NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
अंतरराष्ट्रीय
अमेरिका
2020 के अमेरिकी चुनाव को 'विदेशी ख़तरे'
अमेरिका की काउंटर-इंटेलिजेंस के ज़ार, इवानिन चीन, रूस, ईरान पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जबकि पारंपरिक रूप से, इज़रायल ने हमेशा अमेरिकी चुनाव में सीधे हस्तक्षेप किया है और संभवतः यह हस्तक्षेप किसी भी अन्य देश की तुलना में बहुत अधिक रहा है।
एम.के. भद्रकुमार
12 Aug 2020
Translated by महेश कुमार
ba

“प्रमुख अनुमान ये हैं कि डोनाल्ड ट्रंप के हाथ से व्हाइट हाउस निकलने वाला है।"

संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रीय काउंटर-इंटेलिजेंस और सुरक्षा केंद्र के निदेशक विलियम इवानिना का 7 अगस्त को एक बयान आया जिसमें उन्होने कहा कि 2020 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को "विदेशी ताकतों से खतरों है जोकि एक गैर-वर्गीकृत सूचना है, इस खतरे के लिए चुनिंदा तीन विरोधियों यानि चीन, रूस, और ईरान की संभावित गतिविधि पर नज़र रखी जा रही है।

परंपरागत रूप से, इज़राइल ने अमेरिकी चुनाव में सीधे हस्तक्षेप किया है और संभवतः यह हस्तक्षेप किसी भी अन्य देश की तुलना में बहुत अधिक रहा है, लेकिन अमेरिकी अभिजात वर्ग इसे पारिवारिक मामला मानते हैं। हाल ही में, ताइवान, सऊदी अरब और यूएई का भी अमेरिकी चुनाव में हस्तक्षेप करने के रूप में उल्लेख किया गया था, लेकिन, उनमें से किसी को भी अब तक अमेरिका का विरोधी नहीं माना जा सका है।

आगामी नवंबर के चुनाव में, लगता है भारत ने भी एंट्री कर ली है याद है जब पिछले साल नवंबर में ह्यूस्टन में हाउडी मोदी कार्यक्रम हुआ था जहाँ प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी उपस्थिति में राष्ट्रपति ट्रम्प को सभी भारतीय-अमेरिकी लोगो से वोट की अपील की थी। कई भारतीय विश्लेषकों का मानना था कि टेक्सास में मौजूद लोग ट्रम्प की भारत विरोधी शेख़ी को बहुत कम मानकर चल रहे थे; इसलिए वे तालियां बजा रहे थे और सोच रहे थे कि ट्रम्प के फिर से राष्ट्रपति निर्वाचित हो जाने से, मोदी “बढ़ी समझदारी” से ह्यूस्टन में किए गई अपनी अपील का बेज़ा फायदा उठा सकते हैं।

जो हालत हैं उससे लग रहा है की यह मसला काफी बड़ा बन रहा है। अमेरिकी इतिहास के प्रोफेसर एलन लिक्टमैन के अनुसार, जिन्होंने1984 में रोनाल्ड रीगन की जीत के बाद से हर एक राष्ट्रपति पद के विजेता की सही भविष्यवाणी की है, अपने प्रसिद्ध "13 प्रमुख" प्रणाली का उपयोग करते हुए बताया कि  ट्रम्प हार की ओर बढ़ रहे हैं। वास्तव में, हम नवंबर आने तक चुनाव किस करवट बैठेगा अच्छी तरह से नहीं जानते हैं।

अमेरिका के काउंटर-इंटेलिजेंस के प्रमुख इवानिना ने पिछले शुक्रवार को अपने बयान में चीन, रूस और ईरान को तीन व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया है- इस श्रेणी में ट्रम्प के खिलाफ चीन; बिडेन के खिलाफ रूस; और ईरान को ट्रम्प और बिडेन दोनों के खिलाफ बताया गया है। यह एक प्रशंसनीय वर्गीकरण है, लेकिन इसके साथ चेतावनियां भी जोड़ी जानी चाहिए।

पहले चीन को लेते हैं, यह स्पष्ट है कि बीजिंग ने पिछले कई हफ्तों से अमेरिकी विरोधी बयानबाजी की है। लेकिन इससे नवंबर के चुनाव में उनके हस्तक्षेप का कोई निशान नहीं दिखाता है। चीन की इस तरह की बयानबाजी लगभग पूरी तरह से अमेरिकी की उस लफ़्फ़ाज़ी के विरुद्ध है जिसमें चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व के खिलाफ अमरीकी अधिकारियों ने घृणित प्रचार किया है। सीधे शब्दों में कहें, चीनी बयानबाजी काफी हद तक रक्षात्मक है।

जबकि विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने चीन की आलोचना में राष्ट्रपति शी जिनपिंग का नाम का सीधे उल्लेख किया है, चीनी बयान में ट्रम्प का स्पष्ट नाम लेने का ध्यान रखा गया है। चीन ने इसके बजाय पोम्पेओ और व्हाइट हाउस के सहयोगी पीटर नवारो को असंशोधनीय चीन विरोधी लफ़्फ़ाज़ी करने के मामले में उजागर किया है, और ऐसा कराते वक़्त चीन ने कुछ अमेरिकी अधिकारियों और बाकी अमेरिकी प्रशासन के बीच स्पष्ट अंतर किया है। अमेरिकी अधिकारियों ने चीन के साथ व्यापार समझौते पर बातचीत की है- विशेष रूप से, ट्रेजरी सचिव स्टीवन म्नुचिन और अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि रॉबर्ट लाइटहाइजर - या रक्षा सचिव मार्क एसपर जैसे अधिकारी कभी भी चीन के खिलाफ बयानबाजी में शामिल नहीं रहे हैं।

इवानिना का मानना है कि इसके विपरीत एक धारणा यह है कि चीन ट्रम्प और बिडेन दोनों के साथ समझौता कर सकता है या उन्हे बर्दाश्त कर सकता है- या, इसे अलग तरीके से कहा जाए तो चीन के लिए दोनों के बीच चयन करना कठिन बात है क्योंकि चीन-अमेरिका के बीच की शत्रुता के मामले में ऐतिहासिक ताक़तें काम कर रही और व्हाइट हाउस में कौन है, इसकी परवाह किए बिना यह टकराव का मुद्दा बना रहेगा।

मार्क्सवादी-लेनिनवादी इस सोच के तहत चीन निकट भविष्य में रिश्ते में प्रतिद्वंद्विता और तनाव की अनिवार्यता को देखता है। जो भी हो, चीन केविन रुड जैसे चीन विशेषज्ञों को सुन रहा है जो भविष्यवाणी कर रहे हैं कि ट्रम्प की तुलना में बिडेन चीन के मामले पर "कम कठोर" होगा।

बहरहाल, चीन शायद बिडेन को ट्रम्प के अस्थिर व्यक्तित्व के विपरीत एक पूर्वानुमानित राजनीतिज्ञ के रूप में मानता है।

इवानिना के बयान से ट्रम्प को लाभ मिल सकता है क्योंकि यह उस धारणा को आगे बढ़ाता है कि चीनी उसे इसलिए पसंद नहीं करते क्योंकि वह चीन के मामले में "सख्त" है। "सख्त-पुरुष" की छवि को अमरीका में स्पष्ट रूप से समर्थन मिलता है, जहां बहुमत की राय अमेरिका को व्यापार और संबंधित नौकरियों जैसे मुद्दों पर चीन पर एक सख्त लाइन लेने की जरूरत है।

जब रूस की बात आती है, तो इवानिना का बयान सटीक है। इसे सम्झना भी आसान है कि रूस, बिडेन की उम्मीदवारी को विफल करने के मामले में कड़ी मेहनत कर रहा है। रूसी गृह मीडिया शायद ही कभी ट्रम्प की आलोचना करता है। लेकिन बिडेन के खिलाफ छोटी-बड़ी रूसी आलोचना मिल ही जाती है।

2017 के बाद से अमरीका के गृह विभाग, पेंटागन और सीआईए ने जिन अमित्रवत नीतियों को अपनाया है बावजूद उसके ट्रम्प के साथ मास्को का आराम का स्तर अपने आप में प्रशंसनीय है। मास्को को लगता है और उसे विश्वास भी है कि ट्रम्प स्वाभाविक रूप से शत्रुतापूर्ण नहीं हैं और उन पर तनाव के स्तर को कम रखने के लिए भरोसा किया जा सकता है।

इसके विपरीत, मास्को बिडेन पर गहरा संदेह करता है और 2016 के चुनाव में हिलेरी क्लिंटन की तुलना में उनके प्रति कम घृणा नहीं रखता है। वास्तव में, बिडेन की विदेश नीति का एक लंबा रिकॉर्ड रहा है जो सीनेट के दशकों के अनुभाव के साथ-साथ ओबामा के तहत 8 साल उप-राष्ट्रपति के रूप में रहा है।

मास्को बिडेन को अच्छी तरह से जानता है और उसे कोई भ्रम नहीं है कि उसका कठोर रवैया, जो यूक्रेन में सत्ता परिवर्तन के दौरान देखा गया था, अगर वह राष्ट्रपति बन जाता है तो अमेरिका-रूस के सामान्यीकरण के सभी दरवाजे बंद हो जाएंगे। ट्रान्साटलांटिक साझेदारी की किसी भी मजबूत अवधारणा के मामले में, जो कि बिडेन की प्रमुख विदेश नीति का एजेंडा है, रूस को और भी अधिक भौगोलिक रूप से अलग-थलग कर देगा।

स्पष्ट रूप से, रूसी गृह मीडिया बिडेन की चुनावी संभावनाओं को कमजोर करने का काम कर रहा है। वह उपहास का पात्र है और विभिन्न मुद्दों पर उसका रुख गंभीर जांच के दायरे में आता है।

उत्सुकता से भरपूर ट्रम्प दावा करते हैं कि वे सबसे सख्त अमेरिकी राष्ट्रपति है जिसका अनुभव रूस ने कभी भी नहीं किया था, लेकिन पुतिन एक सहयोगी वार्ताकार थे, वहां जहां सभी महत्वपूर्ण अमेरिकी हित शामिल थे – फिर चाहे तेल की कीमत, आतंकवाद, आदि का सवाल हो। निश्चित रूप से, हम बिडेन प्रेसीडेंसी में इस विषय पर अधिक सुनेंगे।

ईरान के रुख में चीन के जैसी समानताएं हैं क्योंकि तेहरान की भी कोई प्राथमिकता नहीं है और नवंबर के चुनाव को अमेरिका के साथ अपने समग्र संबंधों के नए चश्मे से देखने की इच्छा रखता है। तेहरान ने शुरू में ट्रम्प पर काफी ऊंची उम्मीदें लगाई थीं, जिन्हें वे एक व्यावहारिक राजनीतिज्ञ के रूप में मानते थे  -यानि एक संभावित सौदागर के रूप में। लेकिन वह सब अतीत की बात हो गई है। निश्चित रूप से, जनवरी में कुद्स प्रमुख जनरल कासिम सोलेमानी की हत्या से इसमें एक महत्वपूर्ण मोड़ आया है। नृशंस हत्या, तेहरान के परिप्रेक्ष्य में आज ट्रम्प को एक अपराधी के रूप में रंग देती है।

दूसरी ओर, इसका भी अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि बिडेन के राष्ट्रपति बनाने के बाद, अमेरिका-ईरान के बीच तनाव कम हो जाएगा और दोनों देश बातचीत की टेबल पर लौट आएंगे। तेहरान जानता है कि कोई भी चर्चा तब तक कठिन होगी, जब तक डेमोक्रेटस पर इजरायल का प्रभाव अच्छा-खासा रहेगा, और जब तक कि मध्य पूर्व में अमेरिका की क्षेत्रीय रणनीतियों से उपजे विरोधाभासों को दूर नहीं किया जाता है।

अमेरिका की घरेलू राजनीति या जनता की राय में दखल करने की ईरान की कोशिश को बड़ी भारी बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। अमेरिकी चुनाव में हस्तक्षेप करने की इसकी क्षमता काफी कम है। अमेरिकी थिंक टैंकरों या विचारकों और मीडिया पर इसका प्रभाव हाल के वर्षों में बढ़ा है, लेकिन इसे अभी भी एक बहुत लंबा रास्ता तय करना है - कम से कम एक और दशक लगेगा – तब तेहरान एक राय पैदा करने की अपनी ख्वाहिश को पूरा कर सकता है। इसलिए यह अपने आप में संदेहजनक बात है कि अमेरिकी काउंटर-इंटेलिजेंस गंभीरता से ईरान को अमेरिकी चुनाव के लिए खतरा मानता है।

 

america election 2020
Joe Biden
Donand Trump
foreigen threat to america election

Related Stories

बाइडेन ने यूक्रेन पर अपने नैरेटिव में किया बदलाव

सऊदी अरब के साथ अमेरिका की ज़ोर-ज़बरदस्ती की कूटनीति

गर्भपात प्रतिबंध पर सुप्रीम कोर्ट के लीक हुए ड्राफ़्ट से अमेरिका में आया भूचाल

अमेरिका ने रूस के ख़िलाफ़ इज़राइल को किया तैनात

नाटो देशों ने यूक्रेन को और हथियारों की आपूर्ति के लिए कसी कमर

यूक्रेन में छिड़े युद्ध और रूस पर लगे प्रतिबंध का मूल्यांकन

रूस पर बाइडेन के युद्ध की एशियाई दोष रेखाएं

'सख़्त आर्थिक प्रतिबंधों' के साथ तालमेल बिठाता रूस  

ज़ेलेंस्की ने बाइडेन के रूस पर युद्ध को बकवास बताया

रूस-यूक्रेन युद्ध अपडेट: कीव के मुख्य टीवी टावर पर बमबारी; सोवियत संघ का हिस्सा रहे राष्ट्रों से दूर रहे पश्चिम, रूस की चेतावनी


बाकी खबरें

  • Ramjas
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली: रामजस कॉलेज में हुई हिंसा, SFI ने ABVP पर लगाया मारपीट का आरोप, पुलिसिया कार्रवाई पर भी उठ रहे सवाल
    01 Jun 2022
    वामपंथी छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया(SFI) ने दक्षिणपंथी छात्र संगठन पर हमले का आरोप लगाया है। इस मामले में पुलिस ने भी क़ानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। परन्तु छात्र संगठनों का आरोप है कि…
  • monsoon
    मोहम्मद इमरान खान
    बिहारः नदी के कटाव के डर से मानसून से पहले ही घर तोड़कर भागने लगे गांव के लोग
    01 Jun 2022
    पटना: मानसून अभी आया नहीं है लेकिन इस दौरान होने वाले नदी के कटाव की दहशत गांवों के लोगों में इस कदर है कि वे कड़ी मशक्कत से बनाए अपने घरों को तोड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं। गरीबी स
  • Gyanvapi Masjid
    भाषा
    ज्ञानवापी मामले में अधिवक्ताओं हरिशंकर जैन एवं विष्णु जैन को पैरवी करने से हटाया गया
    01 Jun 2022
    उल्लेखनीय है कि अधिवक्ता हरिशंकर जैन और उनके पुत्र विष्णु जैन ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले की पैरवी कर रहे थे। इसके साथ ही पिता और पुत्र की जोड़ी हिंदुओं से जुड़े कई मुकदमों की पैरवी कर रही है।
  • sonia gandhi
    भाषा
    ईडी ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी को धन शोधन के मामले में तलब किया
    01 Jun 2022
    ईडी ने कांग्रेस अध्यक्ष को आठ जून को पेश होने को कहा है। यह मामला पार्टी समर्थित ‘यंग इंडियन’ में कथित वित्तीय अनियमितता की जांच के सिलसिले में हाल में दर्ज किया गया था।
  • neoliberalism
    प्रभात पटनायक
    नवउदारवाद और मुद्रास्फीति-विरोधी नीति
    01 Jun 2022
    आम तौर पर नवउदारवादी व्यवस्था को प्रदत्त मानकर चला जाता है और इसी आधार पर खड़े होकर तर्क-वितर्क किए जाते हैं कि बेरोजगारी और मुद्रास्फीति में से किस पर अंकुश लगाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना बेहतर…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License