NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
गाय के लिए इंसानों की बलि!
बुलंदशहर मॉब लिंचिंग घटना से पता चलता है कि हिंदुत्व का सर्वोच्चतावादी वैश्विक दृष्टिकोण बढ़ रहा है। ये विचार मानव जाति के प्रति पूर्ण उदासीनता और उपेक्षा को दर्शाता है।
सुभाष गाताडे
10 Dec 2018
mob killings

"ये अजीब लोग हैं, जिन्हें ऐसा लगता है कि उनके लिए मानव जाति को छोड़कर सभी जीव पवित्र हैं।" - भारतीयों के बारे मार्क ट्वाइन का विचार। यह एक ऐसा कथन है जो एक नेता की इकलौती याद की तरह काम करता है. मार्क ट्वाइन के कथन के पीछे के विचार को दर्शाने के लिए विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के नेता गिरिराज किशोर को एक बेहतर उदाहरण माना जा सकता है। किशोर ने कहा था, "गाय को पुराणों (हिंदू शास्त्रों) में मनुष्यों की तुलना में अधिक पवित्र माना गया है।" यह एक ऐसा मौका था, जब मृत गाय ले जा रहे पांच दलितों को कई वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में थाने के सामने गौरक्षकों की भीड़ ने पीट-पीट कर मार दिया था। सभी अधिकारी मूक दर्शक बने हुए थे।

ये घटना हरियाणा में झज्जर के दुलिना इलाके की है जो वर्ष 2002 के अक्टूबर महीने में हुई थी। इस मूक दर्शक जैसी हत्या के बाद एक भौंडा नाटक उस वक्त हुआ जब अपराध होता हुए देखने वाले पुलिसकर्मी ने मृत गायों को फौरन जांच के लिए भेज दिया और 'गौवध' को लेकर मृत दलितों के ख़िलाफ़ ही मुक़दमा दायर कर दिया। गिरिराज किशोर की मौत कुछ साल पहले हो गई लेकिन जिस विचार का उन्होंने प्रतिनिधित्व किया वह मानव जीवन के प्रति उपेक्षा और पूर्ण उदासीनता को व्यक्त करता है। साधु से नेता बने उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने अनजाने में या इसी तरह साबित किया कि वह इस युगसत्य को अपेक्षाकृत आदर्श मानते हैं।

बुलंदशहर की हिंसा पर योगी आदित्यनाथ चुप हैं. जहां हिंदूत्व कट्टरपंथियों द्वारा कथित तौर पर हिंसा को उकसाने के चलते एक साहसी पुलिस अधिकारी की हत्या, एक युवक की हुई मौत हुई है. खेत में पाए गए मृत गाय के शरीर के अंश को लेकर उनकी चिंता तथा दोषियों को पकड़ने को लेकर पुलिस अधिकारियों को दिए गए आदेश, यह प्रमाणित करती है कि योगी आदित्यनाथ भी गिरिराज किशोर के नजरिये को आदर्श वाक्य की तरह मानते हैं. हिंसक भीड़ द्वारा एक पुलिस अधिकारी की हत्या पर उनकी चुप्पी को लेकर चारों तरफ आलोचना हुई। उनके दफ्तर से दूसरा बयान आया जिसमें सुबोध कुमार सिंह की मृत्यु और उनके परिवार को वित्तीय सहायता देने का वादा किया गया।

अपुष्ट स्रोतों के मुताबिक उनके दफ्तर से जारी किए गए दो बयानों के बीच का कुछ घंटे का अंतर था? भीड़ की हिंसा और ड्यूटी पर एक पुलिसकर्मी की हत्या के मामले की निंदा करने में आखिर इतना समय क्यों लगा? एक साधु के रूप में आदित्यनाथ व्यक्ति के साथ-साथ गाय या प्रथा को प्राथमिकता देने के लिए स्वतंत्र थे जो उनकी आस्था के अनुसार है लेकिन एक मुख्यमंत्री के रूप में वह संवैधानिक जनादेश का पालन करने के लिए बाध्य हैं। क्या वह इस मूलभूत सिद्धांत को भूल गए थें या यह चुनिंदा तरीके से भूलने का कोई मामला था? या ऐसा इसलिए है क्योंकि मारे गए पुलिस अधिकारी सुबोध कुमार सिंह वही अधिकारी थें जिन्होंने अख़लाक़ (अक्टूबर 2015) की भीड़ द्वारा की गई हत्या की जांच की थी और भारी राजनीतिक दबाव का सामना करते हुए कुछ हिंदुत्व कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ मुक़दमा दायर किया था? या, क्या इस वजह से ऐसा करना पड़ा कि अपराध के प्रति उनका एक्शन ठीक नहीं था जो सत्तारूढ़ पार्टी के क्षेत्रों में असंतोष का कारण बना और हिंदू अनुष्ठान में हस्तक्षेप को लेकर उनके ख़िलाफ़ स्थानीय बीजेपी सांसद को पत्र लिखने को मजबूर किया।

कार्टूनिस्ट अरविंद तेगिननामथ ने यूपी के मामलों पर कार्टून बनाया है। उनके कार्टून का शीर्षक 'रिपब्लिक ऑफ यूपी' यह प्रदर्शित करता है कि किस तरह सरकार 'गौ रक्षकों का, गौ रक्षकों के लिए और गौ रक्षकों के द्वारा' गणराज्य बन गया है जो राज्य के मामलों पर हावी हो गया है। हमें याद है कि जब गौवध पर प्रतिबंध को लेकर केंद्र और कई राज्यों की बीजेपी सरकार से सहमति मिलने के बाद इसमें गति आ गई और जब इसे प्रस्तावित किया जा रहा था और लागू किया जा रहा था तो दो वाजिब सवाल उठे थे।

एक सवाल, दलितों, आदिवासियों, मुसलमानों और ईसाइयों द्वारा सस्ते प्रोटीन के इस्तेमाल पर इसके नकारात्मक प्रभाव से संबंधित था जिनके लिए बीफ प्रोटीन का सबसे सस्ता स्रोत होता है क्योंकि इसकी क़ीमत बकरे के मांस से लगभग एक-तिहाई कम होती है और उनके पारंपरिक भोजन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी होता है। तब यह रेखांकित किया गया कि भारत में मांस की कुल प्रति व्यक्ति खपत दुनिया में सबसे कम थी। वर्ष 2007 में संयुक्त राष्ट्र की खाद्य एवं कृषि संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत कुल 177 देशों में अंतिम पायदान पर है।

हम जानते हैं कि प्रतिबंध को लागू करने के उनके उन्माद में सरकार द्वारा कोई विकल्प नहीं तैयार किया गया जो लोगों को सस्ता प्रोटीन मुहैया करा सके और न ही इसके लिए किसी प्रकार की योजना बनाई गई। दूसरा सवाल उन बैल, भैंस व गायों के रखरखाव की चुनौती से संबंधित था जो एक किसान के लिए अपनी उपयोगिता खो चुके थे। ऐसा कहा जाता था कि कोई देश जो लोगों की भोजन जैसी बुनियादी जरूरत को पूरा करने में अभी सक्षम नहीं है ऐसे में यह बोझ किसानों पर पड़ेगा जो उन्हें और कमज़ोर कर देगा।

देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाली रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि पिछले दो-तीन वर्षों से छोड़ी गई गायों और गोवंश की संख्या में अचानक वृद्धि गोवध के प्रतिबंध से सीधे तौर पर जुड़ी हो सकती है साथ ही उन्हें चारा मुहैया कराने में मवेशी मालिकों की अक्षमता भी हो सकती है। एक अनुमान के मुताबिक एक गाय के रखरखाव में प्रति दिन क़रीब 90-100 रुपये ख़र्च होता है। इसके अलावा यह चारा, अनाज, पानी और यहां तक कि श्रम संसाधनों की कमी के चलते भी होता है।

पहले जब इस तरह के कड़े प्रावधान नहीं थे तो एक किसान अपने अनुत्पादक मवेशी को एक कसाई के हाथों बेच देता था और उसे 5,000-10,000 रुपए मिल जाता था। वर्तमान में ऐसा संभव नहीं है। आवारा गायों के चलते सिर्फ गांव में ही फसलों के नुकसान और दुर्घटनाएं नहीं हो रही हैं बल्कि शहरों में भी घटनाएं हो रही हैं। ये मामला देश भर में चिंता का विषय बनता जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार भारत में लगभग पचास लाख आवारा गायें हैं। ऐसी गायें न केवल खेतों को नष्ट करती हैं बल्कि यातायात को भी प्रभावित करती हैं और कभी-कभी जानलेवा साबित होती हैं। सिंह ने कहा, "ट्रैक और सड़कों पर दुर्घटनाओं के कारण गाय के मौत की संख्या बढ़ गई है, लेकिन वे ऐसी गायें हो जो दूध देना बंद कर देती है जिसके बाद उसे खुला छोड़ दिया जाता है। वे ज़्यादातर देसी नस्ल की हैं। और यह समस्या आने वाले वर्षों में बढ़ेगी।" "क्या यह गोवध नहीं है?" जिसकी चर्चा कम की जाती है वह ये कि छोड़ी गई ये गायें जिनके चलते सड़क दुर्घटनाएं होती है उससे इंसानों की ज़िंदगी को भी नुकसान पहुंचता है।

पंजाब में अधिकारियों ने इस साल 17 अप्रैल को घोषणा किया था कि पिछले 30 महीनों में सड़क दुर्घटनाओं में शामिल गायों के चलते 300 लोगों की मौत हुई है। ये आंकड़े केवल एक राज्य से संबंधित हैं। कई राज्यों में गोवध पर प्रतिबंध लगाने के बाद जो मामला सामने आया है वह ये कि गाय-संबंधित हिंसा और गौरक्षक समूहों में अचानक वृद्धि हुई है। बुलंदशहर में भीड़ द्वारा एक पुलिस अधिकारी की हत्या इसी श्रृंखला की नई घटना है। आंकड़ों का विश्लेषण करने वाली एक वेबसाइट इंडियास्पेन्ड ने गाय से संबंधित हिंसा का अध्ययन किया था और यह दिखाया था कि केंद्र में हिंदुत्व शक्ति के आने के बाद से इस तरह की मौतों ने तेज़ी से वृद्धि देखी गई।

वर्ष 2014 सहित 2012 और 2013 में मौत की संख्या का आंकड़ा नगण्य होने के बावजूद वर्ष 2015 के बाद से इस तरह की घटना में वृद्धि हुई जो प्रति वर्ष लगभग 10 मौत दर्ज की गई है। उदाहरण स्वरूप वर्ष 2012 में पंजीकृत भारतीय गौ रक्षा दल के प्रतिनिधियों ने ह्यूमन राइट्स वाच से कहा था कि ये नेटवर्क देश भर में लगभग 50 समूहों से संबद्ध था और इसके 10,000 स्वयंसेवक लगभग हर राज्य में तैनात थें। इस दावे के अलावा धरातल पर वास्तविक स्थिति क्या है? क्या ये समूह वास्तव में गायों के कल्याण के बारे में चिंतित हैं या वे मूल रूप से समाज-विरोधी तत्व हैं जिन्हें सत्तारूढ़ सरकार द्वारा वैधता दे दी गई है और हिंसा के लिए उन्हें आउटसोर्स किया गया है।

इंडिया टुडे पत्रिका द्वारा किए गए एक स्टिंग ऑपरेशन में उत्तर प्रदेश और हरियाणा में दो बड़े संगठित गौरक्षक समूहों की पुलिस के साथ मिलीभगत और उनके कार्य प्रणाली को दिखाया गया है। अपनी कार्रवाई के बारे में बताते हुए गौरक्षकों के नेता ने कहा कि सड़क को ब्लॉक कर दिया, डराया, धमकाया और ट्रक से मवेशियों को ज़ब्त किया और उसे लोगों में बांट दिया। ऐसे कामों में तैयारी की थोड़ी ज़रूरत पड़ती है, क्योंकि 'गौरक्षकों को उसके संभावित निशाने पर घातक हमला करने और 'आंतरिक चोट पहुंचाने', उनकी हड्डियों और मांसपेशियों और पैरों को नुकसान पहुंचाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, लेकिन सिर पर मारने से मना किया जाता है क्योंकि इससे गिरफ्तारी का मामला बन सकता है।

'उसकी टीम के किसी भी सदस्य को अब तक छह राज्यों में एक भी पुलिस केस का सामना नहीं करना पड़ा'। वे गौरक्षकों के रूप में खुद का प्रचार कर सकते हैं, लेकिन ".. इंडिया टुडे का टेप में गौरक्षकों के नेता ने स्वीकार किया है कि उसका गिरोह पवित्र मवेशियों का हाइवे लुटेरा है। क़रीब ढाई साल पहले ऊना में मृत गाय की चमड़ी निकालने को लेकर दलितों को बुरी तरह पीटा गया था। इसको लेकर देशभर में आंदोलन किया गया। जब ऊना आंदोलन अपने चरम पर था तब गुजरात के मुख्य सचिव जी आर ग्लोरिया ने एक राष्ट्रीय दैनिक अख़बार से कहा था कि 'ये लोग स्व-घोषित गौरक्षक हैं लेकिन वास्तव में वे गुंडे हैं'। उनके अनुसार गुजरात में क़रीब 200 गौरक्षक समूह हैं जो 'अपनी आक्रामकता के कारण कानून-व्यवस्था के लिए समस्या बन गए हैं और जिस तरह से वे अपने हाथों में क़ानून लेते हैं' सरकार उनके ख़िलाफ़ सख्त कार्रवाई करने जा रही है। मुख्य सचिव ने यह भी स्पष्ट रूप से कहा कि निचले स्तर के पुलिसकर्मी इन गौरक्षकों के साथ मिले हुए हैं। और ये गौरक्षकों की हिंसा फ्रिंज समूहों तक ही सीमित नहीं है।

अब तेलंगाना में बीजेपी के पूर्व विधायक राजा सिंह को ही लिया जाए जो अपने विवादास्पद बयान को लेकर काफी मशहूर हैं। गुजरात सरकार के ख़िलाफ़ जन आंदोलन को जन्म देने वाली ऊना घटना (जुलाई 2016) के ठीक बाद और राज्य के साथ-साथ केंद्र सरकार ने खुद का बचाव किया। विधायक ने 'गर्व से' कहा था: वे दलित जो मृत गायों या गाय के मांस के साथ पाए गए उन्हें पीटा जा सकता है, ... "जो दलित गाय के मांस को ले जा रहा था, जो उसकी पिटाई हुई है, वो बहुत ही अच्छी हुई है।" ये बात सिंह ने फेसबुक पर अपलोड किए गए एक वीडियो में कहा था।

हालांकि दलितों को संबंध में बीजेपी नेता की धमकी को लेकर बहुत हंगामा हुआ लेकिन न तो राज्य की भाजपा नेतृत्व और न ही इसके केंद्रीय नेतृत्व ने उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई करना जरूरी समझा। उस समय हिंदुत्व सुपरमासिस्ट बलों के मुखपत्रों के एक लेख ने स्वर्गीय गिरिराज किशोर द्वारा कहे गए दलितों की पिटाई को दोहराकर तर्कसंगत करार दिया, एक बार फिर यह साबित किया जा रहा है कि वीएचपी नेता मर सकता है, लेकिन उसका वैश्विक विचार ज़िंदा रहता है!

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं।

bulandshahr violence
bulandshahr bawal
mob lynching
Cow Vigilante
cow terrorism
Assassination of Inspector Subodh
Subodh Kumar Singh
UP Government
Yogi Adityanath

Related Stories

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा

यूपी में  पुरानी पेंशन बहाली व अन्य मांगों को लेकर राज्य कर्मचारियों का प्रदर्शन

UPSI भर्ती: 15-15 लाख में दरोगा बनने की स्कीम का ऐसे हो गया पर्दाफ़ाश

क्या वाकई 'यूपी पुलिस दबिश देने नहीं, बल्कि दबंगई दिखाने जाती है'?

यूपी: बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था के बीच करोड़ों की दवाएं बेकार, कौन है ज़िम्मेदार?

उत्तर प्रदेश राज्यसभा चुनाव का समीकरण

योगी 2.0 का पहला बड़ा फैसला: लाभार्थियों को नहीं मिला 3 महीने से मुफ़्त राशन 

सिवनी मॉब लिंचिंग के खिलाफ सड़कों पर उतरे आदिवासी, गरमाई राजनीति, दाहोद में गरजे राहुल


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा
    04 Jun 2022
    ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर पर एक ट्वीट के लिए मामला दर्ज किया गया है जिसमें उन्होंने तीन हिंदुत्व नेताओं को नफ़रत फैलाने वाले के रूप में बताया था।
  • india ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट
    03 Jun 2022
    India की बात के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, अभिसार शर्मा और भाषा सिंह बात कर रहे हैं मोहन भागवत के बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को मिली क्लीनचिट के बारे में।
  • GDP
    न्यूज़क्लिक टीम
    GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफ़ा-नुक़सान?
    03 Jun 2022
    हर साल GDP के आंकड़े आते हैं लेकिन GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफा-नुकसान हुआ, इसका पता नहीं चलता.
  • Aadhaar Fraud
    न्यूज़क्लिक टीम
    आधार की धोखाधड़ी से नागरिकों को कैसे बचाया जाए?
    03 Jun 2022
    भुगतान धोखाधड़ी में वृद्धि और हाल के सरकारी के पल पल बदलते बयान भारत में आधार प्रणाली के काम करने या न करने की खामियों को उजागर कर रहे हैं। न्यूज़क्लिक केके इस विशेष कार्यक्रम के दूसरे भाग में,…
  • कैथरिन डेविसन
    गर्म लहर से भारत में जच्चा-बच्चा की सेहत पर खतरा
    03 Jun 2022
    बढ़ते तापमान के चलते समय से पहले किसी बेबी का जन्म हो सकता है या वह मरा हुआ पैदा हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान कड़ी गर्मी से होने वाले जोखिम के बारे में लोगों की जागरूकता…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License