में  गेहूं कटाई का समय आने वाला है। ऐसे में सभी तो नहीं,मगर प्रदर्शन कर रहे किसानों के एक तबके लिए ज़रूरी होगा कि वे अपने गांव वापस लौटें। यह भी हो कि केंद्र के साथ यह गतिरोध जारी रहे,क्योंकि सरकार की तरफ़ से इन विवादास्पद क़ानूनों को कुछ समय के लिए टाल दिये जाने के एक प्रस्ताव को खारिज कर दिए जाने के बाद वार्ता पिछले महीने टूट गयी थी।

रविवार को आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में एसकेएम नेतृत्व ने मीडिया को बताया कि 28 फ़रवरी को एक बैठक के बाद चल रहे इस आंदोलन के "तीसरे चरण" की योजना तय की जायेगी।

हालांकि,उक्त बैठक के लिए तैयार कार्यक्रमों पर एक नज़र डालने पर पता चलता है कि आने वाली चुनौती का अनुमान लगा रहे किसान नेता पहले से ही दिल्ली की सीमाओं पर मोर्चा संभाले रखने को लेकर एक रणनीति बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

मसलन,रविवार को घोषित कुल चार कार्यक्रमों में से दो कार्यक्रमों का लक्ष्य चल रहे इस आंदोलन में ख़ास तौर पर नौजवानों और श्रमिकों की भागीदारी को आकर्षित करना है। उस बैठक में कहा गया कि 26 फ़रवरी को "युवा किसान दिवस" का आयोजन किया जायेगा; इसके बाद,अगले दिन,गुरु रविदास जयंती और स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आज़ाद के शहीदी दिवस पर "किसान मज़दूर एकता दिवस" मनाया जायेगा।

पंजाब स्थित क्रांतिकारी किसान यूनियन के अध्यक्ष और एसकेएम में बड़े ओहदे वाले डॉ.दर्शन पाल ने सोमवार को फ़ोन पर न्यूज़क्लिक को बताया,"आने वाले दिनों में गेहूं की कटाई के समय का ध्यान रखते हुए दोनों कार्यक्रमों की घोषणा की गयी है।" उन्होंने आगे बताया कि इन सीमाओं (दिल्ली) पर मोर्चा चलाने के दोनों कार्यक्रम नौजवानों और मज़दूरों के समूहों की उस समय की भागीदारी को सुनिश्चित करेंगे,जब अनुमान है कि कुछ किसान छोटे से समय के लिए "घर वापस" चले जायेंगे।

हरियाणा स्थित भारतीय किसान यूनियन (BKU) के प्रमुख और एसकेएम के एक दूसरे नेता,गुरनाम सिंह चारूनी ने भी ऐसा ही कहा। उन्होंने आगे कहा कि इस विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए समाज के अन्य वर्गों को आकर्षित करने पर भी ध्यान केन्द्रित किया जायेगा,ताकि चल रहे इस आंदोलन को "जनांदोलन" में बदला जा सके।

चारुनी ने कहा,“अभी हमारा ध्यान समाज के अलग-अलग वर्गों को कृषि कानूनों के इस विरोध में शामिल करने पर है; इस विरोध को जनांदोलन में बदलना है। हम इस बात को सामने ला रहे हैं कि कृषि में यह सुधार सिर्फ़ किसानों को ही नहीं,बल्कि दूसरों को भी किस तरह प्रभावित करेगा।'' आगे वे कहते हैं कि इस दिशा में बहुत कुछ हरियाणा में हाल ही में आयोजित हुए महापंचायतों से हासिल कर लिया गया है।

इस विरोध प्रदर्शन में गणतंत्र दिवस के विवाद के बाद कथित निरुत्साह देखा गया था,लेकिन महापंचायत,यानी बड़ी ग्राम सभा की बैठकों में महिलाओं,भूमिहीन कृषि श्रमिकों,और यहां तक कि वेतनभोगी रोज़गार में लगे लोगों की तरफ़ से जिस तरह की पर्याप्त भागीदारी देखी गयी है,उसके बाद किसानों के विरोध को और मज़बूती मिलती दिख रही है।

चारुनी ने बताया कि हरियाणा में गेहूं की कटाई के मौसम को देखते हुए एक "नियमित" योजना भी बनायी जा रही है।उन्होंने कहा,“ज़रूरत पड़ने पर किसान बारी-बारी से इस विरोध प्रदर्शन मे शामिल किये जायेंगे। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि एक-एक किसान की गेहूं पैदावार का ख़्याल रखा जाये।”

समाज के उन वर्गों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ने की ज़रूरत है,जो सही मायने में ज़मीन वाले खेतिहर नहीं हैं, इस बात को न सिर्फ़ एसकेएम महसूस कर रहा है,बल्कि इस विरोध प्रदर्शनों में सक्रिय दूसरे किसान समूह भी महसूस कर रहे हैं।

भारतीय किसान यूनियन (एकता उग्राहन) ऐसा ही एक गुट है,जो पंजाब के सबसे बड़े किसान संघों में से एक है, और इस समय टिकरी बॉर्डर पर विरोध प्रदर्शन कर रहा है। रविवार को एक वर्चुअल प्रदर्शन में बीकेयू (EU) और भूमिहीन कृषि श्रमिकों का प्रतिनिधित्व करने वाली इसकी शाखा-पंजाब खेत मज़दूर यूनियन ने संयुक्त रूप से पंजाब के बरनाला में "मज़दूर किसान महा रैली" का आयोजन किया था,जिसमें माना जा रहा है कि कथित तौर पर एक लाख से ज़्यादा लोगों की मौजूदगी देखी गयी थी।

बीकेयू (EU) के राज्य सचिव,शिंगारा मान सिंह ने टिकरी बार्डर से फ़ोन पर न्यूज़क्लीक को बताया, "यह भारी भीड़ उन सभी लोगों के लिए एक जवाब थी,जिन्होंने ग़लत तरीके से दावा किया था कि आंदोलन फ़ीका पड़ गया है।" उन्होंने कहा कि यह,"महा रैली" इस बिंदु पर ज़ोर देने पर भी कामयाब रही कि चल रहा आंदोलन महज़ किसानों की रोज़ी-रोटी को लेकर ही नहीं है।

सिंह ने कहा," काले क़ानूनों का यह विरोध सिर्फ़ किसानों का ही नहीं,बल्कि खेतिहर मज़दूरों का भी है।" सिंह ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि “खेती में महिलाओं की भूमिका का सम्मान करने के लिए” दिल्ली के बाहरी इलाक़े में स्थित सीमा शिविरों में आगामी 8 मार्च को महिला दिवस मनाने का भी आह्वान किया गया है।

पंजाब खेत मज़दूर यूनियन के अध्यक्ष,जोरा सिंह नसराली ने कहा कि दिल्ली की सीमाओं पर खेतिहर मज़दूरों की निरंतर भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए हाल ही में एकजुटता अभियान भी चलाये जा रहे हैं। नसराली ने पंजाब के भटिंडा से न्यूज़क्लिक को बताया,“ये कृषि क़ानून न सिर्फ़ किसानों की रोज़ी-रोटी पर असर डालेंगे, बल्कि कृषि कामगारों के रोजगार पर भी असर डालेंगे। इसके अलावा,इन श्रमिकों की खाद्य सुरक्षा को ख़तरे में डालते हुए इन सुधारों से पीडीएस (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) को भी गंभीर रूप से कमज़ोर कर दिया जायेगा।"

उन्होंने आगे कहा कि इस यूनियन की मंगलवार को होने वाली बैठक के बाद, 27 फ़रवरी तक "दिल्ली मोर्चा" में शामिल होने वाले सभी यूनियन सदस्यों की एक सूची तैयार करने का काम शुरू हो जायेगा। नसराली ने कहा, "हम किसानों के इस विरोध मंच का इस्तेमाल जाति-आधारित उत्पीड़न के मुद्दों को उजागर करने के लिए भी कर रहे हैं।" ग़ौरतलब है कि पंजाब में इन खेतिहर मज़दूरों की बड़ी संख्या दलित समूहों से है।

हाल ही में लॉकडाउन के दौरान सामने आये किसानों और खेतिहर मज़दूरों के हितों के बीच विरोधाभासों के बारे में पूछे जाने पर नसराली ने कहा कि इन दोनों समूहों के लिए सबसे पहले उस "निजीकरण और निगमीकरण" के ख़िलाफ़ लड़ने के लिहाज़ से लामबंद होना ज़रूरी है,जो केंद्र की तरफ़ से किया जा रहा है। नसराली ने बताया,"इस लामबंदी के ज़रिये ही इन विरोधाभासों को भी हल करने के तरीक़े मिलेंगे।"

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करे

Farm Laws: With Harvesting Season Here, Focus Shifts on Youth, Workers to Keep Delhi Morchas Running

farmers
farmers protest
Samyukt Kisan Morcha
Krantikari Kisan Union
Bharatiya Kisan Union
Punjab Khet Mazdoor Union
Delhi
punjab
Haryana
Narendra modi
Bharatiya Kisan Union Ekta Ugrahan

Related Stories

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

मुंडका अग्निकांड: 'दोषी मालिक, अधिकारियों को सजा दो'

मुंडका अग्निकांड: ट्रेड यूनियनों का दिल्ली में प्रदर्शन, CM केजरीवाल से की मुआवज़ा बढ़ाने की मांग

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

दलितों पर बढ़ते अत्याचार, मोदी सरकार का न्यू नॉर्मल!

हिसारः फसल के नुक़सान के मुआवज़े को लेकर किसानों का धरना

लुधियाना: PRTC के संविदा कर्मियों की अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू

दिल्ली : फ़िलिस्तीनी पत्रकार शिरीन की हत्या के ख़िलाफ़ ऑल इंडिया पीस एंड सॉलिडेरिटी ऑर्गेनाइज़ेशन का प्रदर्शन

दिल्ली : पांच महीने से वेतन व पेंशन न मिलने से आर्थिक तंगी से जूझ रहे शिक्षकों ने किया प्रदर्शन


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    यूपी: अयोध्या में चरमराई क़ानून व्यवस्था, कहीं मासूम से बलात्कार तो कहीं युवक की पीट-पीट कर हत्या
    19 Mar 2022
    कुछ दिनों में यूपी की सत्ता पर बीजेपी की योगी सरकार दूसरी बार काबिज़ होगी। ऐसे में बीते कार्यकाल में 'बेहतर कानून व्यवस्था' के नाम पर सबसे ज्यादा नाकामी का आरोप झेल चुकी बीजेपी के लिए इसे लेकर एक बार…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    ट्रेड यूनियनों की 28-29 मार्च को देशव्यापी हड़ताल, पंजाब, यूपी, बिहार-झारखंड में प्रचार-प्रसार 
    19 Mar 2022
    दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल को सफल बनाने के लिए सभी ट्रेड यूनियन जुट गए हैं। देश भर में इन संगठनों के प्रतिनिधियों की बैठकों का सिलसिला जारी है।
  • रवि कौशल
    पंजाब: शपथ के बाद की वे चुनौतियाँ जिनसे लड़ना नए मुख्यमंत्री के लिए मुश्किल भी और ज़रूरी भी
    19 Mar 2022
    आप के नए मुख्यमंत्री भगवंत मान के सामने बढ़ते क़र्ज़ से लेकर राजस्व-रिसाव को रोकने, रेत खनन माफ़िया पर लगाम कसने और मादक पदार्थो के ख़तरे से निबटने जैसी कई विकट चुनौतियां हैं।
  • संदीपन तालुकदार
    अल्ज़ाइमर बीमारी : कॉग्निटिव डिक्लाइन लाइफ़ एक्सपेक्टेंसी का प्रमुख संकेतक है
    19 Mar 2022
    आम तौर पर अल्ज़ाइमर बीमारी के मरीज़ों की लाइफ़ एक्सपेक्टेंसी 3-12 सालों तक रहती है।
  • पीपल्स डिस्पैच
    स्लोवेनिया : स्वास्थ्य कर्मचारी वेतन वृद्धि और समान अधिकारों के लिए कर रहे संघर्ष
    19 Mar 2022
    16 फ़रवरी को स्लोवेनिया के क़रीब 50,000 स्वास्थ्य कर्मचारी काम करने की ख़राब स्थिति, कम वेतन, पुराने नियम और समझौते के उल्लंघन के ख़िलाफ़ हड़ताल पर चले गए थे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License