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हुकूमत से उलझे दिवानों की जय हो...
कृषि बिल के विरोध में चल रहे किसानों के ऐतिहासिक आंदोलन के मद्देनज़र पेश है शायर इरशाद ख़ान सिकंदर की यह कविता, जो किसानों के जज़्बे को सलाम करते हुए लिखी गई है।
न्यूज़क्लिक डेस्क
02 Dec 2020
हुकूमत से उलझे दिवानों की जय हो...

कृषि बिल के विरोध में चल रहे किसानों के ऐतिहासिक आंदोलन के मद्देनज़र पेश है शायर इरशाद ख़ान सिकंदर की यह कविता, जो किसानों के जज़्बे को सलाम करते हुए लिखी गई है।

किसान

जड़ों से जुड़े नौजवानों की जय हो
नयी सोच वाले पुरानों की जय हो 
हुकूमत से उलझे दिवानों की जय हो 
जवानों की जय हो किसानों की जय हो

लड़ेंगे नहीं बात रक्खेंगे अपनी
तिरे आगे दिन! रात रक्खेंगे अपनी
अगर तू न माना तो हम ये करेंगे
है मरना ही तो तेरे दर पर मरेंगे
अहिंसा में डूबे बयानों की जय हो
जवानों की जय हो किसानों की जय हो

मिरे लाल कुछ दिन मिरे गाँव आओ
मिरे साथ खेतों में फ़सलें उगाओ
अगर बाढ़ सूखे की नौबत न आई
तो ख़ुद जान जाओगे मेरी कमाई
सो इन खेतियों के ख़ज़ानों की जय हो 
जवानों की जय हो किसानों की जय हो

जो तुम खा रहे हो वो मैंने उगाया
मगर देख लो क्या मिरे हाथ आया
फलें-फूलें सब लोग ऐसा सबक़ दो
मिरी इल्तिजा है मुझे मेरे हक़ दो
तुम्हारी हवाई उड़ानों की जय हो 
जवानों की जय हो किसानों की जय हो 

सुनो लाला अपनी जो ये दादियाँ हैं 
यही धरती की अस्ल शाहज़ादियाँ हैं
कमर झुक के बेशक कमाँ हो गयी है
मगर इनकी हिम्मत जवाँ ही गयी है
तो झुर्री भरी दास्तानों की जय हो 
जवानों की जय हो किसानों की जय हो

-इरशाद ख़ान सिकंदर

farmers protest
DILLI CHALO
farmers protest 26 nov
poetry on farmers

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