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भारत
राजनीति
अखिल भारतीय एनआरसी के ख़तरों से बचने के चार उपाय
जनगणना 2021 और एनआरसी दोनों के लिए डाटा संग्रह कैसे आपस में जुड़ा हुआ है, आइये इस पर एक नज़र डालते हैं।
अबुसलेह शरीफ़
13 Dec 2019
Translated by महेश कुमार
NRC

एक दशक के बाद हर दूसरे वर्ष में, भारत अपनी जनगणना के तहत नई आबादी की गणना करता है। पहली तुल्यकालिक/समकालिक जनगणना 1881 में हुई थी और सोलहवीं जनसंख्या गणना फ़रवरी 2020 में आयोजित की जाएगी, जिसकी संदर्भ तिथि 1 मार्च 2021 होगी।

2011 में पंद्रहवीं जनगणना हुई थी, इसमें जनसंख्या को गिना गया और 1931 के बाद पहली बार, सामाजिक-आर्थिक और जाति की स्थिति पर डाटा इकट्ठा किया गया था। हालांकि इस डाटा का विश्लेषण कभी नहीं किया गया, क्योंकि स्वयं-रिपोर्ट की गई जातियां और उप-जातियों की संख्या बहुत अधिक थीं और सार्थक श्रेणियों में उन्हे इकट्ठा करना मुश्किल था। इसलिए, 2021 की जनगणना-या भारत की जनसंख्या की सोलहवीं गणना-पूर्व निर्धारित अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों की एक सूची के आधार पर वर्गीकृत और प्रत्येक राज्य द्वारा अधिसूचित होगी।

भारत अपनी जनगणना दो चरणों में करता है, अर्थात्, पहले घरों का सूचीकरण किया जाता है फिर जनसंख्या की गणना। इसके अलावा, यह भी पहली बार था कि पंद्रहवीं जनगणना ने अतिरिक्त डाटा इकट्ठा किया था जिससे कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर या एनपीआर तैयार किया जा सके। एनपीआर का उपयोग भारत के सभी सामान्य (या पंजीकृत) निवासियों के लिए बारह अंकों की विशिष्ट पहचान संख्या को तैयार करना था। यह नंबर भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण या यूआईडीएआई द्वारा जारी किया जाना था, और इसे आधार संख्या के रूप में जाना जाता है।

हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि एनपीआर डाटा संतोषजनक है और सही ढंग से आधार पहचान उत्पन्न करने के लिए उपयोग किया गया है या नहीं। इस चरण के दौरान, बायोमीट्रिक जानकारी भी एकत्र की गई थी।

मार्च में जनसंख्या की गणना के बाद, 2021 की सोलहवीं जनगणना का गृह-सूचीकरण का चरण अप्रैल और सितंबर 2020 के बीच होगा। एक बार फिर, गृह-सूचीकरण की प्रक्रिया के दौरान, एनपीआर को अद्यतन करने के लिए डेटा सभी सामान्य निवासियों, उनके बायोमेट्रिक विवरणों के साथ, जिन्हें अब विकास और कल्याण योजना के लिए आवश्यक माना जाता है इकट्ठा किया जाएगा।।

इसी समय, भारत सरकार भारतीय नागरिकों का एक नए राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरआईसी) तैयार करने का प्रयास भी कर रही है, सरकार ने इसके लिए दो मौजूदा कानूनों को किनारा बनाया है: नागरिकता अधिनियम 1955 और नागरिकता (नागरिकों का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करने संबंधी) नियम, 2003. बेशक, अब नागरिकता विधेयक, 2019 भी लोकसभा में पारित हो गया है, और यह एनआरआईसी से भी जुड़ा हुआ है, हालांकि आबादी का राष्ट्रिय रजिस्टर बनाना एक बड़ा काम है जो राष्ट्र की पूरी 140 करोड़ आबादी की जांच करेगा।

प्रासंगिक क़ानूनों, नियमों और निर्देशों की समीक्षा करने के बाद, मुझे पता चला कि एनआरसी को तैयार करने के लिए जिस एजेंसी को अधिकार दिया गया है, वह रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त (आरजीसीसी) है, जिनकी प्राथमिक जिम्मेदारी जनगणना संचालन करना और जन्म और मृत्यु तथा विवाह का पंजीकरण करना है। [आरजीसीसी कानून 1969 में पारित संबंधित अधिनियम के अनुसार वह जन्म और मृत्यु का भी रजिस्ट्रार-जनरल भी हैं। आगे, नागरिकता नियम, 2003 के पैरा 2 (m) में कहा गया है कि रजिस्ट्रार जनरल जनसंख्या पंजीकरण और नागरिकों के पंजीकरण आरजीसीसी ही है।] क्या आरजीसीसी के पास किसी व्यक्ति की "नागरिकता" का निर्धारण करने का आवश्यक साधन या मेंडट है यह सवाल के घेरे में है। फिर भी, नागरिकता नियम, 2003, इसे एनआरआईसी तैयार करने का काम सौंप रहा है।

संबंधित क़ानूनों और नियमों पर एक नज़र डालने से यह स्पष्ट हो जाता है कि घरों का सूचिकरण, जनसंख्या गणना और जनसंख्या रजिस्टर (या एनपीआर) प्राथमिक डाटाबेस हैं जिन्हें एनआरआईसी तैयार करने के लिए उपयोग किया जाएगा। कई-एजेंसी डाटा द्वारा डाटा के उपयोग की वैधता की जांच करने की आवश्यकता है और क्या उन्हे कानूनी प्रावधान के तहत एनपीआर और एनआरआईसी के उद्देश्यों के लिए की गई जनगणना के माध्यम से एकत्र किए गए डेटा का उपयोग करने की अनुमति हैं?

एनआरआईसी की सहायता के लिए सरोगेट नागरिकता विधेयक

इसके अलावा, एनआरआईसी को एक सरोगेट क़ानून, भारतीय नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 का समर्थन मिलने की संभावना है। हालांकि यह बिल 3 जून 2019 को समाप्त हो गया था, लेकिन इसे वर्तमान सरकार ने  9 दिसंबर 2019 को लोकसभा में पुनः प्रस्तुत कर दिया, और 11 दिसंबर को राज्यसभा में पेश किया था।

यदि यह संशोधन विधेयक संसद में पास हो जाता है, तो अल्पसंख्यक समुदायों के शरणार्थी, अर्थात् हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी या फिर अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले ईसाई और मुस्लिम समुदाय को छोड़कर सभी भारतीय नागरिकता के पात्र होंगे। सबसे उपयुक्त तो यह होता अगर इस बिल में नेपाल, भूटान, श्रीलंका, म्यांमार और मालदीव सहित सभी दक्षिण एशियाई राष्ट्रों को शामिल किया जाता। इसके लिए, यह उचित लगता है कि यह संशोधन केवल भारत में रहने वाले मुसलमानों के लिए नहीं है यानि उन पर कोई आंच नहीं आएगी, लेकिन जो एनआरआईसी सूची से बाहर हो रहे हैं, उनकी कानूनी तौर पर गिरफ़्तारी होगी, उन्हें ज़ब्त कर उनका प्रत्यर्पण किया जाएगा।

स्थानीय सरकारी अधिकारी जैसे जनगणना विभाग, चुनाव आयोग और ज़िला नौकरशाही तथाकथित भारतीय नागरिकों की सूची तैयार करने के लिए ज़िम्मेदार हैं। इस तरह की सूचियों को राज्य-स्तरीय अधिकारियों द्वारा अनुमोदित किया जाता है, जिन्हें आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचित किया जाता है, और उस राज्य से संबंधित "नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर" प्रकाशित किया जाता है।

यह तब उन व्यक्तियों की ज़िम्मेदारी बन जाती है कि वे यह जाँच करें कि उनका अपना नाम, या उनके परिवार के सदस्यों का नाम रजिस्टर में सूचीबद्ध है या नहीं। अगर वे अपने नाम गायब पाते हैं, तो वे अपने आप को गैर-नागरिक के रूप में मान सकते हैं या फिर वे अपने बहिष्कार को चुनौती देने के लिए राज्य में बने "विदेशियों के न्यायाधिकरण" से संपर्क कर सकते हैं। इन न्यायाधिकरणों के निर्णय अंतिम माने जाएंगे, फिर भी न्याय की तलाश और भारतीय नागरिक के रूप में वे अपने अधिकारों को सुरक्षित करने के अंतिम कानून के पदानुक्रमित प्रणाली कोर्ट तक पहुंच सकते हैं।

जैसा कि असम के अनुभव के बाद अब यह सामान्य ज्ञान बन गया है, कि यह प्रक्रिया न केवल बोझिल है, बल्कि जटिल, महंगी, समय खाने वाली प्रक्रिया तो है ही साथ ही यह मूर्खतापूर्ण भी है। इस लेखक का मुख्य अवलोकन यह है कि भारत का मुस्लिम समुदाय आधिकारियों की ओर से तनाव में है, जो अक्सर गैर जिम्मेदार होते हैं, और जिनके इर्द-गिर्द पूरे देश की एनआरआईसी का विस्तार है। दूसरा, नागरिकता संशोधन विधेयक अत्यधिक भेदभावपूर्ण है। यदि पारित हो जाता है, तो इसका गलत तरीके से उपयोग किया जा सकता है, जो एनआरआईसी सूची से बहिष्कृत होने के जोखिम के तहत गरीब, ग्रामीण, अनपढ़ और कम आय वाले मुस्लिम परिवारों के अधिकांश हिस्से को ख़तरे में डाल देगा। मुसलमानों के बीच बड़बड़ाहट है कि उन्हें एनआरआईसी का बहिष्कार करना चाहिए।

चार संभव सुरक्षा उपाय  

हालाँकि, इस लेखक के अनुसार, भारत के लोग सरकारी एजेंसियों और कर्मचारियों के साथ अपना डेटा साझा करने के समय निम्नलिखित चार सुरक्षा उपायों का इस्तेमाल कर सकते हैं:

पहला, मार्च और सितंबर 2020 के बीच, जब भारत भर में घर-सूचीकरण किया जाएगा, तो जनगणना अधिकारी प्रत्येक घर का दौरा करेंगे। इन दौरों के दौरान, उत्तरदाताओं, या घरों के प्रमुखों को, अधिकारियों से स्पष्ट रूप से लिखित में लेना चाहिए कि उनका डेटा, जिसे एनपीआर के गृह-सूचीकरण के दौरान एकत्र किया गया है, सिर्फ जनसंख्या गणना के लिए, और नीति विश्लेषण के लिए सर्वसम्मति से उपयोग किया जाएगा।

आदर्श रूप से, इस वाक्य को भारत के राष्ट्रपति को हस्ताक्षरित करना चाहिए। जैसे कि भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के मुद्रित नोटों पर हस्ताक्षर उनकी सुरक्षा का एक सामान्य वादा होता है।

दूसरा, लिखित वादे को पूरा करने के बाद, जनगणना अधिकारियों को इस तथ्य की एक रिसिप्ट/पावती जारी करने के लिए कहा जाना चाहिए कि उनका दौरे के दौरान व्यक्तिगत डेटा एकत्र किया गया था। इस पावती को यह भी कहना चाहिए कि डाटा साझा नहीं किया जाएगा, और न ही किसी अन्य उद्देश्य के लिए इसका इस्तेमाल किया जाएगा। इस पावती में डेटा लेने का समय, तारीख़ और स्थान दर्ज होना चाहिए।

तीसरा, इकट्ठा किए गए सभी डेटा की एक मुद्रित प्रति उस व्यक्ति को उसकी स्वयं की डेटा फ़ाइल और उसके भविष्य के उपयोग के लिए जारी की जानी चाहिए। इस डाटा को प्रत्येक व्यक्ति को पुनर्प्राप्ति की एक ऑनलाइन प्रणाली के माध्यम से भी उपलब्ध कराया जा सकता है।

चौथा और आख़िरी उपाय, सरकार को अपनी कार्यप्रणाली में बदलाव करना चाहिए और उन हॉट-स्पॉट या उन क्षेत्रों की पहचान करनी चाहिए जहां अवैध निवासियों की सबसे अधिक संभावना है। यहाँ यह याद रखने की बात है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में, जनगणना में एक प्रश्न को शामिल करने के लिए एक समान प्रयास किया गया था जिसमें लोगों को अपनी नागरिकता को साबित करने के लिए कहा गया था, तो उसे अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज़ कर दिया था।

एनआरआईसी पर बेकार का ख़र्च

मेरे अंदाज़े के अनुसार, पूरे भारत में एनआरसी का विस्तार करने से 3.8 लाख करोड़ रुपये की लागत आएगी। धन के ख़राब इस्तेमाल का यह पैमाना राष्ट्रीय जीडीपी का लगभग 2 प्रतिशत होगा। एनआरसी को असम में लागू करने पर बजट में 1,221 करोड़ रुपये की लागत आई है। इसके अलावा, इसमें आवेदकों का भी 7,800 करोड़ रुपये का खर्च आया है। यदि इस पर कोई अंदाज़ा लगाए तो पूरे भारत में एन॰आर॰आई॰सी॰ को पूरा करने के लिए 3,83,874 करोड़ रुपए (53.3 बिलियन यूएस डॉलर) की आवश्यकता होगी।

3.8 लाख करोड़ रुपये के इस ख़र्च के व्यापक पैमाने पर विचार करें: चालू वित्त वर्ष (2019-'20) में उच्च शिक्षा सहित मानव संसाधन विकास मंत्रालय को बजटीय आवंटन मात्र 94,853 करोड़ रुपये है, जो कि एनआरआईसी के एक चौथाई के बराबर है। इसी तरह, स्वास्थ्य मंत्रालय को बजट द्वारा 62,398 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। यदि स्वास्थ्य पर 3.8 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाते हैं, तो भारत का स्वास्थ्य देखभाल बजट छह गुना बढ़ जाएगा; या शिक्षा पर बजट चार गुना हो जाएगा। मुझे लगता है कि एनआरआईसी पर रक्षा बजट के 3.18 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक ख़र्च होंगे।

इसलिए, क़ानूनी और वित्तीय कारणों से, और मानव त्रासदी जो यह लेकर आएगी वह ग़लत राजनीतिक निर्णय है जिसे पूरे भारत में एनआरसी के विस्तृत रूप में लागू किया जाएगा।

लेखक सच्चर समिति के सदस्य-सचिव थे और वाशिंगटन डीसी में यूएस-इंडिया पॉलिसी इंस्टीट्यूट के साथ काम करते हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Four Ways Citizens Can Repel Dangers of All-India NRC

NRC and Citizenship Bill
All-India NRC
Legal framework for NRC
Cost of NRC
Data Protection
Civil resistance to NRC
CAB
BJP
Amit Shah

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