NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कृषि
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
कृषि-कानून: जाट बहुल राज्यों की राजनीति में महापंचायत और खापों की पकड़ कितनी है?
किसान महापंचायत, जिन्हें ग्राम सभा की बड़ी सभा कहा जा सकता है, वे जनवरी के अंत से पूरे हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों को जुटाने में प्राथमिक और मुख्य शक्ति का काम कर रही हैं।
सौरभ शर्मा
20 Feb 2021
Translated by महेश कुमार
कृषि-कानून

फलौदा, मेरठ: ‘हम देखेंगे लाज़िम है कि हम देखेंगे,’ आम लोगों में शुमार इस नज़्म को 1979 में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने लिखा था जिसे मेरठ जिले के फलौदा शहर में 11 फरवरी को हुई किसान महापंचायत के मंच से गाया गया, इस नज़्म के बाद हिंदू-मुस्लिम एकता और 'किसान एकता ज़िंदाबाद' नारे लगाए गए।

स्वतंत्रता संग्राम में भगत सिंह की भूमिका की प्रशंसा में लिखे देशभक्ति के गीत और मनोज कुमार की फिल्म के गीत ‘मेरे देश की धरती’ को भी किसानों ने बड़े उत्साह के साथ सुना। हुक्कों की आमद और ढोल बजाने के शोर में स्थानीय लोग भोजन के पैकेट और पानी का इंतजाम भी कर रहे थे।

महापंचायत में लगभग 1,500 लोग शामिल हुए थे, और सभी केवल चार घंटे के नोटिस पर एकत्रित हुए थे। कार्यक्रम स्थल से 10 किलोमीटर दूर रहने वालों किसानों ने भी पंचायत में भाग लियाथा।

महापंचायत में भाषण दिए गए और मनोरंजन के लिए मिमिक्री कलाकारों ने दर्शकों के सामने समां बांध दिया था। पंचायत की आयोजन टीम में से एक व्यक्ति को सभी लोगों से शांति बनाए रखने की अपील और असामाजिक तत्वों पर नजर रखने में मदद करने का आग्रह करते देखा जा सकता था।

किसान महापंचायत, जिन्हे ग्राम सभा की बड़ी सभा कहा जा सकता है, वे जनवरी के अंत से पूरे हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों को जुटाने में प्राथमिक और मुख्य शक्ति का काम कर रही हैं। किसान महापंचायतें लगभग तीन हफ्ते पहले 28 जनवरी को शुरू हुईं थी जब भारतीय किसान यूनियन (BKU) के नेता राकेश टिकैत ने प्रशासन के प्रति भावनात्मक रूप से नाराजगी जताई थी क्योंकि कथित तौर पर प्रशासन गाजीपुर बॉर्डर से कृषि कानून के खिलाफ चल रहे किसानों के आंदोलन को समाप्त करने की कोशिश कर रहा था।

उसी रात, खापों के आह्वान पर हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलग-अलग कोनों से सैकड़ों ट्रैक्टर दिल्ली की ओर रवाना हो गए थे क्योंकि उन्होंने महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे को रोते हुए देख लिया था।

उस दिन के बाद से इलाके के चौधरियों (इलाके के प्रमुख लोग) ने सैकड़ों सभाओ और खापों को संबोधित किया गया, जिन्होंने केंद्र सरकार द्वारा पारित तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को दोहराते हुए आंदोलन को जारी रखने और किसानों की एकता को बनाए रखने का आह्वान किया।

महापंचायत में एक दर्शक

अपने उन नेताओं को सुनने के लिए विभिन्न तबकों के सैकड़ों लोग सभा या पंचायत में आते हैं जिन्हें वे 'चौधरी' कहते हैं। चौधरियों के विचारों को अंतिम शब्द माना जाता है और फिर उसे एक प्रकार के आदेश के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है।

मंच पर पड़ोस के प्रमुख लोगों के साथ-साथ राजनीतिक दिग्गज भी शामिल थे, जिन्होंने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा किए गए उन वादों को याद दिलाया जिन्हे पूरा नहीं किया गया।

समाजवादी पार्टी के पदाधिकारी अतुल प्रधान इस विशेष पंचायत में मुख्य वक्ताओं में से एक थे। उन्होंने कानूनों के बारे में सभी किसान विरोधी मुद्दों को समझाया और बताया कि पूरे भारत के किसान इन क़ानूनों का विरोध क्यों कर रहे हैं।

“वो महेंद्र बाबा का बेटा है और वो सरकारी अत्याचार की वजह से रो दिया। हमसे यह सब बर्दाश्त नहीं होगा। अगर यहाँ का किसान सरकार बनवा सकता है तो उसी सरकार से काले कानून वापस करवा के रहेगा”, प्रधान ने महापंचायत को संबोधित करते हुए दहाड़ कर कहा।

मंच पर मौजूद सभी लोगों ने 82 वर्षीय बीकेयू के बुजुर्ग गुलाम मोहम्मद जौला से अनुरोध किया कि वे आगे आए और इकट्ठे हुए लोगों को संबोधित करें, उन्होंने केंद्र सरकार की जमकर आलोचना की। उन्होंने कहा कि “किसान पूरे देश को खिलाते हैं और सरकार हमें खालिस्तानी, आतंकवादी और क्या-क्या नहीं कह रही है। क्या हमें नहीं पता कि ट्रैक्टर परेड के दौरान गणतंत्र दिवस पर हुई हिंसा के पीछे कौन था? ” उन्होने सवाल दागते हुए पूछा।

"वे चाहते थे कि हम विभाजित रहे लेकिन अब हम उनकी सभी रणनीतियों को जान गए हैं। उन्होंने 18 महीनों तक कानूनों को निलंबित करने की पेशकश की, लेकिन हमने उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया क्योंकि हम चाहते हैं कि इन कानूनों को पूरी तरह से रद्द कर दिया जाए अन्यथा इस देश के किसान भूख से मर जाएंगे और सब कुछ अडानी और अंबानी जैसे निजी खिलाड़ियों के पास चला जाएगा। प्रिय दोस्तों, धार्मिक आधार पर विभाजित न हों क्योंकि जब किसान अनाज पैदा करता है तो सब खाते हैं और खेती करना अपने आप में एक धर्म है।” जौला ने मंच से कहा,“ हवाई अड्डों से लेकर गैस तक सब कुछ निजी क्षेत्रों को बेचा जा रहा है और किसान आत्महत्या करके मर रहे हैं; इसलिए, हम सरकार को हमारी मिट्टी, पानी और फसलों को छीनने की इजाजत नहीं देंगे।”

जोला ने कहा कि "जो लोग न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के न होने और कांट्रैक्ट फ़ार्मिंग के लाभों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें पहले खेतों का काम करना शुरू करना चाहिए।" महापंचायत का समापन किसान एकता जिंदाबाद, हिंदू-मुस्लिम एकता ज़िन्दाबाद के नारों के साथ हुआ। 

गौर करने की बात है कि एक महापंचायत 10 से 12 गांवों के किसानों से मिलकर बनती है, जबकि खाप एक खास उप-जाति के लोगों का समूह होता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में 18 खाप हैं और प्रत्येक का एक चौधरी है। उनके ऊपर एक खाप सचिव होता है जिसका काम होता है कि जब भी जरूरी हो वह खाप की बैठक बुलाएगा। सभी 18 खापों का मुख्यालय राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली से लगभग 140 किलोमीटर की दूरी पर मुजफ्फरनगर जिले के सोरम गांव में है।

हालांकि महापंचायतों और खापों में पुरुष किसानों की बड़े पैमाने पर भागीदारी देखी गई है, लेकिन महिलाओं की अनुपस्थिति काफी हद तक इसलिए भी रही क्योंकि उन्हें खेतों में काम करने के लिए अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ रही है ताकि आंदोलन जारी रह सके।

यह भी उल्लेख करना जरूरी है कि खापों, जिनके पितृसत्तात्मक आदेशों के कारण जैसे कि लड़कियों को डेनिम जींस नहीं पहनना चाहिए आदि’, के चलते खाप हमेशा महिलाओं के साथ टकराव में रही है।

महापंचायत और 2022 का चुनाव

जाट समुदाय उत्तर प्रदेश की आबादी का लगभग 17 प्रतिशत है और इसकी उपस्थिति 19 जिलों में बड़ी तादाद में हैं, खासकर गन्ना बेल्ट में यह संख्या बड़ी है। सत्तारूढ़ भाजपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश की लगभग सभी सीटों को जीतकर राज्य में अपना दबदबा बनाने में सफल रही थी।

जाट समुदाय और अन्य हिंदू उपजातियों के सदस्यों के बीच उपजे गुस्से के मद्देनजर संजीव बालियान सहित भाजपा के शीर्ष नेताओं ने राज्य में 2022 के चुनावों को देखते हुए जनता के साथ बातचीत शुरू कर दी है। मेरठ में एक चाय की दुकान पर बैठे बालियान ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, “किसानों के मुद्दे को बातचीत के जरिए हल किया जाएगा। यह किसानों की सरकार है और किसानों के लिए काम करेगी।” हालांकि, उन्होंने यह बताने से इनकार कर दिया कि सरकार किसानों के साथ बातचीत कब शुरू करेगी।

हरियाणा से सटे राज्य में होने वाली महापंचायतों के कारण भाजपा पर भी दबाव बढ़ गया है। गैर-जाट नेताओं के 20 साल के मुक़ाबले राज्य में जाट नेता 33 साल तक सत्ता के केंद्र में रहे हैं। किसानों के आंदोलन ने जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के तीन प्रमुख नेताओं को इस्तीफे देने के लिए मजबूर किया है। राज्य में भाजपा के साथ जेजेपी और उनकी गठबंधन सरकार को नुकसान हो सकता है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

Farm Laws: How Much Sway do Mahapanchayats and Khaps Hold in Jatland Politics

Farm Laws
Farmers Protests
Kisan Mahapanchayat
Khaps
Western UP
BJP
JJP
Jat community
Haryana
Uttar pradesh
Meerut Mahapanchayat

Related Stories

युद्ध, खाद्यान्न और औपनिवेशीकरण

आख़िर किसानों की जायज़ मांगों के आगे झुकी शिवराज सरकार

किसान-आंदोलन के पुनर्जीवन की तैयारियां तेज़

ग्राउंड रिपोर्टः डीज़ल-पेट्रोल की महंगी डोज से मुश्किल में पूर्वांचल के किसानों की ज़िंदगी

किसान आंदोलन: मुस्तैदी से करनी होगी अपनी 'जीत' की रक्षा

सावधान: यूं ही नहीं जारी की है अनिल घनवट ने 'कृषि सुधार' के लिए 'सुप्रीम कमेटी' की रिपोर्ट 

यूपी चुनाव: पूर्वी क्षेत्र में विकल्पों की तलाश में दलित

राजस्थान: अलग कृषि बजट किसानों के संघर्ष की जीत है या फिर चुनावी हथियार?

यूपी चुनाव: किसान-आंदोलन के गढ़ से चली परिवर्तन की पछुआ बयार

उप्र चुनाव: उर्वरकों की कमी, एमएसपी पर 'खोखला' वादा घटा सकता है भाजपा का जनाधार


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ः 60 दिनों से हड़ताल कर रहे 15 हज़ार मनरेगा कर्मी इस्तीफ़ा देने को तैयार
    03 Jun 2022
    मनरेगा महासंघ के बैनर तले क़रीब 15 हज़ार मनरेगा कर्मी पिछले 60 दिनों से हड़ताल कर रहे हैं फिर भी सरकार उनकी मांग को सुन नहीं रही है।
  • ऋचा चिंतन
    वृद्धावस्था पेंशन: राशि में ठहराव की स्थिति एवं लैंगिक आधार पर भेद
    03 Jun 2022
    2007 से केंद्र सरकार की ओर से बुजुर्गों को प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 7 रूपये से लेकर 16 रूपये दिए जा रहे हैं।
  • भाषा
    मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चंपावत उपचुनाव में दर्ज की रिकार्ड जीत
    03 Jun 2022
    चंपावत जिला निर्वाचन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री को 13 चक्रों में हुई मतगणना में कुल 57,268 मत मिले और उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाल़ कांग्रेस समेत सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो…
  • अखिलेश अखिल
    मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 
    03 Jun 2022
    बिहार सरकार की ओर से जाति आधारित जनगणना के एलान के बाद अब भाजपा भले बैकफुट पर दिख रही हो, लेकिन नीतीश का ये एलान उसकी कमंडल राजनीति पर लगाम का डर भी दर्शा रही है।
  • लाल बहादुर सिंह
    गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया
    03 Jun 2022
    मोदी सरकार पिछले 8 साल से भारतीय राज और समाज में जिन बड़े और ख़तरनाक बदलावों के रास्ते पर चल रही है, उसके आईने में ही NEP-2020 की बड़ी बड़ी घोषणाओं के पीछे छुपे सच को decode किया जाना चाहिए।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License